मंगलवार, 29 सितंबर 2009

सीख देने के पहले सुविधाएं तो उपलब्ध कराएं गृह मंत्री

(लिमटी खरे)

केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने कुछ दिनों पहले देश की व्यवसायिक राजधानी दिल्ली के रहवासियों को सलके से रहने की सीख दी है। चिदम्बरम का कहना है कि दिल्लीवासियों को अब अंतर्राष्ट्रीय शहर के नागरिकों के मानिंद व्यवहार करना चाहिए। इसके पहले भी दिल्ली की मुख्यमंत्री सहित अनेक राजनेताओं ने दिल्ली वासियों को अनुशासित सभ्य आचरण करने की नसीहत दी जा चुकी है।
सवाल यह उठता है कि सिर्फ सीख देने भर से क्या अंतर्राष्ट्रीय स्तर का जीवन यापन सुलभ हो सकता है। निश्चित तौर पर नहीं। जब दिल्ली को वल्र्ड क्लास सिटी बनाने की बात आती है, राजनेता बड़ी ही गर्मजोशी से इसे अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप शहर बनाने की बात कहते हैं। कालांतर में उनकी गर्मजोशी की हवा निकल जाती है, और फिर बचा रहता है, दिल्ली का वही पुराना ढर्रा।
यह सच है कि दिनोंदिन आबादी के बोझ से दबी रहने वाली दिल्ली में लोगों में सिविक सेंस का अभाव साफ दिखाई पड़ता है। राजनेता इसकी तह में जाने के बजाए सारा का सारा दोषारोपण दिल्ली के रहवासियों पर करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री करने से नहीं चूकते हैं।
दिल्ली देश की राजनैतिक राजधानी है, अत: यहां रोजाना हजारों लोगों का आना जाना स्वाभाविक है। इसके अलावा बढ़ती बेरोजगारी में दिल्ली में जाकर रोजगार खोजना हर आम भारतीय का पहला सपना होता है। यही कारण है कि संपूर्ण भारत के कोने कोने से लोग यहां आकर रोजी रोजगार की तलाश करते हैं।
कानून अपनी जगह बहुत सख्त और लचीला भी है। मुश्किल तो तब आती है जब इसे अमली जामा पहनाने वाले अपने कर्तव्यों से मुंह फेर लेते हैं। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब रेहड़ियों पर खुली खा़द्य सामग्री बेचने पर प्रतिबंध लगाया गया था, आज भी हालात यह है कि दिल्ली के रहवासी प्रदूषित खुला हुआ खा़द्य पदार्थ खाने पर मजबूर हैं।
इसके अलावा दिल्ली में किराएदारों का रिकार्ड पुलिस के पास होना चाहिए था। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि आज दिल्ली में सत्तर फीसदी से भी अधिक किराएदारों के बारे में पुलिस को जानकारी ही नहीं है। वैसे भी दिल्ली आतंकवादियों के लिए ``साफ्ट टारगेट`` बनी हुई है।
अगले साल होने वाले राष्ट्रमण्डल खेलों के महज दस माह पूर्व ही केंद्रीय गृह मंत्री चिदम्बरम को यह याद आया कि दुनिया भर से आने वाले खिलाड़ियों और दर्शकों के सामने देश की राजनैतिक राजधानी का कौन सा स्वरूप प्रस्तुत करने जा रही है केंद्र सरकार। अंततोगत्वा उन्होंने इस बारे में एक अपील जारी कर दिल्ली वासियों को चेता ही दिया।
हमारे सामने चीन के ओलंपिक और जर्मनी के विश्व कप फुटबाल के उदहारण मौजूद हैं, जिनके आयोजन के कई साल पहले ही वहां की सरकारों ने इनके आयोजन के शहरों में नागरिकों के व्यवहारों को मानकों के अनुरूप बनाने की कवायद आरंभ कर दी थी।
विडम्बना ही कही जाएगी कि अभी कामन वेल्थ गेम्स के लिए दिल्ली के स्टेडियम और खिलाड़ियों के रूकने के स्थान ही तैयार नहीं हैं तो फिर नागरिकों के व्यवहारों के बारे में क्या कहा जाएर्षोर्षो खुद दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित सार्वजनिक रूप से इस बात को स्वीकार चुकीं हैं कि कामन वेल्थ गेम्स की तैयारियों को लेकर वे काफी नर्वस हैं।
समाजशास्त्र में औद्योगिकरण और नगरीकरण को एक दूसरे का पूरक माना जाता है। दिल्ली चूंकि देश की राजधानी है अत: यहां बाहर से आकर बसने वालों की तादाद अन्य महानगरों की तुलना में काफी अधिक है। दिल्ली के इंफ्रास्टकचर को सुधारने की बजाए अब तक नेताओं ने अपनी सेहत को ही सुधारा है।
चिदम्बरम की इस बात से नागरिकों को सीख लेकर अपने आचरण में आवश्यक सुधार लाना होगा, ताकि देश की छवि विदेशों में अच्छी ही जाए। गृह मंत्री को भी चाहिए कि वे प्रधानमंत्री से बात कर दिल्ली को वल्र्ड क्लास सिटी बनाने के सालों पुराने सरकारों के वादे को अमली जामा पहनाने के लिए समय सीमा तय करने का आग्रह करें।
बुनियादी सुविधाओं को तरसती दिल्ली में न साफ पानी ही पीने को मुहैया है और न ही सीवर सिस्टम। जरा सी बरसात हो जाने पर सड़कें तालाब में तब्दील हो जाती हैं। यातायात व्यवस्था का आलम यह है कि यातायात सप्ताह के दौरान ट्रेफिक पुलिस पूरी मुस्तेदी के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करती है, फिर व्यवस्था वहीं वापस लौट जाती है।
सच है कि देर आयद दुरूस्त आयद की तर्ज पर गृह मंत्री ने कुछ अच्छा करने का फैसला लिया है। सुधार की शुरूआत पुलिस, बस चालकों, परिचालकों, यातायात पुलिस, आटो, टेक्सी चालकों और रिक्शा चालकों से ही की जानी चाहिए। रेल्वे स्टेशन और बस स्टेंड के इर्द गिर्द के दुकानदारों को प्रशिक्षित करना आवश्यक होगा।
इस सबके लिए जरूरी है सरकार और आम जनता के बीच खुशनुमा वातावरण में संवाद स्थापित करना होगा, जिसका अभाव साफ साफ दिखाई पड़ रहा है। पी.चिदंबरम को सोचना होगा कि उनके हाथ में कोई जादू की छड़ी नहीं है जिसे घुमाकर वे दिल्लीवासियों को सभ्य बना देंगे। इसके लिए यथार्थ के धरातल पर उतरकर कड़ाई से ठोस कार्ययोजना को अमली जामा पहनाना होगा वरना आठ माह बीतने में समय नहीं लगेगा।