सोमवार, 28 मार्च 2011

संसद रास नहीं आती युवराज को!

 
ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)

संसद रास नहीं आती युवराज को!
कांग्रेस की नजर में भविष्य के वजीरेआजम और युवराज राहुल गांधी को संसद में बैठना ज्यादा रास नहीं आता है। तो वे संसद की कार्यवाही में ज्यादा दिलचस्पी ही दिखाते हैं और ही प्रश्नोत्तरी में हिस्सा लेते हैं। सियासी गलियारों में नेहरू गांधी परिवार के सपूतों को लेकर चर्चाएं अब आम हो गई हैं। राहुल के अनुज भाजपा के गांधी वरूण ने राहुल के पहले ही विवाह कर उन्हें एक मामले में तो पीछे छोड़ दिया। इतना ही नहीं संसद में सवालों की झड़ी लगाकर वरूण ने अपने बड़े भाई राहुल को पछाड़ दिया है। लोकसभा के सत्रों में 317 प्रश्न पूछकर वरूण ने केवल सरकार को कटघरे में ही खड़ा किया है, वरन् अपने सक्रिय होने का प्रमाण भी दिया है। वहीं दूसरी ओर राहुल गांधी ने तो कोई प्रश्न ही पूछा है और ही कोई निजी विधेयक ही पेश किया है। सदन में उपस्थिति के मामले में भले ही राहुल 52 फीसदी रहे हों, पर उनके द्वारा संसद की कार्यवाही में हिस्सा लेकर चुपचाप रहने से अनेकों आशंकाएं उपज रही हैं कि कहीं राहुल का युवा मन संसद की कार्यवाहियों से उब तो नहीं चुका है।

मनरेगा से विमुख होतेमाननीय
कांग्रेसनीत केंद्र सरकार की महात्वाकांक्षी परियोजनओं को बनवाने, लागू करवाने में कांग्रेस के आला नेताओं द्वारा जिस तरह की दिलचस्पी लेने का प्रहसन किया जाता है, उसे मीडिया में उछाला जाता है, उसमें और जमीनी हकीकत में कितना अंतर है, इस बात का सहज अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी, कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री और युवराज राहुल गांधी के संसदीय में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियममनरेगाऔंधे मुंह गिरा पड़ा है। सोनिया के संसदीय क्षेत्र रायबरेली में 28 हजार 137 काम स्वीकृत हुए, जिसमें से महज 20 पूरे हुए, इसके लिए 119 करोड़ 78 लाख रूपए का बजट आवंटित किया गया था। इस बजट में से महज 55 करोड़ 3 लाख रूपए ही खर्च हुए। सोनिया के क्षेत्र में एक लाख 85 हजार 36 जाबब कार्ड धारकों में से एक लाख 27 हजार 762 परिवारों को काम मिल पाया। सौ दिन या उपर रोजगार पाने वाले परिवारें की तादाद महज 2842 ही थी। इसी तरह राहुल के संसदीय क्षेत्र में सुल्तानपुर में सोलह हजार 879 कार्य स्वीकृत हुए जिनमें से 17 काम ही पूरे हो सके हैं। राहुल के लिए केद्र सरकार का बजट इस मद में 90 करोड़ 64 लाख रूपए था जिसके एवज में व्यय सिर्फ 27 करोड़ 15 लाख ही हो पाया है। इनकी रियासत में एक लाख 62 हजार 114 जॉब कार्ड धारकों में से 63 हजार 570 लोग ही रोजगार पा सके हैं। सौ दिन या अधिक वाले परिवारों की तादाद 923 है। जब देश के ‘‘माननीयों‘‘ के इलाके में मनरेगा का यह हाल है तो फिर सुदूर ग्रामीण अंचलों की कौन कहे।

बाबा के 11 लाख काले हैं या सफेद!
भ्रष्टाचार और काले धन के लिए सड़कों पर उतरने का स्वांग करने वाले स्वयंभू योग गुरू रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव कितने सच्चे हैं कितने झूठे यह तो वे ही जाने पर भारतीय जनता पार्टी को 11 लाख रूपए का चंदा उन्होंने किस निमित्त दिया इस बात का खुलासा उन्हें अवश्य ही करना चाहिए। सूचना के अधिकार में निकली जानकारी में इस बात का खुलासा हुआ है कि 2009 तके सेपन्न हुए लोकसभा चुनावों में बाबा रामदेव के पतांजली आयुर्वेद लिमिटेड ने भाजपा को 08 मार्च 2009 को चेक नंबर 859783 के माध्यम से 11 लाख रूपए चंदा दिया है। उधर राजस्थान कांग्रेस को भी चंदा दिए जाने की बातें सामने आने लगी हैं। माना जाता है कि उद्योगपतियों द्वारा राजनैतिक दलों को चंदा इसलिए दिया जाता है ताकि सरकार बनने पर वे अपने मन मुताबिक मुनाफे वाली नीतियों के मार्ग प्रशस्त कर सकें। अब बाबा रामदेव द्वारा चंदा दिया जाकर किस तरह की नीतियों को अपने पक्ष में करना चाहा जा रहा था इस बात का खुलासा उन्हें जरूर करना होगा क्योंकि अब वे भी राजनैतिक गोदे (अखाड़े) में कूद ही चुके हैं। जो पैसा उन्होंने दिया वह काले धन का अंश था या सफेद का!

ब्लागीय हो गए हैं आड़वाणी
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पीएम इन वेटिंग एल.के.आड़वाणी को 19 साल बाद अफसोस हो रहा है कि 1992 में मस्जिद ढहने से भाजपा ने भरोसा खोया। भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आड़वाणी को इतने अर्से बाद बावरी विध्वंस की याद अचानक कैसे गई यह बात शोध का विषय बन गई है। वैसे एक बात है पिछले एक साल में विशेषकर नितिन गड़करी के भाजपाध्यक्ष बनने के बाद से भाजपा में आड़वाणी की पूछ परख कम हो गई है। कार्यक्रमों में आड़वाणी को किनारे ही किया जा रहा है। पार्टी मंच पर अपनी दुर्गति देखकर आड़वाणी ने भी पार्टी से इतर रास्ता चुन ही लिया। चर्चा है कि अपने मन की कसक निकालने के लिए आड़वाणी अब ब्लाग का सहारा ले रहे हैं। मामला चाहे उमा भारती की भाजपा में वापसी का हो या फिर कोई और हर बार आड़वाणी ब्लाग के जरिए ही मीडिया को संदेश देते नजर आए। लगातार प्राईम पोजीशन पर रहने वाले आड़वाणी के मन की पीड़ा समझी जा सकती है, कि उन्हें ब्लाग पर उतरने पर मजबूर होना पड़ा। अब पछताए का होत है जब . . .

अराध्यों को ही भूले शिवराज!
सिद्धांतों पर अडिग रहने वाले भारतीय जनता पार्टी के पितृपुरूषों को हृदय प्रदेश के निजाम शिवराज सिंह चौहान ने पूरी तरह भुला दिया है। मध्य प्रदेश में अटल बिहारी बाजपेयी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, कुशाभाउ ठाकरे जैसे दिग्गज और सिद्धांत पर चलने वाले भाजपा के नेताओं को शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा ने सरकारी कार्यालयों में स्थान देना उचित नहीं समझा है, जिसे लेकर भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में अच्छी प्रतिक्रिया नहीं कही जा सकती है। एमपी के विधायक सुरेन्द्र सिह गहरवार के प्रश्न के लिखित जवाब में मुख्यमंत्री ने विधानसभा में बताया कि सामान्य प्रशासन विभाग के 23 सितम्बर 1995 के आदेश के तहत वर्तमान महामहिम राष्ट्रपति, वर्तमान प्रधानमंत्री, जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अब्दुल कलाम, डॉ.भीमराव अम्बेडकर, इंदिरा और राजीव गांधी के चित्र ही सरकारी कार्यालय में लगाने के आदेश जारी किए गए थे। बाद में भाजपा के शासनकाल में 31 अगस्त 2004 को स्वामी विवेकानन्द का चित्र लगाने का आदेश भी जारी किया गया था। कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों ने अपने शीर्ष नेताओं के लिए तो व्यवस्था पुख्ता कर ली थी किन्तु भाजपा के अराध्यों के प्रति शिवराज चौहान का इस तरह का रवैया चर्चा का विषय बना हुआ है।

वजन बराबर चांदी है यदिरप्पा के पास
भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद के आरोपों से घिरे कर्नाटक के निजाम वाईएस येदिरप्पा के पास लगभग उनके वजन के बराबर चांदी है। हाल में जब उन्होंने अपनी संपत्ति सार्वजनिक की तो सभी की आंखे खुली की खुली रह गई। घोषित संपत्ति में इनके पास तीन घर, 34 लाख रूपए नकद, साढ़े अठ्ठारह एकड़ भूमि और दस लाख पेंतालीस हजार रूपए का सामान है। भाजपाध्यक्ष नितिन गड़करी के करीबी सूत्रों का कहना है कि येदिरप्पा द्वारा गड़करी को भेजे गए अपने संपत्ति के ब्योरे में इन बातों का उल्लेख किया गया है। उधर सीएम के विरोधियों ने येदिरप्पा के पास इससे कई गुना पड़ी बेनामी संपत्ति के बारे में कच्चा चिठ्ठा भी गड़करी के पास भेजने की तैयारी कर ली है। सूत्रों का कहना है कि गड़करी पशोपेश में है कि आखिर इस बारे में क्या कार्यवाही की जाए, क्योंकि गड़करी पर आरोप है कि उन्होंने अपने पुत्र के विवाह के इंतजामअली के तौर पर येदिरप्पा को ही पाबंद किया था।

अभैद्य है कलमाड़ी का चक्रव्यूह
कामन वेल्थ गेम्स के नाम पर हजारों करोड़ रूपए जीमने के आरोप लगने के बाद भी आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी की पेशानी पर बल नहीं पड़ रहे हैं। इसका कारण यह है कि कलमाड़ी ने जो कुछ भी किया उसके लिए पहले फूल प्रूफ योजना तैयार कर उस पर अमल किया था। सीबीआई के सूत्रों का कहना है कि कलमाड़ी ने भले ही सारे मामलों में सीधा सीधा नियंत्रण रखा हो किन्तु जब नस्तियों (फाईल्स) पर लिखा पढ़ी की बारी आई तो उन्होंने हर काम के लिए केंद्र और दिल्ली सरकार के संयुक्त सचिव और सचिव स्तर के अधिकारियों की लिखित सहमति लेना नहीं भूला। सूत्रों ने कहा कि ठेकों में जानबूझकर देर की गई है किन्तु इसे साबित करना बहुत ही मुश्किल है। अंतिम समय में अधिकारियों को भी ठेकों की बारीकियां समझ पाना मुश्किल ही था। कलमाड़ी ने जिस सफाई से सभी कामों को अंजाम दिया उससे सभी हतप्रभ हैं। साथ ही साथ इशारों ही इशारों मंे सोनिया गांधी के परिजनों को भी लाभ पहुंचाने की बातें फिजां में तैर गईं हैं जिससे अब जांच संदिग्ध ही प्रतीत हो रही है।

आजाद को रास नहीं रही हेल्थ मिनिस्ट्री
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नवी आजाद अपने मंत्रालय से नाखुश ही प्रतीत हो रहे हैं, यही कारण है कि विभाग में अहम मसलों की नस्तियां आज भी उनके कार्यालय में धूल खा रही हैं। आजाद की हठधर्मिता का खामियाजा विभाग को भुगतना पड़ रहा है जिससे मंत्रालय में आजाद विरोधी सुर तेज होने लगे हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार अरबों रूपयों के सालाना कारोबार वाली निमस्लिड सहित तीन दवाओं पर प्रतिबंध लगाने, एंटीबायोटिक दवाओं के प्रयोग को हतोत्साहित करने के का मामला भी आजाद के पास लंबित ही है। सबसे महत्वपूर्ण विषय तंबाखू उत्पादों पर सख्त चेतावनी वाले चित्रों को भी मंत्रालय ने बदल ही दिया है। कहा जा रहा है कि आजाद को देशवासियों के स्वास्थ्य के बजाए तंबाखू लाबी की ज्यादा फिकर है। इसी तरह रेल्वे भूमि पर अस्पताल खोलने का काम भी लंबित ही है। सर्वोच्च न्यायालय की सहमति के बावजूद भी एमबीबीएस की संयुक्त प्रवेश परीक्षा का मसला भी आजाद के कार्यालय में धूल ही खा रहा है।

मोंटेक का गोल गोल, हबीबुल्ला का हाफ साईड!
कांग्रेसनीत केंद्र सरकार भी अजब ही है। देश के सर्वोच्च नागरिक अलंकरणपद्म सम्मानके लिए योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया और भाजपा के अटल बिहारी बाजपेयी के करीबी रहे ब्रजेश मिश्र को तो इस सम्मान के योग्य पाया वह भी निर्धारित तिथि के बाद सिफारिश मिलने पर, किन्तु जब बारी प्रमुख सूचना आयुक्त की आई तो मामला टांय टांय फिस्स ही हो गया। सूचना के अधिकार में मांगी गई जानकारी में गृह मंत्रालय ने बताया कि केंद्र में केबनेट मंत्री का दर्जा पाने वाले मोंटेक को लोकसेवक नहीं माना गया है, इसलिए उन पर सेवारत सरकारी कर्मचारियों को यह सम्मान देने का नियम लागू नहीं होता है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आगे बताया है कि इस सम्मान के लिए चयनित 128 नामों में से 107 नाम अंतिम तिथि से पहले प्राप्त हो गए थे, और 20 नवंबर के बाद 21 नाम आए थे। माना जा रहा है कि प्रमुख सूचना आयुक्त रहते हुए हबीबुल्ला ने अनेक मामलों में सरकार की कार्यप्रणाली पर सख्त टिप्पणियां और केबनेट सचिव को भेजे तलख नोट के कारण केबनेट सचिव उनसे खासे खफा थे इसलिए इस बार उन्हें सम्मान से वंचित रखा गया, और आधार बनाया गया कि निर्धारित समयावधि में उनकी सिफारिश नहीं मिली थी।

होली पर टल्ली हो गई राजधानी
अच्छा हुआ अंगूर को बेटा हुआ, जिसकी बेटी ने सर पर उठा रख्खी दुनियायह मशहूर गजल दिल्लीवासियों की जुबां पर ही होती है। पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए की तर्ज पर होली पर दिल्ली में शराब की नदियां बहा दी गई। आबकारी विभाग की कमाई पर अगर गौर करें तो पाएंगे कि इस साल होली वाले सप्ताह में दिल्ली सरकार के आबकारी विभाग को सडसठ करोड़ पचास लाख रूपयों का राजस्व प्राप्त हुआ। पिछले साल यह आंकड़ा चालीस करोड़ रूपए था। अमूमन हर साल 35 करोड़ रूपए का राजस्व मिलता था इन दिनों। उधर दिल्ली सरकार का कहना है कि चूंकि दिल्ली में स्तरीय शराब मिल रही है इसलिए इसकी बिक्री मंे इजाफा हुआ है। श्रीमति शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार दिल्लीवासियों को इस कदर नशेला बना रही है कि 225 रेस्त्रां में शराब बेचने के लिए समयसीमा रात बारह बजे से बढ़ाकर एक बजे कर दी गई है। और तो और 11 होटल और 14 आउट लेट में तो राउंड क्लाक (चोबीसों घंटे) शराब परोसने की इजाजत दे दी गई है।

रिंगटोन नहीं बन सकेगी राष्ट्रगान
दूरसंचार विभाग ने राष्ट्रगान को मोबाईल रिंगटोन बनाने से रोकने के लिए सख्त कदम उठा ही लिए हैं। अपने मुनाफे के लिए मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों द्वारा तरह तरह के जतन किए जा रहे हैं जिसमें राष्ट्र गान तक को रिंगटोन बनाना शामिल है। दूरसंचार विभाग ने मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों को चेतावनी दी है कि राष्ट्रगान की गरिमा का पूरा पूरा ध्यान रखा जाए। दूरसंचार विभाग के निर्देशों के अनुसार राष्ट्र गान का रिंगटोन के तौर पर प्रयोग नेशनल ऑनर एक्ट 1971 के प्रावधानों के खिलाफ है। अगर कोई सेवा प्रदाता इसका उल्लंघन करता है तो यह लाईसंेस जारी करते वक्त तय शर्तों का उल्लंघन की श्रेणी में आएगा। गौरतलब है कि मोबाईल पर रिंगटोन के तौर पर राष्ट्र गान का बजना कभी आधा बजना, बजते वक्त उसकी गरिमा का ध्यान में रखने की शिकायतें आम हैं। कमोबेश यही आलम आरतियों का भी है। इनके बजते वक्त मन में अगर आदर के भाव आएं तो इनका बजना व्यर्थ ही है।

छोटे पर्दे पर अश्लीलता पर जागी सरकार
देर आयद दुरूस्त आयदकी तर्ज पर टेलीवीजन पर मनोरंजन के नाम पर परोसी जाने वाली अश्लीलता से निपटने के लिए केंद्र सरकार संजीदा होती नजर रही है। केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा एक सेवानिवृत न्यायधीश की अध्यक्षता में समिति का गठन किए जाने का निर्णय लिया गया है, जो टीवी पर अश्लीलता को रोकने के उपयों को तलाश करेगी। लोकसभा मेंबिगबॉसपर रोक के फैसले के खिलाफ अदालत के स्थगन के मुद्दे पर सवाल जवाब में सूचना प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने यह जानकारी दी। आश्चर्य तो तब हुआ जब सोनी ने कहा कि छोटे पर्दे के लिए कोई संेसर बोर्ड नहीं है, इस पर प्रसारित होने वाले प्रोग्राम केबल नियमन अधिनियम के तहत ही प्रसारित हो रहे हैं। यही कारण है कि सैंसर की कैंची से बचकर टीवी चेनल्स द्वारा सरेआम अश्लीलता परोसी जा रही है।

केपीटेशन फीस पर एचआरडी सख्त
स्कूलों द्वारा केपीटेशन फीस लेने के मामले में अब केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय सख्त होता प्रतीत हो रहा है। एचआरडी मिनिस्ट्री द्वारा अब साफ कर दिया है कि शाला द्वारा बिल्डिंग फंड, लाईब्रेरी, कंप्यूटर लेब निर्माण आदि मद में ली जाने वाली केपीटेशन फीस अगर वसूली गई तो उस शाला की केंद्रीय शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की मान्यता ही रद्द करने की कार्यवाही हो सकती है। गौरतलब होगा कि शालाओं द्वारा शैक्षणिक सत्र के आरंभ में विद्यार्थियों से अनेक मदों में मनमानी फीस वसूली जाती है, जिसे मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने केपीटेशन फीस की श्रेणी में रखा है। वैसे भी न्यायालय द्वारा केपीटेशन फीस को अवैध करार दिया गया था। न्यायालय के दबाव में केंद्र सरकार ने अब कड़े कदम उठाए हैं। मानव संसाधन विकास मंत्री के करीबी सूत्रों का कहना है कि मंत्रालय इस बारे में भी विचार करने का मन बना रहा है कि किस तरह एक ही संस्थान में पढ़ने वाले विद्यार्थी को हर साल नए एडमीशन की जिल्लत और फीस से निजात दिलवाई जाए।

पुच्छल तारा
भारत में इन दिनों विश्व कप क्रिकेट का खुमार जोरों पर है। जहां देखो वहां वर्ल्ड कप क्रिकेट, उसकी ट्राफी, टीमों की पोशाकों की धूम मची हुई है। शहरी इलाके हों या ग्रामीण अंचल हर जगह बस क्रिकेट ही क्रिकेट का जोर है, विशेषकर फटाफट क्रिकेट का। अब इस बारे में चुटकुलों की बौछारें भी चरम पर ही हैं। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले से रीना राजपूत ने इस बारे में एक ईमेल भेजा है। रीना लिखतीं हैं कि एक गांव वाले की मां की तबियत अचानक बिगड़ी। वह उसे लेकर शहर के अस्पताल में गया। चिकित्सकीय परीक्षण के बाद डाक्टर ने उस गांव वाले से कहा -‘‘आपकी माता जी का स्वास्थ्य काफी नरम गरम है, इनका टेस्ट करना पड़ेगा। गांव वाला भी क्रिकेट के खुमार में था, सो चट से बोल पड़ा -‘‘आप तो जानते हैं डागदर साहेब, माता जी काफी बुजुर्ग हैं कहां टेस्ट करवाएं इनका। आप तो वन डे या 20 - 20 करवा लो।‘‘