अस्ताचल की ओर
गड़करी का सूर्य . . . 3
संघ तलाश रहा गडकरी
का विकल्प!
(शरद खरे)
नई दिल्ली (साई)।
भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे उद्योगपति, व्यवसाई राजनीतिज्ञ नितिन गडकरी के उज्जव
भविष्य पर ग्रहण लग चुका है। गड़करी से अब आरएसएस भी पीछा छुडाते दिख रहा है। हाल
ही में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के तेवरों से प्रतीत होने लगा है कि गड़करी की
बिदाई की डुगडगी किसी भी वक्त बज सकती है।
झंडेवालान स्थित
केशव कुंज के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि भ्रष्टाचार के
आरोपों में घिरे भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस)
ने किनारा कर लिया है। साथ ही गडकरी की जगह भाजपा के शीर्ष पद के लिए नए अध्यक्ष
की तलाश में लग गया है।
चेन्नई से समाचार
एजेंसी ऑफ इंडिया के ब्यूरो से प्रीति सक्सेना ने बताया कि तमिलनाडु की राजधानी
चेन्नई में संघ के तीन दिवसीय अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक के बाद
पत्रकारों के सवाल का जवाब देते हुए सर कार्यवाहक दत्तात्रेय होसाबेले ने कहा कि
गडकरी एक स्वयं सेवक हैं और उनके मसले पर एक चर्चा होगी लेकिन मसले पर कोई भी
निर्णय भाजपा को ही लेना है यह उनका आंतरिक मामला है।
एक अन्य सवाल के
जवाब में होसाबेले ने कहा कि गडकरी के भ्रष्टाचार के लिए कोई अलग मानदंड नहीं उनके
मामले की जांच होनी चाहिए। उल्लेखनीय है कि संघ के कार्यकारी मंडल की बैठक के
दूसरे दिन भाजपा के विषयों पर एक चर्चा की जाएगी जिसमें पार्टी के संगठन महामंत्री
रामलाल और सह संगठन मंत्री पार्टी की प्रगति के बारे में अपना प्रतिवेदन देंगे।
संघ के उच्चपदस्थ
सूत्रों समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को संकेत दिए कि गडकरी के दोबारा अध्यक्ष बनाए
जाने के मुद्दे पर जिस तरह से बंटा हुआ है उसको देखते हुए संघ के सर्वेसर्वा मोहन
भागवत ने गडकरी की जिद को छोड़कर दूसरे विकल्प पर चर्चा शुरू की है। संघ सूत्रों की
मानें तो संघ प्रमुख ने दिल्ली प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष डा. हर्षवर्धन का
नाम आगे बढ़ाया है।
भाजपा और संघ पर
करीबी नजर रखने वालों की मानें तो पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की तरफ
से लोकसभा में प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज का नाम आगे बढ़ाया जा रहा है जबकि
संघ का एक धड़ा उत्तर पदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह को दोबारा अध्यक्ष
बनवाना चाहता है। मगर संघ पमुख की तरफ से दोनों ही नामों पर प्रतिरोध किए जाने की
उम्मीद है।
वास्तव में संघ
गडकरी के समय से पार्टी पर बनी अपनी पकड़ को ढीली नहीं पड़ने देना चाहता। संघ के इसी
नीति के चलते वह राजनाथ को अपना समर्थन देने में हिचक रहा है क्योंकि यदि राजनाथ
को वह अगर अध्यक्ष बनवाता है तो वह उनका दूसरा कार्यकाल होगा ऐसे में वह संघ की
कितनी सुनेंगे इस पर संघ को एतबार नहीं है।
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