मथुरा, ब्रज व राजिम में भी भर चुका है मण्डला
जैसा कुम्भ-राजेन्द्र मिश्र
सिवनी यशो-: कुम्भ शब्द का प्रयोग देश के चार पवित्र स्थानों प्रयाग, हरिद्वार, नासिक, और उज्जैन के बाद अब मण्डला में पहली बारे अब मण्डला में पहली बार हो रहा है यह कहना पूरा सच नहीं है। इसके पूर्व भी प्रति छ: वर्ष में मथुरा, ब्रज एवं राजिम में आयोजित होने वाले पर्व में कुम्भ शब्द का प्रयोग किया जा चुका है। आगामी दिनों में मण्डला में तीन दिनों के आयोजन को सामाजिक कुम्भ का नाम दिया गया है। यह भी पूरी तरह स्पष्ट है कि मण्डला का यह आयोजन पवित्र धाम प्रयोग, हरिद्वार नासिक और उज्जैन जैसा धाॢमक कुम्भ नहीं है।
उक्ताशय की बात प्रख्यात ज्योर्तिविद पंडित राजेन्द्र प्रसाद मिश्र के द्वारा कही गई है। आपने कहा है कि धार्मिक रूप से प्रचलित कई शब्दों का प्रयोग अनेकानेक सामाजिक राजनैतिक संगठनों के द्वारा अवसर विशेष अथवा आयोजनों के दौरान किये जा चुके हैं और किये जाते हैं। उस समय उन शब्दों के प्रयोग पर लोगों का विरोध क्यों नहीं हुआ और आज ऐसा कयों किया जा रहा है? श्री मिश्र ने कहा है कि निश्चित रूप से मण्डला के इस आयोजन में कुम्भ शब्द का उपयोग भी केवल व्यवहारिक है। धार्मिक विधान या आस्था की गूढ़ता से उसका कोई गहरा सम्बन्ध नहीं है तथापि यह भी सत्य है कि सनातन संस्कृति के प्रकाण्ड विद्वान री मण्डन मिश्र जो आगे चलकर शंकराचार्य सुरेश्वाचार्य के नाम से विख्यात हुए की जन्मस्थली मण्डलों में पतित पावनी माँ नर्मदा की जयंती के उपलक्ष्य में होने वाला यह आयोजन कई दृष्टि से महत्वपूर्ण है क्योंकि तीन दिवसीय इस आयोजन में अनेक विद्वान संत महात्मा और श्रद्धालुजन यहां एकत्रित होंंगे और पवित्र भावना से लोगों का यह एक त्रिकरण वहां के वातावरण में पवित्रता लाकर उस तीर्थ की महत्वता को ही बढ़ाएगा। मूलत: आदिवासी और पिछड़े तथा सामाजिक समरसता से कटे यहां के लोगों के लिए यह एक ऐसा अवसर होगा जो उन्हें एक नई दिशा प्रदान करने वाला भी सिद्ध होगा इसीलिए इस सामाजिक कुम्भ का विरोध किया जाना उचित प्रतीत नहीं होता।