अनशन का अनुलोम
विलोम
(संजय तिवारी)
पिछले एक डेढ़ साल
में राजनीतिक दलों के खिलाफ दो बड़े आंदोलन पैदा हुए लेकिन त्रासदी देखिए कि एक
आंदोलन राजनीतिक दल बनाकर खत्म हो गया तो दूसरा राजनीतिक दलों का समर्थन लेकर
समाप्त हो गया। नौ अगस्त से रामलीला मैदान में अनशन करने आये बाबा रामदेव जाते
जाते घोषित तौर पर आरएसएस के एक और समविचारी संस्था बन गये। अब वे भाजपा के लिए
राजनीतिक जमीन तैयार करेंगे। अब वे यहां से जहां भी जाएंगे कांग्रेस के कुशासन के
खिलाफ बिगुल बजायेंगे।
कांग्रेस के खिलाफ
बगावत का यह खुला खेल पूरा का पूरा फर्रुखाबादी हो गया है। रामदेव के सामने खुला
खेल फर्रुखाबादी खेलने के अलावा और कोई चारा भी नहीं था। पिछले डेढ़ दो सालों बाबा
रामदेव के सामने पहले से विश्व हिन्दू परिषद में समा जाने का प्रस्ताव था लेकिन
बाबा को धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक खेल में ज्यादा मजा आता है। इसलिए उन्होंने
उस वक्त भले ही विहिप को गच्चा दे दिया हो लेकिन संघ और भाजपा से उनकी करीबी कभी
खत्म नहीं हुई। काले धन के सवाल पर जब राम जेठमलानी की सलाह पर लालकृष्ण आडवानी
वाया गुरूमूर्ति माहौल बनवा रहे थे तब बाबा रामदेव को भी यह मुद्दा इसलिए पकड़ा
दिया गया था क्योंकि तब तक आडवाणी के घर बाबा रामदेव होली मिलन करके जा चुके थे।
इसके बाद पिछले जून में जब बाबा रामदेव रामलीला में अनशनलीला करते वक्त कांग्रेसी
उत्पीड़न के शिकार हुए उस वक्त भाजपा के सभी शीर्ष नेता राजघाट पर रातभर बैठे रहे
थे। हालांकि यह बात दीगर है कि वह रात्रिकालीन अनशन बाबा रामदेव के समर्थन के लिए
कम और सुषमा स्वराज के ठुमकों के लिए ज्यादा याद किया जाता है लेकिन उसके बाद भी
रामदेव और भाजपा के रिश्तों की डोर कमजोर होने की बजाय मजबूत होती चली गई
मजबूती की इसी डोर
से बंधे होने के कारण बाबा रामदेव को ससम्मान रामलीला मैदान से जाने के मौका मिल
गया। नौ अगस्त को जब रामदेव रामलीला मैदान पहुंचे तो उन्हें खुद नहीं मालूम था कि
वे क्यों आ रहे हैं। वे तो जून में ही रामलीला मैदान आकर अपने उत्पीड़न का बदला
लेना चाहते थे लेकिन सरकार ने समय और जगह मुहैया नहीं कराई। इसलिए वे जंतर मंतर
चले गये और संसद मार्ग पर दिनभर का समागम करके उत्पीड़न की सालगिरह मना ली। यहां
उन्होंने जिस तरह से नेताओं के घर जाने और कालेधन के सवाल पर उनसे बात मनवाने की
योजना रखी उससे अरविन्द केजरीवाल नाराज होकर मंच से चले गये। क्योंकि टीम अन्ना
पहले से ही 25 जुलाई से
जंतर मंतर पर बैठने का ऐलान कर चुकी थी इसलिए बाबा रामदेव ने 9 अगस्त से रामलीला
मैदान में अनशन करने की घोषणा कर दी। यह टीम अन्ना और रामदेव के बीच चल रहा चूहे
बिल्ली का खेल था जिसमें अनशन का एक नया अध्याय और जुड़ गया।
अब घोषणा हो गई थी
तो रामदेव का रामलीला मैदान आना जरूरी थी। वे आये भी। तैयारी के साथ आये। लेकिन
उन्हें या उनके समर्थकों को बिल्कुल नहीं पता था कि क्या लेकर जाएंगे। इसका मंथन
शुरू हुआ अनशन शुरू होने के बाद। आनन फानन में एक कोर कमेटी बनाई गई जिसमें प्रमुख
रूप से पत्रकार वेद प्रताप वैदिक और देवेन्द्र शर्मा शामिल थे। यही वो दो चेहरे
हैं जो अब बाबा रामदेव की टीम में बचे हुए हैं। यहां भाषण के दौरान रामदेव जो
आंकड़े गिना रहे थे उसे देवेन्द्र शर्मा मुहैया करा रहे थे तो अनशनलीला के समानांतर
जो जोड़ तोड़ की राजनीति चल रही थी उसे वेद प्रताप वैदिक संचालित कर रहे थे।
देवेन्द्र शर्मा की ही पहल पर पंजाब से उमेन्द्र दत्त बुलवाये गये। वे वहां खेती
विरासत नाम की एक संस्था चलाते हैं और किसानों के बीच काम करते हैं। उमेन्द्र दत्त
पूर्व में विद्यार्थी परिषद के पदाधिकारी रह चुके हैं और संघ तथा भाजपा में अच्छा
संपर्क रखते हैं। उमेन्द्र दत्त ने दो काम किया। पहला, रामदेव के लिए संघ
का दरवाजा खोला और वेद प्रताप वैदिक की संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रय होसबोले से
मीटिंग हो गई। वैदिक ने रामदेव के आंदोलन के संघ के समर्थन की गुहार लगाई जिसे
होसबोले ने स्वीकार कर लिया। दूसरा, वे भाजपा और बाबा रामदेव के बीच संपर्क
सूत्र कायम करने में कामयाब रहे।
एक ओर अगर संघ के
होसबोले से संपर्क किया गया तो दूसरी ओर भाजपा में सचिव बनाये गये मुरलीधर भी
संपर्क में आये। वैसे तो गड़करी के पास रामदेव की सीधी पैठ है लेकिन उमेन्द्र दत्त
ने मुरलीधर राव के अपने संपर्कों का भी इस्तेमाल किया। इसलिए मंच पर जब गड़करी आये
तो साथ में मुरलीधर राव भी नजर आ गये। बाबा रामदेव दो दिन से इस कोशिश में लगे थे
कि किसी तरह से कुछ राजनीतिक नेता उनके मंच पर आ जाएं ताकि वे कांग्रेस के खिलाफ
किलेबंदी का ऐलान कर सकें। सोमवार को वही हो भी गया। भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी
मंच पर पहुंच गये। साथ में शरद यादव भी थे। एक सांसद अकाली का भी पकड़कर लाया गया
था ताकि रामदेव के आंदोलन को एनडीएवाला समर्थन दिखाया जा सके। इन सब कवायद के कारण
बाबा रामदेव को दोनों सफलता मिल गई। एक, मंच पर राष्ट्रवादी नेताओं का जमावड़ा लग गया
और दूसरा संसद में कालेधन का मुद्दा उठ गया। रामदेव को उठकर जाने का बहाना मिल गया
था।
यह सब जो हुआ वह
पूर्व प्रायोजित था। रामदेव के मंच पर जो गतिविधि होती थी उसकी पृष्ठभूमि मंच के
पीछे तैयार होती थी। एक साथ दो समानांतर कार्यक्रम चलाये जा रहे थे। हो सकता है
मंच के सामने बैठे लोग इस राजनीति को न भांप पाएं लेकिन कल रविवार की शाम को समर्थकों
को कह दिया गया था कि सोमवार को अनशन समाप्त हो जाएगा। रात में ही टेंट तंबू छोड़कर
बाकी सामान वहां से हटाया जाने लगा था। भारी भरकम सामानों को रात में वहां से समेट
लिया गया था। जो कल शाम या रात तक यहां से चले गये थे वे बाबा रामदेव की अपील के
बाद भी दोबारा लौटकर नहीं आये। इसलिए आज जब अनशन की समाप्ति हो रही थी तब रामदेव
के पास संख्या बल उतना नहीं रह गया था जितना अनशन शुरू करते वक्त था। बाबा रामदेव
अपना अनशन समाप्त करने के लिए जो दो बातें चाहते थे वे दोनों हो गई। उन्हें
राजनीतिक दलों का समर्थन भी मिल गया और उनकी औपचारिक गिरफ्तारी भी हो गई। पिछली
बार की तर्ज पर इस बार रामदेव रामलीला मैदान से विदाई नहीं चाहते थे। वे श्श्सेफ
इक्जिटष् चाहते थे और सरकार ने उन्हें श्श्सेफ इक्जिटष् दे भी दिया।
फरवरी 2011 से अगस्त 2012 के बीच बाबा
रामदेव आंदोलन और अनशन के नाम पर लगातार चर्चा में बने हुए हैं। अन्ना के बाद अब
उनके आंदोलन का भी पटाक्षेप हो गया है। बाबा रामदेव अरविन्द केजरीवाल की पीठ पर
चढ़कर रामलीला मैदान आये थे और अब भाजपा की पीठ पर चढ़कर वहां से वापस जा रहे हैं।
रामदेव का क्या होगा इसपर बहुत सोचने की जरूरत नहीं है। सोचने की जरूरत इस पर है
कि भाजपा का क्या होगा? जो भाजपा रामदेव में संभावना देख रही है उनका स्वभाव अभी तक
यही रहा है कि जिसकी पीठ पर चढ़कर चार कदम चलते हैं उसी की पीठ में छूरा घोंपकर आगे
बढ़ जाते हैं। कर्मवीर, राजीव दीक्षित, जीडी अग्रवाल, अरविन्द केजरीवाल, गोविन्दाचार्य जैसे
कुछ नाम उनके चरित्र की असली कहानी कह देते हैं जो रामदेव की दी हुई पीड़ा के शिकार
हुए हैं। तो क्या वक्त आने पर बाबा रामदेव भाजपा की पीठ में भी छूरा घोंप देंगे? संकेत तो यही हैं।
नितिन गडकरी से पूरा समर्थन मिलने के तत्काल बाद जिस तरह से सार्वजनिक रूप से बाबा
रामदेव ने भाजपा को औकात बताते हुए सर्वदलीय समर्थन का ऐलान कर दिया उससे संकेत
मिलता है कि भविष्य में अगर बाबा रामदेव को मौका मिला तो वे भाजपा की पीठ में भी
छूरा घोंपने से बाज नहीं आयेंगे। भाजपा के नेता चाहें तो अभी से अपने लिए कवच
कुंडल तैयार करवाने का आर्डर दे सकते हैं।
पिछले करीब अठारह
महीने से बाबा रामदेव अनशन और आंदोलन का जो अनुलोम विलोम कर रहे थे, वह अब खत्म हो गया
है। इस अनुलोम विलोम से देश की एक सौ इक्कीस करोड़ जनता की प्राणवायु कितनी मजबूत
हुई इसका आंकलन करना तो संभव नहीं है लेकिन चौनलों पर चलनेवाली चर्चाओं और खोखले
बाबा से चमत्कार की उम्मीद किये बैठी जनता राहत की सांस जरूर ले सकेगी। अब बाबा
रामदेव चाहें तो काले धन और भ्रष्टाचार को किनारे रखकर सीबीआई की स्वायत्तता के
लिए एक आंदोलन खड़ा कर सकते हैं। जिस तरह से बाबा रामदेव के मंच से सीबीआई को
स्वायत्त करने की मांग उठी उससे साफ होता है कि उनको मिलनेवाला राजनीतिक मसर्थन
दोगुना हो जाएगा। खुद बाबा रामदेव के पास भी सीबीआई के खिलाफ खड़े होने का पर्याप्त
आधार है। जिस तरह से बालकिशन की गिरफ्तारी के बाद सीबीआई रामदेव का आर्थिक
साम्राज्य तहस नहस करने पर उतारू है उससे कौन जाने बाबा रामदेव का अगला आंदोलन
सीबीआई के ही खिलाफ हो, और उन दलों का भी राजनीतिक समर्थन हासिल हो जाए जिन्हें यह
शिकायत है कि केन्द्र की कांग्रेसी सरकार उनके खिलाफ सीबीआई का इस्तेमाल करके शासन
कर रही हैं। क्यों बाबाजी, विचार इतना बुरा तो नहीं है?
(लेखक विस्फोट डॉट काम के संपादक हैं)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें