समझ से परे है सरकार का अहमदी प्रेम
दोषी अफसरान को भाल का तिलक क्यों बनाती रहीं सरकारें
जीएमओ में कमल नाथ का क्या काम
अर्जुन की अध्यक्षता वाले जीएमओ की सिफारिश का क्या हुआ!
क्या जनता के ध्यान भटकाव के लिए गठित होते हैं जीएमओ
(लिमटी खरे)
दोषी अफसरान को भाल का तिलक क्यों बनाती रहीं सरकारें
जीएमओ में कमल नाथ का क्या काम
अर्जुन की अध्यक्षता वाले जीएमओ की सिफारिश का क्या हुआ!
क्या जनता के ध्यान भटकाव के लिए गठित होते हैं जीएमओ
(लिमटी खरे)
भारत गणराज्य का यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि सत्तर के दशक के उपरांत देश में नैतिकता को पूरी तरह से विस्मृत कर दिया गया है। मानवीय मूल्यों पर निहित स्वार्थ पूरी तरह हावी हो गए हैं। कहने को भारत गणराज्य का प्रजातंत्र समूचे विश्व में अनूठा है, पर वास्तविकता इससे कोसों दूर है। आज सत्ताधारी दल के साथ ही साथ विपक्ष ने अपने आदर्श, नैतिकता, जनसेवा पर अपने खुद के बनाए गए स्वार्थांे को हावी कर लिया है। ‘‘हमें क्या लेना देना, हमारे साथ कौन सा बुरा हुआ, हम क्यों किसी के पचडे में फंसें, जनता कौन सा खाने को देती है, कल वो हमारे खिलाफ खडा हो गया तो, हमें राजनीति करनी है भईया, हम उनके मामले मंे नहीं बोलेंगे तो कल वे हमारे मामले में मुंह नहीं खोलेंगे, आदि जैसी सोच के चलते भारत में राजनैतिक स्तर रसातल से भी नीचे चला गया है।
छब्बीस साल पहले देश के हृदय प्रदेश भोपाल में हुई विश्व की सबसे भीषणतम औद्योगिक त्रासदी के बाद उसके लिए जिम्मेदार रहे अफसरान को न केवल उस वक्त केंद्र और सूबें में सत्ता की मलाई चखने वाली कांग्रेस ने मलाईदार ओहदों पर रखा, वरन जब विपक्ष में बैठी भाजपा को मौका मिला उसने भी भोपाल गैस त्रासदी के इन बदनुमा दागों को अपने भाल का तिलक बनाने से गुरेज नहीं किया। देश की सबसे बडी अदालत में जब जस्टिस ए.एस.अहमदी ने धाराओं को बदला तब केंद्र सरकार शांत रही। फिर उच्च पदों पर आसीन नौकरशाहों को सेवानिवृत्ति के बाद मोटी पेंशन देने के बाद भी उनके पुनर्वास के लिए उन्हें किसी निगम मण्डल, आयोग, ट्रस्ट का सदस्य या अध्यक्ष बनाने की अपनी प्रवृत्ति के चलते इनकी लाख गलतियां माफी योग्य हो जाती हैं।
इसी तर्ज पर जस्टिस अहमदी को भोपाल मेमोरियल ट्रस्ट का अध्यक्ष बना दिया गया। क्या सरकार ने एक बारगी भी यह नहीं सोचा कि इन धाराओं को बदलकर जस्टिस अहमदी ने भोपाल में मारे गए बीस हजार से अधिक लोगों और पांच लाख से अधिक पीडित या उनके परिवारों के साथ अन्याय किया है। सच ही है राजनीति को अगर एक लाईन में परिभाषित किया जाए तो ‘‘जिस नीति से राज हासिल हो वही राजनीति है।‘‘ कांग्रेस या भाजपा को इस बात से क्या लेना देना था और है कि किन परिस्थितियों में धाराओं को बदला गया।
भोपाल में न्यायालय में मोहन प्रकाश तिवारी ने जो फैसला दिया उस पर उंगली नहीं उठाई जा सकती क्योंकि उन्होंने अपने विवेक से सही फैसला दिया है। जब प्रकरण को ही कमजोर कर प्रस्तुत किया गया तो भारतीय कानून के अनुसार उसके लिए जितनी सजा का प्रावधान होगा वही तो फैसला दिया जाएगा। चूंकि देश की सबसे बडी अदालत ने पहली बार आरोप तय किए थे, तो उससे निचली अदालत उसे किस आधार पर बदल सकती है। भारतीय काननू में यह अधिकार उपरी अदालतों को है कि वे अपने नीचे की अदालतों के फैसलों की समीक्षा कर नई व्यवस्था दें।
जब फैसला आ चुका है, देश व्यापी बहस आरंभ हो चुकी है, तब फिर पूर्व न्यायाधिपति को भोपाल मेमोरियल का अध्यक्ष बनाए रखने का ओचित्य समझ से परे है। सरकार को चाहिए था कि तत्काल प्रभाव से उन्हें इस पद से हटा देेते। मामला आईने की तरह साफ है। सबको सब कुछ समझ में आ रहा है कि दोषी कौन है, पर ‘‘हमें क्या करना है‘‘ वाली सोच के चलते जनता गुमराह होती जा रही है।
प्रधानमंत्री को भी लगा कि मामला कुछ संगीन और संवेदनशील होता जा रहा है। देश भर में इसके खिलाफ माहौल बनता जा रहा है तो उन्होंने भी मंत्री समूह के गठन की औपचारिकता निभा दी। इस मंत्री समूह में केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ को भी रखा गया है। कमल नाथ अस्सी से लगातार संसद सदस्य हैं, चोरासी में भी वे संसद सदस्य थे। राजीव और संजय गांधी के उपरांत प्रियदर्शनी स्व.श्रीमति इंदिरा गांधी के तीसरे बेटे कमल नाथ का यह पहला टेन्योर था सांसद के रूप में। वे मध्य प्रदेश के छिंदवाडा संसदीय क्षेत्र से चुगे गए थे। इसके बाद वे नरसिंहराव सरकार में वन एवं पर्यवरण तथा वस्त्र मंत्री रहे हैं। इसके बाद वाणिज्य उद्योग और अब भूतल परिवहन मंत्री हैं। यक्ष प्रश्न यह है कि बतौर सांसद मध्य प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने के बाद भी कमल नाथ ने आज तक भोपाल गैस कांड के लिए क्या किया है!
इसका उत्तर निश्चित तौर पर नकारात्मक ही आएगा। जब तीस सालों में उन्होंने अपने निर्वाचन वाले सूबे में भोपाल गैस कांड जैसे संवेदनशील मुद्दे पर कुछ नहीं कहा और किया तो अब मंत्री समूह में रहकर वे क्या कर लेंगे। वरिष्ठ पत्रकार ‘‘आलोक तोमर‘‘ अपनी वेव साईट में लिखते हैं कि कमल नाथ भोपाल के गुनाहगार कैसे हैं! वे लिखते हैं कि कमल नाथ के खिलाफ एक बात उछाली जा रही है कि वाशिंगटन में 28 जून 2007 को कमल नाथ की एक पत्र वार्ता को उछाला जा रहा है कि जिसमें उन्होने कहा था कि डाओ केमिकल ने यूनियन कार्बाईड को खरीद लिया है, हादसे के वक्त डाओ केमिकल अस्तित्व में नहीं थी। वरिष्ठ राजनेता और तीस साल की सांसदी कर चुके कमल नाथ को डाओ केमिकल का पक्ष लेने के बजाए भोपाल गैस कांड के मृतकों के परिजनों और पीडितों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए था, जो उन्होंने किसी भी दृष्टि से नहीं दिखाया। भोपाल कांड के मृतकों की कीमत पर डाओ केमिकल को देश में फिर से आमद देना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं कहा जा सकता है। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यह भोपाल गैस कांड के मृतकों और पीडितों को एक गाली से कम नहीं है। आज आरोप प्रत्यारोप के कभी न थमने वाले दौर आरंभ हो चुके हैं। भोपाल गैस कांड के फैसले से सियासी तंदूर फिर गरम होकर लाल हो चुका है। सभी जनसेवक अब अपने अपने हिसाब से इसमें अपने विरोधियों के खिलाफ तंदूरी रोटी सेंकना आरंभ कर चुके हैं। एक दूसरे के कपडे उतारने वाले राजनेता यह भूल जाते हैं कि मृतकों के परिजनों और पीडितों को उनके वर्चस्व की लडाई से कोई लेना देना चहीं है, वे तो बस न्याय चाह रहे हैं।
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान गैस राहत मंत्री बाबू लाल गौर का जमीर भी अचानक जागा है। उन्होंने भी इस तंदूर में अपनी दो चार रोटियां चिपका दी हैं। गौर का कहना है कि 1991 में जब वे गैस राहत मंत्री थे तब उन्होने 9 जुलाई 1991 को तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहराव को पत्र भी लिखा था। बकौल गौर भोपाल के गैस प्रभावित 36 वार्ड के पांच लाख 58 हजार 245 गैस प्रभावितों में से महज 42 हजार 208 पीडितों को ही मुआवजा देने की बात कही थी उस समय के मंत्री समूह ने। गौर के इस प्रस्ताव पर कि शेष बीस वार्ड के पांच लाख 16 हजार 37 पीडितों को मुआवजा देने पर उस समय गठित मंत्री समूह के अध्यक्ष कुंवर अर्जुन सिंह सहमत थे। बाबू लाल गौर खुद अपनी पीठ थपथपा रहे हैं, पर वे इस बात को बताने से क्यों कतरा रहे हैं कि उन्होंने विधायक रहते इस मामले को कितनी मर्तबा विधानसभा के पटल पर उठाया। वे भोपाल शहर से ही विधायक चुने जाते आए हैं, वे प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे हैं, फिर उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए अपने विधानसभा क्षेत्र के भोपाल शहर के गैस पीडितों के लिए क्या प्रयास किए। बाबू लाल गौर को इन बातों को भी सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री डॉ मन मोहन सिंह क्या सारे राजनेता इस बात को जानते हैं कि पब्लिक मेमोरी (जनता की याददाश्त) बहुत ही कमजोर होती है। अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर या संसद पर हमला हो या फिर देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई पर हुए अब तक के सबसे बडे आतंकी हमले की बात। हर मामले में जैसे ही घटना घटती है, वैसे ही चौक चौराहों, पान की दुकानों पर बहस गरम हो जाती है, फिर समय के साथ ही ये चर्चाएं दम तोड देती हैं। भोपाल गैस कांड में भी कुछ यही हो रहा है। मामला अभी गर्म है सो कुछ न कुछ तो करना ही है। मंत्री समूह का गठन कर जनता को भटकाना ही उचित लगा सरकार को। क्या भाजपा के अंदर इतना माद्दा है कि वह कंेद्र सरकार से प्रश्न करे कि गैस कांड के वक्त मुख्यमंत्री रहे कुंवर अर्जुन सिंह की अध्यक्षता में 1991 गठित मंत्री समूह की सिफारिशें क्या थीं, और क्या उन्हें लागू किया गया, अगर नहीं तो अब एक बार फिर से मंत्री समूह के गठन का ओचित्य क्या है! क्या इसका गठन मामले को शांत करने और जनता का ध्यान मूल मुद्दे से भटकाने के लिए है। मीडिया अगर ठान ले और इस मामले को सीरियल के तौर पर चलाते रहे तो देश प्रदेश की सरकारों के साथ ही जनसेवकों को घुटने टेकने पर मजबूर होना पडेगा, यही गैस कांड के मृतकों के प्रति सच्ची श्रृद्धांजली होगी और न्याय की आस में पथरा चुकी पीडितों की आखों में रोशनी की किरण का सूत्रपात हो सकेगा।