राष्ट्रीय स्तर पर
उछला नए राज्य का मामला
(दादू अखिलेंद्र नाथ सिंह)
सिवनी (साई)। जिला
मुख्यालय से प्रकाशित होने वाले जिले के सुधि पाठकों के सजग प्रहरी समाचार पत्रों
द्वारा गत सप्ताह में प्रकाशित समाचारों को राष्ट्र्रीय स्तर के प्रतिष्ठित
समाचारपत्रों में भी स्थान मिलना प्रारंभ हो गया है। इस बात से ही उन समाचारों के
महत्व का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।
गौरतलब होगा कि देश
भर में समाचार पत्रों, न्यूज वेब मीडिया आदि में खबरों का संप्रेषण करने वाली ‘समाचार एजेंसी ऑफ
इंडिया‘ के द्वारा
सिवनी की समस्याओं और खबरों को प्रमुखता के साथ उठाया जा रहा है। पिछले दिनों नए
राज्य के मामले को भी उठाया गया है। देश के प्रतिष्ठित और दिल्ली से प्रकाशित
नवभारत टाईम्स, दैनिक
जागरण, के साथ ही
साथ अन्य समाचार वेब पोर्टल्स पर भी यह मुद्दा प्रमुखता के साथ उठा है।
ज्ञातव्य है कि आधी
सदी पूर्व तत्कालीन सीपी एण्ड बरार से पृथक होकर मध्यप्रदेश में समाहित होने वाले
इस अभागे अंचल को लगातार सक्षम नेतृत्व प्राप्त होने के बावजूद उपेक्षा का जो दंश
झेलना पड़ रहा है उसके परिणामस्वरूप संभावित रूप से अति निकट भविष्य में अस्तित्व
में आ सकने वाले नये विदर्भ राज्य का अंग बनने को यह अंचल लालायित दिखाई दे रहा
है।
मध्यप्रदेश के
महाकौशल क्षेत्र के इस उपेक्षित और अभागे अंचल के तीन जिलों सिवनी, बालाघाट और
छिंदवाड़ा का यह दुर्भाग्य है कि उसे आजादी के सात दशक बाद भी देश के किसी भी बड़े
नगर तक पंहुचने के लिये सीधी रेल सुविधा तक प्राप्त नहीं है। केवल छिंदवाड़ा जिले
को कुछ दिनांें पूर्व से दिल्ली के लिये यह सुविधा प्राप्त हो पाई है।
बालाघाट के लोगों
को इस हेतु प्रस्तावित विदर्भ के गोंदिया और सिवनी जिले के लोगों को इस हेतु
प्रस्तावित विदर्भ की राजधानी नागपुर से यह सुविधा प्राप्त करना पड़ता है। तीनों ही
जिलों के लोगों को हवाई सुविधा नागपुर से ही प्राप्त करना पड़ता है। तीन में से दो
जिलों सिवनी और ंिछदवाड़ा जिलों की सीमाएं वर्तमान महाराष्ट्र राज्य और प्रस्तावित
विदर्भ प्रदेश की राजधानी नागपुर जिले से मिलती है।
यह सब लोग जानते हैं
कि किसी भी प्रदेश की राजधानी से संलग्न जिलों के विकास की गति कितनी तेज होती है।
मध्यप्रदेश का ही मामला ले लिया जाये तो राजधानी भोपाल से 70 वें किलोमीटर पर
स्थित नगर होशंगाबाद को संभाग का दर्जा प्राप्त है, जबकि सिवनी जिला
मुख्यालय से दूसरे जिलों छिंदवाड़ा की दूरी 70, बालाघाट जिला मुख्यालय की दूरी 100 जबलपुर की दूरी 145 और मंडला की दूरी 120 किमी हैं।
इतना ही नहीं
बालाघाट से संभाग मुख्यालय जबलपुर की दूूरी 250 किमी और छिंदवाड़ा से संभाग मुख्यालय जबलपुर
की दूरी 220 किमी है।
यही है इस अभागे अंचल की पीड़ा जिसने इन तीन जिलों के निवासियों के मन में अलगाव की
भावना को जन्म दिया है।
छः दशक के बाद
प्रदेश को एक ऐसा मुख्यमंत्री मिला जिसकी किसी बात को लोग पत्थर की लकीर मानने लगे
थे किंतु पांच साल पहले अंचल के विकास को गति दे सकने वाले एक ऐलान को पांच साल
बाद भी मूर्तरूप न मिलने से इस अंचल के लोगों को एक बार फिर निराशा के गर्त में
डूबने को मजबूर होना पड़ा। इस अंचल के लोगों के मन में एक बार फिर यही प्रश्न उठना
स्वाभाविक है कि अंचल की यह पीड़ा जिसे अंचल की मीडिया और अंचल के लोग आसानी से
अनुभव कर रहे हैं।
आखिर उस पीड़ा को इस
अंचल के जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों ने अभी तक अनुभव क्यों नहीं किया? अब जब इस अंचल की
दयनीय स्थिति और भविष्य की योजना को स्थानीय मीडिया के माध्यम से राष्ट्रीय मीडिया
ने पंख लगा दिये हैं तब क्या ऐसी आशा की जा सकती है कि दिल्ली और भोपाल में बैठे
अंचल के कर्णधार उस पीड़ा के निदान का प्रयास करेंगे।