कलेक्टर भरत यादव का आभार
(शरद खरे)
जिले में पदस्थ युवा एवं उर्जावान जिला
कलेक्टर भरत यादव गत दिवस अपनी व्यस्त दिनचर्या में से समय निकालकर जिला
चिकित्सालय गए और वहां के हाल जाने। सालों बाद किसी कलेक्टर को जिला चिकित्सालय की
सुध आई है। इसलिए जिला कलेक्टर भरत यादव वाकई साधुवाद के पात्र हैं।
इसके पूर्व एक समय तत्कालीन जिला
कलेक्टर एच.मिश्रा फिर मोहम्मद पाशा राजन के उपरांत एम.मोहन राव ने जिला
चिकित्सालय का निरीक्षण किया था। एम.मोहन राव तो बाकायदा शाम ढलते ही पेइंग वार्ड
के सामने वाले मैदान जिसमें वर्तमान में निर्माण जारी है में कुर्सी लगाकर बैठ
जाया करते थे और यहां व्यवस्थाओं को सुधारने का प्रयास करते। उनके समय में यहीं
बनाया गया एक मनमोहक फव्वारा कालांतर मेें जमींदोज हो चुका है।
श्री मोहनराव के उपरांत जिला अस्पताल
लंबे समय तक उपेक्षित ही रहा। अचानक ही तत्कालीन जिला कलेक्टर मोहम्मद सुलेमान को
जिला चिकित्सालय की याद आई और उन्होंने इसके कायाकल्प का जिम्मा उठाया। उस समय
अस्पताल के चारंों ओर पसरा अतिक्रमण हटाया जाकर बड़ी तादाद में रेड क्रास की
दुकानें बनवाई गईं। इन दुकानों से हुई आय से रेड क्रास सोसायटी तो समृद्ध हुई पर
मरीजों के किसी काम ना आ सकी। लंबे समय से जिला चिकित्सालय के अंदर रेड़ क्रास की
दवा दुकान की मांग की जा रही है पर पता नहीं क्यों सिवनी की दवा लाबी के सामने
घुटनों पर खड़े प्रशासन ने इस ओर ध्यान नहीं दिया।
यहां उल्लेखनीय होगा कि राजधानी भोपाल के
बारह सौ पचास के जय प्रकाश चिकित्सालय सहित प्रदेश में अनेक स्थानों पर रेड क्रास
द्वारा संचालित होने वाली दवा की दुकानों से मरीजों को खासी राहत मिलती है। यहां
दवाएं अन्य दवा की दुकानों के बजाए सस्ती ही मिला करती हैं, क्योंकि इन पर करारोपण कम होता है।
फिर जिला चिकित्सालय का हाल जाना उस
वक्त के कलेक्टर डॉ.जी.के.सारस्वत ने। उन्होंने जिला चिकित्सालय में काम तो करवाया
पर प्राईवेट वार्ड सहित अन्य कारीडोर पर बांसों की ऐसी चिलमन खड़ी करवा दी कि यहां
हवा आना जाना ही बंद हो गई। उस वक्त अस्पताल में काफी सुधार कार्य हुए इस बात से
इंकार नहीं किया जा सकता है।
जिला कलेक्टर भरत यादव ने इसी क्रम को
आगे बढ़ाया है। उन्होंने अस्पताल का औचक निरीक्षण किया निश्चित तौर पर वे यहां की
व्यवस्थाओं से खुश या संतुष्ट तो कतई नहीं हुए होंगे। जिला चिकित्सालय में गंदगी
का साम्राज्य पसरा हुआ है। निःशुल्क दवा वितरण केंद्र में पैंशनर्स को मिलने वाली
दवाएं गायब हैं। दवाएं मिल रही हैं तो वे भी जिनकी एक्सपायरी डेट करीब हैं वे
वाली।
अस्पताल के चिकित्सक अपने निहित स्वार्थ
के चलते जैनरिक दवाओं के स्थान पर ब्रांडेड दवाएं लिख रहे हैं। गरीब मरीज कहां से
लाए इन ब्रांडेड दवाओं के लिए पैसे। सारा जीवन सरकार को समर्पित करने वाले
पेंशनर्स के बुरे हाल हैं। पैंशनर्स की आयु बांसठ से नब्बे पंचायनवे या सौ वर्ष की
होगी।
यह आयु निश्चित तौर पर रोगों के लिए ही
मानी जाती है। इस उम्र में पैंशनर्स को मधुमेह, रक्तचाप जैसी बीमारियां होना आम बात है।
अलग अलग लोगों को रक्तचाप की अलग अलग दवाएं होती हैं। अस्पताल में पैंशनर्स को
रक्तचाप के नाम पर लोसार एच और एटेन नामक दवाएं ही उपलब्ध हैं।
चिकित्सकों की मानें तो रक्तचाप का
मामला बहुत संवेदनशील होता है। इसमें निर्धारित दवा देना ही उचित होता है। अगर
दूसरी दवा दी जाए तो स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। उच्च या निम्न रक्त
चाप के मरीज अगर दवा ना खाए तो उसकी किडनी पर भी असर हो सकता है। जिला प्रशासन को
चाहिए कि गरीबों और पैंशनर्स को मिलने वाली दवाएं कम से कम उन्हें मुहैया हों इस
बारे में प्रयास अवश्य ही करें।
जिला चिकित्सालय में जिलाधिकारी भरत
यादव ने बहुत सी अनियमितताएं देखी होंगी। निश्चित तौर पर जिला कलेक्टर के पास बहुत
सारे काम होते हैं, व्यस्तताएं होती हैं। उन्होने समय निकाला और अस्पताल का निरीक्षण किया।
जिला कलेक्टर से अपेक्षा है कि वे स्वास्थ्य विभाग के प्रभारी उप जिलाध्यक्ष को
ताकीद करें कि वे जिला चिकित्सालय सहित जिले के समस्त स्वास्थ्य केंद्रों की
प्रगति एवं अन्य बातों की समीक्षा कर साप्ताहिक प्रतिवेदन उनके समक्ष रखें।
इससे कम से कम जिले के स्वास्थ्य विभाग
के चिकित्सकों और पेरामेडीकल स्टाफ सहित समस्त चेत सकेेंगे। साथ ही साथ प्रशासन का
जो भय उनके दिल दिमाग में समाप्त हो चुका है उसे दुबारा कायम किया जा सकेगा, जिससे कम से कम मरीजों को तो इसका लाभ
मिल सकेगा।
जिला चिकित्साल में खून का धंधा जोरों
पर है। एक्सरे और अन्य जांच के लिए भी बाहर के निजी संस्थानों के साथ इनकी
जुगलबंदी देखने लायक है। अस्पताल में पदस्थ चिकित्सक भी अपना पूरा ध्यान अपनी अपनी
निजी ‘दुकानों‘ में पूरी तरह दे रहे हैं। सिविल सर्जन डॉ.सत्यनारायण सोनी आरोपों में
आकण्ठ डूबे हुए हैं। चिकित्सक समय पर अस्पताल में उपस्थित नहीं होते हैं। स्टॉफ का
मरीजों के साथ बर्ताव बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है। अस्पताल में मिलने वाला
खाना बहुत ही बेस्वाद और घटिया क्वालिटी का होता है। ना जाने कितनी समस्याएं हैं
अस्पताल के अंदर। जब जिला मुख्यालय का यह आलम है तो सुदूर ग्रामीण अंचलों के
अस्पतालों की सोचकर ही रूह कांप जाती है।