शनिवार, 12 नवंबर 2011

बच्चों के मामले में इंदौर सबसे असुरक्षित


बच्चों के मामले में इंदौर सबसे असुरक्षित

नेशलन क्राईम ब्यूरो और एनजीओ का दावा

बच्चों के मामले में दयनीय है एमपी की हालत

शिव के राज में बहनों के बच्चे असुरक्षित

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश के हृदय प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के भानजे और भानजियां सुरक्षित नहीं हैं। नेशलन क्राईम ब्यूरो और एक गैर सरकारी संगठन हक की ओर से जारी चाईल्ड राईट इंडेक्स में इस बात का खुलासा किया गया है। नेशनल क्राईम ब्यूरो द्वारा जारी वर्ष 2009 - 2010 के प्रतिवेदन में मध्य प्रदेश को बच्चों के लिए सबसे असुरक्षित बताया गया है। इस प्रतिवेदन में टॉप थ्री शहरों में सबसे उपर प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर, फिर संस्कारधानी जबलपुर के बाद तीसरी पायदान पर राजधानी भोपाल का नंबर आता है।

इन प्रतिवेदनों से साफ हो जाता है कि विकासशील शहरों में बच्चे सुरक्षित नहीं हैं। नेशनल क्राईम ब्यूरो का प्रतिवेदन कहता है कि मध्य प्रदेश में हर माह बच्चों के साथ पौन चार सौ अपराध घटित होते हैं। गौरतलब है कि प्रदेश के बच्चों को सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान अपना भानजा भानजी निरूपित करते हैं। इन भयावह आंकड़ों के बाद भी सूबे में विपक्ष में बैठी कांग्रेस द्वारा सत्ता के खिलाफ इस संवेदनशील मुद्दे पर अपनी बोथरी धार से भी वार नहीं किया जा रहा है।

वर्ष 2009 से दस के बीच इंदौर में बच्चों के साथ हुए अपराधों की तादाद 337, जबलपुर में 257 तो भोपाल में 127 पाई गई। बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराधों में भी मध्य प्रदेश पहली पायदान पर है। एमपी में इस अवधि में शिवराज सिंह चौहान की 1071 भानजियों के साथ बलात्कार के मामले पंजीबद्ध किए गए। एमपी के बाद उत्तर प्रदेश में 625 तो महाराष्ट्र में 612 मामले बलात्कार के दर्ज हुए।

बच्चों की हत्या के मामले में सूबे में इस अवधि में 115 अपराध दर्ज किए गए। भोपाल इस मामले में सबसे उपर है जहां 7 बच्चों की हत्या की गई। बच्चों की हत्या के मामले में देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली का रिकार्ड बहुत ही खराब रहा। यहां कुल 65 बच्चों की हत्या की गई। देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई में 16 बच्चों को मौत के घाट उतार दिया गया। शांति का अघोषित टापू मध्य प्रदेश बच्चों के मामले में बहुत बुरी स्थिति में पहुंच चुका है और सूबे में कांग्रेस गुटबाजी में उलझकर प्रदेश के बच्चों का हित साधने से किनारा करती ही नजर आ रही है।

रेल के मामले में उदासीन हैं एमपी के क्षत्रप


रेल के मामले में उदासीन हैं एमपी के क्षत्रप

केंद्र में मंत्री भी नहीं ले रहे रेल्वे की सुध

ग्वालियर से इटारसी तीसरी लाईन की दरकार

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। दिल्ली को दक्षिण, पश्चिम और पूर्व से जोड़ने वाले महात्वपूर्ण रेल खण्ड ग्वालियर इटारसी के बारे में मध्य प्रदेश के सांसदों की कोई दिलचस्पी नहीं है। मध्य प्रदेश कोटे से मंत्री कमल नाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने अपने संसदीय क्षेत्रों में रेल गाडियों की तादाद अवश्य बढ़वा ली हो पर मध्य प्रदेश में रेल की पांतों की सुध किसी ने भी नहीं ली है।

रेल्वे की रीढ़ माने जाने वाले ग्वालियर इटारसी रेलखण्ड पर यातायात का दबाव इस कदर बढ़ गया है कि यात्री गाडियों को छोड़ गुड््स रेल गाडी चीटियों से भी धीरी चाल चल रही हैं। सबसे बुरे हाल इटारसी से बरास्ता भोपाल, विदिशा होकर बीना के रेल खण्ड के हैं। इस खण्ड पर यातायात का दबाव इस कदर है कि यहां पैसेंजर रेल गाडियां तो कमोबेश ठीक समय पर चल रही हैं, किन्तु इस रेल खण्ड पर माल गाडियां अपनी बारी के इंतजार में घंटों खड़े रहने पर मजबूर हैं।

एमपी कोटे से केंद्र में मंत्री कमल नाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने अपने क्षेत्रों में तो रेल्वे को समृद्ध कर लिया है, किन्तु जब बारी सूबे की आती है तो ये मौन साध लेते हैं। वहीं दूसरी ओर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सुषमा स्वराज भी अपने संसदीय क्षेत्र विदिशा के मामले में पूरी तरह ही उदासीन नजर आ रही हैं। उनके लोकसभा क्षेत्र में एक एक रेल्वे स्टेशन पर तीन से चार मालगाडियां खड़ी होकर अपनी बारी का इंतजार करती नजर आ रहीं हैं, फिर भी उन्होंने अब तक लोकसभा में इस मामले को उठाने का जतन नहीं किया है।

रेल्वे बोर्ड के सूत्रों के अनुसार इटारसी से भोपाल और भोपाल से बीना के बीच के रेल खण्ड पर माल गाडियां महज सौ सवा  सौ किलोमीटर का सफर बीस से बाईस घंटे में पूरा कर रही हैं। कई बार तो चालक की दिहाड़ी खड़े खड़े ही पक जाती है। सूत्रों ने कहा कि रेल्वे बोर्ड इस स्थिति से बुरी तरह चिंतित है। वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश के 11 राज्य सभा और 29 लोकसभा सांसद जिनमें दो केंद्रीय मंत्री एक लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं की चुप्पी इस मामले में आश्चर्यजनक ही मानी जाएगी।

झाबुआ पावर कब और कहां करेगा वृक्षा रोपण!


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . . 13

झाबुआ पावर कब और कहां करेगा वृक्षा रोपण!

एनएचएआई के ठेकेदारों ने भी किया है पर्यावरण का जबर्दस्त नुकसान

काट डाले हजारों पेड़ पर नहीं लगाए पौधे!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर से महज सौ किलोमीटर दूर सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर तहसील में देश की मशहूर थापर गु्रप ऑफ कंपनीज के सहयोगी प्रतिष्ठान झाबुआ पावर द्वारा प्रस्तावित बारह सौ मेगावाट में से छः सौ मेगावाट के कोल आधारित पावर प्लांट की संस्थापना के पहले कंपनी को पर्यावरण की दृष्टि से वृक्षारोपण प्रस्तावित है। कंपनी इस मामले में पूरी तरह मौन है कि वह पर्यावरण को देखते हुए कितने, किस प्रजाति के, कहां पर पौधे लगाएगी।

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के भरोसेमंद सूत्रों ने कहा कि प्रस्तावित संयन्त्र द्वारा प्रतिदिन 853 टन राख उत्सर्जित की जाएगी, जिसे बायलर के पास से ही एकत्र किया जा सकेगा। समस्या लगभग 1000 फिट उंची चिमनी से उडने वाली राख (फ्लाई एश) की है। इससे रोजना 3416 टन राख उडकर आसपास के इलाकों में फैल जाएगी। 1000 फिट की उंचाई से उडने वाली राख कितने डाईमीटर में फैलेगी इस बात का अन्दाजा लगाने मात्र से सिहरन हो उठती है। सूत्रों का कहना है कि कंपनी ने अपने प्रतिवेदन में हवा का रूख जिस ओर दर्शाया है, संयन्त्र से उस ओर बरगी बांध है।

जानकारों का कहना है कि 3416 टन राख प्रतिदिन उडेगी जो साल भर में 12 लाख 46 हजार 840 टन हो जाएगी। अब इतनी मात्रा में अगर राख बरगी बांध के जल भराव क्षेत्र में जाएगी तो चन्द सालों में ही बरगी बांध का जल भराव क्षेत्र मुटठी भर ही बचेगा। यह उडने वाली राख आसपास के खेत और जलाशयों पर क्या कहर बरपाएगी इसका अन्दाजा लगाना बहुत ही दुष्कर है। इस बारे में पावर प्लांट की निर्माता कंपनी ने मौन साध रखा है।

इतना ही नहीं प्रतिदिन बायलर के पास एकत्र होने वाली 853 टन राख जो प्रतिमाह में बढकर 26 हजार 443 और साल भर में 3 लाख 11 हजार टन हो जाएगी उसे कंपनी कहां रखेगी, या उसका परिवहन करेगी तो किस साधन से, इस बारे में भी झाबुआ पावर लिमिटेड ने चुप्पी ही साध रखी है। अगर राख को संयंत्र के आसपास ही डम्प कर रखा जाएगा तो वहां के खेतों की उर्वरक क्षमता प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी और अगर परिवहन किया जाता है तो घंसौर क्षेत्र की सड़कों के धुर्रे उड़ना स्वाभाविक ही है।

इन परिस्थितियों में पर्यावरण के नुकसान को आंकने का काम मध्य प्रदेश के प्रदूषण नियंत्रण मण्डल का था। बताया जाता है कि बिना प्रस्तावित वृक्षारोपण के ही कागजों पर वृक्ष लगाकर कंपनी ने पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड को साधकर उससे अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिया है। अब मामला केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के पाले में आ गया है। कहा जा रहा है कि सख्त मिजाज तत्कालीन वन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश अगर अभी रहते तो कंपनी को पर्यावरण को बनाए रखने कड़ा कदम उठवाते।

(क्रमशः जारी)

देश में तीन व्यक्तित्व ही मायने रखते हैं!


बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 25

देश में तीन व्यक्तित्व ही मायने रखते हैं!

गांधी परिवार के अलावा सभी का योगदान नगण्य

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। सवा सौ साल पुरानी और इस देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस ने देश में नेहरू गांधी परिवार (महात्मा गांधी नहीं) ने अपने और अपने वारिसान को महिमा मण्डित करने की गरज से सियासी धुरी तीन लोगों के इर्द गिर्द ही घुमाई हुई है। इस परिवार के तीन सदस्यों ने देश की दिशा और दशा बदल दी। इनके अलावा आजादी के उपरांत भारत गणराज्य की स्थापना के बाद सभी का योगदान नगण्य ही है। यही कारण है कि अब नेहरू गांधी परिवार से इतर सात साल प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालने वाले अर्थशास्त्री वजीरे आजम डॉक्टर मनमोहन सिंह की रूखसती का ताना बाना बुना जाने लगा है।

इतिहास इस बात का साक्षी है कि कांग्रेस ने नेहरू गांधी परिवार के तीन लोगों को ही महिमा मण्डित करने का जतन पूरे जोर शोर से किया है। आजाद भारत के पहले वजीरे आजम पंडित जवाहर लाल नेहरू, उनकी पुत्री श्रीमति इंदिरा गांधी और फिर नवासे राजीव गांधी। इसके अलावा देश के लिए सभी नेता गौड ही हैं। यही कारण है कि देश क बड़े बड़े संस्थानों को इनके नाम पर ही रखा गया है।

नेहरू गांधी परिवार के नाम पर सत्ता की मलाई चखने वाले उनके सिपाहसलारों द्वारा बहुत चतुराई के साथ इस परिवार के आगे सभी को बौना साबित किया गया है। महात्मा गांधी को यह परिवार और इसके चाटुकार नजर अंदाज नहीं कर सकते हैं, यही कारण है कि इस परिवार ने उन्हें कभी नहीं छेड़ा। अगर नेहरू गांधी परिवार द्वारा मोहन दास करमचंद गांधी को किसी भी एंगिल से टच कर दिया जाता तो देश की जनता यह कभी बर्दाश्त नहीं करती।

(क्रमशः जारी)

नेट के मामले में गलब बयानी का है आईडिया


एक आईडिया जो बदल दे आपकी दुनिया . . .  21

नेट के मामले में गलब बयानी का है आईडिया

कभी भी बंद हो सकता है आपका इंटरनेट

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। इंटर नेट की स्पीड के बारे में आदित्य बिरला के स्वामित्व वाली आईडिया सेल्यूलर द्वारा सदा ही गलत बयानी की जाती रही है। जिस स्पीड के इंटरनेट होने का दावा आईडिया द्वारा किया जाता है उस स्पीड को आईडिया के उपभोक्ता कभी पा ही नहीं पा रहे हैं। उपभोक्ताओं को भ्रम जाल में फंसाकर आईडिया द्वारा उनकी जेब हल्की की जा रही हैं। इसी तरह आईटी एक्ट के संशोधन के उपरांत नेट कभी भी बंद किया जा सकता है।

भारत में इस समय सात करोड़ से ज्यादा इंटरनेट कनेक्शन हैं और इसकी रफ्तार 25 प्रतिशत की दर से बढ़ती जा रही है लेकिन एक बात जो बहुत कम लोग जानते हैं वह है कि किसी का भी इंटरनेट कनेक्शन कभी भी बंद हो सकता है। भारत सरकार ने 2008 के आईटी ऐक्ट में एक संशोधन करके यह अधिकार अपने हाथ में ले लिया है कि वह या उसकी कोई भी सुरक्षा एजेंसी किसी भी व्यक्ति यचा संस्थान का इंटरनेट कनेक्शन कभी भी बंद कर सकती है। इंटरनेट कनेक्शन देश की सुरक्षा के नाम पर काटा जा सकता है और इसकी अवहेलना करने वाले को सात साल की सजा हो सकती है।

इंटरनेट कनेक्शन काटने को किल स्विट कहते हैं इसके समर्थकों का कहना है कि इससे अफवाहें फैलने से रोका जा सकता है साथ ही झूठी सूचना देने पर भी रोक लगाई जा सकती है। दुनिया में कम ही देश हैं जहां यह व्यवस्था मौजूद है लेकिन बहुत से लोग इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि देश की सुरक्षा के नाम पर ऐसे अधिकार लेना उचित नहीं है।

(क्रमशः जारी)