0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . . 21
झाबुआ पावर नियमानुसार सारे काम कर रही है: मिश्रा
स्वास्थ्य और शैक्षणिक गतिविधियां संतोषजनक
एयरपोर्ट और डिफेंस का क्लीयरेंस मिला
कार्यवाही है महज कागजों पर
झाबुआ पावर के लिए बिनैकी तक ब्राडगेज डालेगा रेल्वे!
प्लांट सिवनी में कार्यालय जबलपुर में!
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। ‘‘देश की मशहूर कंपनी थापर के सहयोगी प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड के मध्य प्रदेश में के सिवनी जिले में लगने वाले पावर प्लांट का काम नियमानुसार हो रहा है। कंपनी द्वारा स्वास्थ्य और शैक्षणिक गतितिविधियों के साथ ही साथ क्षेत्र के विकास का काम संतोषजनक स्तर पर किया जा रहा है। कंपनी ने विमानन विभाग और डिफेंस का क्लीयरेंस भी प्राप्त कर लिया है।‘‘ उक्ताशय की बात झाबुआ पावर के घंसौर स्थित प्रमुख श्री मिश्रा ने आज दूरभाष पर चर्चा के दौरान कहीं।
श्री मिश्रा ने कहा कि झाबुआ पावर की 22 नवंबर की जनसुनवाई का विस्त्रत प्राक्कलन मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल (पीसीबी) की वेब साईट पर है, जिसे देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि कार्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी के तहत जिले के एनजीओ सौपान को काम सौंपा गया है। इसके अलावा स्वास्थ्य परीक्षण और शिक्षा के क्षेत्र में भी ध्यान दिया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि यह सिवनी जिले की सीमा का अंतिम छोर है इसलिए कंपनी ने अपना कार्यालय जिला मुख्यालय सिवनी के बजाए जबलपुर में रखा हुआ है। सिवनी में एक लाईजनिंग अफसर के बतौर एम.के. मिश्रा काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय रेल द्वारा जबलपुर से बिनैकी तक ब्राडगेज डालने का काम युद्ध स्तर पर किया जा रहा है।
गौरतलब है कि झाबुआ पावर लिमिटेड के कोल आधारित पावर प्लांट की जनसुनवाई मंगलवार 22 नवंबर को सिवनी जिले के आदिवासी मुख्यालय घंसौर में रखी गई है। इसके पूर्व पहले चरण के लिए 22 अगस्त 2009 को की गई लोक सुनवाई का विस्त्रत प्राक्कलन (डीपीआर) प्रदूषण नियंत्रण मंडल की वेब साईट पर काफी शोर शराबा होने पर 17 अगस्त को डाला गया था। इस बार 22 नवंबर की लोक सुनवाई का डीपीआर 21 नवंबर तक वेब साईट पर नहीं है। जन सुनवाई का पेज नंबर तीन खोलने पर उसमें 352 नंबर पर झाबुआ पावर का जिकर तो आता है पर हिन्दी और अंग्रेजी के बटन पर क्लिक करने पर पेज केन नॉट बी डिस्पलेड आ जाता है। जिससे साफ जाहिर है कि इस गफलत में पीसीबी भी झाबुआ पावर के साथ कदम से कदम मिलाकर ही चल रहा है।
श्री मिश्रा की स्वीकारोक्ति आश्चर्यजनक है कि उन्हें 1000 फिट उंची चिमनी की रक्षा और एविएशन से क्लियरेंस मिल गया है। गौरतलब है कि सिवनी से महज कुछ एरियल डिस्टेंस पर ही गोंदिया में पायलट प्रशिक्षण केंद्र है। साथ ही जबलपुर में भी विशाल आर्मी बेस है। इन परिस्थितियों में झाबुआ पावर को सहजता से क्लयरेंस मिलने की बात गले नहीं उतर पा रही है।
इस पावर प्लांट के पहले चरण के डीपीआर में साफ उल्लेखित था कि कोल आधारित इस प्लांट की अस्सी फीसदी राख हवा में उड़ेगी और महज बीस फीसदी राख ही बाटम राख होगी। इस डीपीआर में हवा का रूख उसी ओर दर्शाया गया था जिस ओर मध्य प्रदेश की जीवन रेखा नर्मदा नदी पर बरगी बांध बनाया गया है। बरगी बांध में उड़कर जाने वाली रखा न केवल पानी को जहरीला बनाएगी वरन् उसकी तलहटी में सिल्ट जमा कर चंद सालों में ही जल भराव क्षेत्र को तेजी से कम कर देगी। नर्मदा बचाओ आंदोलन के नेता भी इस मामले में संदिग्ध तरीके से मौन बैठे हुए हैं।
डीपीआर में कंपनी ने इस परियोजना को 2013 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा है। वर्तमान में क्षेत्र की स्थिति देखकर यह नहीं लगता है कि कंपनी द्वारा आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र घंसौर में कोई विशेष काम किया हो। यहां सारा का सारा काम संस्कारधानी जबलपुर के प्रभावशाली लोगों के हाथों में हैं। स्थानीय लोगों को इसमें बुरी तरह उपेक्षित ही रखा गया है। कंपनी भले ही स्वास्थ्य और शैक्षणिक सुविधा का ध्यान रखने की बात कह रही हो पर जमीनी हकीकत इससे उलट ही है। क्षेत्र में कंपनी द्वारा एक भी नर्सरी, प्राथमिक, माध्यमिक, हाई या हायर सेकेन्डरी स्कूल या अस्पताल नहीं खोला गया है।
यहां कंपनी पर आदिवासियों की जमीन हड़पने के आरोप भी लगे हैं। बताया जा रहा है कि आदिवासियों की जमीनें तो एक लाख रूपए एकड़ खरीदी गईं और अन्य समृद्ध कास्तकारों की जमीन तीन से दस लाख रूपए एकड़ में खरीदी गई हैं। कितने आदिवासी लोगों को इसमें रोजगार दिया गया है इस मामले में भी कंपनी ने मौन साध रखा है। कंपनी दावा कर रही है कि यह काम जनहित का है, वस्तुतः इसमें बनने वाली बिजली को कंपनी द्वारा बेचा जाकर लाभ कमाया जाएगा। कंपनी ने यह बात कहीं भी साफ नहीं की है कि इसमें बिजली के उत्पादन का कितना प्रतिशत वह सिवनी जिले को देगी।
कंपनी इस मामले में भी मौन साधे हुए है कि प्रदूषण से जन धन की हानी के लिए कंपनी क्या कदम उठाएगी? कंपनी ने इसके लिए सहायता कार्ड और इलाज की जवाबदेही भी नहीं ली गई है। इस क्षेत्र में ग्राम अतरिया जो प्लांट से महज डेढ़ किलोमीटर दूर है, को अपने प्रोजेक्ट में शामिल नहीं किया गया है। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव अतरिया ग्राम पर ही पड़ने की उम्मीद जताई जा रही है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भारत सरकार की छटवीं अनुसूची में घंसौर को अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया गया है। कानून के जानकारों का कहना है कि अधिसूचित क्षेत्रों में खनन या अन्य उद्देश्यों के लिए भी आदिवासियों की जमीनों को न तो खरीदा जा सकता है और न ही अधिग्रहित किया जा सकता है। बताया जाता है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस तरह की एक व्यवस्था दी जा चुकी है।
इतना सब कुछ होने पर भी भाजपा के सांसद के.डी.देशमुख विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, कमल मस्कोले, एवं क्षेत्रीय विधायक जो स्वयं भी आदिवासी समुदाय से हैं श्रीमति शशि ठाकुर, कांग्रेस के क्षेत्रीय सांसद बसोरी सिंह मसराम एवं सिवनी जिले के हितचिंतक माने जाने वाले केवलारी विधायक एवं विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर का मौन किस खास उद्देश्य विशेष की ओर इशारा कर रहा है।
(क्रमशः जारी)