शुक्रवार, 2 अक्टूबर 2009

आधी धोती वाले की याद में 11 लाख का पेन!

आधी धोती वाले की याद में 11 लाख का पेन!

(लिमटी खरे)


शरीर पर महज आधी धोती लपेटने वाले मोहन दास करम चंद गांधी जिसकी सादगी, साफगोई, अहिंसा, कंउसूलपरस्ती के आगे वह ब्रितानी सरकार नतमस्तक हुई थी, जिसके बारे में कहा जाता था, कि अंग्रेजों की सल्तनत में कभी सूरज नहीं डूबता। विडम्बना से कम नहीं है कि उसकी सादगी का सरेआम माखौल उड़ाते हुए एक फिरंगी कंपनी ने 11 लाख 39 हजार रूपए के सोने के फाउंटेन पेन (स्याही वाला पेन) बाजार में उतार दिया है।

यह निंदनीय है कि बापू के जन्मदिवस के एक दिन पहले लांच किए गए इस पेन को महात्मा गांधी की डांडी यात्रा से जोड़ दिया गया है। कंपनी ने लगभग साढ़े ग्यारह लाख के 241 पेन को ``महात्मा गांधी लिमिटेड एडीशन - 241`` एवं सस्ती दरों वाले एक लाख 67 हजार के 3000 पेन भी बाजार में उतारे हैं।

देश को आजाद कराने में अपनी महती भूमिका अदा करने वाले साबरमती के संत के नाम का भौंड़ा प्रदर्शन देश में अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमले के गवाह बने ताज होटल में किया गया, जिसमें उनके प्रपोत्र तुषार गांधी को बुलाकर इस आयोजन को प्रासंगिक बनाने का कुित्सत प्रयास किया गया।

तुषार गांधी इस आयोजन में क्यों गए इस बात को वे ही बेहतर जानते होंगे, हमारे मतानुसार सादगी की प्रतिमूर्ति महात्मा गांधी के नाम पर इस तरह विलासिता का बाजार लगाना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है। लग तो यही रहा है कि उक्त कंपनी ने बापू के नाम पर इस पेन को बेचने के लिए उनके वारिसान का इस्तेमाल किया है, जो अनुचित ही है।

यह बात उतनी ही सच है जितना कि दिन और रात, कि बापू ने आज के राजनेताओं की तरह सादगी का प्रहसन नहीं किया था। बापू ने सादगी दिखावे के लिए नहीं अपनाई थी। बापू जब वायसराय लार्ड इरविन से मिले थे तब उनकी एक लंगोटी को देखकर चर्चिल ने उन्हें ``अधनंगा फकीर`` की उपाधि तक दे डाली थी। इन सब तानों से बापू कभी व्यथित नहीं हुए।

आज बापू किसी परिवार विशेष की संपत्ति नहीं हैं। मोहन दास करमचंद गांधी को समूचा देश राष्ट्रपिता के नाम से संबोधित करता है। देश की मुद्रा पर भी बापू की ही मुस्कुराती तस्वीर है। आम भारतीय बापू का नाम बड़ी ही श्रृद्धा के साथ लेता है। भारत सरकार को चाहिए कि इस कदम का विरोध कर भारत में बापू के नाम पर लाखों के पेन की बिक्री पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाए।

बापू को ब्रांडनेम के तौर पर इस्तेमाल करना हमारे लिए असहनीय ही है। वैसे तो अमिताभ बच्चन, सचिन तेंदुलकर, महेंद्र सिंह धोनी, रानी मुखर्जी, काजोल अपने आप में एक ब्रेंडनेम बन चुके हैं। इन चेहरों का व्यवसायिक इस्तेमाल कर उत्पादक अपने उत्पदों को अधिक से अधिक बेचकर ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाना चाहता है।

किन्तु जब बात बापू की आती है तो बापू के नाम का व्यवसायिक उपयोग आसानी से पचाने वाली बात नहीं है। बापू के नाम को देश के कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने की नियत से खादी ग्रामोद्योग भंडार, गांधी आश्रम, हस्तशिल्प आदि में सरकारी तौर पर बापू के नाम का उपयोग किया जाना समझ में आता है, पर जब बात डेढ़ लाख से साढ़े ग्यारह लाख के स्याही वाले पेन की हो तब तो विचार करना अत्यावश्यक ही है।

ग्राम स्वराज का नारा बुलंद करने के साथ ही बापू ने विदेशी वस्तुओं का परित्याग कर स्वदेशी अपनाने की मुहिम चलाई थी। बापू खुद ही सूत कातकर कपड़ा बुनना जानते थे। बापू की सादगी का आलम यह था कि वे अपना संडास भी खुद ही साफ करने में विश्वास रखते थे।

इस मामले में केंद्र सरकार से कुछ उम्मीद करना बेमानी ही होगा क्योंकि जिस बापू ने कहा था राष्ट्रभाषा हिन्दी ही समूचे देश को एक सूत्र में पिरो सकती है, उसी केंद्र सरकार के महिला बाल विकास विभाग द्वारा ``हिंसा रहित भारत अन्याय रहित जिंदगी`` शीर्षक से जारी विज्ञापन में सत्तर फीसदी इबारत अंग्रेजी भाषा में ही लिखी हुई है।

गौरतलब होगा बापू के जन्म दिन पर यह विज्ञापन जारी किया गया है, बापू को समूचा विश्व इतना सम्मान देता है कि उनकी याद में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 02 अक्टूबर को अहिंसा दिवस मनाया जाने लगा है।

सादगी और संयम की मिसाल बन चके महात्मा गांधी आज अगर जिंदा होते तो क्या वे इस सोने के पेन से लिखने का उपक्रम करते, जाहिर है नहीं। फिर भारत सरकार किसी विदेशी कंपनी को लाखों की कीमत वाले पेन के व्यवसायिक उपयोग के लिए बापू को ब्रांड एम्बेसेडर बनाने के अधिकार परोक्ष तौर पर जाने अनजाने कैसे दे सकती है



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जमीनी हकीकत ने फुलाए चिदंबरम के हाथ पांव

नक्सलवादियों की वास्तिविकता से गृह मंत्रालय हैरान


(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में नक्सलवादियों की बढ़ती तादाद ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के होश उड़ा दिए हैं। होम मिनिस्ट्री के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि अकेले छत्तीसगढ़ में ही दस हजार से ज्यादा नक्सलाईट्स मौजूद हैं। छग के नक्सल प्रभावित जिले रोजाना ही नक्सली साहित्य उगल रहे हैं, जिससे गृह मंत्रालय काफी हद तक चिंतित नजर आ रहा है।

होम मिनिस्टर के करीबी सूत्रों का कहना है कि अब तक केंद्रीय गृह मंत्रालय यह मान रहा था कि देश भर में करीब दस हजार नक्सली मौजूद हैं, किन्तु खुफिया तंत्र से प्राप्त जानकारी ने मंत्रालय के अधिकारियों की पेशानी पर पसीने की बूंदे छलका दी हैं। जानकारी में कहा गया है कि सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही नक्सलियों की तादाद दस हजार के उपर है।

सूत्रों ने आगे बताया कि छापामार कार्यवाहियों में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा, बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर, जगदलपुर आदि के जंगलों में बंदूक बनाने के अत्याधुनिक उपरणों की बरामदगी से मामला और संगीन हो गया है। माना जा रहा है कि अब नक्सली एके 47 और एके 56 जैसे हथियारों को भी जंगलों में ही तैयार कर रहे हैं। इससे साफ हो गया है कि नक्सली अब देशी हथियारों पर निर्भर नहीं रह गए हैं।

सूत्रों की बात पर अगर भरोसा किया जाए तो नक्सलवादी हथियारों को जमा करने के लिए पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं। बंदूक, गोली और गोला बारूद को खरीदने की गरज से नक्सलवादी दुगनी तिगनी कीमतें भी अदा कर रहे हैं। सूत्रों ने स्वीकार किया कि नक्सलविरोधी केंद्रीय आपरेशन की व्यापक पब्लिसिटी का यह परिणाम है कि नक्सली अपने आप को हथियारों के मामले में और अधिक संपन्न बना रहे हैं।

अब तक दक्षिण से रसद पानी प्राप्त करने वाले नक्सलवादियों के बारे में सूत्रों ने कहा कि अब नक्सलियों के संबंध पूर्वोत्तर के अलगाववादी, आतंकवादी संगठनों से काफी गहरे हो रहे हैं। उल्फा और बोडोलेंड के संगठनों से नक्सलियों की सांठगांठ की बात भी सामने आई है। कहा जा रहा है कि इन संगठनो से नक्सलियों ने जमीन से हवा में मार करने वाले प्रक्षेपास्त्र, राकेट लांचर जेसी खतरनाक मशीने भी खरीदी हैं।

हाल ही में केंद्रीय सुरक्षा बल (सीआरपीएफ) की बटालियनों की मध्य प्रदेश से वापसी से नक्सलवादी गतिविधियां मध्य प्रदेश में भी बढ़ने की संभावनाअों से इंकार नहीं किया जा सकता है। वैसे भी मध्य प्रदेश के बालाघाट, मण्डला और डिंडोरी जिलों के जंगल इन नक्सलियों की शरण स्थली के लिए काफी हद तक मुफीद माने जाते रहे हैं। गौरतलब होगा कि पूर्व में सूबे के परिवहन मंत्री लिखी राम कांवरे की भी उनके गृह जिले बालाघाट में इन नक्सलियों ने गला रेतकर निर्मम हत्या कर दी थी।