बुधवार, 15 अगस्त 2012

अनेक सावधानियों के बाद तैयार होता है तिरंगा

अनेक सावधानियों के बाद तैयार होता है तिरंगा

(प्रियंका श्रीवास्तव)

नई दिल्ली (साई)। भारत गणराज्य की आन बान और शान का प्रतीक है देश का राष्ट्र ध्वज तिरंगा। तिरंगे को लेकर कोड ऑफ कंडक्ट काफी सख्त ही है। तिरंगे के निर्माण में बेहद सावधानियां बरती जाती हैं। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया, को मिली जानकारी के अनुसार तिरंगे का निर्माण बहुत आसान कतई नहीं है।
स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले की प्राचीर से फहराए जाने वाले राष्ट्रीय ध्वज का निर्माण भी उसकी गरिमा के अनुरुप ही कडे मानदंडों के तहत किया जाता है। राष्ट्रीय ध्वज को अपने संपूर्ण रुप में आने से पूर्व कई परीक्षाओं से गुजरना पडता है और उसके बाद ही इसे विभिन्न सरकारी इमारतों पर फहराने की अनुमति प्रदान की जाती है।
राष्ट्रीय ध्वज का डिजाइन और उसकी निर्माण प्रक्रिया ब्यूरो आफ इंडियन स्टैंडर्डस (बीआईएस) द्वारा जारी तीन दस्तावेजों के प्रावधानों से नियंत्रित होती है। सभी राष्ट्रीय ध्वज सूती खादी या रेशमी खादी से बनाए जाते हैं। राष्ट्रीय ध्वज से संबंधित मापदंडों की व्यवस्था 1968 में की गयी थी और इन्हें वर्ष 2008 में फिर से अद्यतन किया गया।
कानून के अनुसार, आज नौ प्रकार के राष्ट्रीय ध्वजों के निर्माण की अनुमति प्रदान की गयी है तथा सबसे बडे आकार का यानी 6 3 मीटर गुणा 4 2 मीटर का राष्ट्रीय ध्वज महाराष्ट्र सरकार द्वारा मंत्रलय भवन पर फहराया जाता है। यह इमारत राज्य का प्रशासनिक मुख्यालय है।
बीआईएस के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि राष्ट्रीय ध्वज निर्माण के लिए लाइसेंस प्रदान करता है और उसके लिए मानक तय करता है। मानकों में उचित रंग, उचित आकार और उचित कपडे का इस्तेमाल सुनिश्चित किया जाता है। 1951 में भारत के गणतंत्र बनने के बाद इंडियन स्टैंडर्डस इंस्टीट्यूट (अब बीआईएस) ने पहली बार आधिकारिक रुप से ध्वज की रुपरेखा तय की थी। इसमें बाद में 1964 और 17 अगस्त 1968 को संशोधन किया गया।
नए मापदंडों में भारतीय ध्वज के आकार, उसे रंगे जाने वाले रंग, उसका उजलापन, धागों की संख्या आदि अन्य पक्षों को शामिल किया गया। राष्ट्रीय ध्वज से संबंधित दिशा निर्देश दीवानी और आपराधिक कानून के तहत आते हैं तथा इसके निर्माण में किसी प्रकार की खामी पर दोषी को आर्थिक दंड या जेल की सजा हो सकती है।
विशेषज्ञों के अनुसार, राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण में हाथ से बुनी खादी या कपडे का ही इस्तेमाल किया जा सकता है तथा किसी भी अन्य सामग्री से बने राष्ट्रीय ध्वज को फहराने पर कानून के तहत सजा का प्रावधान है। ध्वज में दो प्रकार की खादी का इस्तेमाल होता है। एक प्रकार की खादी से ध्वज बनाया जाता है तो दूसरी मोटी खादी से झंडे को स्तंभ से बांधने के लिए उसकी मोठी गोठ बनायी जाती है। यह गेंहूए रंग की होती है।
ध्वज में इस्तेमाल होने वाली दूसरी प्रकार की मोटी खादी गैर पारंपरिक तरीके से बुनी जाती है जिसमें सामान्यतः दो धागों के विपरीत तीन धागों का इस्तेमाल होता है। इस प्रकार की बुनाई बेहद दुर्लभ है और भारत में ऐसे कुशल बुनकर मात्र दर्जनभर ही हैं। राष्ट्रीय ध्वज के लिए हाथ से बुनी खादी उत्तरी कर्नाटक के धारवाड और बगालकोट जिलों में दो हथकरघा यूनिटों से मंगायी जाती है।
इस समय हुबली स्थित कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ को ही केवल राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण का लाइसेंस हासिल है। खादी विकास और ग्रामोद्योग आयोग ही देश में राष्ट्रीय ध्वज निर्माण यूनिट स्थापित करने की अनुमति प्रदान करता है। लेकिन नियमों का उल्लंघन होने पर बीआईएस इस लाइसेंस को रद्द करने का अधिकार रखता है।
एक बार राष्ट्रीय ध्वज के लिए कपडा बुने जाने पर उसे परीक्षण के लिए बीआईएस प्रयोगशाला में भेजा जाता है। गुणवत्ता की जांच होने पर, यदि मंजूरी मिल जाती है तो उसे वापस फैक्टरी में भेजा जाता है। इसके बाद इस कपडे को तीन हिस्सों में बांटकर केसरिया, सफेद और हरे रंगों में रंगा जाता है। अशोक चक्र की स्क्रीन पिंट्रिंग होती है। इस बात की विशेष सावधानी बरती जाती है कि चक्र दोनों ओर से साफ दिखाई दे।
इसके उपरांत जरुरी आकार के तीन रंगों के तीन टुकडों को आपस में सिला जाता है और इसे इस्त्री कर पैक कर दिया जाता है। तत्पश्चात बीआईएस रंगों की जांच करता है और केवल उसके बाद ही राष्ट्रीय ध्वजों को बेचने के लिये बाजार में भेजा जाता है। इस प्रकार पूरी होती है राष्ट्रीय ध्वज की यात्रा।

सियाचिन भारत का अभिन्न अंग: अंटोनी


सियाचिन भारत का अभिन्न अंग: अंटोनी

(महेंद्र देशमुख)

नई दिल्ली (साई)। भारत ने कहा है कि सियाचिन ग्लेशियर देश का अभिन्न अंग है। कल लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने कहा कि सरकार का हमेशा यही कहना रहा है कि समूचा जम्मू-कश्मीर राज्य भारतीय संघ का अभिन्न अंग है। उन्होंने कहा कि भारत अपने पड़ोसी देश के साथ सभी मुद्दों को आपसी बातचीत से शांतिपूर्वक सुलझाने के लिए वचनबद्ध है।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के जिन हिस्सों पर अवैध और जबरन कब्जा किया है, वे अभी खाली नहीं किए हैं। रक्षा मंत्री ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर भारत का रुख दोहराते हुए यह बात कही। भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा के बारे में श्री एंटनी ने कहा कि नियंत्रण रेखा की व्याख्या १९४९ के कराची समझौते और १९७२ के शिमला समझौते के आधार पर की जानी चाहिए।

रेड्डी मामले में और नाम शामिल


रेड्डी मामले में और नाम शामिल

(महेश रावलानी)

नई दिल्ली (साई)। सीबीआई ने अपने नये आरोप पत्र में कडप्पा लोकसभा सदस्य जगनमोहन रेड्डी के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले में आंध्र प्रदेश के सड़क तथा भवन मंत्री धर्मणा प्रसाद राव तथा दो और वरिष्ठ अधिकारियों के नाम शामिल किये हैं। जांच एजेंसी ने वाई एस आर कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष जगन मोहन रेड्डी के खिलाफ इस मामले में सीबीआई की विशेष अदालत में अपना चौथा आरोप-पत्र दाखिल किया।
सीबीआई अधिकारियों के अनुसार ये आरोप पत्र प्रकासम और गुंटुर जिलों में वदरेवु और निजाम पट्टनम बंदरगाह और औद्योगिक गलियारा परियोजना की अनियमितताओं तक ही सीमित रखा गया है। जगनमोहन रेड्डी इन दिनों न्यायिक हिरासत मे हैं। वे और उनके वित्त सलाहकार विजय साई रेड्डी इस आरोप पत्र में मुख्य आरोपी हैं। जगन मोहन रेड्डी की कुछ कंपनियों को भी आरोप पत्र में शामिल किया गया है।

सोनिया, शिंदे ने लिया असम का जायजा


सोनिया, शिंदे ने लिया असम का जायजा

(पुरबालिका हजारिका)

गुवहाटी (साई)। यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने असम में हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में राहत शिविरों का दौरा किया। उनके साथ मुख्यमंत्री तरूण गोगोई भी थे। उन्होंने विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की। श्रीमती सोनिया गांधी ने राहत शिविरों में राज्य सरकार द्वारा लोगों के लिए किये गये प्रबंधों पर संतोष व्यक्त किया और उन्हें पूर्ण सुरक्षा का आश्वासन दिया।
शिविरों में रह रहे ज्यादातर लोग जल्द से जल्द घर वापस लौटना चाह रहे हैं। लेकिन वो अब भी डरे हुए हैं और स्थिति सुधरने पर अपने गांव जाने के लिए मुख्यमंत्री तथा गृह मंत्री से सुरक्षा की मांग कर रहे हैं। स्वतंत्रता दिवस समारोहों को ध्यान में रखते हुए असामाजिक तत्वों पर नजर रखने के साथ साथ लोगों में विश्वास पैदा करने के लिए सुरक्षाबलों ने अपनी गश्त तेज कर दी है।

मानसून की कमी से आरबीआई चिंतित


मानसून की कमी से आरबीआई चिंतित

(प्रीति सक्सेना)

तिरूअनंतपुरम (साई)। रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव ने कहा है कि मॉनसून की कम वर्षा चिन्ता का विषय है, क्योंकि इसका दबाव कीमतों पर पड़ सकता है। कल यहां उन्होंने कहा कि कर्नाटक, भीतरी गुजरात और राजस्थान में कम बारिश होने से दालों और तिलहन के दामों पर असर पड़ सकता है। श्री सुब्बाराव ने कहा कि पूरे देश में बीस प्रतिशत कम वर्षा हुई है और जहां तक केरल का सवाल है, वहां यह आंकड़ा ४६ प्रतिशत है।
उन्होंने कहा कि मौद्रिक नीति को कड़ा करने से रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति की दर को ग्यारह प्रतिशत से वर्तमान सात दशमलव तीन प्रतिशत तक लाने में सफल हुआ है। रुपए की मजबूती के बारे में उनका कहना था कि डॉलर के मुकाबले रुपए को मजबूत बनाने के लिए भी कई उपाय किए गए हैं। छह दशमलव पांच प्रतिशत वृद्धि दर के बारे में रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा कि पिछले नौ वर्षों में यह सबसे कम है और इसके लिए अनेक आंतरिक और बाहरी तत्व जिम्मेदार हैं।

मन्टो को सर्वोच्च नागरिक सम्मान


मन्टो को सर्वोच्च नागरिक सम्मान

(सोहेल अहमद)

करांची (साई)। उर्दू के जाने माने कहानीकार सआदत हसन मन्टो के निधन के ५७ वर्ष बाद पाकिस्तान सरकार ने उन्हें देश के सर्वाेच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज से अलंकृत किया है। मन्टो १९४७ के विभाजन की विभीषिका का जीवंत चित्रण करने वाली टोबा टेक सिंह जैसी अपनी बेहतरीन कहानियों के लिए खासतौर पर जाने जाते हैं।
ज्ञातव्य है कि १९४१ में वे ऑल इंडिया रेडियो की उर्दू सर्विस में बतौर नाटकार नियुक्त हुए और लगभग १८ महीने दिल्ली में रहे। यह उनके लेखन का सर्वश्रेष्ठ काल माना जाता है। इस दौरान उनके नाटकों की चार किताबें प्रकाशित हुईं। इसके बाद वे मुम्बई चले गए जहां उन्होंने फिल्मों में पटकथा लेखक के रूप में काम किया और १९४८ में वे अपने परिवार के साथ पाकिस्तान चले गए। मन्टो के साथ जाने-माने गजल गायक मेहदी हसन को भी मरणोपरान्त निशान-ए-इम्तियाज से सम्मानित किया गया।

बस पलटी, सात कांवरियों की मौत दस घायल


बस पलटी, सात कांवरियों की मौत दस घायल

(प्रतिभा सिंह)

पटना (साई)। बिहार के सीतामढ़ी जिले के सुरसंड थाना अन्तर्गत राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 104 पर उम्मा गांव के करीब कांवरियों से भरी एक बस के अनियंत्रित होकर पलट जाने से सोमवार तड़के सात लोंगों की मौत हो गयी और दस अन्य घायल हो गये। पुलिस सूत्रों ने बताया कि उम्मा गांव के करीब झारखंड के देवघर से नेपाल लौट रही कांवरियों से भरी एक बस के अनियंत्रित होकर तड़के साढ़े चार बजे सड़क किनारे गड्ढे में पलट जाने से सात लोंगों की मौत हो गयी और दस अन्य घायल हो गये। घायलों को सीतामढ़ी सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया है। बस का चालक और खलासी घटनास्थल से फरार हो गये। उन्होंने बताया कि हादसे के बाद सकुशल यात्रियों को नेपाल भेजा जा रहा है।

बीमारियों से बचाता है चरम सुख


बीमारियों से बचाता है चरम सुख

(के.अमित)

लंदन (साई)। मस्तिष्क के तार झंकृत होनाया फिर शानदार आतिशबाजी का नजारा। ये कुछ जुमले हैं जिनका इस्तेमाल वैज्ञानिक सेक्स के दौरान चरम सुख पाने की स्थिति को बयान करने के लिए करते हैं। एक ताजा वैज्ञानिक अध्ययन बताता है कि इस चरम सुख का अहसास न सिर्फ मिलन को सफल बनाता है, बल्कि इससे कई तरह की मानसिक और शारीरिक बीमारियों से दूर रहने में भी मदद मिलती है।
सेक्स से संबंधित मनोविज्ञान के विशेषज्ञों का मानना है कि यौन सुख की अनुपस्थिति में कई तरह की बीमारियां और मानसिक विकृतियां पैदा हो सकती हैं। वेज्ञानिकों का मत है कि यह महत्वपूर्ण है क्योंकि यौन क्रिया का चरम सुख सबसे अहम इंसानी सहज प्रवृत्तियों में से एक ही संतुष्टि है।
जानकारों का मानना है कि बहुत सी सामाजिक या पेशेवर समस्याएं यौन असंतुष्टि से जुड़ी हैं। मिसाल के तौर पर, चिंता ऐसी विकृति है जो चरम सुख न मिलने से जुड़ी है। मानसिक तौर पर जिन समस्याओं से इंसान का वास्ता पड़ता है, वो कहीं न कहीं चरम सुख से जुड़ी हैं।
गौरतलब है कि कुछ महीनों पहले अमरीकी राज्य न्यू जर्सी के रटगर्स विश्वविद्यालय में वैज्ञानिकों ने पाया कि चरम सुख की स्थिति में दिमाग के 80 अलग अलग हिस्से सक्रिय हो जाते हैं। कहा जाता है कि इसके बहुत से फायदे हैं क्योंकि इससे रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है और रक्त प्रवाह भी बेहतर होता है और वो सभी अंगों तक पहुंचता है।

अखबारों का पटाक्षेप, संभावित या निश्चित ?


अखबारों का पटाक्षेप, संभावित या निश्चित ?

(रवि दत्त बाजपेयी)

पटना (साई)। वैश्विक अर्थ-संकट के इस दौर में अमेरिका-यूरोप में अखबार अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहे हैं। समाचार उद्योग के विश्लेषक और नार्थ कैरोलिना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर फिलिप मायर की पुस्तक द वैनिशिंग न्यूजपेपर रू सेविंग जर्नलिज्म इन द इन्फार्मेशन एजके अनुसार अक्तूबर 2043 में कागज पर अखबार की अंतिम प्रति छपेगी।
क्या दशकों से अखबारी कागज की कमी से जूझते भारतीय समाचार पत्र उद्योग को अंततरू अलादीन का चिरागहाथ लग गया है? विश्व बाजार में अब न्यूज प्रिंटका प्रयोग लगभग समाप्त होने वाला है। इसके बाद भारतीय समाचार पत्रों को यह प्रचुर न्यूज प्रिंटकौड़ियों के मोल मिलेगा।
वैश्विक आर्थिक मंदी के दौर में अमेरिका व यूरोप में समाचार पत्रों पर अस्तित्व का संकट गहरा हो गया है, जब समाचार पत्रों के बंदी के समाचार ही सबसे नियमित समाचार हैं। अटकलें हैं कि ऐसा समय भी आयेगा कि समाचार पत्र की तालाबंदी का समाचार छापने को कोई और समाचार पत्र ही नहीं बचेगा।
समाचार उद्योग विश्लेषक और नार्थ कैरोलिना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर फिलिप मायर की पुस्तक द वैनिशिंग न्यूजपेपररू सेविंग जर्नलिजम इन द इन्फार्मेशन एजके अनुसार अक्तूबर 2043 में अखबारी कागज पर समाचार पत्र की अंतिम प्रति छापी जायेगी। संभवतः यह अनुमान एक अतिशयोक्ति है, किंतु यह पुस्तक हाल के वर्षाे में समाचार पत्र उद्योग में आये भूचाल और उसके कारणों की पड़ताल का एक प्रयास अवश्य है।
द इकोनामिस्टने अगस्त 2006 के अपने अंक में समाचार पत्रों को लुप्तप्रायरू प्रजातिकी उपाधि प्रदान करते हुए कहा कि ‘‘समाचार पत्रों का शब्दों को पाठकों को बेचना फिर पाठकों को विज्ञापनदाताओं को बेचने का व्यापार अब और चलने वाला नहीं है’’। वर्ष 2007 से अब तक अमेरिका में 13 बड़े दैनिक समाचार पत्र बंद हो गये हैं, जबकि 10 अन्य बड़े दैनिक अब सप्ताह में केवल दो या तीन दिन ही प्रकाशित हो रहे हैं। मई 2012 में न्यू आर्लियंस शहर के वर्ष 1837 में स्थापित दैनिक अखबार न्यू आर्लियंस टाइम्स पिकायूनको बंद कर इसे सप्ताह में केवल तीन दिन प्रकाशित करने का निर्णय लिया है।
आधे से अधिक संपादकीय कर्मचारियों की छंटनी कर दी और अब इसका मुख्य उद्देश्य इंटरनेट पर अपनी उपस्थिति रखना मात्र रह गया है। 10 लाख से ज्यादा की जनसंख्या वाले न्यू आर्लियंस शहर में अब एक भी दैनिक अखबार नहीं बचा है। नवंबर 2011 में कैलिफोर्निया प्रांत का ऑकलैंड भी ऐसा ही शहर बना, जहां से एक भी दैनिक अखबार नहीं निकलता।
19वीं सदी के अंत में अमेरिका के 689 शहरों में एक से ज्यादा समाचार पत्र प्रकाशित होते थे। आज ऐसे शहरों की संख्या 100 से भी कम रह गयी है। एक आकलन के अनुसार अमेरिका के छोटे-मझोले शहरों, जिनकी जनसंख्या 10 लाख से कम है, में समाचार पत्रों को लाभ के साथ चला पाना बेहद कठिन है।
पाठकों के लिए विकल्प के तौर पर केवल एक मात्र समाचार पत्र मौजूद है और उस समाचार पत्र की स्थिति डावांडोल है। अमेरिका की ही तरह यूरोप में भी समाचार पत्र उद्योग पर संकट की बदली छायी हुई है।
वर्ष 2007-09 के बीच जहां अमेरिका का समाचार पत्र उद्योग में 30 प्रतिशत की गिरावट हुई, वहीं यूनाइटेड किंगडम में 21 प्रतिशत, जर्मनी में 10 प्रतिशत व फ्रांस में 4 प्रतिशत की कमी दर्ज की गयी थी। यूनाइटेड किंगडम में 2005-09 के बीच 242 क्षेत्रीय समाचार पत्र बंद हुए, जबकि केवल 70 नये क्षेत्रीय समाचार पत्र बाजार में उतारे गये अर्थात कहीं बहुत बड़ी संख्या में समाचार पत्रों की बंदी हुई।
पाठकों की बदलती हुई आदतों के चलते ही दुनिया के सबसे नामी ब्रिटिश अखबार द टाइम्सवर्ष 2006 से ब्रॉडशीट नहीं बल्कि टेबलॉयड संस्करण में बदल गया है। वर्ष 2011-12 में यूनाइटेड किंगडम के सभी बड़े समाचार पत्रों की ग्राहक संख्या में लगभग 10 प्रतिशत की कमी आंकी गयी थी, केवल दो इतवारी अखबारों की प्रसार संख्या में वृद्धि दर्ज हुई लेकिन वह भी विवादास्पद टेबलायड द न्यूज आफ द वल्घर््डके बंद होने के कारण जब उसके पाठक किसी भी अन्य समाचार पत्र को पढ़ने को विवश हुए।
ऑस्ट्रेलिया के सबसे पुराने समाचार प्रकाशन संस्थान फेयरफैक्स’, जो सिडनी से सिडनी मार्निग हेराल्डतथा मेलबोर्न से द एजसमाचार पत्र का प्रकाशन करता है ने जून 2012 में अपने कर्मचारियों की संख्या में 20 प्रतिशत की कमी करने की घोषणा की।
इस घोषणा से करीब 1900 लोग काम से बाहर किये जायेंगे, दोनों ब्रॉडशीट समाचार पत्र टेबलॉयड संस्करण में बदल दिए जायेंगे तथा वेब पर उपलब्ध समाचार पत्र पढ़ने के लिए भुगतान करना आवश्यक होगा। ऑस्ट्रेलिया के ही दूसरे बड़े समाचार पत्र प्रकाशन समूह रुपर्ट मर्डाक के द न्यूज लिमिटेडने भी अपने कर्मचारियों की संख्या घटाने और कुछ क्षेत्रीय समाचार पत्रों को बंद करने की घोषणा की है।

जड़ी बूटियों की खोज कर रही हिमालय को प्रदूषित


जड़ी बूटियों की खोज कर रही हिमालय को प्रदूषित

(अर्जुन कुमार)

देहरादून (साई)। हिमालय के जंगलों में बेशुमार नायाब जड़ी बूटियां मिलती हैं लेकिन यारचागुंबा की तलाश में वहां जाने वाले लोगों की तादाद तेजी से बढ़ रही है। इससे हिमालय के हरे भरे इलाके प्रदूषण का शिकार हो रहे हैं। आम तौर पर हिमालयन वायग्राकही जाने वाली यारचागुंबा यौन शक्ति बढ़ाने के लिए इस्तेमाल होती है और बाजार में इसकी काफी मांग है।
एक शोधकर्ता का कहना है कि अगर उस इलाके में बढ़ते प्रदूषण की समस्या से नहीं निपटा गया तो हिमालय के हरे भरे इलाके पर्यावरणीय संकट का शिकार बन सकते हैं। इससे यारचागुंबा समेत तमाम दुर्लभ जड़ी बूटियों के लिए खतरा पैदा हो सकता है। साथ ही बर्फीले तेंदुए और कई दूसरे जीवों का अस्तित्व भी संकट में घिर सकता है।
बताया जाता है कि हाल के दिनों में पश्चिमी नेपाल के हिमालयी जिलों में हजारों लोग इस जड़ी की खातिर पहाड़ पर चढ़े हैं। यौन शक्ति बढ़ाने वाली इस दुर्लभ जड़ी से ये लोग काफी पैसे कमाते हैं।

यूपी को चमन बनाने में जुटे अखिलेश


यूपी को चमन बनाने में जुटे अखिलेश

(दीपांकर श्रीवास्तव)

लखनऊ (साई)। यमुना एक्सप्रेस-वे को हरी झंडी दिखाने के बाद यूपी सरकार अब आगरा से लखनऊ के बीच एक्सप्रेस-वे तैयार करने की दिशा में सक्रिय हो गई है। सोमवार को इस प्रॉजेक्ट का प्रेजेंटेशन सीएम अखिलेश यादव के सामने दिया गया। सीएम ने इसके प्रति सकारात्मक रुख दिखाया। इस प्रॉजेक्ट में छह लेन के इस एक्सप्रेस-वे को आठ लेन का करने का प्रावधान भी है। सीएम ने कहा कि यह एक्सप्रेस-वे तैयार हो जाने पर फिरोजाबाद में ग्लास सिटी बनाई जाएगी।
करीब 9,500 करोड़ रुपये की लागत वाले इस प्रॉजेक्ट के प्रेजेंटेशन के मौके पर सीएम ने कहा कि प्रस्तावित एक्सप्रेस-वे पर पर्याप्त अंडरवे और कैटलवे की व्यवस्था की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके अलावा दोनों ओर उपयुक्त सर्विस लेन बनाई जानी चाहिए।
इस एक्सप्रेस-वे पर बाढ़ के पानी को आने से रोकने के लिए इसे ऊंचा बनाया जाएगा। इसके दोनों ओर 10 मीटर से ज्यादा जगह हरित पट्टी के रूप में विकसित की जाएगी। इस प्रॉजेक्ट के तहत जलाशय और ईको-फ्रेंडली पार्क भी बनाए जाएंगे।
प्रस्तावित एक्सप्रेस-वे तैयार होने पर आगरा-लखनऊ की दूरी 76 किमी। घट जाएगी। आगरा-लखनऊ की दूरी 375 किमी। है। एक्सप्रेस-वे तैयार होने पर आगरा से लखनऊ करीब तीन घंटे में पहुंचा जा सकेगा। नोएडा से आगरा के बीच यमुना एक्सप्रेस-वे पहले ही बन चुका है। ऐसे में दिल्ली से लगभग पांच घंटे में लखनऊ पहुंचा जा सकेगा। कल्चरल फ्रंट पर तो गालिब की दिल्ली और अवध के रिश्ते पहले ही मजबूत रहे हैं, यह एक्सप्रेस-वे भौगोलिक दूरी भी घटा देगा।
इस प्रॉजेक्ट के फर्राटा भरते ही फिरोजाबाद, शिकोहाबाद, इटावा, मैनपुरी, कन्नौज और मलिहाबाद जैसे इलाकों की तरक्की को पर लग जाएंगे। जल्द खराब होने वाले फल-सब्जियों के ट्रांसपोर्टेशन में सहूलियत मिलेगी और इसका फायदा किसानों को भी होगा। एक्सप्रेस-वे से कनेक्ट होने वाले शहरों में रियल एस्टेट की नींव भी मजबूत होगी। प्रॉजेक्ट प्रेजेंटेशन के मौके पर पीडब्लूडी मिनिस्टर शिवपाल सिंह यादव और प्रोटोकाल मिनिस्टर अभिषेक मिश्र भी मौजूद थे।

कार्टून बनाने वाले के प्रति बनर्जी ने दिखाई ममता


कार्टून बनाने वाले के प्रति बनर्जी ने दिखाई ममता

(प्रतुल बनर्जी)

कोलकता (साई)। इंटरनेट पर कुछ तस्वीरों का एक कार्टून, जिसमें दिनेश त्रिवेदी को रेल मंत्री के तौर पर हटाने के मामले पर ममता बनर्जी और मुकुल रॉय पर चुटकी ली गई थी, उसे जाधवपुर यूनिवर्सिटी के एक प्रोफ़ेसर ने सोशल नेटवर्किग साइट पर अपने दोस्त को फ़ॉरवर्ड कर दिया। जब ममता के वफ़ादारों को पता चला तो पुलिस ने यह ढूंढ़ निकाला कि इस जुर्म के अपराधी प्रोफ़ेसर अंबिकेश महापात्र और उनके पड़ोसी सुब्रत सेनगुप्ता हैं। दोनों को 12 अप्रैल को गिरफ़्तार करके अगले दिन अदालत में पेश किया गया। जहां से वे ज़मानत पर रिहा हुए। मामले की जांच के लिए तीन सदस्यों की मानवाधिकार आयोग की समिति बनी।
अब पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग की इसी समिति ने मामले की जांच करने के बाद इन दोनों को 50, 50 हज़ार रुपये का मुआवज़ा देने के अलावा कसूरवार पुलिस अफ़सरों के खि़लाफ़ कार्रवाई करने को कहा है। लेकिन सिर्फ़ मुवाअज़ा देने और कार्रवाई करने से मसले का हल नहीं निकलेगा। इसके लिए ममता बनर्जी और उनकी सरकार को अपना रवैया बदलने की भी जरूरत है।

सपा का एक मंत्री सजाता है राजदरबार


सपा का एक मंत्री सजाता है राजदरबार

(गौरव अग्रवाल)

आगरा (साई)। भारतीय शासन प्रशासन की मान्यता के अनुसार अब देश में राजे महाराजे ख़तम हो गए हैं लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार में आज भी एक महाराजा जिन्दा हैं जोकि राजशी ठाठ भोग रहा हैं। ये महाराजा हैं उत्तर प्रदेश सरकार के वर्तमान परिवहन मंत्री महाराजा अरिदमन सिंह। इनका आज भी आगरा के भदावर हाउस स्तिथ महल में राज दरबार लगता हैं।
एक वक्त में राजा महाराजाओं का शासन था जहाँ जनता की समस्याएं सुनी जाती थी व जनता के साथ न्याय किया जाता था लेकिन यहाँ इस राजा के दरबार में जाति विशेष की ही सुनी जाती है। यही नहीं, इस राज दरबार में आने वाले हर शख्स पर पैनी निगाह राखी जाती है व उसकी जाति पूछकर ही अन्दर आने दिया जाता है। चूंकि सत्ता सपा की है ऐसे में गुंडई तो विरासत में मिली है। यही कारण है कि इस राजा के दरबार में सिर्फ गुंडे पाले ही नहीं जाते बल्कि उनका बाकायदा सम्मान किया जाता है। भले ही अरिदमन सिंह जनता के मंत्री हैं लेकिन हैं तो राजा। इसलिए राजा के आस पास किसी को बैठने नहीं दिया जाता क्योंकि आज भी महाराज का स्थान अलग है व जनता उन्हें दंडवत प्रणाम करती है।
हालांकि इसमें महाराज का दोष नहीं हैं क्योंकि वह इस मुगालते में हैं कि आज भले ही 21 वीं सदी चल रही हो लेकिन राजा महाराजा तो सदा के लिए होते हैं। उनका किसी लोकतंत्र के होने न होने से बहुत फर्क नहीं पड़ता है। हालांकि इस राजा का बजा जनता कई बार इन्हें हराकर बजा चुकी है लेकिन बाबजूद इसके राजा की सेहत पर कोई असर नहीं है। बताया जाता है कि आज भी यह परंपरा है कि जब राजा वोट मांगने जाते हैं तब उनके समर्थकों के द्वारा एक स्वाफी बिछा दी जाती है जिसमें अपने सामर्थ्य के अनुसार क्षेत्र की जनता धन रख देती है। इस तरह चुनाव में जनसमर्थन के साथ ही धन समर्थन भी हासिल हो जाता है।
लेकिन राजा अरिदमन के इस दरबार का मतलब यह नहीं है कि उन्हें क्षेत्र के सवर्णों समर्थन हासिल है। हालात तो यह हैं कि राजा का स्थानीय ब्राह्मणों से छत्तीस का आंकड़ा है। कारण बहुतेरे हैं लेकिन चर्चा यही रहती है कि राजा ने अपने राजा होने के गुरूर में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का अपमान कर दिया था और उन्हें माल्यार्पण करने से मना कर दिया था जिसके बाद से ब्राह्मण समाज ने उनका बहिष्कार कर रखा है।
बहरहाल, भले ही प्रदेश के मुख्यमंत्री लखनऊ में जनता दरबार लगाकर उनकी शिकायतें सुनते हों लेकिन वे भी यह जान लें कि उनके कैबिनेट में एक ऐसा भी मंत्री है जो उनसे बड़ा शासक है। वह राजा है और उसका नाम अरिदमन सिंह है। प्रदेश में भले ही किसी और की चलती हो लेकिन यहां आगरा के बाह में सिर्फ एक ही राजा की हुकूमत चलती है। उस राजा की जिसके सामने जाने से पहले किसी को भी सिर झुकाना पड़ता है। जिसने ऐसा नहीं किया उसको इसकी कीमत चुकानी पड़ती है।

अनशन का अनुलोम विलोम


अनशन का अनुलोम विलोम

(संजय तिवारी)

पिछले एक डेढ़ साल में राजनीतिक दलों के खिलाफ दो बड़े आंदोलन पैदा हुए लेकिन त्रासदी देखिए कि एक आंदोलन राजनीतिक दल बनाकर खत्म हो गया तो दूसरा राजनीतिक दलों का समर्थन लेकर समाप्त हो गया। नौ अगस्त से रामलीला मैदान में अनशन करने आये बाबा रामदेव जाते जाते घोषित तौर पर आरएसएस के एक और समविचारी संस्था बन गये। अब वे भाजपा के लिए राजनीतिक जमीन तैयार करेंगे। अब वे यहां से जहां भी जाएंगे कांग्रेस के कुशासन के खिलाफ बिगुल बजायेंगे।
कांग्रेस के खिलाफ बगावत का यह खुला खेल पूरा का पूरा फर्रुखाबादी हो गया है। रामदेव के सामने खुला खेल फर्रुखाबादी खेलने के अलावा और कोई चारा भी नहीं था। पिछले डेढ़ दो सालों बाबा रामदेव के सामने पहले से विश्व हिन्दू परिषद में समा जाने का प्रस्ताव था लेकिन बाबा को धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक खेल में ज्यादा मजा आता है। इसलिए उन्होंने उस वक्त भले ही विहिप को गच्चा दे दिया हो लेकिन संघ और भाजपा से उनकी करीबी कभी खत्म नहीं हुई। काले धन के सवाल पर जब राम जेठमलानी की सलाह पर लालकृष्ण आडवानी वाया गुरूमूर्ति माहौल बनवा रहे थे तब बाबा रामदेव को भी यह मुद्दा इसलिए पकड़ा दिया गया था क्योंकि तब तक आडवाणी के घर बाबा रामदेव होली मिलन करके जा चुके थे। इसके बाद पिछले जून में जब बाबा रामदेव रामलीला में अनशनलीला करते वक्त कांग्रेसी उत्पीड़न के शिकार हुए उस वक्त भाजपा के सभी शीर्ष नेता राजघाट पर रातभर बैठे रहे थे। हालांकि यह बात दीगर है कि वह रात्रिकालीन अनशन बाबा रामदेव के समर्थन के लिए कम और सुषमा स्वराज के ठुमकों के लिए ज्यादा याद किया जाता है लेकिन उसके बाद भी रामदेव और भाजपा के रिश्तों की डोर कमजोर होने की बजाय मजबूत होती चली गई
मजबूती की इसी डोर से बंधे होने के कारण बाबा रामदेव को ससम्मान रामलीला मैदान से जाने के मौका मिल गया। नौ अगस्त को जब रामदेव रामलीला मैदान पहुंचे तो उन्हें खुद नहीं मालूम था कि वे क्यों आ रहे हैं। वे तो जून में ही रामलीला मैदान आकर अपने उत्पीड़न का बदला लेना चाहते थे लेकिन सरकार ने समय और जगह मुहैया नहीं कराई। इसलिए वे जंतर मंतर चले गये और संसद मार्ग पर दिनभर का समागम करके उत्पीड़न की सालगिरह मना ली। यहां उन्होंने जिस तरह से नेताओं के घर जाने और कालेधन के सवाल पर उनसे बात मनवाने की योजना रखी उससे अरविन्द केजरीवाल नाराज होकर मंच से चले गये। क्योंकि टीम अन्ना पहले से ही 25 जुलाई से जंतर मंतर पर बैठने का ऐलान कर चुकी थी इसलिए बाबा रामदेव ने 9 अगस्त से रामलीला मैदान में अनशन करने की घोषणा कर दी। यह टीम अन्ना और रामदेव के बीच चल रहा चूहे बिल्ली का खेल था जिसमें अनशन का एक नया अध्याय और जुड़ गया।
अब घोषणा हो गई थी तो रामदेव का रामलीला मैदान आना जरूरी थी। वे आये भी। तैयारी के साथ आये। लेकिन उन्हें या उनके समर्थकों को बिल्कुल नहीं पता था कि क्या लेकर जाएंगे। इसका मंथन शुरू हुआ अनशन शुरू होने के बाद। आनन फानन में एक कोर कमेटी बनाई गई जिसमें प्रमुख रूप से पत्रकार वेद प्रताप वैदिक और देवेन्द्र शर्मा शामिल थे। यही वो दो चेहरे हैं जो अब बाबा रामदेव की टीम में बचे हुए हैं। यहां भाषण के दौरान रामदेव जो आंकड़े गिना रहे थे उसे देवेन्द्र शर्मा मुहैया करा रहे थे तो अनशनलीला के समानांतर जो जोड़ तोड़ की राजनीति चल रही थी उसे वेद प्रताप वैदिक संचालित कर रहे थे। देवेन्द्र शर्मा की ही पहल पर पंजाब से उमेन्द्र दत्त बुलवाये गये। वे वहां खेती विरासत नाम की एक संस्था चलाते हैं और किसानों के बीच काम करते हैं। उमेन्द्र दत्त पूर्व में विद्यार्थी परिषद के पदाधिकारी रह चुके हैं और संघ तथा भाजपा में अच्छा संपर्क रखते हैं। उमेन्द्र दत्त ने दो काम किया। पहला, रामदेव के लिए संघ का दरवाजा खोला और वेद प्रताप वैदिक की संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रय होसबोले से मीटिंग हो गई। वैदिक ने रामदेव के आंदोलन के संघ के समर्थन की गुहार लगाई जिसे होसबोले ने स्वीकार कर लिया। दूसरा, वे भाजपा और बाबा रामदेव के बीच संपर्क सूत्र कायम करने में कामयाब रहे।
एक ओर अगर संघ के होसबोले से संपर्क किया गया तो दूसरी ओर भाजपा में सचिव बनाये गये मुरलीधर भी संपर्क में आये। वैसे तो गड़करी के पास रामदेव की सीधी पैठ है लेकिन उमेन्द्र दत्त ने मुरलीधर राव के अपने संपर्कों का भी इस्तेमाल किया। इसलिए मंच पर जब गड़करी आये तो साथ में मुरलीधर राव भी नजर आ गये। बाबा रामदेव दो दिन से इस कोशिश में लगे थे कि किसी तरह से कुछ राजनीतिक नेता उनके मंच पर आ जाएं ताकि वे कांग्रेस के खिलाफ किलेबंदी का ऐलान कर सकें। सोमवार को वही हो भी गया। भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी मंच पर पहुंच गये। साथ में शरद यादव भी थे। एक सांसद अकाली का भी पकड़कर लाया गया था ताकि रामदेव के आंदोलन को एनडीएवाला समर्थन दिखाया जा सके। इन सब कवायद के कारण बाबा रामदेव को दोनों सफलता मिल गई। एक, मंच पर राष्ट्रवादी नेताओं का जमावड़ा लग गया और दूसरा संसद में कालेधन का मुद्दा उठ गया। रामदेव को उठकर जाने का बहाना मिल गया था।
यह सब जो हुआ वह पूर्व प्रायोजित था। रामदेव के मंच पर जो गतिविधि होती थी उसकी पृष्ठभूमि मंच के पीछे तैयार होती थी। एक साथ दो समानांतर कार्यक्रम चलाये जा रहे थे। हो सकता है मंच के सामने बैठे लोग इस राजनीति को न भांप पाएं लेकिन कल रविवार की शाम को समर्थकों को कह दिया गया था कि सोमवार को अनशन समाप्त हो जाएगा। रात में ही टेंट तंबू छोड़कर बाकी सामान वहां से हटाया जाने लगा था। भारी भरकम सामानों को रात में वहां से समेट लिया गया था। जो कल शाम या रात तक यहां से चले गये थे वे बाबा रामदेव की अपील के बाद भी दोबारा लौटकर नहीं आये। इसलिए आज जब अनशन की समाप्ति हो रही थी तब रामदेव के पास संख्या बल उतना नहीं रह गया था जितना अनशन शुरू करते वक्त था। बाबा रामदेव अपना अनशन समाप्त करने के लिए जो दो बातें चाहते थे वे दोनों हो गई। उन्हें राजनीतिक दलों का समर्थन भी मिल गया और उनकी औपचारिक गिरफ्तारी भी हो गई। पिछली बार की तर्ज पर इस बार रामदेव रामलीला मैदान से विदाई नहीं चाहते थे। वे श्श्सेफ इक्जिटष् चाहते थे और सरकार ने उन्हें श्श्सेफ इक्जिटष् दे भी दिया।
फरवरी 2011 से अगस्त 2012 के बीच बाबा रामदेव आंदोलन और अनशन के नाम पर लगातार चर्चा में बने हुए हैं। अन्ना के बाद अब उनके आंदोलन का भी पटाक्षेप हो गया है। बाबा रामदेव अरविन्द केजरीवाल की पीठ पर चढ़कर रामलीला मैदान आये थे और अब भाजपा की पीठ पर चढ़कर वहां से वापस जा रहे हैं। रामदेव का क्या होगा इसपर बहुत सोचने की जरूरत नहीं है। सोचने की जरूरत इस पर है कि भाजपा का क्या होगा? जो भाजपा रामदेव में संभावना देख रही है उनका स्वभाव अभी तक यही रहा है कि जिसकी पीठ पर चढ़कर चार कदम चलते हैं उसी की पीठ में छूरा घोंपकर आगे बढ़ जाते हैं। कर्मवीर, राजीव दीक्षित, जीडी अग्रवाल, अरविन्द केजरीवाल, गोविन्दाचार्य जैसे कुछ नाम उनके चरित्र की असली कहानी कह देते हैं जो रामदेव की दी हुई पीड़ा के शिकार हुए हैं। तो क्या वक्त आने पर बाबा रामदेव भाजपा की पीठ में भी छूरा घोंप देंगे? संकेत तो यही हैं। नितिन गडकरी से पूरा समर्थन मिलने के तत्काल बाद जिस तरह से सार्वजनिक रूप से बाबा रामदेव ने भाजपा को औकात बताते हुए सर्वदलीय समर्थन का ऐलान कर दिया उससे संकेत मिलता है कि भविष्य में अगर बाबा रामदेव को मौका मिला तो वे भाजपा की पीठ में भी छूरा घोंपने से बाज नहीं आयेंगे। भाजपा के नेता चाहें तो अभी से अपने लिए कवच कुंडल तैयार करवाने का आर्डर दे सकते हैं।
पिछले करीब अठारह महीने से बाबा रामदेव अनशन और आंदोलन का जो अनुलोम विलोम कर रहे थे, वह अब खत्म हो गया है। इस अनुलोम विलोम से देश की एक सौ इक्कीस करोड़ जनता की प्राणवायु कितनी मजबूत हुई इसका आंकलन करना तो संभव नहीं है लेकिन चौनलों पर चलनेवाली चर्चाओं और खोखले बाबा से चमत्कार की उम्मीद किये बैठी जनता राहत की सांस जरूर ले सकेगी। अब बाबा रामदेव चाहें तो काले धन और भ्रष्टाचार को किनारे रखकर सीबीआई की स्वायत्तता के लिए एक आंदोलन खड़ा कर सकते हैं। जिस तरह से बाबा रामदेव के मंच से सीबीआई को स्वायत्त करने की मांग उठी उससे साफ होता है कि उनको मिलनेवाला राजनीतिक मसर्थन दोगुना हो जाएगा। खुद बाबा रामदेव के पास भी सीबीआई के खिलाफ खड़े होने का पर्याप्त आधार है। जिस तरह से बालकिशन की गिरफ्तारी के बाद सीबीआई रामदेव का आर्थिक साम्राज्य तहस नहस करने पर उतारू है उससे कौन जाने बाबा रामदेव का अगला आंदोलन सीबीआई के ही खिलाफ हो, और उन दलों का भी राजनीतिक समर्थन हासिल हो जाए जिन्हें यह शिकायत है कि केन्द्र की कांग्रेसी सरकार उनके खिलाफ सीबीआई का इस्तेमाल करके शासन कर रही हैं। क्यों बाबाजी, विचार इतना बुरा तो नहीं है?

(लेखक विस्फोट डॉट काम के संपादक हैं)

आईडिया को संचार मंत्रालय ने दिया था कारण बताओ नोटिस


एक आईडिया जो बदल दे आपकी दुनिया . . .  12

आईडिया को संचार मंत्रालय ने दिया था कारण बताओ नोटिस

(नन्द किशोर)

भोपाल (साई) टू जी स्पेक्ट्रम मामले में कथित तौर पर अपनी मुगलई चलाने वाले आदित्य बिरला गु्रप की मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनी आईडिया द्वारा संचार मंत्रालय को अपने घर की लौंडी समझा जाने लगा था। संचार मंत्रालय के निर्देशों की सरेआम अव्हेलना करना आईडिया सेल्यूलर का प्रमुख शगल बनकर रह गया था। इस साल मई माह में संचार मंत्रालय ने आईडिया को आड़े हाथों लेकर एक नोटिस जारी किया था।
आंध्र प्रदेश व कर्नाटक में सेवा शुरू करने में विलम्ब होने पर दूरसंचार मंत्रालय ने आइडिया सेल्युलर और स्पाइस कम्युनिकेशंस को मई माह में नोटिस जारी किया था। दोनों कंपनियों को 60 दिन के अंदर नोटिस का जवाब देने को कहा गया और जारी नोटिस में कंपनियों से पूछा गया है कि क्यों न उनके लाइसेंस रद्द कर दिए जाएं।
दूरसंचार विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार दूरसंचार नियामक ट्राई ने दोनों कंपनियों द्वारा समय पर सेवा शुरू नहीं किए जाने पर पांच राज्यों में उनके लाइसेंस रद्द किए जाने की सिफारिश की है। इससे पहले, सरकार ने लाइसेंस समझौते के तहत आइडिया और स्पाइस समेत कई नई कंपनियों से समय पर सेवा शुरू नहीं करने को लेकर जुर्माने के रूप में करीब 300 करो़ड रूपये वसूल किए और, जुर्माना लेने के बाद उनके लाइसेंस रद करने के नोटिस दिए थे। गौरतलब है कि दोनों कंपनियों को इन सर्किलों के लिए पूर्व टूजी मामले में फंसे दूरसंचार मंत्री ए. राजा के कार्यकाल में वर्ष 2008 में लाइसेंस दिया गया था। आइडिया ने वर्ष 2008 में स्पाइस को खरीदा था, लेकिन विलय के बारे में उसे अब तक दूरसंचार विभाग से मंजूरी नहीं मिली थी।

(क्रमशः जारी)

रत्ती: खूबसूरत बीजों वाला औषधिय पौधा


हर्बल खजाना ----------------- 12

रत्ती: खूबसूरत बीजों वाला औषधिय पौधा

(डॉ दीपक आचार्य)

अहमदाबाद। खूबसूरत से दिखने लाल-काले और सफ़ेद बीज वाली इस बेल को अक्सर घर के बाडों, खेत के किनारे और जंगलों में देखा जा सकता है। रत्ती का वानस्पतिक नाम एब्रस प्रिकेटोरियस है। इसके बीजों की सबसे बडी खासियत इन सबका वजन लगभग एक जैसा होता है और पुराने समय में सोना और चाँदी के वजन करने के लिये इन बीजों का उपयोग किया जाता था, वजन की उस इकाई को आज भी रत्ती के नाम से जाना जाता है।
बीज में अत्यंत जहरीले एमीनो एसिड पाए जाते है फ़िर भी आदिवासी हल्कों में इन बीजों की सब्जी बनायी जाती है। इसके लिये बीजों का शुद्धिकरण किया जाता है, जिससे ये एमीनो एसिड्स नष्ट हो जाते है, इस हेतु बीजों को दूध में और फ़िर पानी में उबाला जाता है और सुखाया जाता है।
पातालकोट के आदिवासियों का मानना है कि ये सब्जी शक्तिवर्धक होती है। पत्तियों की चाय बनाकर पीने से बुखार उतर जाता है, साथ ही सर्दी और खाँसी में भी राहत मिलती है। पत्तियों को पीसकर मुहाँसों पर लगाने से फ़ायदा होता है और यदि पत्तियों को चबाया जाए तो मुँह के छालों से राहत मिलती है।
इसकी जडों को पानी में डुबोकर रखा जाए और फ़िर इसे कुचल दिया जाए और उस पानी की कुछ बूँदों को नाक में डाला जाए तो माईग्रेन के रोगियों को फ़ायदा मिलता है। पत्तियों को घाव पर लगाने से घाव जल्दी सूखने लगता है। (साई फीचर्स)

(लेखक हर्बल मामलों के जाने माने विशेषज्ञ हैं)