शनिवार, 8 अगस्त 2009

महिमा मण्डन जरूरी या रियाया के दुख दर्द!

(लिमटी खरे)

स्वतंत्रता संग्राम में महती भूमिका निभाने वाले और देश को अब के सबसे अधिक वजीरे आजल देने वाले उत्तर प्रदेश की राशि में राहु केतु और शनि जैसे भयानक और क्रूर ग्रह पिछले कुछ समय से कुंडली मारकर बैठ गए हैं, यही कारण है कि पिछले एक अरसे से यूपी कभी अकाल तो कभी अतिवषाZ, अतिवृष्टि की चपेट में आ रहा है। इस सूबे को लेकर सियासत सदा ही गरम रही है, किन्तु गरीब गुरबों की ओर किसी भी सियासी पार्टी द्वारा ध्यान नहीं दिया गया है।
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखण्ड क्षेत्र में रियाया त्राहीमाम त्राहीमाम कर रही है, पर सियासी पार्टियां यहां इस मुद्दे पर जमकर राजनीति करने से नहीं चूक रही हैं। कांग्रेस की नजरों में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी जहां बुंदेलखण्ड के लिए विशेष पैकेज की मांग कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी इस मामले में कांग्रेस के खिलाफ तलवार निकालकर खड़ी हो गई हैं।
बुंदेलखण्ड में आम जनता को जहां न तो रोटी नसीब हो पा रही है, और न ही पीने को पानी, पर राजनेताओं को इससे कुछ लेना देना नहीं है। कांग्रेस का गढ़ माना जाने वाला यूपी पिछले दो दशकों से बहुजन समाज पार्टी के वर्चस्व वाले क्षेत्र में तब्दील हो गया है। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के पिछले दौरों ने यहां के लोगों को कुछ उम्मीदें बांधी हैं, कि सूबे की नहीं तो कम से कम केंद्र की सरकार द्वारा उनकी सुध ली जाएगी।
पिछली मर्तबा भी यही हुआ था। राहुल गांधी के पिछले साल के बुंदेलखण्ड के दौरे के बाद यहां के लिए लगभग पांच हजार करोड़ रूपए के विशेष पैकेज की तैयारी कर ली गई थी, जो बाद में कांग्रेस की सियासत में उलझ गया था। अंतत: केंद्र सरकार द्वारा यह पैकेज जारी ही नहीं किया जा सका था।
उत्तर प्रदेश के निजाम की कुर्सी पर बैठीं बसपा सुप्रीमो सुश्री मायावती ने राज्य भर में अपने आप को महिमा मण्डित करने की गरज से जीते जी ही अपनी प्रतिमाएं लगवाने की कवायद की गई है। इसके लिए सूबे के खजाने से उन्होंने लगभग 500 करोड़ रूपए निकलवाए हैं। यह राशि रातों रात अस्तित्व में आने वाले उद्यानों में महापुरूषों जिनमें सुश्री मायावती का भी शुमार है, की प्रतिमाएं लगाने में व्यय की जानी है।
लोगों के मन में अपने आप को चिरस्थायी बनाने की मंशा के कारण अपनी मूर्तियां लगवाने के चक्कर में मायावती यह भूल गईं कि उनका सूबा बहुत पिछड़ा हुआ है, और उनकी रियाया उनसे कुछ और उम्मीद लगाए बैठी है। सूखे से निपटने मायातवी ने महज ढाई सौ करोड़ रूपए की ही व्यवस्था करने कोे कहा है, जो निंदनीय है। मायावती की इस ज्यादती के खिलाफ कुछ मामले सर्वोच्च न्यायालय में भी लंबित हैं।
मायावती द्वारा सदा ही उत्तर प्रदेश में न केवल यूपी और बुंदेलखण्ड में राजनीति करती रहीं हैं, वरन योजनाओं में धन की कमी के लिए केंद्र सरकार को ही दोषी ठहराती रहीं हैं। वैसे भी दिग्विजय सिंह के फामूर्ले के बाद यूपी में कांग्रेस को मिली अप्रत्याशित सफलता ने मायावती को बोखलाने पर मजबूर कर दिया है।
वैसे अगर मायावती मूर्तियों के माध्यम से खुद को महिमा मण्डित करने के स्थान पर उस धन को जरूरतमंदों के काम मे खर्च करतीं तो निश्चित तौर पर आने वाले कई दिनों तक जनता उन्हें याद रखती।
केंद्र में प्रधानमंत्री और राज्यों में मुख्यमंत्री के पद के सृजन के वक्त संविधान सभा के अध्यक्ष बाबा भीमराव अंबेडकर ने कुछ और सपना देखा होगा। जिस सपने पर आज सूबों के निजाम खुलेआम पानी फेरने से नहीं चूक रहे हैं। सूबे के निजाम का प्रथम दायित्व अपनी रियाया को खुश रखने, उसे बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने का होता है। इससे उलट आज राज्यों के मुख्यमंत्रियों द्वारा अपनी सुविधा के हिसाब से कानूनों को तोड़ मरोड़ कर व्याख्या कर अपनी स्वार्थसिद्धि की जा रही है।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का नाम आते ही हर भारतीय का मानमस्तिष्क श्रृद्धा से अपने आप झुक जाता है। बापू की प्रतिमा लगाना गौरव की बात समझा जाता है, यहां तक कि देश की करंसी पर भी बापू ही दिखाई पड़ते हैं। आधे नंगे बदन जिस शिक्सयत ने उन ब्रितानियों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था, जिनके बारे में यह कहा जाता था कि उनके राज में सूरज कभी डूबता नहीं है।
आज राजनेताओं को बापू से सीख लेनी चाहिए। जिस सादगी के साथ बापू ने जीवन जिया वह वाकई एक नजीर है। देश के आजाद होने के बाद भी कोई पद स्वीकार न कर उन्होंने साबित कर दिया था कि उनका जीवन भारतवर्ष को समर्पित रहा है न कि अपने आप को महिमामण्डित करने में। आज बापू की आल औलादें भी भीड़ में ही कहीं गायब हो गईं हैं। वहीं दूसरी ओर जनसेवा का नारा देकर राजनीति करने वाले नेता अपनी दूसरी तीसरी पीढ़ी के लिए गद्दी के मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं, जिसकी निंदा की जानी चाहिए।

----------------------------

सब पर भारी पड़ रहे हैं दिग्विजय सिंह
0 सोनिया के दरबार में अब अहमद पटेल नंबर दो पर
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में दस साल तक निष्कंटक राज करने वाले कांग्रेस के ताकतवर महासचिव दिग्विजय सिंह इन दिनों अहमद पटेल के लिए सरदर्द बनते जा रहे हैं। 1993 से 2003 तक एमपी के मुख्यमंत्री रहे दिग्गी राजा के नपे तुले कदम सोनिया गांधी के राजनेतिक सचिव पटेल के लिए चुनौति से कम नहीं है।
कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ के भरोसेमंद सूत्रोें का कहना है कि दिग्विजय सिंह ने दस साल के लिए कोई पद नहीं लेने का अपना कोल निभाया है। अपने वनवास के सात साल काट चुके हैं। इसी बीच उन्होंने कांग्रेस की नजर में देश के भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी को राजनीति का ककहरा सिखाना आरंभ किया था।
राहुल गांधी के अघोषित राजनैतिक गुरू दिग्गी राजा की चालों से राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस में संजीवनी फूंकने में कामयाबी हासिल कर ली थी। इसके बाद पर्दे के पीछे से ही दिग्विजय सिंह ने अपना खेल जारी रखा है। राहुल गांधी के प्रति वफादारी ही दिग्विजय सिंह का मूल मंत्र प्रतीत हो रहा है।
सूत्रों के अनुसार दिग्विजय सिंह की दखल अब 10 जनपथ में सोनिया के दरबार में भी मजबूत होती जा रही है। राजनैतिक नियुक्तियों में अब कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी द्वारा दिग्विजय की सलाह को ज्यादा तरजीह दी जाने लगी है। चाहे राज्य सभा का चुनाव हो या सूबों में कांग्रेस में फेरबदल, इस सबमें दिग्विजय सिंह की राय अब मायने रखने लगी है।
सूत्रों ने यह भी बताया कि बिहार के कांग्रेस प्रभारी इकबाल सिंह को पांडिचेरी के उपराज्यपाल बनवाने में दिग्गी राजा की अहम भूमिका रही है। इतना ही नहीं, दिल्ली के विधायक परवेश हाशमी को राज्य सभा के लिए नामित करवाने में भी पर्दे के पीछे की उनकी भूमिका सशक्त ही रही है।
सबसे ताकतवर होकर उभरे अहमद पटेल को साईज में लाने के लिए दिग्विजय सिंह ने गांधी परिवार के वफादार रहे विसेंट जार्ज को भी अब चार्ज करना आरंभ कर दिया है। जानकारों का कहना है कि दिग्विजय सिंह के नपे तुले कदमों ने उन्हें सोनिया के दरबार में नवरत्नों में शुमार करवा दिया है।
सोनिया गांधी के करीबी सूत्रों का दावा है कि पिछले कुछ दिनों से राहुल गांधी की राजनैतिक परिपक्वता से गदगद सोनिया अब दिग्विजय सिंह को ज्यादा वजन देनें लगी हैं। यही कारण है कि अब सोनिया के दरबार में अहमद पटेल की स्थिति नंबर वन से दूसरी पायदान पर आ गई है।
कांग्रेस के अंदरखाने में चल रही चर्चाओं पर अगर यकीन किया जाए तो आने वाले दिनों में कांग्रेस की सियासत की धुरी दिग्विजय सिंह के इर्द गिर्द ही घूमती नजर आने वाली है।