हरिप्रसाद, भूरिया से नाराज
हैं सोनिया
कांग्रेस को गिरवी रखने के आरोप
विधायकों ने भाजपा से माफी नहीं मांगी, सदन से खेद जताया:
हरिप्रसाद
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली (साई)।
मध्य प्रदेश में कुछ नेताओं ने सिंडीकेट बनाकर कांग्रेस को समूल समाप्त करने की
साजिशों के आरोपों के बीच कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी मध्य प्रदेश
कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पूर्व केंद्रीय मंत्री कांति लाल भूरिया और प्रदेश के
प्रभारी महासचिव बी.के.हरिप्रसाद से बेहद खफा बताई जा रही हैं।
कांग्रेस के सत्ता
और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ के सूत्रों का कहना है कि 2003 के उपरांत
कांग्रेस का ग्राफ मध्य प्रदेश में बुरी तरह गिर गया है। सूत्रों की मानें तो मध्य
प्रदेश के कुछ नेताओं ने सोनिया और राहुल को सविस्तार सारी बातें समझाकर यह
दर्शाने का प्रयास किय है कि अगर जल्द ही नहीं संभाला गया तो मध्य प्रदेश में
कांग्रेस के वही हाल होने वाले हैं जो उत्तर प्रदेश, बिहार और गुजरात
में हो रहे हैं, अर्थात
कांग्रेस का नामलेवा भी नहीं बचने वाला है।
उपचुनावों में एक
के बाद एक हार के कारणों को भी भूरिया और हरिप्रसाद द्वारा आलाकमान के सामने नहीं
रख जा सका है। इतना ही नहीं केंद्रीय मंत्री कमल नाथ के प्रभाव क्षेत्र में आजादी
के बाद कांग्रेस का गढ़ रही लखनादौन विधानसभा सीट के तहसील मुख्यालय की नगर पंचायत
के अध्यक्ष पद के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के द्वारा ही एन समय पर नामांकन
वापस लेने, भूरिया
द्वारा निर्दलीय को समर्थन देने की बात कहने फिर चुनाव तक शांत रहकर किसी को
समर्थन ना देकर कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने वाले को भारी मतों से विजयी करवाने की
शिकायतें भी आलाकमान तक पहुंची हैं।
यह मामला अभी शांत
भी नहीं हुआ था कि कांग्रेस के विधायकों द्वारा विधानसभा में हंगामा करने से दो
सदस्यों की सदस्यता समाप्त करने का एक एसा मुद्दा कांग्रेस के हाथ लगा था जिससे वह
जनता के बीच जाकर अपना खोया विश्वास पुनः अर्जित कर सकती थी। इस मामले में एक तरफ
जहां पूर्व मुख्यमंत्री राजा दिग्विजय सिंह और विन्ध्य के राजपूत क्षत्रप अजय सिंह
राहुल गरज रहे थे,
वहीं दूसरी ओर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुखिया कांतिलाल
भूरिया एकदम खामोश बैठे रहे।
मध्य प्रदेश में
कांग्रेस में गुटबाजी का यह आलम है कि कांग्रेस के दो विधायक कल्पना पारूलेकर और
चौधरी राकेश सिंह के माफीनामे विधानसभा अध्यक्ष तक पहुंच गए पर प्रदेश कांग्रेस के
निजाम कांतिलाल भूरिया को इसकी भनक भी नहीं है। पीसीसी के एक पदाधिकारी ने नाम
उजागर ना करने की शर्त पर समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से कहा कि भूरिया ने अपने आप को
महज मालवा तक ही सिमटा कर रखा है। उन्हें बाकी प्रदेश से कोई लेना देना नहीं है।
उक्त पदाधिकारी ने
कहा कि क्या यह संभव है कि प्रदेश अध्यक्ष को पता ना चले और उनकी पार्टी के सदस्य
माफीनामा भेज दें। मान भी लिया जाए कि यह बात भूरिया की जानकारी के बिना ही हो गई
तो जब भूरिया के संज्ञान में यह बात आई तो कम से कम रस्म अदायगी के लिए ही सही, भूरिया एक कारण
बताओ नोटिस तो दोनों विधायकों को दे ही सकते थे। वस्तुतः एसा कुछ हुआ नहीं।
इस संबंध में जब
समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया ने कांति लाल भूरिया से संपर्क करने का प्रयास किया गया
तो सदा की भांति ‘नाट रीचेबल‘‘ भूरिया को मोबाईल
बंद ही मिला। मध्य प्रदेश में अनेक मामले एसे हुए हैं जिनके चलते यह लगने लगा है
कि मध्य प्रदेश के कांग्रेस के आला नेता ही सूबे में कांग्रेस का उदय नहीं चाहते
हैं।
एआईसीसी के सूत्रों
का कहना है कि दरअसल, राहुल और सोनिया गांधी को ही एमपी की परवाह नहीं है, वरना, जब कांग्रेस के
कद्दावर नेताओं के क्षेत्रों में लोकसभा चुनाव में विजय और उसी क्षेत्र में
विधानसभा में पराजय अथवा विधानसभा में विजय और लोकसभा में उसी क्षेत्र में पराजय
के आंकड़े आलाकमान के सामने रखे जाते हैं तो इस पर कार्यवाही क्यों नहीं करते?
सूत्रों का कहना है
कि क्षेत्रीय क्षत्रपों के कांधों पर विधानसभा या लोकसभा में चुनाव जिताने या कम
से कुछ सीटों का टारगेट क्यों नहीं फिक्स किया जाता है। अगर क्षेत्रीय क्षत्रपों
के सामने यह बंधन रख दिया जाए कि वे अपने प्रभाव का दावा करने वाले क्षेत्र में
साठ फीसदी से कम सीटें जिता पाए तो उन्हें लोकसभा या विधानसभा की टिकिट नहीं
मिलेगी, तो मध्य
प्रदेश में कांग्रेस का परचम लहराने से कोई नहीं रोक सकता है।
बहरहाल, कांग्रेस के सत्ता
और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ के सूत्रों ने साफ संकेत दिए हैं कि
मध्य प्रदेश के महज दस फीसदी जमीनी हालात ही राजदरबार में बमुश्किल पहुंच सके हैं, बाकी वास्तविकताओं
को तो प्रभावशाली नेताओं ने रद्दी की टोकरी में डलवा दिए हैं। इन स्थिति
परिस्थितियों से सोनिया और राहुल काफी आहत बताए जा रहे हैं। सूत्रों की मानें तो
जल्द ही मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी को एक कार्यकारी अध्यक्ष मिलने के साथ ही साथ
प्रदेश प्रभारी के पद से बी.के.हरिप्रसाद की छुट्टी हो सकती है।
समाचार एजेंसी ऑफ
इंडिया से चर्चा के दौरान हरीप्रसाद ने कहा कि इस संबंध में पूरी रिपोर्ट उनके
समक्ष आ चुकी है। इस मामले में कांग्रेस के विधायकों ने भाजपा से माफी (अपोलाजी)
नहीं मांगी है, विधायकों
ने सदन के प्रति खेद (रिग्रेट) जताया है। उन्होंने कहा कि भूरिया या कांग्रेस के
बारे में जो भी बातें मीडिया में उछाली जा रही हैं, वह संघ और भाजपा के
षणयंत्र का हिस्सा है।
कांतिलाल भूरिया के
संज्ञान में लाए बिना माफीनामा लिखकर देने की बातों के बारे में चर्चा करने पर
बी.के.हरिप्रसाद ने कहा कि वह चेप्टर अब क्लोज हो चुका है इसलिए उस बारे में चर्चा
करना निरर्थक ही है। अब विधानसभा के सत्र पर ही सब निर्भर है। हरिप्रसाद ने कहा कि
उन्होंने दोनों विधायकों को विधानसभा के विशेष सत्र में उपस्थित होने के निर्देश
दे दिए हैं।
परोक्ष तौर पर
बी.के.हरिप्रसाद ने मध्य प्रदेश के मीडिया को भाजपा और संघ की गोद में बैठा
निरूपित तो कर दिया किन्तु इससे वे परोक्ष तौर पर कांग्रेस के मीडिया मैनेजमेंट पर
भी प्रश्न चिन्ह लगा गए, क्योंकि कांग्रेस की ओर से सच्चाई बताने के लिए कोई भी आगे
नहीं आ रहा है।
उधर, मीडिया में प्रदेश
कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के हवाले से भी खबरें आ रही हैं कि भाजपा ने डरा धमका
कर यह माफी नामा लिखवाया है। इसके पहले समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से चर्चा के दौरान
लखनादौन नगर पंचायत के मामले में भी भूरिया ने कहा था कि कांग्रेस के अध्यक्ष पद
के प्रत्याशी को भाजपा ने डराया धमकाया तो उसने अपना नाम वापस ले लिया। कांग्रेस
द्वारा भाजपा के शासन को गुण्डाराज निरूपित करने का प्रयास अवश्य ही किया जा रहा
है, पर इसमें
कांग्रेस रत्ती भर सफल होती नहीं दिख रही है।