अनेक सावधानियों के
बाद तैयार होता है तिरंगा
(प्रियंका श्रीवास्तव)
नई दिल्ली (साई)।
भारत गणराज्य की आन बान और शान का प्रतीक है देश का राष्ट्र ध्वज तिरंगा। तिरंगे
को लेकर कोड ऑफ कंडक्ट काफी सख्त ही है। तिरंगे के निर्माण में बेहद सावधानियां
बरती जाती हैं। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया, को मिली जानकारी के अनुसार तिरंगे का
निर्माण बहुत आसान कतई नहीं है।
स्वतंत्रता दिवस पर
लालकिले की प्राचीर से फहराए जाने वाले राष्ट्रीय ध्वज का निर्माण भी उसकी गरिमा
के अनुरुप ही कडे मानदंडों के तहत किया जाता है। राष्ट्रीय ध्वज को अपने संपूर्ण
रुप में आने से पूर्व कई परीक्षाओं से गुजरना पडता है और उसके बाद ही इसे विभिन्न
सरकारी इमारतों पर फहराने की अनुमति प्रदान की जाती है।
राष्ट्रीय ध्वज का
डिजाइन और उसकी निर्माण प्रक्रिया ब्यूरो आफ इंडियन स्टैंडर्डस (बीआईएस) द्वारा
जारी तीन दस्तावेजों के प्रावधानों से नियंत्रित होती है। सभी राष्ट्रीय ध्वज सूती
खादी या रेशमी खादी से बनाए जाते हैं। राष्ट्रीय ध्वज से संबंधित मापदंडों की
व्यवस्था 1968 में की
गयी थी और इन्हें वर्ष 2008 में फिर से अद्यतन किया गया।
कानून के अनुसार, आज नौ प्रकार के
राष्ट्रीय ध्वजों के निर्माण की अनुमति प्रदान की गयी है तथा सबसे बडे आकार का
यानी 6 3 मीटर गुणा
4 2 मीटर का
राष्ट्रीय ध्वज महाराष्ट्र सरकार द्वारा मंत्रलय भवन पर फहराया जाता है। यह इमारत
राज्य का प्रशासनिक मुख्यालय है।
बीआईएस के सूत्रों
ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि राष्ट्रीय ध्वज निर्माण के लिए लाइसेंस
प्रदान करता है और उसके लिए मानक तय करता है। मानकों में उचित रंग, उचित आकार और उचित
कपडे का इस्तेमाल सुनिश्चित किया जाता है। 1951 में भारत के गणतंत्र बनने के बाद इंडियन
स्टैंडर्डस इंस्टीट्यूट (अब बीआईएस) ने पहली बार आधिकारिक रुप से ध्वज की रुपरेखा
तय की थी। इसमें बाद में 1964 और 17 अगस्त 1968 को संशोधन किया गया।
नए मापदंडों में
भारतीय ध्वज के आकार, उसे रंगे जाने वाले रंग, उसका उजलापन, धागों की संख्या
आदि अन्य पक्षों को शामिल किया गया। राष्ट्रीय ध्वज से संबंधित दिशा निर्देश
दीवानी और आपराधिक कानून के तहत आते हैं तथा इसके निर्माण में किसी प्रकार की खामी
पर दोषी को आर्थिक दंड या जेल की सजा हो सकती है।
विशेषज्ञों के
अनुसार, राष्ट्रीय
ध्वज के निर्माण में हाथ से बुनी खादी या कपडे का ही इस्तेमाल किया जा सकता है तथा
किसी भी अन्य सामग्री से बने राष्ट्रीय ध्वज को फहराने पर कानून के तहत सजा का
प्रावधान है। ध्वज में दो प्रकार की खादी का इस्तेमाल होता है। एक प्रकार की खादी
से ध्वज बनाया जाता है तो दूसरी मोटी खादी से झंडे को स्तंभ से बांधने के लिए उसकी
मोठी गोठ बनायी जाती है। यह गेंहूए रंग की होती है।
ध्वज में इस्तेमाल
होने वाली दूसरी प्रकार की मोटी खादी गैर पारंपरिक तरीके से बुनी जाती है जिसमें
सामान्यतः दो धागों के विपरीत तीन धागों का इस्तेमाल होता है। इस प्रकार की बुनाई
बेहद दुर्लभ है और भारत में ऐसे कुशल बुनकर मात्र दर्जनभर ही हैं। राष्ट्रीय ध्वज
के लिए हाथ से बुनी खादी उत्तरी कर्नाटक के धारवाड और बगालकोट जिलों में दो हथकरघा
यूनिटों से मंगायी जाती है।
इस समय हुबली स्थित
कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ को ही केवल राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण का
लाइसेंस हासिल है। खादी विकास और ग्रामोद्योग आयोग ही देश में राष्ट्रीय ध्वज
निर्माण यूनिट स्थापित करने की अनुमति प्रदान करता है। लेकिन नियमों का उल्लंघन
होने पर बीआईएस इस लाइसेंस को रद्द करने का अधिकार रखता है।
एक बार राष्ट्रीय
ध्वज के लिए कपडा बुने जाने पर उसे परीक्षण के लिए बीआईएस प्रयोगशाला में भेजा
जाता है। गुणवत्ता की जांच होने पर, यदि मंजूरी मिल जाती है तो उसे वापस फैक्टरी
में भेजा जाता है। इसके बाद इस कपडे को तीन हिस्सों में बांटकर केसरिया, सफेद और हरे रंगों
में रंगा जाता है। अशोक चक्र की स्क्रीन पिंट्रिंग होती है। इस बात की विशेष सावधानी
बरती जाती है कि चक्र दोनों ओर से साफ दिखाई दे।
इसके उपरांत जरुरी
आकार के तीन रंगों के तीन टुकडों को आपस में सिला जाता है और इसे इस्त्री कर पैक
कर दिया जाता है। तत्पश्चात बीआईएस रंगों की जांच करता है और केवल उसके बाद ही
राष्ट्रीय ध्वजों को बेचने के लिये बाजार में भेजा जाता है। इस प्रकार पूरी होती
है राष्ट्रीय ध्वज की यात्रा।