बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 32
परमाणु करार पर होगी संसद में रार
भाजपा को साधने में लगे कांग्रेस के ट्रबल शूटर
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। नोट फॉर वोट मामले का प्रमुख कारक परमाणु करार संधि अब प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह के लिए गले की फांस बनता जा रहा है। परमाणु करार का फंदा मनमोहन के गले में कसता जा रहा है। भारत सरकार के घरेलू न्यूक्लियर लायबिलटी कानून के कारण भारत को अरबों खरबों रूपए के परमाणु व्यापार से अपने आप को दूर रखना पड़ रहा है। उधर दुनिया का चौधरी अमेरिका अब भारत पर दबाव बना रहा है कि वह सीएससी को संसद में पारित कराए और अमल में लाए।
गौरतलब है कि भारत ने सीएससी पर पिछले साल अक्टूबर में दस्तखत किए थे, लेकिन इसे व्यवहार में लाने के लिए भारत को इसे अपनी संसद से पारित करवाना जरूरी होगा। भारत को न्यूक्लियर साजोसामान और ईंधन की सप्लाई पर लगे बैन को न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप की ओर से उठा लेने के बाद भारत में विदेशी कंपनियों को परमाणु रिएक्टर लगाना आसान कर दिया गया। पर दो साल पहले भारत की संसद ने परमाणु बिजली घरों में दुर्घटना के बाद हर्जाना तय करने वाला घरेलू न्यूक्लियर लायबिलिटी कानून पारित किया था, जिसे लेकर अमेरिकी और यूरोपीय कंपनियों ने घोर विरोध किया था। इस वजह से अमेरिकी कंपनियां भारत में परमाणु बिजली घरों में निवेश के लिए तैयार नहीं हो रही हैं। अमेरिका को इस वजह से भारत के अरबों डॉलर के परमाणु बाजार से दूर रहना पड़ सकता है।
अमेरिकी कंपनियों की आपत्तियों को दूर करने के लिए ही भारत सरकार ने परमाणु दायित्व कानून के कुछ नियम ढीले करने की घोषणा सरकार ने की है लेकिन अमेरिकी कंपनियां इससे भी संतुष्ट नहीं हैं। उनकी मांग है कि भारत जल्द से जल्द सीएससी को अनुमोदित कर इसे व्यवहार में लाए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसीलिए अमेरिका के सुप्रीमो बराक ओबामा से शुक्रवार को बाली में हुई मुलाकात में सीएससी को अनुमोदित करने का भरोसा दिया है।
मनमोहन के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि संसद में वह विपक्ष को इसके लिए कैसे राजी करे। पीएमओ में चल रही चर्चाओं के अनुसार नोट फॉर वोट मामले में भाजपा के सांसद भगोरा और फग्गन तथा कुलकर्णी के प्रति सरकार का लचीला रवैया भाजपा नेताओं की सोच बदलने में सहायक साबित होगा। कांग्रेस के ट्रबल शूटर इस जुगाड़ में लग गए हैं कि किसी तरह लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सुषमा स्वराज और राज्य सभा में अरूण जेतली को शीशे में उतार लिया जाए।
अब भारत की संसद अपने लायबिलटी कानून के प्रावधानों के खिलाफ जाने वाले सीएससी का अनुमोदन आसानी से करेगी इसमें संदेह है। इसी वजह से एक साल बाद भी सरकार सीएससी को अनुमोदित करने के लिए संसद में नहीं पेश कर सकी है। विदेशी खासकर अमेरिकी परमाणु कंपनियां चाहती हैं कि भारत जल्द से जल्द सीएससी को अनुमोदित करे ताकि इसे आधार बनाकर ही वह भारत में रिएक्टर लगाने का समझौता कर सके। अमेरिका की दो कंपनियों जीई और वेस्टिंगहाउस को गुजरात और आंध्र प्रदेश में 24 हजार मेगावॉट क्षमता के 16 परमाणु रिएक्टर लगाने की हरी झंडी भारत ने दी है , लेकिन इस पर काम शुरू नहीं हो पाया है। अमेरिका को लग रहा है कि भारत में जिम्मेदारी कानून को लेकर स्थिति जल्द साफ हो तो अमेरिकी कंपनियों को भारत में बीसियों अरब डॉलर के बड़े ठेके हाथ लगेंगे।
(क्रमशः जारी)
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