धसका किला गड़करी से
राजनाथ को हस्तांतरित!
(लिमटी खरे)
सूबाई राजनीति से
उठकर राष्ट्रीय फलक पर पहुंचने वाले नितिन गड़करी एकाएक धड़ाम से जमीन पर आ गए हैं।
भाजपा सहित सारे देश में गड़करी के जाने के कारणों पर गोर किया जा रहा है साथ ही
साथ राजनाथ सिंह के हाथ भाजपा की कमान आने पर बनने वाले समीकरणों पर भी लोगों की
बारीक नजर है। गड़करी आखिर गए क्यों और कैसे? जबकि गड़करी को दूसरा कार्यकाल दे ही दिया
गया था। इसके अलावा नरेंद्र मोदी फेक्टर भी भाजपा के लिए बहुत अहमह है। गड़करी पर
हो रहे आयकर के हमलों से भाजपा हिली हुई थी। भाजपा को लग रहा था कि अगर गड़करी रहे
तो वे बंगारू लक्ष्मण बन जाएंगे। उधर, भाजपा के पास साफ सुथरी छवि वाला दूसरा नेता
नहीं था। नरेंद्र मोदी अभी गुजरात छोड़कर आने की स्थिति में नहीं हैं तो शिवराज
सिंह चौहान और रमन ंिसंह को इसी साल मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की वेतरणी पार करवाना
है। भाजपा की स्थिति काफी दयनीय है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। जब
गड़करी के हाथों भाजपा की कमान आई थी तब कहा जा रहा था कि धसके किले की कमान उन्हें
सौंप दी गई है। कमोबेश अब यही कहा सकता है कि धसके किले की कमान अब गड़करी से
राजनाथ को स्थानांतरित हो गई है।
भाजपा के अंदर
पिछले कुछ माहों से गंभीर मंथन चल रहा था। उससे भी ज्यादा मंथन संघ के अंदर चल रहा
था। घपले, घोटाले, भ्रष्टाचार में
आकंठ डूबी कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के खिलाफ आम चुनाव में
भ्रष्टाचार को ही सबसे बड़ा मुद्दा बनाने की चाह दिख रही है, भाजपा की। इन
परिस्थितियों में अगर गड़करी की पूर्ति कंपनी पर छापे दर छापे से भाजपा की साख खराब
होने का डर था। उधर,
संघ को भी यह डर सता रहा था कि कहीं यूपीए द्वारा गड़करी को
भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते बंगारू लक्ष्मण ना बना दिया जाए। संघ को यह डर भी
सता रहा होगा कि आयकर छापों में अगर भाजपाध्यक्ष को गिरफ्तार कर लिया जाता है तो
फिर भाजपा कहीं भी मुंह दिखाने के लायक नहीं बचेगी।
उधर, संघ के अंदरखाने से
छन छन कर बाहर आ रही खबरों के अनुसार गड़करी की बिदाई और राजनाथ सिंह की ताजपोशी से
साफ हो गया है कि ना संघ जीता और ना भाजपा हारी। यहां उल्लेखनीय होगा कि सूरजकुण्ड
सम्मेलन में गड़करी को दूसरी पारी देने पर मुहर लगने के बाद साफ हो गया था कि गड़करी
जनवरी में अपनी नई पारी की शुरूआत के साथ ही भाजपा को मजबूती प्रदान करने के लिए
अपनी टीम अपने मुताबिक चुनेंगे।
सूत्रों की मानें
तो एल.के.आड़वाणी की जिद के चलते ही गड़करी को अध्यक्ष पद का ताज उतारना पड़ा। आड़वाणी
चाह रहे थे कि गड़करी के स्थान पर नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज को बिठा दिया जाए।
इस तरह आड़वाणी नेता प्रतिपक्ष के पद पर अपनी सक्सेसर बनी सुषमा को वहां से हटवा भी
देते और इधर गड़करी को भी चलता ही कर देते। संघ को भी सुषमा स्वराज के नाम पर पूरा
एहतराम नहीं था, अगर संघ
उसमें राजी होता तो यह आड़वाणी की विजय होती। इन परिस्थितियों में संघ ने गड़करी के
द्वारा राजनाथ के नाम को आगे किए जाने पर अपनी सहमति दे दी। आने वाले समय में संघ
के निशाने पर आड़वाणी आ जाएं तो किसी को एतराज नहीं होना चाहिए।
राजनाथ सिंह को
भाजपा की कमान उस वक्त सौंपी गई है जब भाजपा के पास खोने को कुछ भी नहीं बचा है।
केंद्र में कांग्रेस के भ्रष्टाचार, अनाचार, दुराचार, अराजकता आदि पर
भाजपा का स्टेंड जनता को निराश करने वाला ही रहा है। इन परिस्थितियों में अब आम
जनता यह मानकर चल रही है कि भाजपा केंद्र में पूरी तरह मैनेज्ड ही है। इसका कारण
भाजपा की ओर से अब तक एक भी प्रभावी विरोध दर्ज करना नहीं है। कीमतें आसमान छू रही
हैं, पर भाजपा
शांत बैठी है। यदा कदा भाजपा द्वारा रस्मी तौर पर प्रतीकात्मक विरोध अवश्य ही दर्ज
करवा दिया जाता है।
जिस तरह कांटों का
ताज नितिन गड़करी ने पहना था उसमें दस गुने कांटे लगाकर वह ताज अब राजनाथ सिंह के
सिर पर रख दिया गया है। राजनाथ सिंह के सामने सबसे बड़ी चुनौती अगले आम चुनावों में
भाजपा को स्थापित करना है। राजनाथ उमर दराज हो चुके हैं, फिर भी राजनैतिक
तौर पर वे युवा हैं। देखना तो यह होगा कि क्या राजनाथ सिंह के पास राहुल गांधी के
युवा कार्ड का कोई हल होगा?
उधर, अगले आम चुनावों
में किसी ना किसी के चेहरे को प्रधानमंत्री का बताकर भाजपा को चुनाव लड़ना ही होगा।
तब प्रश्न यह होगा कि भाजपा की ओर से पीएम केंडीडेट किसे घोषित किया जाएगा, क्योंकि पीएम की
कुर्सी पाने भाजपा में दावेदारों की तादाद अन्य पार्टियों की तुलना में कहीं
ज्यादा है। सोशल नेटवर्किंग वेब साईट्स पर नरेंद्र मोदी के चाहने वालों ने तो
उन्हें अभी से अगला पीएम बना दिया है। सवाल यह है कि क्या नरेंद्र मोदी को पैजामे
के अंदर रखने में कामयाब हो सकेंगे राजनाथ सिंह!
वैसे देखा जाए तो
राजनाथ सिंह के सामने चुनौतियों का अंबार खड़ा हुआ है। नितिन गड़करी संघ के लाड़ले, दुलारे थे। कहा तो
यह भी जाता है कि संघ मुख्यालय नागपुर का सारा का सारा भोगमान नितिन गड़करी ही
सालों से भोगते आ रहे हैं। भाजपा नेताओं की चौं चौं के चलते संघ ने गड़करी को तो
पीछे कर लिया है, पर अब क्या
संघ के जहर बुझे तीरों को बर्दाश्त कर पाएंगे राजनाथ सिंह? भाजपा को संघ के
साथ लेकर चलना राजनाथ के लिए तलवार की धार पर चलने के बराबर ही साबित होने वाला
है।
राजनाथ सिंह को अगर
सफलता के साथ चलकर अगले आम चुनाव में सरकार बनाना है तो इसके लिए उन्हें सबसे पहले
राजग गठबंधन के पुराने सहयोगियों को एक सूत्र में पिरोना होगा। इसके लिए राजनाथ
सिंह के लिए सबसे दुष्कर कार्य नरेंद्र मोदी और नितीश कुमार को एक मंच पर लाने का
होगा। इसके साथ ही साथ संप्रग के घटक दलों को भी तोड़कर राजग के साथ लाना होगा।
राजनाथ सिंह के
अध्यक्ष बनते ही मध्य प्रदेश, छत्तीगढ़, दिल्ली आदि में
विधानसभा चुनाव हैं। राजनाथ को एमपी और छग में अपनी सरकार बचाने के साथ ही साथ
दिल्ली पर कब्जा करना भी बड़ी चुनौती होगा। जिस तरह कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति
सोनिया गांधी पर उनके संसदीय क्षेत्र वाले उत्तर प्रदेश को बचा ना पाने के आरोप
लगते हैं उसी तरह राजनाथ सिंह को अपने गृह सूबे उत्तर प्रदेश को बचाना और उसमें
भाजपा को मजबूत करना पहली प्राथमिकता होगा।
अचानक ही आनन फानन
कैसे गड़करी की बिदाई की पटकथा लिख दी गई। कहा जा रहा है कि लगभग एक पखवाड़े से
गड़करी के खिलाफ छापों की बात अंदरखाने में गूंज रही थी। फिर अचानक छापे 22 तारीख
को ही क्यों। भाजपा के एक चतुर सुजान ने कांग्रेस से मिलकर दनादन छापे घलवा दिए, संघ को इसका भान
पहले से ही था, फिर क्या
एक पखवाड़े से ही गड़करी के विकल्प के बतौर राजनाथ को स्टेंडबाय में तैयार रखा गया
था। (साई फीचर्स)