शनिवार, 6 जून 2009

दिल्ली बेदिल वालों की

(लिमटी खरे)

क्या गुल खिलाएगी वादियों में भी पसरी कुंवर साहेब की खामोशी

कांग्रेस की राजनीति में अस्सी के दशक के बाद एकाएक तेजी से उभर कर आए कांग्रेसी राजनीति के चाणक्य समझे जाने वाले कुंवर अजुZन सिंह इन दिनों पर्वतों की शरण में हैं। इन दिनों उन्होंने सपरिवार कुमाउं की वादियों में अपना आशियाना बना रखा है। रामगढ़ के एक रिसोर्ट में कुंवर साहेब इन दिनों कमरे में ही कैद हैं, वे न तो किसी से मिल जुल ही रहे हैं, और न ही कहीं आ जा ही रहे हैं। लोग कह रहे हैं कि अगर एयर कंडीशनंड कमरे में ही बंद रहना था तो मनमोहन मंत्रिमण्डल से बाहर का रास्ता दिखाने के बाद उनके लिए दिल्ली की कोठी क्या बुरी थी? वैसे अभी भी उनके अकबर रोड़ स्थित सरकारी आवास के सामने उनके नाम के आगे मानव संसाधन एवं विकास मंत्री की दप्ती हटाई नहीं गई है। लोग कयास लगा रहे हैं कि वहां से लौटने के बाद पता नहीं अजुZन सिंह क्या चाल चलने वाले हैं।

मीनाक्षी की मिसाल दे रहे हैं कांग्रेसी

डाउन टू अर्थ का असली मतलब जानना हो तो कोई मीनाक्षी नटराजन से पूछे। सूती सलवार कमीज, हाथ में टिफिन और मोबाईल रखे, आखों पर चश्मा लगाए आम भारतीय छवि वाली समझदार नेता हैं मीनाक्षी। इन चुनावों में उन्होंने लगातार छ: बार चुने गए लक्ष्मीनारायण पाण्डे को पटखनी दी वह भी कांग्रेसियों के भारी विरोध के बावजूद। कहते हैं कि पार्टी की ओर से मिले 75 लाख रूपयों में से उन्होंने 25 लाख रूपए लौटाकर एक मिसाल पेश की है, जिसकी चर्चा एआईसीसी में जमकर हो रही है। राजनीति को मनी और मसल पावर से मुक्त करने की आकांक्षी मीनाक्षी की इस मिसाल से अनेक नेताओं पर बन आई है। दरअसल उनके पैसे लौटाने के बाद वे उम्मीदवार जो चुनाव के बाद खर्च की अधिकता जताकर कांग्रेस से और पैसे की चाहत रख रहे थे, उनके सारे रास्ते अब बंद हो चुके हैं।

खून आखिर खून ही होता है

संजय और राजीव गांधी की पित्नयों में भले ही अनबोला हो किन्तु लोकसभा में सदस्यता ग्रहण करने के दौरान नेहरू गांधी परिवार में खून ने एक दूसरे को आखिर पुकार ही लिया। शपथ ग्रहण करने जब राहुल गांधी जा रहे थे, तब उन्होंने अपनी चाची मेनका को दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम किया। मेनका ने जरूर मन ही मन ढेर सारा आशीZवाद दिया हो या न दिया हो पर उन्होंने मुस्कुरा कर उनका अभिवादन स्वीकार अवश्य किया। इतना ही नहीं शपथ ग्रहण के दौरान उन्होंने मेज थपथपाकर राहुल का उत्साह भी बढ़ाया। वहीं वरूण गांधी ने अपनी ताई सोनिया गांधी को प्रणाम किया तो उन्होंने भी मुस्कुराकर अपने भतीजे का मान रखा। वरूण के शपथ ग्रहण के दौरान उनकी चचेरी बहन प्रियंका और बहनोई राबर्ट वढ़ेरा भी मुस्कुराकर वरूण का उत्साह ही बढ़ाते नजर आए। यह अलहदा बात रही कि देवरानी मेनका और जेठानी सोनिया ने एक दूसरे से नजरें मिलाना मुनासिब नहीं समझा।

आईएफएस का बोलबाला है सदन में

देश के उच्च और निचले सदन में भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) का बोलबाला साफ दिखाई दे रहा है। इस बार गजब का इत्तेफाक सामने आया है। महामहिम राष्ट्रपति की कुर्सी पर पहली बार महिला, उपराष्ट्रपति अल्पसंख्यक मुसलमान, लोकसभाध्यक्ष महिला तो उपनेता भी महिला। इसके साथ ही एक और इत्तेफाक है इस पंद्रहवीं लोकसभा में। और वह है राज्य सभा और लोकसभा दोनों ही के नेता भारतीय विदेश सेवा के पूर्व अधिकारी हैं। एक ओर जहां महामहिम उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी पूर्व में भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी के तौर पर अनेक देशों में भारत के राजदूत रहे हैं, वहीं लोकसभाध्यक्ष मीरा कुमार 1973 बेच की आईएफएस हैं, तथा वे स्पेन, ब्रिटेन, मारीशस जैसे अनेक देशों में भारतीय उच्चायोग और दूतावासों में काम कर चुकी हैं।

देखना है मिनी कमल नाथ क्या करते हैं

15वीं लोकसभा के गठन के उपरांत प्रधानमंत्री डॉ.एम.एम.सिंह ने मंत्रियों को शपथ दिलाई और विभागों का बंटवारा किया। इसमें सिर्फ एक वाणिज्य और उद्योग विभाग ही एसा है, जो मध्य प्रदेश के खाते में बरकरार रहा है। इस विभाग की महती जवाबदारी पीएम ने ग्वालियर के युवा तुर्क ज्योतिरादित्य सिंधिया को दे दी है। मध्य प्रदेश से आए नेता इस जवाबदारी को मध्य प्रदेश के खाते में आने से खुश तो हैं, साथ ही उन्होंने महराज का नया नामकरण कर दिया है। चूंकि विभाग कमल नाथ के पास था अत: अब महराज को मिनी कमल नाथ की संज्ञा दी जा रही है। लोग यह कहने से नहीं चूक रहे हैं कि अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कमल नाथ से इतर कुछ नया कर दिखाया तब तो ठीक वरना वे कमल नाथ की छवि से इस विभाग से मुक्त नहीं हो सकेंगे।

गुड्डू की नजर अब आर्थिक राजधानी पर!

उज्जैन में सत्यनारायण जटिया को धूल चटाने वाले कांग्रेसी सांसद प्रेमचंद गुड्डू की नजरें अब मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी माने जाने वाले इंदौर शहर पर है। वे चाहते हैं कि इंदौर से उज्जैन का फासला कम हो जाए। सांसद बनते ही उन्होंने इंदौर उज्जैन रेलखण्ड का दोहरीकरण और विद्युतिकरण का लक्ष्य निर्धारित कर दिया है। इतना ही नहीं अपने कार्यक्षेत्र में विस्तार की गरज से उन्होंने यह तक कह डाला कि इंदौर में नए रेल्वे स्टेशन की दरकार है, जो महू और एमआर (मेजर रोड़) 10 के पास बन सकता है। उज्जैन के विकास के बारे में तो उनकी सोच जायज कही जा सकती है, किन्तु प्रदेश की कमर्शियल केपिटल इंदौर की ओर उनकी नजरें इनायत होने के अनेक अर्थ लगाए जा रहे हैं। सनद रहे देवास से सांसद बने सज्जन सिंह वर्मा की कर्म स्थली भी इंदौर ही रही है।

उल्टे बांस बरेली के

विदिशा में भाजपा नेत्री सुषमा स्वराज को खाली मेदान देने वाले मध्य प्रदेश के पूर्व मंत्री राजकुमार पटेल के साथ उल्टे बांस बरेली के की कहावत चरितार्थ होती दिख रही है। पटेल शायद यह नहीं जानते थे कि कांग्रेस महासचिव एवं मध्य प्रदेश प्रभारी बी.के.हरिप्रसाद को मोबाईल से एसएमएस करना कितना मंहगा पड़ेगा! पार्टी सूत्र बताते हैं कि पार्टी पर्यावेक्षक हरकेश बहादुर और सईद अहमद ने जब विदिशा कांड की पूरी रिपोर्ट आलाकमान को सौंपी तब पटेल के खिलाफ एसएमएस का भी गजब रोल रहा। सूत्र बताते हैं कि पटेल ने हरिप्रसाद को एसएमएस किए थे, जिनका मजमून था कि वे विदिशा के बजाए होशंगाबाद से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं। इन संदेशों को आलाकमान ने पार्टी की प्रतिबद्धता के खिलाफ माना है, कि पटेल मैदान छोड़ने का मन पहले ही बना चुके थे।ा गा

तुलनात्मक चार्ट बना चर्चा का केंद्र

विधानसभा और लोकसभा चुनावों में तुलनात्मक चार्ट इन दिनों अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में चर्चा का केंद्र बना हुआ है। बात हो रही है मध्य प्रदेश की। मध्य प्रदेश के एक कांग्रेसी नेता ने एआईसीसी सुप्रीमो को एक तुलनात्मक चार्ट ईमेल और फेक्स के माध्यम से भेजा है, जिसमें जमीनी हकीकत को बयान किया गया है। मध्य प्रदेश की विलोपित हुई सिवनी लोकसभा सीट के मण्डला लोकसभा क्षेत्र में आने वाले विधानसभा के बारें उक्त चार्ट में कुछ रोचक तथ्य दिए गए हैं। चार्ट में 2003 विधानसभा में कांग्रेस को 16416 मत तो 2004 के लोकसभा में 16340 मत भाजपा को उसी विधानसभा से मिलना बताया गया है। इतना ही नहीं इस बार 2008 में उसी विधानसभा से कांग्रेस को 20680 मत मिलना तो 2009 में लोकसभा में भाजपा को 6989 मत मिलने की बात कही गई है। कांग्रेसी कहते हैं कि आंकड़ों में दम भी है। अब लोग कयास लगा रहे हैं कि इस तरह की जादूगरी आखिर कौन दिखा सकता है!

एक प्रमाणपत्र भूला , दूसरे ने पैर पड़े!

लाल बत्ती का जलवा कुछ इस तरह होता है कि आदमी अपनी सुध बुध खो बैठता है। हाल ही में जब मध्य प्रदेश के रतलाम से चुने गए सांसद कांतिलाल भूरिया बतौर सांसद शपथ लेने पहुंचे तो उन्हें याद आया कि उनकी जीत का प्रमाणपत्र तो वे अपनी गाड़ी में ही भूल आए हैं। दरअसल बिना प्रमाणपत्र शपथ लेना मुश्किल होता है। बाद में उन्होंने अपने सहायक को फोन कर तत्काल वाहन से प्रमाणपत्र बुलवाया। इसी तरह उज्जैन के सांसद प्रेमचंद गुड्डू ने तो सारी हदें ताक पर रखकर शपथ लेने के पूर्व कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के पैर छूकर आशीZवाद चाहा। हक्की बक्की सोनिया बोल पड़ीं, ``अरे, सब देख रहे हैं!`` बाद में जब वे वापल लौट रहे थे, तब इंदौर की सांसद सुमित्रा महाजन ने मेज थपथपाकर जोरदार लहजे में कहा, ``गुड्डू, बधाई हो बधाई।``

पुच्छल तारा

भाजपाईयों को पैजामे के अंदर रखने में मास्टर माने जाने वाले कमल नाथ ने सूबे के निजाम शिवराज सिंह को भी शीशे में उतारने की कवायद आरंभ कर दी है। मुख्यमंत्री द्वारा मध्य प्रदेश भवन में आयोजित सांसद भोज में पधारे मंत्रियों में ज्योतिरादित्य सिंधिया की कमी अवश्य खली किन्तु इसमें कमल नाथ का जलजला अलग ही दिखा। घूम घूम कर सांसदों की मिजाज पुरसी करने वाले कमल नाथ ने सभी के सामने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पानी पानी कर दिया। बार बार केंद्र की उपेक्षा का आरोप लगाने वाले शिवराज की ओर मुखातिब कमल नाथ ने कहा, ``मुख्यमंत्री जी, अब मैं मध्य प्रदेश की सड़कों के उन्नयन का काम इतनी तेजी से करूंगा कि आप पर आरोप लगने लगेंगे कि आप अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा पैसा खींचकर ले गए हैं।`` साथ ही कमल नाथ ने मध्य प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार पर भी इशारा करते हुए कहा कि यह तभी संभव हो सकेगा जब आप और आपका मंत्रीमण्डल पवित्र भावना से काम करेगा।

6 june 2009

कैसे लगे सांसदों के असंसदीय व्यवहार पर लगाम?


(लिमटी खरे)


देश की दिशा और दशा तय करने वाली देश की सबसे बड़ी पंचायत में संसद सदस्यों का आचरण अब तमाम वर्जनाओं को धूल धूसारित करता जा रहा है। सांसद नैतिकता खोने की पराकाष्ठा तक पहुंच चुके हैं। जब से लोकसभा ने अपना टीवी चेनल आरंभ किया है तब से समूचा देश संसद में होने वाले नंगे नाच को आसानी से देख पा रहा है, पर देशवासी बेबस हैं।भारत गणराज्य के गठन के दौरान सांसदों के आचरण के लिए भी नियम कायदे निर्धारित किए गए थे। लोकसभा सचिवालय ने बाकायदा पुस्तिका जारी कर संसदीय नियम कायदों का ब्योरा इसमें दिया था। पहली बार चुने गए सांसद के लिए इनकी जानकारी महत्वपूर्ण है, किन्तु अनेक बार चुने गए सांसद ही जब इसका माखौल उड़ाएंगे तो नवागत सांसद क्या सीख लेंगे।इस पुस्तिका में साफ उल्लेखित है कि सदस्यों को किसी सदस्य के बोलने के दौरान व्यवधान उत्पन्न नहीं करना चाहिए। इतना ही नहीं सदन में नारेबाजी, धरना, विरोध या कागजों को फाड़ने जैसे कदमों को नियम विरूद्ध बताया गया है। इस पुस्तिका में सदन की गरिमा को ध्यान में रखते हुए सदन में प्रवेश से लेकर उठने बैठने और बाहर जाने तक के तौर तरीकों को रेखांकित किया गया है।सदन में अध्यक्ष का दर्जा सबसे उपर है यह अकाट् सत्य है। यही कारण है कि न्यायालयों की भांति ही सदन में प्रवेश और निर्गम के समय अध्यक्ष के आसन को सर नवाने की ताकीद दी गई है। अध्यक्ष के संबोधन के दौरान सदन से बाहर नहीं जाना चाहिए साथ ही साथ अगर अध्यक्ष आसन ग्रहण कर रहे हों तो प्रवेश करने वाले सदस्य उनके आसन ग्रहण करने के उपरांत ही सदन में प्रवेश करें यह व्यवस्था भी रखी गई है।पुस्तिका में यह व्यवस्था भी दी गई है कि जब अध्यक्ष अपनी बात कहने के लिए खड़े हों तो सदस्यों को तत्काल अपने स्थान पर बैठ जाना चाहिए। विडम्बना ही कही जाएगी कि शार्ट टेंपर्ड सांसद उत्तेजना में आपा खो देते हैं, तो उनसे संसदीय आचरा के पालन की उम्मीद की जाना बेमानी ही होगा। संसदीय आचरण की इस हेण्ड बुक में तो यहां तक कहा गया है कि रोजगार या व्यवसायिक संपर्क वाले लोगों के लिए सिफारिशी पत्र लिखना भी नियम विरूद्ध ही है।पिछले दो दशकों में संसद की गरिमा तार तार हुए बिना नहीं रही है। जनादेश प्राप्त जनप्रतिनिधि संसद में जिस तरह का अशोभनीय व्यवहार करते आए हैं, उसकी महज निंदा से काम नहीं चलने वाला। आखिर वे देश के नीति निर्धारक हैं। देशवासियों के लिए वे अगुआ (पायोनियर) से कम नहीं हैं।चौदहवीं लोकसभा ने देशवासियों का सर शर्म से झुकाया है, इस बात में कोई संदेह नहीं है। पिछली मर्तबा लोकसभाध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी को कई बार कोफ्त का सामना करते देखा गया। सांसदों के व्यवहार से क्षुब्ध होकर सोमदा की टिप्पणी कि इन सांसदों न तो जनता का एक पैसा दिया जाना चाहिए और न ही इन्हें दुबारा चुनकर आना चाहिए, वास्तव में जनता के दर्द को पूरी तरह रेखांकित करने के लिए काफी कही जा सकती है। सोमदा की निष्पक्षता की कीमत उन्हें पार्टी की सदस्यता खोकर चुकानी पड़ी जो वाकई एक नज़ीर कही जा सकती है।सदन में पैसे के बदले सवाल पूछने पर हुआ स्टिंग आपरेशन हो या सदन में नोट लहराने का मामला, हर मसले में संसदीय परंपरा तार तार हुए बिना नहीं रही है। कबूतर बाजी में फंसे संसद बाबू भाई कटारा ने तो सारी हदों को पार कर दिया। पिछली लोकसभा में सदन की न्यूनतम 332 बैठकों में कार्यवाही 423 घंटे बाधित रही यह अपने आप में एक रिकार्ड ही कहा जा सकता है। पूरे घटनाक्रमों को देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि संसद की गरिमा और मर्यादा काफी हद तक कम हुई है, इसके अलावा सांसदों में गंभीरता का साफ आभाव भी देखा गया। इन सारी बातों से साफ हो जाता है कि संसद अपनी महत्ता पूरी तरह खोती जा रही है, इन प्रतिकूल परिस्थितियों में लोकतंत्र के अक्षुण्ण रहने की उम्मीद करना बेमानी ही होगा।अब लोकसभाध्यक्ष के आसन पर भारतीय विदेश सेवा की पूर्व अधिकारी सुशिक्षित, सुसंस्कृत और मृदुभाषी मीरा कुमार आसीन हैं। उन्होंने सदन की गरिमा को बरकरार रखने का भरोसा दिलाया है, किन्तु पहले ही दिन सदन में यादवी संघर्ष की हल्की सी झलक दिखाई पड़ी। सदन के बाहर लोग कहने से नहीं चूके आगाज यह है तो अंजाम क्या होगा?हमारे अपने मतानुसार जिस तरह देश में कानून के पालन के लिए हर नागरिक को बाध्य किया जाता है उसी तरह संसद और विधानसभाओं में जनप्रतिनिधियों के लिए बने कानून का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने के लिए नया कानून बनाया जाना चाहिए, ताकि जनप्रतिनिधि अपनी हदों को पहचानकर लक्ष्मण रेखा पार करने की गुस्ताखी न कर सकें। इसके लिए जनप्रतिनिधियों को ही आगे आना होगा, जिसमें संशय ही लगता है।


संघ के हाथ में होगी भाजपा की कमान!

संघ का ``पालक`` होगा भाजपा सुप्रीमो

अब फैसला लेकर नहीं, पहले बताना होगा संघ को

भाजपा से उमर दराज नेताओं की सेवानिवृति की तैयारी

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के आला नेताओं की झींगा मस्ती के दिन जल्द ही समाप्त होने वाले हैं। राजग के घोषित पीएम इन वेटिंग के चेहरे के सामने आम चुनावों में औंधे मुंह गिरी भाजपा के पितृ संगठन ने अब भाजपा की कमान सीधे सीधे अपने हाथों में लेने का फैसला ले निया है।संघ के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि भाजपा को सीधे नियंत्रण में लेने की गरज से संघ ने अपनी रणनीति को अंतिम रूप दे दिया है। इसके लिए ``पालक`` नामक पद का सृजन करने की संघ में सैद्धांतिक सहमति बन गई है। संघ की प्रतिनिधि सभा में सह सरकार्यवाहक स्तर के पदाधिकारी की इस पद पर नियुक्ति का प्रस्ताव पेश करने की तैयारी चल रही है।सूत्रों ने बताया कि भाजपा को किसी भी बड़े फैसले को लेने के पूर्व पालक की अनुमति की दरकार होगी। अगर पालक को भाजपा की बात जमी तभी भाजपा उसकी घोषणा करेगी, अन्यथा भाजपा को अपने निर्णय में संशोधन करना होगा या फिर मामला निरस्त कर दिया जाएगा। गौरतलब होगा कि वर्तमान में भाजपा द्वारा पार्टी स्तर पर कोई भी फैसला लिया जाकर बाद में उससे संघ को आवगत कराया जाता है।संघ के सूत्रों ने कहा कि संघ प्रमुख इस बात से आश्वस्त हैं कि इस नई व्यवस्था के लागू होने के उपरांत भाजपा में अंदर और सतही तौर पर फैली खेमेबाजी पर अंकुश लगने के साथ ही साथ भाजपा अनुशासन के दायरे में रहेगी। उल्लेखनीय होगा कि सबसे अनुशासित पार्टी मानी जाने वाली भाजपा में वर्तमान में अनुशासन की सीमाएं टूटती नजर आ रही हैं।गौरतलब होगा कि भाजपा की करारी शिकस्त के उपरांत संघ प्रमुख ने भाजपा के कायाकल्प का जिम्मा खुद ही संभाला है। इसी गरज से वे पिछले दिनों राजधानी दिल्ली प्रवास पर भी थे, जहां झंडेवालान स्थित संघ मुख्यालय ``केशव कुंज`` में उन्होंने लाल कृष्ण आड़वाणी, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज आदि से विस्तार से चर्चा भी की थी।उधर भाजपा में अंदर ही अंदर बुजुर्ग नेताओं की मुखालफत का काम आरंभ हो गया है। उत्तर प्रदेश में भाजपा विधायकों की बैठक के दौरान यह मांग पुरजोर तरीके से उठी कि उमरदराज नेता केवल आशीZवाद और सलाह देने की भूमिका स्वीकार कर सक्रिय राजनीति से किनारा कर लें, यह समय की मांग भी है और पार्टी का उत्थान इसी से संभव है।


ग्रीन सिग्नल के लिए तैयार राहुल एक्सप्रेस

टेलेंट सर्च पार्ट टू किसी भी समय

एमपी, यूपी, टीएन, बिहार और राजस्थान होगा पड़ाव

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस की नजर में देश के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी ने प्रतिभाशाली युवाओं की तलाश का दूसरा एपीसोड आरंभ करने की तैयारियां कर ली हैं। इस बार राहुल गांधी के निशाने पर मध्य प्रदेश, तमिलनाडू, बिहार, राजस्थान और उत्तर प्रदेश सूबे हैं।राहुल गांधी के करीबी सूत्रों का कहना है कि पिछली मर्तबा हुए टेलेंट सर्च और लोकसभा में युवाओं की बढ़ी भागीदारी से राहुल गांधी काफी आशिन्वत नजर आ रहे हैं। राहुल की टीम जल्द ही इन पांच राज्यों में प्रतिभाशाली युवा खोजने का अभियान आरंभ करने जा रही है।सूत्रों के अनुसार टेलेंट सर्च भाग दो का प्रसारण महज चार माह ही होगा अथाZत युवाओं की खोज का काम नवंबर तक ही चलेगा, इसके उपरांंत दिसंबर में युवक कांग्रेस के चुनाव में इन युवाओं को पदों से नवाजा जाएगा। एसा नहीं कि देश के अन्य सूबों में राहुल एक्सप्रेस नहीं जाएगी, किन्तु यह काम अगले साल से आरंभ होगा।सूत्रों ने संकेत दिए कि सूबों में होने वाले विधानसभा चुनावों के पहले राहुल गांधी देश भर में अपनी टीम तैयार करना चाह रहे हैं। इसके उपरांत अगले आम चुनाव में ज्यादा से ज्यादा युवाओं के भरोसे राहुल गांधी कांग्रेस की सरकार बनाने का जतन करेंगे।