शनिवार, 29 अगस्त 2009

ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

भाजपा की अंदरूनी मारकाट से संघ भी आया आजिज

भारतीय जनता पार्टी और अनुशासन एक सिक्के के दो पहलू हुआ करते थे, किन्तु अब यह इतिहास की बात हो गई है। भाजपा में अनुशासनहीनता के इतने उदहारण सामने आ चुके हैं कि अब लगने लगा है कि देश की सबसे गैर अनुशासित पार्टी में शुमार हो चुका है भाजपा का। कल तक भाजपा का मार्गदर्शन करने वाला राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी अब भाजपा को उसके ही हाल पर छोडने का मानस बनाने लगा है। हाल ही में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने इस मसले पर संघ की लाईन साफ कर दी है। बकौल भागवत अब संघ द्वारा भाजपा के मांगने पर ही उसे मशविरा दिया जाएगा। भागवत ने कहा कि भाजपा के अंदर जो कुछ भी हो रहा है, वह किसी भी तरह से अच्छा नहीं माना जा सकता है। संघ प्रमुख ने कहा कि अब संघ द्वारा भाजपा के मांगने पर ही सलाह दी जाएगी। सच ही है, भाजपा के अंदर मची घमासान में पडकर संघ भला क्यों अपनी मिट्टी खराब करे।

कैसे रहेंगे स्टेटस सिंबाल के बिना

राजनेता और ब्यूरोक्रेट्स के लिए सुरक्षा कर्मियों का काफिला उनके स्टेटस सिंबाल से कम नहीं है। कांग्रेस नीत संप्रग सरकार ने इस तरह के नेताओं और अधिकारियों की सुरक्षा कम कर दी है। हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री पी.चिदंबरम ने एक आदेश जारी कर 30 अति विशिष्ट व्यक्तियों की एक्स स्तर की सुरक्षा वापिस ले ली है। साथ ही मायावती, लालू प्रसाद यादव, मुरली मनोहर जोशी, मुलायम सिंह यादव, राम विलास पासवान, शिवराज पाटिल, जगमोहन जैसे जन जन के नेताओं की एनएसजी भी वापस लेने की सिफारिश की गई है। सवाल यह उठता है कि जन जन के नेताओं को अपनी ही जनता से खतरा कैसार्षोर्षो और बिना स्टेटस सिंबाल के ये राजनेता सांस ले सकेंगे इस बात में भी संशय ही है।

मोदी के आपरेशन ``सी एच`` को झटका

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा के साथ ही साथ में काफी गहरी पैठ रखते हैं। मोदी नपे तुले कदमों से पार्टी सुप्रीमो के सिंहासन की ओर बढ़ रहे थे। चर्चा है कि मोदी को उम्मीद थी कि उनका अघोषित एवं परोक्ष तौर पर चलने वाला आपरेशन ``सीएच`` (आपरेशन भाजपा के चेयरमेन की कुर्सी पाना) इस साल के दिसंबर तक पूरा हो जाएगा। सूत्रों के अनुसार मोदी मान कर चल रहे थे कि वषाZंत तक वे भाजपा के अध्यक्ष की कुर्सी पर विराजमान हो जाएंगे। उनके प्रमुख प्रतिद्वंदी के तौर पर उभरे बाला साहेब आप्टे और सुषमा स्वराज इन दिनों चर्चाओं के बाहर हैं। मोदी की किस्मत का सितारा उतना बुलंद नहीं दिख रहा है। भाजपा के अंदर मचे घमासान ने उनके इस आपरेशन को झटका दे दिया है। लाल कृष्ण आड़वाणी और अरूण जेतली इस मामले में मोदी के साथ हैं। सीएम से सीएच बनने की मोदी की चाह लगता है इतनी जल्दी पूरी होने वाली नहीं है।

अपने ही जाल में उलझे कमल नाथ

अटल बिहारी बाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल की महात्वाकांक्षी परियोजना स्विर्णम चतुभुZज के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे में मध्य प्रदेश के सिवनी जिले से होकर गुजरने वाले फोरलेन मार्ग को लेकर सियासत पूरी तरह गर्मा चुकी है। आरोप प्रत्यारोपों के दौर के बीच 21 अगस्त को सिवनी में एतिहासिक बंद के दरम्यान केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के गली गली मे पुतले जलाए। चूंकि कमल नाथ महाकोशल के सर्वमान्य नेता माने जाते हैं अत: महाकौशल के ही सिवनी जिले में कमल नाथ का इस कदर विरोध होने से उन्हें पीडा होना लाजिमी है। इसके बाद एक के बाद एक घटनाक्रमों को अंजाम दिया गया। 27 अगस्त को दिल्ली में जारी कमल नाथ के बयान ने भ्रम और बढा दिया है। बकौल कमल नाथ सारा भ्रम सर्वोच्च न्यायालय में दायर एक जनहित याचिका के निर्णय के चलते पैदा हुआ है। सिवनी वासी अब यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि आखिर कौन सी जनहित याचिका सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल है और इस पर कब और कौन सा निर्णय दिया गया है। वस्तुत: इस मामले में अब तक न तो कोई याचिका ही प्रकाश में आई है और न ही निर्णय

हुड्डा ने प्रशस्त किए अक्टूबर में चुनाव के मार्ग

हरियाणा विधानसभा को भंग करने की मुख्यमंत्री भूपेदं्र सिंह हुड्डा की सिफारिश के बाद अब लगने लगा है कि अक्टूबर के पहले पखवाड़े तक हरियाणा, महाराष्ट्र और अरूणाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव करवा लिए जाएंगे। सितम्बर से अक्टूबर के बीच त्योहारों की सीरिज के चलते माना जा रहा है कि अक्टूबर मध्य तक तीनों राज्यों में चुनाव करवा लिए जाएंगे। सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस भी इसी फिराक में दिख रही है कि इन तीनों राज्यों मे ंवह अपना वर्चस्व कायम रख सके। वैसे भी तेजड़ियों (व्यापार एवं मंहगाई में तेजी की संभावना व्यक्त करने वाले) के अनुसार दीपावली के बाद मंहगाई का ग्राफ तेजी से उपर उठने की संभावना है। पहले से ही कमर तोड़ मंहगाई के चलते टूटी जनता की कमर और अधिक टूटने की उम्मीद है। इससे पहले ही कांग्रेस चाहती है कि तीन राज्यों के चुनावों को अंजाम दे दिया जाए।

सकते में हैं चापलूस

झारखण्ड मे ंमुख्यमंत्री परिवर्तन के बाद नए निजाम के तेवर देखकर चापलूस बहुत असमंजस में हैं, कल तक सीएम के दाएं बाएं रहकर उनके कान भरकर अपना उल्लू सीधा करने वालों को अब नए निजाम के दरबार में जगह नहीं मिल पा रही है। झारखण्ड के ब्यूरोक्रेट्स अपने सीएम के सामने पडकर उनसे डायरेक्ट आई कान्टेक्ट बनाने के प्रयास करते नजर आ रहे हैं। नए मुख्यमंत्री ने इन अधिकारियों को जमकर लताड़ना आरंभ कर दिया है। अधिकारियों को सीएम ने ताकीद कर दिया है कि वे उनके अधीनस्थों से मिलकर ही सारे कामों को अंजाम दें। इसके बाद भी अगर को उषा (उत्सुक्ता की शांति) रह जाए, तब ही वे सीएम के दरबार में हाजिरी दें। बार बार चेहरा दिखाने से कुछ भी हासिल नही होने वाला है। सीएम कागजों के बजाए वास्तव में काम को अंजाम देने की मंशा रख रहे हैं। अब बेचारे कामचोर और चापलूस अधिकारी सकते में हैं, कि वे आखिर दरबार में जगह बनाएं तो कैसे।

मिस्टर क्लीन बनने की तैयारी में बसपा

ताज कारीडोर, चंदा और मूर्तियों के विवाद में फंसी बहुजन समाज पार्टी अब अपनी इमेज सुधारने की कवायद करने वाली है। बताते हैं कि बसपा सुप्रीमो मायावती को उनके शोहदों ने मशविरा दिया है कि सूबे में बसपा की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, अत: अब मायावती ने इमेज सुधारने की पहल करने का फैसला लिया है। आने वाले साल में बसपा का चेहरा अगर बदला बदला दिखे तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। बताते हैं कि बसपा ने एक साल का एजेंडा बना लिया है, जिसमें कानून व्यवस्था के साथ ही साथ विकास की योजनाओं और जनहित को सर्वोपरि रखने का मूल मंत्र बनाया गया है। लोकसभा के नतीजों से बसपा में भूचाल आ गया है, और बसपा के नीति निर्धारकों ने अपना नया एजेंडा बसपा सुप्रीमो के सामने रख दिया है। बसपा सुप्रीमो ने संबंधित महकमों को पाबंद कर दिया है कि निर्माणाधीन स्मारकों का काम शीघ्र ही पूरा कर लिया जाए एवं इस कार्यकाल में और स्मारकों की स्थापना न की जाए। देखना है कि बसपा के नीति निर्धारकों की यह पहल कितना रंग लाती है।

मराठा क्षत्रप ने बढाई दिग्गी राजा की मुसीबत

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमो शरद पंवार ने कांग्रेस की नींद में खलल डाल दिया है। मराठा क्षत्रप शरद पवार ने साफ तौर पर कह दिया है कि उसे महाराष्ट्र सूबे की 288 में से 122 सीटें चाहिए। इससे पूर्व कांग्रेस के सबसे शक्तिशाली महासचिव दिग्विजय सिंह ने कह दिया था कि जब विदेशी मूल का मुद्दा ही नहीं रहा तो राकांपा को अब कांग्रेस में मिल जाना चाहिए। सूत्र बताते हैं कि राजा दिग्विजय सिंह का यह मशविरा मराठा क्षत्रप को रास नहीं आया। मराठा क्षत्रप यह कतई बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं कि उनके सूबे में कोई भी किसी तरह का हस्ताक्षेप करे, वह भी सूबे में उनकी पार्टी के कांग्रेस में विलय की सलाह देकर। मराठा क्षत्रप काफी तेश में दिखाई पड़ रहे हैं। अर्जुन सिंह के बाद कांग्रे्रस की राजनीति के अघोषित चाणक्य माने जाने वाले दिग्विजय िंसंह की चालों को समझकर मराठा क्षत्रप शरद पंवार ने अपना दांव खेल दिया है। गेंद अब कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के पाले में है, देखना है वे इस मसले का क्या निकाल निकालतीं हैं।

पुच्छल तारा

फोरलेन सिवनी से होकर जाएगी अथवा नहीं। इसका जवाब अभी भी एक पेटी में बंद है, यह पेटी कहां है कोई नहीं जानता अगर पेटी मिल भी जाए तो इसकी चाबी कहां है इसे खोजना बहुत मुश्किल है। यह पोराणिक जादुई कथा नहीं वरन 21वीं सदी में सच्ची कथा है। जितने मुंह उतनी बातों की तर्ज पर चल रहा है सारा मामला। ठोस आधार अब तक मिला है तो वह है पूर्व जिला कलेक्टर पी.नरहरि का कूटनीति भरा एक पत्र जिसमें सिवनी से खवासा की ओर के मार्ग पर वृक्षों की कटाई पर रोक लगाई गई थी। कहा तो यहां तक जा रहा है कि लखनादौन से सिवनी मार्ग की निर्माण एजेंसी के पेटी कांटेक्टर मीनाक्षी ने नरहरि को साध लिया था, किन्तु इसके बाद की निर्माण एजेंसी गुजराती मूल के सद्भाव द्वारा एसा कोई जतन नहीं किया जा सका। जिलाधिकारी के पास असीमित अधिकार होते हैं, सो ये एजेंसी हाथ पर हाथ धरे बैठे है। अगर यही एजेंसी जिलाधिकारी के उक्त आदेश को उच्च न्यायालय या आयुक्त राजस्व जबलपुर के सामने चुनौति दे दे तो मामला कुछ सेटिल होने की उम्मीद है। इस मामले में जिले की जनता उनका साथ देगी ही साथ ही साथ राजनेताओं द्वारा निर्माण एजेंसी का साथ दिया जाना मजबूरी होगी।