0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . . 39
. . . तो शून्य घोषित हो सकती है लोकसुनवाई
आरक्षित वन के मसले पर तो हुई ही नहीं लोकसुनवाई!
क्या दोनों चरणों के लिए फिर से होगी पब्लिक हियरिंग
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा केंद्र सरकार की छटवीं अनुसूची में शामिल मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य विकासखण्ड घंसौर के ग्राम बरेला में डाले जा रहे पावर प्लांट की क्षमता कितनी है इस बात को लेकर अभी कुहासा छटा नहीं कि इसके आरक्षित वन में स्थापित किए जाने की बात के प्रकाश में आने से इस संयंत्र का भविष्य खतरे में पड़ता दिख रहा है।
गौरतलब है कि बरेला में दो चरणों में डाले जाने वाले पावर प्लांट के पहले चरण में कोल आधारित छः सौ मेगावाट के पावर प्लांट की लोक सुनवाई 22 अगस्त 2009 को संपन्न हुई थी। मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के तहत हुई इस लोकसुनवाई में मेसर्स झाबुआ पावर प्लांट द्वारा इसके आसपास रक्षित वन एवं इसके रक्षित वन में स्थापित होने की बात छिपा ली थी। जिसके चलते पहले चरण की लोकसुनवाई में इस बारे में लोगों ने जानकारी के अभाव में आपत्ति दर्ज नहीं कराई जा सकी। मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के लोकसुनवाई प्रतिवेदन पर केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने भी आंख बंद कर अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी।
प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के सूत्रों का कहना है कि इसके दूसरे चरण के लिए लोकसुनवाई 600 मेगावाट के लिए तय की गई थी। मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा इसकी क्षमता रातों रात बढ़ाकर 660 मेगावाट कर दी। उधर, मण्डल ने भी 660 मेगावाट की लोकसुनवाई आयोजित की किन्तु सूत्रों ने बताया कि कागजों पर कहीं कहीं 600 तो कहीं कहीं 660 मेगावाट की लोकसुनवाई दर्ज है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार 22 नवंबर 2011 को संपन्न लोकसुनवाई के पूर्व संयंत्र प्रबंधन द्वारा जो कार्यकारी सारांश जमा करवाया गया था, वह 22 अगस्त 2009 के कार्यकारी सारांश की छायाप्रति ही थी। संयंत्र प्रबंधन के सूत्रों का कहना है कि कंपनी के मालिकों को यह भान नहीं था कि सिवनी जिले की जनता इतनी जागरूक होगी कि इस मामले में बाल की खाल निकालना आरंभ कर देगी। जब मामले ने तूल पकड़ा तब जाकर कहीं संयंत्र प्रबंधन को होश आया और उसने दूसरे चरण का नया कार्यकारी सारांश जमा करवा दिया। सूत्रों की मानें तो प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने बिना किसी ना नुकुर के निहित स्वार्थों की पूर्ति होते ही संयंत्र प्रबंधन द्वारा जनसुनवाई के एक सप्ताह बाद जमा कराए गए कार्यकारी सारांश को पिछले कार्यकारी सारांश के स्थान पर अपने दस्तावेजों का हिस्सा बना लिया।
उधर, केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि अगर आरक्षित वन के बारे में संयंत्र प्रबंधन ने दोनों चरणों की लोकसुनवाई के उपरांत संज्ञान में लाई गई है तो दोनों ही चरणों की लोकसुनवाई शून्य घोषित होने में समय नहीं लगेगा। दूसरे चरण के कार्यकारी सारांश में अनेक नए बिंदुओं पर अगर फिर से लोकसुनवाई आहूत हुई तो संयंत्र प्रबंधन की अब तक की सारी कवायद पर पानी फिरने में देर नहीं लगने वाली है।
(क्रमशः जारी)