नेक टू नेक फाईट है
हिमाचल में
ठाकुरों के
वर्चस्व की जंग दिख रही हिमाचल में
(लिमटी खरे)
शिमला (साई)।
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर है। मतदाताओं का मौन
देखकर यह कहना मुश्किल है कि इस बार उंट किस करवट बैठेगा। कांग्रेस और भाजपा दोनों
ही अपनी अपनी सरकार बनाने के प्रति आश्वस्त नजर आ रहे हैं। राज्य सभा के रास्ते
केंद्र में राजनीति करने वाले केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा का कद हिमाचल प्रदेश में
काफी हद तक कम हो गया है।
देखा जाए तो हिमाचल
प्रदेश में दो ठाकुरों के बीच वर्चस्व की जंग ही सामने आ रही है। एक तरफ सत्ताधारी
भाजपा के निजाम प्रेम कुमार धूमल हैं तो दूसरी तरफ पांच मर्तबा प्रदेश की कमान
संभाल चुके वीरभद्र सिंह हैं। कांग्रेस और भाजपा में गुटबाजी चरम पर ही दिख रही
है।
कांग्रेस के खेमे
से छन छन कर बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो देश की सबसे बड़ी राजनैतिक
पार्टी कांग्रेस राज्य में 68 में से 45 सीटें अपनी झोली में डाल सकती है। सूबे
में भ्रष्टाचार मुख्य म ुद्दा बनता नहीं
दिख रहा है। वीरभद्र सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार की खासी फेहरिस्त होने के बाद भी
उनकी मांग ही सूबे में सबसे ज्यादा देखने को मिल रही है।
राज्य में वीरभद्र
सिंह काफी ताकतवर साबित हुए हैं। वीरभद्र ने अपने 53 समर्थकों को टिकिट देकर उपकृत
किया है। राज्य में कांग्रेस में गुटबाजी भी चरम पर है। वीरभद्र ने शेष 15 सीटों
पर बिना ना नुकुर के अपनी दावेदारी छोड़ी है। इन 15 सीटों पर केंद्रीय मंत्री आनंद
शर्मा के अनुयायी मैदान में हैं।
कांग्रेस के
सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि वीरभद्र सिंह ने अपने सारे
उम्मीदवारों के निर्वाचन क्षेत्रों का दौरा पूरा कर लिया है। वीरभद्र चाह रहे हैं
कि वे अपने ज्यादा से ज्यादा उम्मीदवार जिताकर ले आएं ताकि आलाकमान के सामने उनकी
स्थिति आनंद शर्मा के मुकाबले अधिक मजबूत होकर उभरे।
वहीं दूसरी ओर
कांग्रेस के नेशनल हेडक्वार्टर के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि
राज्य में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी में आनंद शर्मा को आलाकमान का आर्शीवाद मिला
हुआ है। वीरभद्र सिंह ने अब तक साठ सीटों पर प्रचार किया है। शेष आठ को आनंद शर्मा
के लिए छोड़ दिया है।
भाजपा से टूटकर अलग
हुए पूर्व सांसद महेश्वर सिंह ने वामपंथियों का साथ पकड़कर नए समीकरणों का आगाज
किया है। इसके साथ ही साथ अगड़ी और पिछड़ी जातियों के वोट अब तक कांग्रेस और भाजपा
की झोली में जाकर गिरते रहे हैं सूबे में। इस मर्तबा राजपूत वोटर्स का बिखराव होता
दिख रहा है, जो भाजपा
के लिए चिंता का विषय हो सकता है। वहीं दूसरी ओर दलित वोटर्स में बसपा की
हिस्सेदारी सीधे सीधे कांग्रेस के लिए घातक साबित हो सकती है।
ज्ञातव्य है कि
वर्ष 2007 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की झोली में 43.78 प्रतिशत
वोट तो कांग्रेस को 38.90 एवं अन्य को 17.32 प्रतिशत वोट मिले थे। इसी तरह 2009 के
लोकसभा चुनावों में भाजपा को जहां 49.58 तो कांग्रेस को 46.41 एवं अन्य के खाते
में 3.81 फीसदी वोट आए थे।
वहीं भाजपा की ओर
से भी कमोबेश चालीस के उपर सीटें जीतने का दावा परोक्ष तौर पर ठोंका जा रहा है।
भाजपाध्यक्ष नितिन गडकरी के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला उछलने से भाजपा अब
भ्रष्टाचार के मामले में बैकफुट पर ही दिख रही है। कहा जा रहा है कि चुनावों के
परिणाम केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा का कद और भविष्य तय करने में खासे सहायक साबित
होंगे।
कांग्रेस और भाजपा
की आंतरिक स्थिति देखकर कहा जा सकता है कि भाजपा को जीत का विश्वास इसलिए है
क्योंकि उसका विकास का मजबूत दावा है, इसके साथ धूमल सरकार को भ्रष्टाचार पर
संरक्षण देने के आरोपों से भी उसे जूझना पड़ रहा है। भापजा में मुख्यमंत्री कौन
होगा इसमें संशय नहीं है। संगठन लगातार सक्रिय है पर गुटबाजी चरम पर है। इसके साथ
ही साथ भाजपा को हिमाचल लोकतांत्रिक मोर्चा नुकसान पहुंचा सकता है।
वहीं दूसरी ओर
कांग्रेस को एंटी एंकबंेसी यानी सत्ता विरोधी वोट की उम्मीद सबसे ज्यादा है।
कांग्रेस के साथ सबसे बड़ी बात यह है कि उसके पास वीरभद्र सिंह जैसा कद्दावर नेता
है एवं इसे पहले की ही तरह बहुजन समाज पार्टी से नुकसान उठाना पड़ सकता है।
भ्रष्टाचार, घपले और
घोटाले में आकंठ डूबी संप्रग सरकार की छवि का नुकसान कांग्रेस को होने की उम्मीद
जताई जा रही है। इतना ही नहीं संगठन यहां मृतप्राय ही है इसलिए गुटबाजी सतही ही
मानी जा सकती है।
वैसे, हिमाचल प्रदेश के
समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के ब्यूरो ने बताया है कि हिमाचल प्रदेश में कल होने वाले
विधानसभा चुनाव की सभी तैयारियां पूरी हो गई हैं। मतदानकर्मियों के दल दूर-दराज के
इलाकों में पहुंचने शुरु हो गए हैं। मतदानकर्मियों और इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों
को उन स्थानों पर हेलीकॉप्टरों से पहुंचाया जा रहा है जहां सड़क मार्ग से पहुंचना
कठिन है। मतदान सुबह आठ बजे शुरू होगा और शाम पांच बजे तक वोट डाले जा सकेंगे। कुल
सात हजार दो सौ मतदान केंद्र बनाए गए हैं। हमारे संवाददाता ने बताया है कि दो हजार
उन्नीस मतदान केंद्रों को संवेदनशील और अति संवेदनशील घोषित किया गया है।
सरकारी सूत्रों ने
समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि प्रदेश में स्वतंत्र, निष्पक्ष और
शांतिपूर्ण मतदान करवाने के लिए सभी आवश्यक प्रबंध पूरे कर लिये गये हैं। कांगड़ा
जिले के पंजाब के साथ लगती सीमाओं १८ प्रवेश बिंदुओं पर सुरक्षा चौकी को बढ़ा दिया
गया है तथा बाहर से आने वाले वाहनों पर खास निगरानी रखी जा रही है। प्रदेश के साथ
लगती अन्य प्रदेश की सीमाओं को सील बंद किया है। जिले के पौंगडैंग के बीच टापू में
स्थित मतदान केंद्र के लिये पोलिंग पार्टी आज सुबह नांव के माध्यम से रवाना हो रही
है।