क्या परिवार नियोजन
महिलाओं की जवाबदारी!
(आंचल झा)
रायपुर (साई)। भारत
में आज भी 21 फीसदी
मामलों में बिना तैयारी के ही गर्भावस्था की स्थिति आ जाती है। यह भी सच है कि 72 फीसदी मामलों में
परिवार नियोजन की जिम्मेदारी का बोझ केवल महिला को ही उठाना होता है। सरकारी
नीतियां भी कुछ ऐसी हैं तमाम सुरिक्षत उपायों की उपलब्धता के बावजूद सारा जोर
महिला नसबंदी पर ही होता है।
परिवार नियोजन को
बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार की ओर से स्थापित जनसंख्या स्थिरता कोष के सूत्रों
ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बतया कि देश में इस समय लगभग हर पांचवां गर्भ
अनचाहा होता है, क्योंकि
गर्भधारण के 21 फीसदी
मामलों में दंपती इसके लिए तैयार नहीं होते। इस तरह हर साल 65 लाख मामलों में
दंपती सही सलाह के बाद गर्भपात के लिए तैयार हो जाते हैं। यह आंकड़े सिर्फ उन लोगों
के हैं, जो मान
लेते हैं कि उन्हें अभी बच्चे की जरूरत नहीं और गर्भपात के लिए तैयार हो जाते हैं।
जबकि बहुत बड़ी
संख्या ऐसे मामलों की भी है, जिनमें मां-बाप जन्म देने को तैयार हो जाते
हैं। ऐसे मामलों के बारे में कोई आंकड़ा या अनुमान उपलब्ध नहीं है। केंद्र सरकार की
राष्ट्रीय जनसंख्या नीति के सूत्रधार समङो जाने वाले पूर्व परिवार कल्याण सचिव एआर
नंदा के मुताबिक अब ऐसी स्थिति नहीं कि लोगों को गर्भनिरोधक उपायों के बारे में
जानकारी नहीं हो।
इसके बावजूद इन्हें
अपनाने को लेकर झिझक और इनकी अनुपलब्धता ऐसे मामलों की सबसे बड़ी वजह है। नंदा के
मुताबिक बिना तैयारी के गर्भ के अधिकतर मामले दूसरे या उसके बाद गर्भधारण के होते
हैं क्योंकि भारत में अधिकांश दंपति पहले बच्चे में जल्दी तैयार हो जाते हैं।
सरकारी सूत्र भी
मानते हैं कि आपातकालीन गर्भनिरोधक के बारे में उचित जानकारी का अभाव भी इसकी एक
बड़ी वजह है। इसी तरह भारत में महिलाओं को बच्चे पैदा करने के मामले में फैसला लेने
का हक भले ही नहीं हो, लेकिन परिवार नियोजन का जिम्मा आज भी उन्हीं के कंधों पर है।
परिवार नियोजन के लिए आज भी 72 फीसदी मामलों में महिला नसबंदी का विकल्प
अपनाया जा रहा है। जबकि पुरुष नसबंदी के मामले लगभग दो फीसदी तक सीमित हैं।
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