शुक्रवार, 4 मार्च 2011

एम्स में आज शाम ली अर्जुन सिंह ने अंतिम सांस

शांत हो गया कांग्रेस का चाणक्य
 
आज ही हटाया था सोनिया ने अर्जुन सिंह को अपनी मण्डली से

(लिमटी खरे)
 
नई दिल्ली। कांग्रेस के बीसवीं सदी के अंतिम दशकों के चाणक्य कुंवर अर्जुन सिंह का आज निधन हो गया, वे 81 वर्ष के थे, और लंबे समय से बीमार थे। अस्सी के दशक के उपरांत राजनैतिक ज्वार भाटा के साक्षी रहे अर्जुन सिंह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री, पंजाब के राज्यपाल और केंद्रीय मंत्री रहे हैं।

देश के हृदय प्रदेश के विन्ध्य क्षेत्र के राजनेता राव शिव बहादुर सिंह के पुत्र कुंवर अर्जुन सिंह का जन्म पांच नवंबर 1930 को हुआ था। उनका विवाह विन्ध्य के सतना की ही सरोज देवी के साथ हुआ था। वे अपने पीछे पत्नि, दो पुत्र और एक पुत्री को बिलखता छोड गए हैं। माना जाता है कि तिवारी कांग्रेस के गठन के समय अगर उन्होंने कांग्रेस का दामन नहीं छोड़ा होता तो वे आज देश के प्रधानमंत्री होते।

अर्जुन सिंह की गिनती सफल राजनेताओं में की जाएगी। बतौर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री उन्होंने 1984 में संयुक्त मध्य प्रदेश में कांग्रेस को चालीस में से चालीस सीटेें जितवाकर दी थी। अर्जुन सिंह को 1985 में केवल एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बनने का अवसर भी मिला। एक दिन के उपरांत ही उन्हें पंजाब में विषम परिस्थितियों से निपटने के लिए बतौर राज्यपाल बनाकर भेज दिया गया था। उस दौरान राजीव गांधी और लोंगोवाल समझौते में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण ही रही है। पंजाब में अस्तव्यस्त जनजीवन को पटरी पर लाने के लिए अर्जुन सिंह को सदा ही याद रखा जाएगा। इसके अलावा संयुक्त मध्य प्रदेश में तेंदूपत्ता संग्राहकों को उनका वाजिब हक दिलाने में अर्जुन सिंह की नीति भी सराहनीय रही है।

राजीव गांधी की हत्या के उपरांत प्रधानमंत्री बने नरसिंहराव से उनके संबंध कभी भी मधुर नहीं रहे हैं। बाद में तिवारी कांग्रेस के गठन के बाद इसी दल की टिकिट से सतना से वे चुनाव हार गए थे। बाद में वे कांग्रेस में वापस लौटे और फिर 1998 में लोकसभा चुनाव में उन्होंने अपना क्षेत्र बदलकर होशंगाबाद कर दिया किन्तु वहां से भी उन्हें पराजय ही हाथ लगी।

वर्ष 2000 में उन्हें मध्य प्रदेश से ही राज्य सभा सदस्य बनाया गया, जिसके बाद वे 2004 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में मानव संसाधन और विकास मंत्री बने। संप्रग की दूसरी पारी में उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया। इसके बाद उनकी परेशानियों और दुश्वारियों का सिलसिला आरंभ हुआ।

अर्जुन सिंह के लाख चाहने पर भी कांग्रेस ने उनकी पुत्री को लोकसभा का टिकिट नहीं दिया गया। इसके उपरांत उनकी जीवनी पर लिखी उनकी किताब में उनकी पत्नि के हवाले से बयान आया कि सोनिया गांधी ने अर्जुन सिंह को प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति नहीं बनाकर गल्ती की है। साथ ही भोपाल गैस कांड में एण्डरसन को भगाने के मामले में उनकी भूमिका काफी संदिग्ध समझी गई थी। आज घोषित हुई टीम सोनिया में भी कुंवर अर्जुन सिंह का नाम नदारत ही है। माना जा रहा है कि अब राहुल सिंह के मध्य प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष बनने की संभावनाएं भी क्षीण ही हो गई हैं।

और कितने प्रमाण चाहिए कांग्रेस की राजमाता को

थामस का शनी हो गया भारी
 
दागदार को बनाया थानेदार कोर्ट ने उतारा कुर्सी से

आखिर क्या चाह रही हैं सोनिया गांधी?

सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से दूध का दूध पानी का पानी

(लिमटी खरे)

इक्कीसवीं सदी के पहले दशक की समाप्ति के दौर में सवा सौ करोड़ की आबादी का भारत गणराज्य बुरी तरह शर्मसार हुआ है। देश को शर्मसार और किसी ने नहीं वरन् सवा सौ साल पुरानी और देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस के वर्तमान निजामों ने किया है। लंबे समय से कांग्रेस की बागडोर इटली मूल की श्रीमति सोनिया गांधी के हाथों में है। सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के सारे कारिंदे मनमानी पर पूरी तरह उतारू हैं, और सोनिया कभी मंद मंद मुस्कुरा देती हैं तो कभी जोर का ठहाका लगा देती हैं।

सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्रीय सतर्कता आयुक्त पोलायिल जोसफ थामस को हटाने के जो आदेश जारी किए हैं, वे देश की कांग्रेसनीत सरकार की किरकिरी करने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है, किन्तु घपलों, घोटालों को अंगीकार कर चुकी भ्रष्टों की संरक्षक और हिमायती बनी कांग्रेस पार्टी ने इसे अपने बचाव के तौर पर भी देख रही है। कांग्रेस ने सारी हदें पार कर ली हैं। इस वक्त लगभग तीन लाख करोड़ रूपयों के घपले और घोटाले देश में गूंज रहे हैं, इनका कहीं न कहीं कांग्रेस से संबंध है।

लंबे समय तक पोलायिल जोसफ थामस का बचाव करने वाली केंद्र सरकार के गाल पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जो जबर्दस्त तमाचा मारा है, उसकी गूंज की गूंज सालों साल तक सुनी जाती रहेगी। वस्तुतः प्रधानमंत्री डाॅ.मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम द्वारा सीवीसी की नियुक्ति के लिए गठित समिति की तीसरी सदस्य नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सुषमा स्वराज की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए पोलायिल जोसफ थामस को सीवीसी जैसे महत्वपूर्ण पद पर विराजमान कर दिया था। सवाल यह है कि जहां देश की सबसे बडी जांच एजेंसी सीबीआई भी सीवीसी की देखरेख में काम करती है, तब यह आवश्यक हो जाता है कि संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के समय संस्थागत गरिमा को बाकायदा ध्यान में रखा जाए। इसके लिए जरूरी है कि सीवीसी जैसे पद पर उस व्यक्ति को बिठाया जाए जिसकी छवि उजली हो, बेदाग हो और वह किसी के दबाव में आकर काम न करे।

पोलायिल जोसफ थामस की हिमाकत तो देखिए उन्होंने सर्वोच्च न्यायलय में यह कहने में भी संकोच नहीं किया कि जब आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोग देश में सांसद चुने जा सकते हैं तो फिर वे सीवीसी क्यों नहीं बन सकते हैं। उधर कितने आश्चर्य की बात है कि देश के प्रधानमंत्री को यह नहीं पता कि पोलायिल जोसफ थामस पर पामोलिन आयल घोटाले का प्रकरण चल रहा है! जब थामस पर एक प्रकरण चल रहा है फिर पलनिअप्पम चिदम्बरम भला थामस को कैसे क्लीन चिट दे सकते हैं।

पोलायिल जोसफ थामस में क्या गुड लगा हुआ है जो सरकार बार बार उनका बचाव करती रही। इतना ही नहीं सरकार द्वारा न्यायपलिका पर भी प्रश्नवाचक चिन्ह लगाते हुए कहा गया कि न्यायपालिका को सरकार के काम में दखल देने का अधिकार नहीं है। कितने आश्चर्य की बात है कि एक अदने से भ्रष्ट अधिकारी को सही ठहराने के लिए कांग्रेसनीत केंद्र सरकार द्वारा न केवल तथ्यों को छिपाने का कुत्सित प्रयास किया है, वरन देश को गुमराह भी करने में कोई शर्म नहीं महसूस की है।

विडम्बना तो यह है कि एक निहायत ईमानदार व्यक्ति के प्रधानमंत्री होते हुए केंद्र सरकार एक के बाद एक घपले घोटालों से घिरती ही चली जा रही है। पता नहीं कब यह सिलसिला रूक सकेगा। इससे पहले कामन वेल्थ गेम्स में सरकार की खासी किरकिरी हो चुकी है। टूजी मामले में आदिमत्थू राजा का बचाव करने वाली सरकार के सामने बुरी स्थिति तब आई जब उसे इसी मसले में राजा से त्यागपत्र मांगा गया और फिर बाद में राजा को जेल भी भेजा गया।

हालात देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि सरकार अपनी जिम्मेवारी को समझना ही नहीं चाहती। बहुत पुरानी कहावत है कि ‘‘जगाया उसे जा सकता है, जो सो रहा हो, किन्तु जो सोने का नाटक करे उसे आप कभी भी जगा नहीं सकते। कहने का तातपर्य महज इतना ही है कि सरकार को अपने हाथ साफ करके सबके सामने आना चाहिए, ना कि आत्मघाती राजनैतिक मजबूरियों को गिनाने का प्रयास करना चाहिए।

भगवान शनि बहुत दयालू और दूसरी ओर बहुत ही क्रूर भी हैं। शनि देव को तेल का अर्पण करने से वे प्रसन्न हो जाते हैं। पोलायिल जोसफ थामस ने केरल में पामोलीन तेल के आयात में घोटाला किया था। इस लिहाज से थामस ने शनि को रूष्ट कर दिया। केरल सरकार ने वर्ष 1991 - 92 में सिंगापुर के एक प्रतिष्ठान से ताड़ का तेल मंगवाया गया था। इसमें आरोप था कि इसे अंतर्राष्ट्रीय दर से अधिक कीमत पर मंगाया गया था। सरकार ने 405 डालर प्रति टन की दर से पंद्रह हजार टन तेल के आयात को मंजूरी दी थी। जबकि बाजार में इसकी दर 392.25 डाॅलर प्रति टन थी। इस हिसाब से राज्य सरकार को उस वक्त 2 करोड़ 32 लाख रूपए का नुकसान उठाना पड़ा था।

जब पोलायिल जोसफ थामस के सीवीसी बनाए जाने की बात चल रही थी तब उनके अलावा 1973 बैच के पश्चिम बंगाल के भारतीय प्रशासनिक सेवा के विजय चटर्जी और 1975 बैच के उत्तरांचल काडर के अधिकारी एस.कृष्णन का नाम उस फेहरिस्त मे ंथा। दूसरी तरफ देखा जाए तो केंद्रीय सतर्कता आयोग एक स्वायत्ता संस्था है, जो केंद्र सरकार की समस्त विजलेंस इकाईयों की निगरानी का काम करती है। वस्तुतः यह कोई जांच एजेंसी नहीं है, यह सीबीआई या अन्य विभागीय जांच एजेंसियों के माध्यम से काम करवाती है। इतना ही नहीं यह सरकार द्वारा कराए गए निर्माण कार्यों की जांच भी स्वयं अपने स्तर पर ही करती है। देखा जाए तो सीवीसी ने 1998 से ही काम करना आरंभ कर दिया था किन्तु इसका गठन 2003 में देश की सबसे बड़ी अदालत के आदेश के बाद हुआ था।

सोनिया मनमोहन के बीच संवाद आरंभ

पिघल रही है दस जनपथ और 7 रेसकोर्स में जमी बर्फ

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी और वजीरे आजम डाॅ.मनमोहन सिंह के बीच संवादहीनता की स्थिति अब कुछ हद तक समाप्त होती प्रतीत हो रही है। दोनों ही शीर्ष नेताओं ने सार्वजनिक तौर पर भी अब संवाद आरंभ कर दिया है। पिछले दिनों एक विवाह समारोह में जब दोनों ही ताकतवर नेता आमने सामने आए तो वे एक दूसरे की उपेक्षा करने का साहस नहीं जुटा सके।

पिछले दिनों सोनिया गांधी के एक करीबी सुमन दुबे के पुत्र के विवाह समारोह में कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री डाॅ.एम.एम.सिंह दोनों ही शिरकत करने पहुंचे। दोनों ही के वहां पहुंचने के पहले वर पक्ष की ओर से सोनिया की मण्डली तो वधू पक्ष की कमान प्रधानमंत्री कार्यालय के विश्वस्तों ने संभाल रखी थी।

गौरतलब है कि सुमन दुबे की गिनती कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र दस जनपथ (सोनिया का सरकारी आवास) के वफादारों में होती है, तो सुमन दुबे की बहू एक मलयाली पत्रकार और प्रधानमंत्री कार्यालय के अतिरिक्त सचिव की सुपुत्री हैं, जो प्रधानमंत्री की गुड बुक्स में हैं। इस लिहाज से घोषित और अघोषित सत्ता और शक्ति के केंद्र की वहां उपस्थिति लाजिमी ही थी।

यद्यपि यह विवाह केरल में संपन्न हुआ किन्तु इसका रिसेप्शन धौलाकुआं स्थित वायुसेना के मैदान में संपन्न हुआ। इस अवसर पर मनमोहन और सोनिया गांधी दोनों ही आमने सामने आए और कुछ पलों तक वे एकांत में चर्चारत भी रहे। वहां मौजूद लोग इस नजारे को देखकर यह कहने से नहीं चूके कि संबंधों की बर्फ पिघल रही है।

कांग्रेस को अमरिकी अदालत के समन से खलबली


कांग्रेस को अमरिकी अदालत के समन से खलबली
 
(लिमटी खरे)
 
नई दिल्ली। नवंबर 1984 में हिन्दुस्तान में हुए सिख्खों पर हमले की बात लगता है कांग्रेस का पीछा ही नहीं छोड़ रही है। पहले शहरी विकास मंत्री कमल नाथ को अमरिकी समन का सामना करना पड़ा और अब दुनिया के चैधरी अमरिका की एक अदालत ने कांग्रेस पार्टी के नाम से ही समन जारी कर खलबली मचा दी है।
कांग्रेस मुख्यालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार यद्यपि अभी तक कांग्रेस पार्टी को इस समन की प्रति नहीं मिल सकी है किन्तु इंटरनेट के माध्यम से कांग्रेस के पदाधिकारियों को इस बारे में पता चल गया है। कांग्रेस के पदाधिकारी इस मामले में अपनी जुबान खोलने से पूरी तरह बच ही रहे हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार अमरिका की एक अदालत में सिख्स फाॅर जस्टिस संगठन द्वारा दायर याचिका मंे कांग्रेस पर लगाए गए आरोपों के बारे में अदालत ने कांग्रेस से अपना पक्ष स्पष्ट करने को कहा है। इस संगठन में 1984 के दंगों में बचे अनेक सिख्ख सदस्य हैं।
याचिका में आरोप लगाया कि नवंबर 1984 में कांग्रेस पार्टी केंद्र में सत्ता में थी, उस दौरान कांग्रेस पार्टी द्वारा देश भर में सिख्खों पर हमले की साजिश रची थी। इतना ही नहीं हमलों में मदद दी और लोगों को हमला करने के लिए उकसाया। सिख्खों पर हमला भी उन्हीं राज्यों में हुआ था जहां कांग्रेस सत्ता में थी।

अर्जुन, माहसीना बाहर नए चेहरों पर जोर


अंततः सोनिया ने फेंट ही दिए पत्ते 
(लिमटी खरे)
 
नई दिल्ली। अंततः कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी ने अपनी कार्यकारिणी का पुर्नगठन कर ही दिया है। पहले चरण में अनेक वरिष्ठ नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। माना जा रहा है कि अपने बेटे राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के मार्ग प्रशस्त करने में लगी सोनिया गांधी ने कड़ा रूख अख्तिायार कर ही लिया है।
 
चैथी बार अध्यक्ष चुने जाने के तीन माह बाद आज पुर्नगठित कार्यकारिणी में नेहरू गांधी परिवार के विश्वस्त रहे कुंवर अर्जुन सिंह, मोहसीना किदवई और जी.वैंकटस्वामी जैसे उमर दराज नेताओं को स्थान नहीं मिल सका है। सोनिया गांधी ने अनेक लोगों को खलने वाले फैसले लेकर पश्चिम बंगाल, झारखण्ड प्रभारी केशव राव को हटा दिया है। इसके अलावा वी.नारायण सामी, प्रथ्वीराज चव्हाण, मल्लिकार्जुन खडगे, किशोर चंद देव को भी कार्यसमिति से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। आस्कर फर्नाडिस को कार्यसमिति में शामिल करते हुए महासचिव बनाया गया है।
 
सोनिया के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल का रूतबा बरकरार रखा गया है। इसके अलावा मोती लाल वोरा, दिग्विजय सिंह, प्रणव मुखर्जी, ए.के.अंटोनी, जनार्दन द्विवेदी, गुलाम नवी आजाद के साथ ही साथ अपने पुत्र राहुल को भी इसमें स्थान दिया गया है। कांग्रेस की कार्यसमिति में अब 19 सदस्य हो गए हैं।

मध्य प्रदेश के बुंदेलखण्ड क्षेत्र के सूरमा सत्यव्रत चतुर्वेदी की भी सोनिया ने छुट्टी कर दी है। इसके अलावा सोनिया गांधी ने अपनी टीम में आस्कर फर्नाडिस, मधुसूदन मिस्त्री, वीरेंद्र सिंह जैसे लोगों को बतौर महासचिव शामिल किया है। चर्चाओं के अनुसार टीम सोनिया में दो बार से सबसे ज्यादा सांसद भेजने वाले आंध्र प्रदेश को प्रतिनिधित्व न मिलने पर दक्षिण में कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

हम हैं सबसे बडे कर्जदार

हम हैं पांचवे सबसे बड़े कर्जदार 
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। हिन्दुस्तान विश्व के बड़े कर्जदारों की फेहरिस्त में शामिल हो गया है, जी हां यह सच है। विश्व बैंक के ग्लोबल डेवेलपमेंट फाइनैंस 2010 प्रतिवेदन में 20 कर्जदार देशों के आंकड़ों के आधार पर हिन्दुस्तान को दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा कर्जदार देश बताया गया है।
लोकसभा में शिव कुमार उदासी के प्रश्न के लिखित उŸार में विŸा मंत्री प्रणव मुखर्जी ने बताया कि वल्र्ड बैंक के ग्लोबल डेवेलपमेंट फाइनैंस 2010 रिपोर्ट में बाहरी कर्ज के मामले में भारत को दुनिया का पांचवां सबसे कर्जदार देश बताया गया है। इस सूची में पहले स्थान पर रूस उसके बाद चीन, तुर्की और ब्राजील हैं।
वित्त मंत्री ने कहा कि सितंबर 2010 को समाप्त तिमाही में भारत का बाहरी कर्ज 13 लाख 32 हजार 195 करोड़ रुपये था जबकि इससे पूर्व मार्च 2010 को समाप्त तिमाही में बाहरी कर्ज 11 लाख 84 हजार 998 करोड़ रुपये था। प्रणव मुखर्जी ने कहा कि इन कर्जों र्में सितंबर 2010 को समाप्त तिमाही में 77.7 प्रतिशत कर्ज लंबी अवधि के थे और 22.3 प्रतिशत कर्ज कम समय के थे।