ये है दिल्ली मेरी जान
यूपी कांग्रेस के आहत हैं युवराज
भट्टा परसौल गांव में जाकर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को जगाने का अच्छा स्टेंड उठाया था, किन्तु उनके इस कदम का उत्तर प्रदेश में बसपा पर न के बराबर ही फर्क पड़ा है। साथ ही साथ उत्तर प्रदेश में कांग्रेस भी सुसुप्तावस्था से जाग नहीं सकी है। उत्तर प्रदेश और केंद्र में कांग्रेस के प्यादों और नेताओं की निष्क्रियता से आहत राहुल गांधी ने खुद ही मोर्चा संभालने का मन बनाया और कुछ किसानों के प्रतिनिधिमण्डल के साथ प्रधानमंत्री से जा मिले। राहुल के मीडिया प्रबंधकों द्वारा मैनेज्ड न्यूज चैनल और प्रिंट मीडिया में यह खबर जोरदार तरीके से पेश की गई किन्तु जमीनी तौर पर कोई भूचाल नहीं आया। इससे आहत राहुल ने इस गांव में लगभग छः दर्जन किसानों के मारे जाने का सनसनीखेज आरोप भी जड़ दिया। अब देखना यह है कि किसानों के मरने की पुष्टि राख के परीक्षण के उपरांत कब होती है, यूपी के विधानसभा चुनावों के बाद या उससे पहले!
सत्तर के काका लगा रहे कुलाटी
कहते हैं बंदर कितना भी बूढ़ा हो जाए, कुलाटी मारना नहीं छोड़ता। कमोबेश यह फिकरा वालीवुड के शहंशाह रहे काका यानी सत्तर के दशक के सुपर स्टार जतिन उर्फ राजेश खन्ना पर एकदम फिट बैठ रहा है। 29 दिसंबर 1942 को जन्मे काका ने डिंपल कापडिया का साथ छोड़ने के बाद फिल्मों से लगभग किनारा ही कर लिया था। काका का जीवन एकाकी हो चला था, किन्तु पिछले एक दशक से काका के नीरस जीवन में एक बार फिर बहार आती दिख रही है। काका पिछले आठ सालों से फिलीपींस के पूर्व महामहिम राष्ट्रपति फर्निनांड मोर्कोज की भतीजी अनीता आड़वाणी के साथ ‘नयन मटक्का‘ कर रहे हैं। कांग्रेस के नई दिल्ली के पूर्व सासंद रहे काका का अफेयर बांद्रा में रहने वाली अनीता के साथ चल रहा है, दोनों ही एक दूसरे को पिछले 32 सालों से जानते हैं। गुजरे जमाने के सुपर स्टार राजेश खन्ना भले ही आज गुमनामी के अंधेरे में जीवन बिता रहे हों पर उनके चाहने वालों की कमी आज भी नहीं है। रोमांटिक हीरो की छवि बना चुके काका और अनीता का अफेयर कहां तक परवान चढ़ पाता है इस बात का इंतजार सभी को बेसब्री से है।
ममता का सोमनाथ प्रेम!
देश की सबसे निष्क्रीय रेल मंत्री रहीं ममता बनर्जी अब बंगाल की मुख्यमंत्री बन चुकी हैं। ममता बनर्जी कभी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सहयोगी सदस्य और मंत्री रही हैं, तब उनकी और राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आड़वाणी की खासी छना करती थी। हाल ही में चुनाव नतीजों के बाद ममता को सोमनाथ चटर्जी का बधाई हेतु फोन आया। ममता के करीबी सूत्रों का कहना है कि ममता ने दादा से घुटकर बात की और उनके पैर छूकर आर्शीवाद लेने की इच्छा भी जताई। वहीं दूसरी ओर कुछ देर बाद जब राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आड़वाणी ने फोन किया तो लाईन कुछ देर होल्ड कराई गई और बाद में टका सा जवाब मिला -‘‘मदाम अभी व्यस्त हैं, फुर्सत मिलते ही आपको फोन करेंगी।‘‘ राजनैतिक वीथिकाओं मंे इन दोनों ही बातों के मतलब तलाशे जा रहे हैं।
माननीयों के लिए लगता है इतना टेक्स!
सरकार ने पेट्रोल के दाम एक बार फिर बढ़ा दिए हैं, जिससे देशव्यापी बहस छिड़ गई है कि आखिर पेट्रोल के वास्तविक दाम क्या हैं? इस पर कितना टेक्स आहूत होता है, और टेक्स से प्राप्त रकम का उपयोग जनता के लिए किस मद में किया जाता है? दरअसल पेट्रोल का वास्तविक मूल्य 28 रूपए 38 पैसे है, इस पर एक्साईज ड्यूटी 14 रूपए 35 पैसे, एजूकेशन सेस 43 पैसे, वैट 10 रूपए 36 पैसे, डीलर कमीशन एक रूपए 21 पैसे, कस्टम ड्यूटी 2 रूपए 64 पैसे, ट्रांसपोर्टेशन चार्जेस छः रूपए लगता है इस तरह दिल्ली में पेट्रोल की कीमत63 रूपए 37 पैसे हो जाती है। इस तरह एक लीटर पर 34 रूपए 99 पैसे का करारोपड़ किया जाता है। रोजाना लाखों लीटर पेट्रोल की खपत है देश मंे। अब सवाल यह है कि इतनी अधिक तादाद में वसूले गए कर का उपयोग सरकार द्वारा किस मद में किया जाता है इसका खुलासा अवश्य ही होना चाहिए।
भ्रष्टाचार से आम आदमी की टूटी कमर!
भ्रष्टाचार पर होने वाले विरोधी जोरदार प्रदर्शनों से साफ हो गया है कि जनता किस कदर इससे आजिज आ चुकी है। अमेरिकी सर्वेक्षण एजेंसी ‘गैलप‘ के द्वारा कराए गए सर्वेक्षण से साफ हो गया है कि देश की लगभग आधी आबादी ने इसके खिलाफ जंग छेड़ी है। 47 फीसदी लोगों का मानना है कि पांच साल मंे भ्रष्टाचार का स्तर देश में तेजी से बढ़ा है। गैलप के प्रतिवेदन के अनुसार भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के आंदोलन को मिले व्यापक जनसमर्थन से साफ हो गया है कि लोग मानने लगे हैं कि यह समाज में गहराई तक पैठ कर चुकी है। सरकार के प्रयासों को भी लोगों ने नाकाफी ही बताया है। गौरतलब है कि वर्तमान प्रधानमंत्री डाॅक्टर मनमोहन सिंह की ईमानदार छवि के बाद भी भ्रष्टाचार रूकने का नाम ही नहीं ले रहा है जिससे जनता बुरी तरह हताश हो चुकी है।
अमूल बेबी को पंप पर धरना देने का मशविरा!
कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी ने यूपी के भट्टा परसौल गांव जाकर वहां के किसानों के हितैषी होने का बेहतरीन काम किया है। यह उनका स्वांग था या फिर वे वाकई किसानों के हिमायती है, यह तो वे ही जाने पर लोगों ने राहुल को अब देश के लिए कुछ करने का मशविरा दे डाला है। सोशल नेटवर्किंग वेब साईट ‘फेसबुक‘ पर लोगों ने चुनावों के तत्काल बाद ही बढ़े पेट्रोल के दाम पर तल्ख नाराजगी जाहिर करते हुए सरकार और राहुल पर ताने मारे हैं। लोगों का कहना है कि कांग्रेस महासचिव को अब देश के किसी भी पेट्रोल पंप पर उसी तरह बैठ जाना चाहिए जैसा कि वे गे्रटर नोएडा के एक गांव में जाकर बैठे थे। इस पर एक टिप्पणी आई -‘‘कांग्रेस का हाथ गरीब के साथ, किन्तु गरीब पेट्रोल खरीदता ही नहीं!‘‘
मौत का पर्याय बन चुकी हैं दिल्ली की सड़कें
देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली की सड़कों पर सड़क हादसों में मरने वाली की तादाद देखकर हर कोई दांतों तले उंगली दबा लेता है। आए दिन यहां सड़क हादसों में लोगों के मरने की खबरों से अखबार और समाचार चेनल पटे पड़े होते हैं। अब तो इस मामले में न्यायालय ने भी अपनी तलख टिप्पणी कर दी है। दिल्ली के अतिरिक्त सत्र न्यायधीश एस.एस.राठी ने 11 साल पुराने एक प्रकरण की सुनवाई के दौरान सजा सुनाते हुए कहा कि एसा लगता है मानो दिल्ली दुर्घटनओं की राजधानी बनकर रह गई है। आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली की सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों की तादाद सबसे अधिक है, इसलिए एसे चालकों के खिलाफ किसी भी प्रकार की नरमी नहीं बरती जानी चाहिए। यह सब देखने सुनने के बाद भी दिल्ली की सरकार हाथ पर हाथ रखे बैठी है और यातायात पुलिस वाले सिर्फ और सिर्फ चैथ वसूली पर ही अपना ध्यान केंद्रित किए हुए हैं।
मोस्ट वांटेड प्रकरण पर तूल न देने की अपील
देश के गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम का दुस्साहस तो देखिए, पाकिस्तान को सौंपी ‘मोस्ट वांटेड‘ अपराधियों की सूची में शामिल वजाहुल कमर खान जिसे पाकिस्तान में होने का संदेह जताया जा रहा था, वह भारत के मुंबई के ठाणे में ही वघोला स्टेट में अपनी मां और बीबी के साथ मजे से रह रहा है। भारत सरकार द्वारा की गई इतनी बड़ी गल्ति पर गृह मंत्री चिदम्बरम फरमा रहे हैं कि एक नाम गलत होने से क्या होता है, बाकी 49 तो सही हैं, साथ ही यह सूची उनके कार्यकाल में तैयार नहीं हुई थी। सवाल यह उठता है कि कार्यकाल किसी का भी रहा हो गल्ति तो गृह मंत्री की थी। बेहतर होता चिदम्बर इस बारे में अपने ही किसी अन्य साथी का दामन बचाने के बजाए इसकी जांच करने की बात कहते, वस्तुतः एसा हुआ नहीं। आतंकवाद की आग में सुलग रहे भारत के लिए यह एक बड़ी बात है, इससे गृह मंत्री की अक्षमता ही साबित होती है।
महिला निजाम बढ़ीं पर सदन में संख्या गिरी
पांच राज्योें मंे चुनाव के उपरांत तमिलनाडू में जयललिता और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही देश में मायावती और शीला दीक्षित को मिलाकर महिला मुख्यमंत्रियों की तादाद में इजाफा हुआ है। गौरतलब बात यह है कि मुख्यमंत्री पद पर तो महिलाओं ने अपनी जानदार और शानदार उपस्थिति दर्ज कराई है किन्तु सदन में इनकी तादाद में खासी गिरावट दर्ज की गई है। महिला साक्षरता में 93.91 फीसदी और लिंगानुपात में 1084 के सकारात्मक आंकड़े के बावजूद भी केरल में महज पांच फीसदी महिलाएं ही सदन में पहुंची हैं। 1996 में यहां महिला विधायकों की तादाद 13 थी जो घटकर सात पर पहुंची है। इसी तरह तमिलनाडू में पिछली बार 22 के मुकाबले महज 14 ही सदन में प्रवेश पा सकीं हैं। पश्चिम बंगाल में यह संख्या दो बढ़कर 37 हो गई है।
बिना फिटनेस दौड़ रही सरकारी क्रेन!
निजी व्यवसायिक वाहनों के पास अगर फिटनेस प्रमाणपत्र न हो तो दिल्ली यातायात पुलिस द्वारा उनकी नाक में दम कर दी जाती है, किन्तु जब खुद की बारी आती है तो महकमे में खामोशी पसर जाती है। दिल्ली के सीताराम बाजार निवासी गणेश दत्त के सूचना के अधिकार आवेदन के जवाब में हैरत अंगेज जानकारी निकल कर आई है। जवाब में कहा गया है कि सरकारी वाहनों को हर साल फिटनेस प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य होता है, किन्तु सड़कों पर दौड़ रही 55 छोटी क्रेन में से महज 33 के पास ही फिटनेस प्रमाण पत्र है अर्थात शेष 22 बिना फिटनेस के ही दौड़ रही हैं। दस सरकारी क्रेन को खरीदी के वक्त फिटनेस दिया गया था दो साल के लिए पर वह भी दुबारा चेक नहीं किया गया है। सच ही कहा है किसी ने सरकार का गोल गोल, और निजी वाहन स्वामी का गोल हाॅफ साईड!
23 फीसदी अधिक टुल्ली हुए दिल्ली वाले
दिल्ली में शराब अब संस्कृति में रच बस गई है। दिल्ली में जाम छलकाने वालों की तो पौ बारह है। सेहत के लिए हानीकारक बताई जाने वाली शराब दरअसल दिल्ली सरकार की सेहत को काफी हद तक सुधार रही है। कम से कम आंकड़े तो यही बयां कर रहे हैं। पिछले साल के मुकाबले इस साल शराब बेचकर दिल्ली सरकार के आबकारी विभाग ने साढ़े तीन सौ करोड़ रूपए अधिक कमाए हैं। 01 अप्रेेल 2010 से 31 मार्च 2011 की आलोच्य अवधि में दिल्ली सरकार के आबकारी विभाग ने 2027 करोड़ रूपए कमाए थे, जबकि 01 अप्रेल 2009 से 31 मार्च 2010 तक की अवधि में यह आंकड़ा 1644 करोड़ रूपयों का था। चालू माली साल में यह लक्ष्य बढ़ाकर 2300 करोड़ रूपए कर दिया गया है। उधर मदर डेयरी दूध के दामों में इजाफा किए जा रही है, मतलब साफ है कि शीला सरकार की मंशा है कि दिल्ली वाले दूध की जगह शराब का सेवन कर सरकार की सेहत सुधारें।
बारिश के बाद करवाएंगे स्वीमिंग!
दिल्ली सरकार अजीब ही है भरी गर्मी से राहत दिलाने में उसकी पेशानी पर पसीने की बूंदे छलक रही हैं। पानी और बिजली की किल्लत चरम पर है। अमूमन मार्च माह से ही तरण ताल यानी स्वीमिंग पूल खोल दिए जाते हैं, पर इस बार मई बीतने को है पर दिल्ली में स्वीमिंग पूल में ताले ही चस्पा हैं। गौरतलब है कि दिल्ली में एक लाख से अधिक लोग गर्मी में स्वीमिंग पूल का उपयोग किया करते हैं। एमसीडी ने छः में से महज दो स्वीमिंग पूल ही खोलकर रखे हैं, डीडीए के 14 स्वीमिंग पूल लाईफ गार्ड के अभाव में बंद ही पड़े हुए हैं। सरकार की लालफीताशाही इस कदर सर चढ़कर बोल रही है कि लाईफ गार्ड के लिए विज्ञापन देना भी उसने मुनासिब नहीं समझा है। हालात देखकर लगने लगा है मानो दिल्ली में इस बार बारिश के उपरांत ही जाड़ों की हाड़ गलाने वाली ठंड में दिल्ली वासियों को स्वीमिंग पूल में तैरना नसीब हो पाएगा।
कानून की धज्जियां उड़ती शीला राज में
देश में 18 साल से कम उमर की महिलाओं का मां बनना अपराध माना जाता है किन्तु दिल्ली में इस कानून का सरेराह माखौल उड़ाया जा रहा है। एक निजी संस्था द्वारा कराए गए सर्वेक्षण के नतीजे चैंकाने वाले हैं। सर्वे बताता है कि दिलली में 67 फीसदी महिलाएं अस्पतालों के बजाए घरों पर ही प्रसव के लिए मजबूर हैं। इतना ही नहीं 15 से 17 साल की उमर में मां बनने वाली महिलाओं की तादाद 51 फीसदी है। परिवार कल्याण विभाग भले ही परिवार नियोजित करने के उपयों के लिए ढिंढोरा पीटने में करोड़ों अरबों रूपए खर्च कर रहा हो पर 62 फीसदी महिलाओं को इस बात का इल्म नहीं है कि परिवार नियोजित करने के उपाय क्या हैं। तीसरी बार दिल्ली की गद्दी पर बैठी शीला दीक्षित के राज की यह एक भयावह तस्वीर से कम प्रतीत नहीं होता है।
पुच्छल तारा
कभी दिल्ली में दूध दही की नदियां बहती थीं, पर अब दिल्ली में शराब की नदियां बह रही हैं। दिल्ली से मध्य प्रदेश के कटनी लौटे महेश रावलानी ने इसी पर एक ईमेल भेजा है। महेश लिखते हैं कि जब मैने पहली बाद दारू को हाथ लगाया तब मैं अपनी नजरों में गिर गया। पर . . . . जब मैने उन तमाम दारू फेक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों की बीवी बच्चों के बारे में सोचा तो मेरी आंख भर आई, और मैने फैसला कर लिया कि अब उनकी खातिर में रोजाना ही पिया करूंगा, ताकि उनके घरों में चूल्हा जल सके। अपने लिए तो सब जीते हैं, कभी दूसरों के लिए भी जीकर देखो मेरे दोस्त। ‘दारूप्रेमी समाजसेवियों के लिए जनहित में जारी।‘‘