गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

बेशकीमती शालों का अवैध करोबार चालू आहे!


बेशकीमती शालों का अवैध करोबार चालू आहे!

(लिमटी खरे)

जानवरों के रखवाले और उनके हितों के संरक्षण के लिए न जाने कितने संगठन अस्तित्व में हैं फिर भी जानवरों पर अत्याचार रूकने का नाम नहीं ले रहे हैं। हाड़ कपानें वाली ठण्ड में गर्माहट देने वाला शाल शहतूश का हो, पाशमीना का या फिर चिरू हिरण का, व्यवसाईयों द्वारा इनका शिकार सरेआम किया जाता है। जनसेवकों और लोकसेवकों के पास इस तरह के निषिद्ध शॉल मिलना आम बात है। हद तो तब हुई जब दिल्ली के एक सरकारी एम्पोरियम में शहतूश की तीन शाल जब्त की गईं। दिल्ली एनसीआर में ही इस तरह की दुर्लभ शाल रखना लोगों का प्रिय शगल बना हुआ है।

पुरूष हो या स्त्री, बुजुर्ग हो या जवान अथवा बच्चा हर किसी की ठंड के दिनों में पहली पसंद हुआ करता है शॉल। अपनी पॉकेट के हिसाब से लोग शॉल की किस्म को अपनाते हैं। शॉल यानी कपकपाती ठंड में गरमाहट देने वाला वस्त्र जो हर किसी की पसंद और बजट के माकूल विविध किस्म और रंग में बाजार में आसानी से मिल जाता है। शॉल का जोर इतना है कि इसे फैशन का हिस्सा बनते देर नहीं लगती।

अभिजात्य वर्ग में काश्मीर की पाशमीना की शॉल, शहतूश की शॉल और चिरू की शॉल की मांग बेहद ज्यादा हुआ करती है। मध्यम वर्गीय महिलाओं में कैशमिलॉन की शॉल काफी लोकप्रिय हैं। अब तो मशीन से बनी शॉल भी जमकर धूम मचा रही हैं। दरअसल शॉल के जरिए एक पंथ दो काज हो जाते हैं। एक तो आप कहीं जा रहे हों तो सर्दी से बचाव फिर रात रूकने का मौका अगर आया तो वह चादर या कंबल का काम भी कर देती है।

अस्सी के दशक में युवाओं के पायोनियर बने तत्कालीन वजीरे आज़म राजीव गांधी ने शॉल को नया लुक दिया था। उनके शॉल पहनने के अभिनव अंदाज ने युवाओं को लुभा लिया था। आज अनेक लोग राजीव गांधी के तरह से ही शॉल लपेटे दिख जाते हैं। ऑफ व्हाईट या क्रीम कलर का शॉल लपेटे राजीव गांधी का अलग ही लुक हुआ करता था। लोग भूल जाते हैं कि इतने बड़े नेता अगर शॉल न भी लपेटें तो भी उनका काम चल जाएगा, इसका कारण यह है कि वे सदा ही एयर कंडीशनर के इर्द गिर्द अपने आप को रखते हैं।

दिल्ली में पुलिस ने छापामार कार्यवाही कर पिछले माहों में एक राज्य सरकार के एम्पोरियम से शहतूश की तीन शालें बरादम की थीं। डेढ़ लाख रूपए से अधिक मूल्य के शहतूश के शाल का कारोबार पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया है। एन्टीक चीजों के शौकीन अमीर जादों के लिए इस तरह के प्रतिबंध मायने नहीं रखते हैं।

शहतूश का शॉल तिब्बत के दुर्लभ हिरण प्रजाति के जानवर चिरू के बालों से तैयार किया जाता है। चूंकि चिरू की संख्या में तेजी से गिरावट दर्ज की गई है इसलिए विश्व प्रकृति निधि को एक अभियान शुरू कर शहतूश की शॉल को गैरकानूनी करार दिलाना ही पड़ा। यहां उल्लेखनीय है कि पिछली सदी की शुरूआत में तिब्बत में एक करोड़ से भी ज्यादा तादाद में चिरू पाए जाते थे।

कालांतर में शहतूश के बालों के व्यवसायिक उपयोग के चलते चिरू पर शिकारियों की नजर तिरछी हो गई। ज्यादा मुनाफे के चलते चिरू को एक एक कर मौत के घाट उतारा जाने लगा। अब इनकी तादाद पचास हजार से भी कम बची है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि हर साल शहतूश के शॉल के लिए पच्चीस हजार से ज्यादा हिरणों को मौत के घाट उतार दिया गया। आज आलम यह है कि इन हिरणों को विलुप्त प्रजाति के हिरणों में शामिल करना पड़ा है। शहतूश के शॉल को प्रतिबंधित श्रेणी में अवश्य ही ला दिया गया है, किन्तु सही मायनों में प्रतिबंध लग नहीं पाया है।

काफी पहले हमारे पूर्वज शहतूश की शॉल का उपयोग गर्म परिधान के तौर पर खुले तौर पर किया करते थे। कालांतर में पाश्चात्य फैशन के पुजारियों ने इसे अंतर्राष्ट्रीय व्यवासाय का एक साधन बना दिया, और उसी के उपरांत इस नायाब ऊन का दोहन बेहद तेजी से होने लगा। कहा जाता है कि चिरू के बालों से निर्मित यह बेशकीमती ऊन तिब्बत से बरास्ता नेपाल, भारत में अपनी आमद देता है।

उत्तर भारत में जम्मू और काश्मीर के श्रीनगर और आसपास के क्षेत्रों में शहतूश की शॉल बनाने वाले कुशल कारीगर अपनी सधी हुई उंगलियों के जरिए इस ऊन के धागे को शॉल की शक्ल देकर उसके उपर अपना हुनर उकेरते हैं। फिर ये नायाब और बेशकीमती शॉल भारत की राजनैतिक राजधानी दिल्ली और व्यवसायिक तथा आर्थिक राजधानी मुंबई के जरिए अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुंचती है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस ऊन की इतनी मांग है कि एक किलोग्राम ऊन हजारों डालर में आसानी से बिक जाता है। विदेशी मुद्रा और मुनाफे की लालच में चिरू को मारकर इस कारोबार को चोरी छिपे तेजी से किया जा रहा है।

भारत में चिय को लुप्तप्राय जीव की श्रेणी में लाए जाने के बाद वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत देश भर में शहतूश की शॉल प्रतिबंधित हो चुकी हैं। विडम्बना यह है कि इसके बावजूद भी जम्मू और काश्मीर में इसको बनाने का काम तेजी से किया जाता रहा है। बाद में केंद्र सरकार के भारी भरकम दबाव के चलते जम्मू और काश्मीर में भी इसका निर्माण प्रतिबंधित कर दिया गया है।

जम्मू और काश्मीर में इसके प्रतिबंधित होते ही बीस हजार से ज्यादा परिवारों के सामने रोजी रोटी का संकट आन खड़ा हुआ। यही कारण था कि शहतूश की शॉल पर रोक लगाने के लिए जम्मू और काश्मीर की सरकार ने व्यवहारिक तकलीफें गिनाना आरंभ कर दिया। राज्य सरकार ने एक दलील भी दी कि शहतूश की शॉल के लिए चिरू प्रजाति के हिरण को मारा नहीं जाता वरन् उसके झड़े हुए या झाड़ियों में टूटकर अटके बालों से इसे तैयार किया जाता है।

उधर जानकारों के गले सरकार का तर्क नहीं उतरा। वैसे शॉल की कीमत चिरू के आकार पर तय होती है। साथ ही साथ इसे बनाने वाले की मेहनत भी इसका मूल्य तय करती है। कीमत और मेहनत ही तय करती है कि बनी हुई शॉल कितने बड़े चिरू की है। श्रीनगर और इसके आसपास तैयार हुई शॉल की कीमत पच्चीस हजार से पांच लाख रूपए तक होती है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी 2007 में एक फैसला सुनाते हुए जम्मू काश्मीर सरकार की दलील को सिरे से खारिज कर दिया था जिसमें कहा गया था कि चिरू के शरीर से गिरे बालों से यह शॉल तैयार होती है।

दरअसल हाई प्रोफाईल लोगों और धनाड्य वर्ग के लोगों के शौक के चलते इसका कारोबार दबे छुपे चल ही रहा है। कितने आश्चर्य की बात है कि दिल्ली में केंद्र और दिल्ली सरकार की नाक के नीचे एक सरकारी एम्पोरियम में शहतूश की तीन शॉल बरामद की गईं। इससे साफ जाहिर होता है कि शहतूश की शॉल को प्रतिबंधित किए जाने के सरकारी दावे कितने खोखले हैं।

दस जनपथ और सात रेसकोर्स के बीच खुद चुकी है गहरी खाई


बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 7

दस जनपथ और सात रेसकोर्स के बीच खुद चुकी है गहरी खाई

अंटोनी को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाने की तैयारी

मन की मुक्ति का मार्ग खोज रहे हैं कांग्रेसी

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस अब डॉ.मनमोहन सिंह से मुक्ति के हर संभव प्रयास खोजने में लगी हुई है। भारत गणराज्य के सबसे ताकतवर संवैधानिक पद प्रधानमंत्री के आवास (7, रेसकोर्स रोड) और सत्ता एवं शक्ति के शीर्ष केंद्र सोनिया गांधी के सरकारी आवास (दस जनपथ) के बीच खाई बुरी तरह गहरा गई है। कांग्रेस ने कोर कमेटी कार्डिनेशन भी बिठा दिया है।

दस जनपथ के सूत्रों का कहना है कि सोनिया गांधी चाह रहीं हैं कि जितनी जल्दी हो सके, मनमोहन सिंह से छुटकारा मिल जाए। सूत्रों ने कहा कि सोनिया के रणनीतिकारों ने उन्हें कहा है कि वे संत छवि वाले रक्षा मंत्री ए.के.अंटोनी को अंतरिम प्रधानमंत्री बना दिया जाए।

सोनिया के करीबी सूत्रों का कहना है कि मनमोहन के साथ ही साथ नवकामराज योजना के तहत भ्रष्ट दामन वाले मंत्रियों की बिदाई भी लगे हाथों कर दी जाए। कांग्रेस के अंदरखाने में मन (प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह) से मुक्ति के प्रयासों को खोजा जा रहा है। रणनीतिकारों का मानना है कि मनमोहन सिंह जो अब भ्रष्टाचार के ईमानदार संरक्षक बन चुके हैं की दागदार छवि के सहारे उत्तर प्रदेश में 2012 की वेतरणी पार करना बेहद ही दुष्कर कार्य होगा।

रथ यात्रा को मिले रिस्पांस से निराश हैं आड़वाणी


उत्तराधिकारी हेतु रथ यात्रा . . . 2

रथ यात्रा को मिले रिस्पांस से निराश हैं आड़वाणी

रथ यात्रा का मुद्दा बदलने से खफा हैं आड़वाणी

कैश फॉर वोट मामले के लिए प्रस्तावित थी आड़वाणी की यात्रा

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। उमर दराज लाल कृष्ण आड़वाणी अपनी रथ यात्रा को मिलने वाले रिस्पांस से बुरी तरह निराश नजर आ रहे हैं। अपनी राजनैतिक विरासत पुत्री प्रतिभा को सौंपने के उनके मंसूबे पर भाजपाई ही पानी फेरते नजर आ रहे हैं। आड़वाणी की रथ यात्रा में प्रस्तावित स्थलों पर मुट्ठी भर लोगों का जमावड़ा और पुअर मीडिया कव्हरेज उनकी परेशानी का सबब बनता जा रहा है।

83 बसंत देख चुके एल.के.आड़वाणी के करीबी सूत्रों का कहना है कि वे अब अगला आम चुनाव शायद ही लड़ें। वे अपने उत्तराधिकारी के तौर पर अपनी पुत्री प्रतिभा को लॉच करना चाह रहे हैं। यही कारण है कि उनकी रथ यात्रा में प्रतिभा उनके साथ चल रही हैं। उनके पुत्र जयंत के बारे में भी विचार हुआ किन्तु बाद में प्रतिभा के नाम पर ही सहमति बनी। आड़वाणी को सबसे अधिक निराशा इस बात से हुई जब मध्य प्रदेश के सतना में उनकी यात्रा के कव्हरेज के लिए सतना में पत्रकारों को लिफाफे पकड़ाए गए। बाद में रथ यात्रा को पुष्पक विमान में तब्दील कर भोपाल से छिंदवाड़ा तक का सफर हेलीकाप्टर से तय करवाया गया।

आड़वाणी जुंडाली में चल रही चर्चाओं के अनुसार वे चाहते थे कि यह रथ यात्रा कैश फॉर वोट मामले में केंद्रित रहे। काले धन का मामला तो पहले ही इक्कीसवीं सदी के स्वयंभू योग गुरू बाबा रामदेव ले उड़े हैं। भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं के सुझाव पर आड़वाणी ने कैश फॉर वोट का मामला अपने एजेंडे से बाहर कर दिया। इसके बाद आड़वाणी ने इसे घपले घोटाले और भ्रष्टाचार पर केंद्रित करने का मन बना लिया।

आड़वाणी के करीबियों का कहना है कि भाजपा के इन नेताओं ने उन्हें बताया कि जब वे सुधींद्र कुलकर्णी से मिलने जेल गए थे। जेल में कुलकर्णी के तेवर देखकर भयाक्रांत भाजपाई उल्टे पैर वापस लौटे और कोर कमेटी की बैठक में तय किया गया कि भाजपा के कथित लौह पुरूष आड़वाणी को किसी तरह इसके लिए तैयार किया जाए कि वे कैश फॉर वोट मामले पर अपना ध्यान केंद्रित न करें। भाजपाईयों को डर था कि कहीं रथ यात्रा के बीच में ही कुलकर्णी कोई बयान देकर यात्रा में आड़वाणी की किरकिरी न करवा दें।

पब्लिसिटी खा गई अण्णा के सरपंच को


पब्लिसिटी खा गई अण्णा के सरपंच को

राहुल ने पहली बार दिखाई परिपक्वता

ग्राम सभा के माध्यम से टुड़वाना चाह रहे थे मौन वृत

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस और केंद्र सरकार को हिलाने वाले समाजसेवी अण्णा हजारे के गांव रालेगण सिद्धि के सरपंच और ग्रामीणों को कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी से मिले बिना ही दिल्ली से मायूस होकर लौटना पड़ा। राहुल से मुलाकात तय होने के बाद भी ग्रामीणों को उनसे न मिल पाने के पीछे ग्रामीणों का अतिउत्साह ही जवाबदार माना जा रहा है। उधर अपमानित हुए ग्रामीणों से अण्णा भी खफा बताए जा रहे हैं।

राहुल गांधी के करीबी सूत्रों का कहना है कि रालेगण सिद्धि के ग्रामीणों को सरपंच सहित राहुल गांधी से मिलवाने का जिम्मा संभाल था कांग्रेस के सांसद पी.टी.थॉमस ने। थॉमस ने राहुल की नजरों में अपने नंबर बढ़वाने के लिए रालेगण सिद्धि के लोगों को दिल्ली बुला भेजा। दिल्ली आने के पहले ही अति उत्साह में सरपंच सुरेश पठारे और उनके साथियों ने यह बात सार्वजनिक कर दी। फिर क्या था समूचा मीडिया इस मामले में चढ़ दौड़ा।

राजनैतिक गलियारों में यह बात भी उछल रही है कि अण्णा रालेगण सिद्धि में मौन वृत पर हैं, इसके बावजूद अगर वहां के सरपंच अपने साथियों के साथ दिल्ली कूच करते हैं तो निश्चित तौर पर यह बात उनकी जानकारी में लाई गई होगी। कांग्रेस पर प्रहार करने वाले अण्णा हजारे ने आखिर सरपंच पठारे और अन्य साथियों को राहुल गांधी से मिलने जाने पर अपनी सहमति कैसे दे दी? राजनैतिक वीथिकाओं में इस मुलाकात प्रहसन की तह में जाने का प्रयास किया जा रहा है।

उल्लेखनीय होगा कि टीम अण्णा द्वारा हाल ही में हरियाणा के हिसार उपचुनाव में कांग्रेस के खिलाफ खुला मोर्चा खोला था। इसके साथ ही साथ कांग्रेस महासचिव और राहुल गांधी के अघोषित राजनैतिक गुरू राजा दिग्विजय सिंह भी अण्णा हजारे के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। इन परिस्थितियों में अण्णा के गांव के सरपंच का राहुल गांधी से जाकर मिलना और राहुल गांधी द्वारा मिलने से इंकार करना किसी षणयंत्र का ताना बाना ही माना जा रहा है।

कहा तो यहां तक जा रहा है कि चूंकि अण्णा हजारे अपनी ग्राम सभा को सर्वोपरि मानते हैं इसीलिए रालेगण सिद्धि के सरपंच और अन्य साथियों को दिल्ली बुला भेजा था। राहुल गांधी से मिलकर अभिभूत हुए ग्रामीणों के माध्यम से कांग्रेस के रणनीतिकार ग्रामसभा को अस्त्र बनाकर आगे खेल खेलते। किस्मत से बाजी पलट गई और अति उत्साह और मीडिया के चलते पठारे एण्ड कंपनी दिल्ली से बेरंग ही वापस लौट गई।

1600 शहरों में है आईडिया की थ्री जी सुविधा


एक आईडिया जो बदल दे आपकी दुनिया . . .  4
1600 शहरों में है आईडिया की थ्री जी सुविधा

नेटवर्क प्राब्लम के चलते घिसटकर चलते हैं आईडिया के नेट

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। भारत की सबसे बड़ी मोबाइल सेवा प्रदाता कम्पनी आइडिया सेल्युलर ने बुधवार को जम्मू एवं कश्मीर में अपनी 3जी सेवा पेश की। सुरक्षा की दृष्टि से जम्मू काश्मीर में प्री पेड मोबाईल सेवा प्रतिबंधित रखी गई है। आईडिया ने यह साफ नहीं किया है कि थ्री जी इंटरनेट सुविधा पोस्टपेड होगी या प्री पेड।

प्राप्त जानकारी के अनुसार निजी क्षेत्र की मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनी आदित्य बिड़ला समूह की आईडिया सेल्यूलर कम्पनी आरंभ में जम्मू काश्मीर की घाटी क्षेत्र के श्रीनगर में और जम्मू क्षेत्र के उधमपुर में 3जी सेवा शुरू करेगी। बाद में इसका दूसरे स्थानों में भी विस्तार का प्रस्ताव है। इस सेवा के तहत उपभोक्ताओं को तेज गति इंटरनेट, विडियो कानफ्रेंसिंग, मोबाइल टीवी और आइडियामॉल एप्लीकेशन स्टोर सेवा का लाभ उठाने का दावा किया जा रहा है।

आरोपित है कि देश भर में जिन स्थानों पर आईडिया ने थ्री जी सेवा लॉच की है, वहां नेटवर्क की समस्या से दो चार होने के कारण उपभोक्ताओं को धीमी गति का इंटरनेट या बार बार नेट डिस्कनेक्ट होने की समस्या से दो चार होना पड़ रहा है। अनेक उपभोक्ताओं ने आईडिया के मंहगे नेट सेटर लेने के बाद इसकी घटिया सेवाओं से आज़िज आकर अपना कनेक्शन ही बदल दिया है। आईडिया नेट सेटर जीपीआरएस बेस्ड भी है किन्तु इसकी सबसे बड़ी खामी यह है कि उपभोक्ता इस नेट सेटर में आईडिया की सिम के अलावा और किसी की सिम का उपयोग नहीं कर सकता है, क्योंकि यह डिवाईस लाक होती है। आईडिया के जम्मू काश्मीर में थ्री जी सुविधा की इस अभिनव पेशकश के साथ आइडिया की 3जी सेवा देश के 20 सर्किलों में 1,600 शहरों तक पहुंच गई।
(क्रमशः जारी)