मंगलवार, 4 मई 2010

नक्सलियों को जनमत संग्रह की चुनौती

नक्सलियों को जनमत संग्रह की चुनौती

छत्तीसगढ़ का आम आदिवासी नक्सल हिंसा के दंष से
 
 मुक्ति पाकर विकास की मुख्यधारा से जुड़ना चाहता है

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने लोकतंत्र , विकास और आतंकवाद विषय पर आयोजित चर्चा में लोकतंत्र की रक्षा के लिए नक्सलवाद को समाप्त करने पर जोर दिया

नई दिल्ली 4 मई छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने नक्सलियों तथा उनकी विचारधारा के समर्थकों को छत्तीसगढ़ में जनमत संग्रह की चुनौती दी है । नई दिल्ली में लोकतंत्र , विकास और आतंकवाद विषय पर आयोजित चर्चा में मुख्यमंत्री ने कहा कि चुनाव आयोग जैसी देष की किसी भी निष्पक्ष संस्था से पूरे राज्य में इस विषय पर जनमत संग्रह कराया जाये की राज्य की जनता नक्सलियों की विचारधारा के पक्ष में है या लोकतांत्रिक प्रक्रिया से राज्य के विकास के पक्ष में । उन्होंने कहा कि इससे देष के महानगरों में अनर्गल प्रलाप करने वाले तथाकथित बुद्विजीवियों का भ्रम दूर हो जायेगा । उन्होंने कहा कि नक्सलियों का मुख्य एजेंडा देष के षासन तंत्र पर कब्जा कर अपनी विचारधारा का षासन चलाना है और छत्तीसगढ़ के लोग उसके इस प्रयास में सबसे बड़ी बाधा बनकर खड़े है । चर्चा में केन्द्रीय भारी उद्योग विभाग के मंत्री श्री विलासराव देषमुख , झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री श्री बाबूलाल मंराडी ,  मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो सदस्य तथा सासंद श्री सीताराम येचुरी ने भी अपने विचार व्यक्त किए ।
 
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने जोर देकर कहा कि देष में लोकतंत्र की रक्षा के लिए नक्सली विचारधारा को पराजित करना जरूरी है । उन्होंने कहा कि लाषों को गिनकर नक्सल समस्या की गंभीरता को नही समझा जा सकता है । यह एक ऐसी लड़ाई है जिसे जीतना देष के लिए जरूरी है । उन्होंने कहा कि आजादी के बाद भारत में काफी जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों ने भी आदिवासी अंचलों में विकास को यह कहकर रोककर रखा कि इससे आदिवासियों की मूल संस्कृति पर असर पड़ेगा। इसीलिए उन्होंने आदिवासियों के निवास क्षेत्रों में सड़क, बिजली जैसी जरूरी अधोसंरचना भी नहीं बनने दिया। विदेशी पर्यटकों को इन इलाकों में घुमाने और उनसे यात्रा वृतांत लिखवाने का फैशन चलाया गया। जो किसी न किसी रूप में आज भी कथित एनजीओ, मानव अधिकार संगठन का एक सगल है। मुझे आश्चर्य होता है कि उनमें से ही कुछ लोग अब यह सवाल करते हैं कि बस्तर में सड़क क्यों नहीं बने। अबूझमाड़ अबूझ कैसे रह गया। कभी-कभी तो मुझे लगता है कि एक दीर्घ कालीन षड़यंत्र के तहत बरसों पहले यह सब किया जाता रहा था, ताकि इन इलाकों में नक्सलवाद की तरह का आतंकवाद और अलगाववाद पनप सके।  उन्होंने सवाल उठाया कि एक कसाब, एक अफजल गुरू के खिलाफ जितना आक्रोश, जितना गुस्सा भारतवासियों के दिल में है, उतना गुस्सा नक्सलवादियों के लिए क्यों नहीं होना चाहिए। भोले-भाले वनवासियांे के खून की कीमत मुम्बई, दिल्ली में रहने वाले किसी व्यक्ति के खून से भला कम कैसे हो सकती है? उन्होंने कहा कि मैं भारत सहित दुनिया के मीडिया से यह सवाल करना चाहता हूं कि वे नक्सलवादियों और उनके शहरी समर्थकांे को बेनकाब करने के लिए सामने क्यों नही आते? हमारे संविधान में आम आदमी को न्याय दिलाने और उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए जो प्रावधान किए हैं, उसका फायदा तथाकथित मानव अधिकार समर्थक नक्सलियों के हित में करें और यह मीडिया की नजर से बचाकर कैसे किया जाता रहा।
  
उन्होंने कहा कि लोग अपने मन से यह बात निकाल दें कि जहां पिछड़ापन है, वहां नक्सलवाद है। वास्तव में  नक्सलवाद ही देश के बहुत बड़े हिस्से में पिछड़ेपन का कारण है। नक्सलवाद का जो रूप हमने देखा है, उसमें गरीबों की बेहतरी को लेकर कोई चिंता नहीं है। उन्होंने सबसे ज्यादा नुकसान अगर किसी को पहुंचाया है तो वह जंगलों से घिरे गांवों में रहने वाली वह आबादी है, जिसकी मूलभूत आवश्यकताएं पूरा करने के लिए सरकारें तो अपने स्तर पर प्रयास कर रही हैं, लेकिन नक्सलवादी विकास कार्यों का लाभ ग्रामीणों, गरीबों, किसानों, आदिवासियों, वनवासियों तक पहुंचने ही नहीं देना चाहते। नक्सलवादी कभी नहीं चाहते कि ऐसे दूरस्थ इलाकों के लोगों को सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, राशन जैसी बेहद जरूरी सुविधाओं का लाभ भी मिले। नक्सलवादी, लोगों को इसलिए शिक्षित, जागरूक और समृद्ध नहीं होने देना चाहते, जिससे कि वे उनके हाथों से निकल जाएं। नक्सली ग्रामीणों का पिछड़ापन बरकरार रखते हुए उनका मानसिक और शारीरिक शोषण करते रहना चाहते हैं ताकि उनकी दुकानदारी चलती रहे।
 
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमने सरगुजा-बस्तर जैसे सघन वन क्षेत्रों और नक्सली प्रभावित अंचलों में सघन दौरा किया। हमने यह पाया कि सिर्फ प्रचलित व्यवस्था से आदिवासी अंचल में विकास की गति नहीं बढ़ाई जा सकती। इसलिए नए सिरे से विचार कर हमने बस्तर एवं दक्षिण क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण, सरगुजा एवं उत्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण तथा अनुसूचित जाति विकास प्राधिकरण का गठन किया। हमने यहां स्थानीय जरूरतों और मांगों के आधार पर तत्काल निर्णय लेने की व्यवस्था की। हर साल स्वतंत्र रूप से बजट दिया जिसके परिणामस्वरूप लोगों को सरकार की कार्यप्रणाली पर विश्वास हुआ। उनकी समस्याएं तुरंत दूर होने से स्थानीय जनप्रतिनिधियों की बैठकों में भागीदारी बढ़ी और धीरे-धीरे करीब सैकड़ों करोड़ रूपए के कार्य इन क्षेत्रों में करा दिए गए। इसी प्रकार चाहे सस्ता नमक देना हो, सस्ता चावल देना हो, निःशुल्क चरण पादुकाएं देना हो, बच्चों को शिक्षा के लिए नई आश्रम शाला खोलना हो। नई-नई योजनाएं बनाकर ग्रामीण जनता के घर जाकर साधन-सुविधाएं मुहैया कराने की कारगर रणनीति और योजनाएं लागू की गई। ऐसे अनेक उपाय किए गए, जिससे कि स्थानीय आबादी को सरकार की उपस्थिति का बोध हो और उन्हें जल्दी से जल्दी राहत मिले। वे स्वयं और हमारी सरकार के अनेक मंत्री तथा अधिकारी ऐसे-ऐसे दुर्गम अंचलों में पहुंचे जहां पहले कोई सरकारी आदमी पहुंचा ही नहीं था।
 
उन्होंने कहा कि वे गर्व के साथ यह कहना चाहता हैं कि  इन प्रयासों का अच्छा असर हुआ। इसके साथ ही हमने नक्सलवादी, वामपंथी हिंसक तत्वों को साफ संदेश दिया कि यदि वे हिंसा का रास्ता छोड़ना चाहते हैं तो हमारी नई पुनर्वास नीति उन्हें मदद करेगी। और अगर वे हिंसा का रास्ता नहीं छोड़ेंगे तो हमारी सरकार उन्हें मुंह तोड़ जबाव देने का रास्ता अपनाएगी। आजादी के 60 सालों में नक्सलवादियों को पहली बार किसी सरकार ने ऐसा दो टूक जवाब दिया था। इससे ग्रामीण जन-जीवन में पैदा हुए विश्वास ने अपना चमत्कार दिखाना चालू कर दिया।
 
मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ के सर्वश्रेष्ठ पर्यटन स्थल, प्राकृतिक संसाधन, छत्तीसगढ की उत्कृष्ट संस्कृति इन्हीं वनवासी अंचलों में है, और सदियों से विकास की बाट जोह रहे हैं लेकिन नक्सलवादियों की बारूदी सुरंगों ने इनका रास्ता रोक रखा है। नक्सलियों की काली छाया से मुक्त होने पर यह अंचल देश ही नहीं, दुनिया में अपनी प्राकृतिक सुन्दरता और संसाधनों के लिए जाना जाएगा। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में न सिर्फ विकास की ललक जाग चुकी है, बल्कि जागरूकता की मशाल भी जल चुकी है। इस वीर भूमि से नक्सलियों के पैर उखड़ने की शुरूआत भी हो चुकी है। अब हम उस दिन के लिए तैयारी कर रहे हैं, जब छत्तीसगढ़ नक्सल मुक्त राज्य कहलाएगा। देर से ही सही केन्द्र सरकार भी इस मसले की गंभीरता को समझने लगी है। हमने अनेक बार यह सुझाव दिया है कि केन्द्र की अगुवाई में प्रभावित राज्यों के लिए एक समन्वित रणनीति और कार्य योजना बनाकर ही नक्सल समस्या से ही निबटा जा सकता है। केन्द्र सरकार के हाल के संकेतों से लग रहा है कि अब नक्सली मामले में केन्द्र की दुविधा की स्थिति खत्म हो रही है।

मुश्किल में कमल नाथ

मुश्किल में कमल नाथ

संसदीय समिति ने किया भूतल परिवहन को कटघरे में खडा
 
ठेकेदार अधिकारियों की मिली भगत से लग रहा चूना
 
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 04 मई। एक तरफ वजीरे आजम 22 मई को अपने दूसरे कार्यकाल का एक साल पूरा होने पर सभी मंत्रालयों के रिपोर्ट कार्ड पेश करने की तैयारियां कर रहा है, वहीं दूसरी एक संसद की एक स्थायी समिति ने कमल नाथ के भूतल परिवहन मंत्रालय में चल रही गडबडियों पर गहरी नारजगी जता दी है, जिससे कमल नाथ की पेशानी पर पसीने की बूंदे उभर आईं हैं। सडक परियोजनाओं में होने वाली देरी को लेकर संसद की एक समिति ने भूतल परिवहन मंत्रालय और एनएचएआई की जमकर खिचाई की है।
 
सांसद सीताराम येचुरी की अध्यक्षता वाली परिवहन, संस्कृति और पर्यटन संबंधी समिति ने साफ कहा है कि ठेकेदारों को अधिक मुनाफा देने के लिए परियोजनाओं में जानबूझकर विलंब किया जाता है। इसके पीछे भ्रष्ट नौकरशाहों, दागी ठेकेदारों और दलालों का एक बडा रेकेट है। मंत्रालय के सचिव ने स्वयं ही इस बात को समिति के समक्ष इस काकस का होना स्वीकार किया है। समिति ने अपने प्रतिवेदन में कहा है कि विलंब के चलते इन परियोजनाओं की लागत स्वयंमेव ही बढ जाती है। मूल निविदा और बढी हुई लागत के अंतर को नौकरशाह, दलाल और ठेकेदार आपस में बांट लिया करते हैं।
 
भूतल परिवहन मंत्रालय से समिति ने अपेक्षा भी व्यक्त की है कि इस मकडजाल को तोडने के लिए मंत्रालय को प्रभावी कदम सुनिश्चित करना आवश्यक है। इस समिति ने आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे भूतल परिवहन मंत्रालय की नीयत पर भी प्रश्नचिन्ह लगाते हुए कहा है कि लेटलतीफी का शिकार हुईं अनेक परियोजनाओं में महज एक ही ठेकेदार को काली सूची में डाला गया है। समिति ने भूतल परिवहन मंत्रालय को मशविरा देते हुए कहा है कि मंत्रालय को चाहिए कि स्तरहीन खराब प्रदर्शन करने वाले ठेकादार या कंपनियों को सूचीबद्ध कर उनके खिलाफ कठोरतम कार्यवाही की जानी चाहिए।
 
समिति ने यह भी सिफारिश की है कि किसी भी परियोजना का ठेका तब दिया जाना चाहिए जब भूमि अधिग्रहण, पर्यावरण मंजूरी के साथ ही साथ अन्य समस्त औपचारिकताएं पूरी कर ली जाएं। समिति ने भूमि अधिग्रहण के मामले में एनएचएआई के सुस्त रवैए पर भी गहरी नाराजगी व्यक्त की है। समिति का मानना है कि एनएचएआई द्वारा भी भूमि अधिग्रहण के मामले में निर्धारित गाईड लाईन का पालन नहीं किया जा रहा है।
 
गौरतलब है कि केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ को एक कुशल प्रशासक के तौर पर देखा जाता रहा है। कमल नाथ के पास चाहे वन एवं पर्यावरण मंत्रालय रहा हो, वस्त्र या वाणिज्य और उद्योग, कमल नाथ ने नौकरशाही को कभी अपने उपर हावी नहीं होने दिया है। यह पहला मौका होगा जबकि नौकरशाही उनके मंत्रालय में पूरी तरह मनमानी पर उतारू है। एक सर्वेक्षण में भी कमल नाथ को उनके सचिवों के दबाव में काम करने वाला मंत्री बताया गया था। संभवतः इस बार उनका कद कम करके भूतल परिवहन (जहाजरानी को पहली बार इससे प्रथक किया गया है) जैसा मंत्रालय दिया गया है जो उनके कद के अनुरूप नहीं माना जा रहा है। हो सकता है यही कारण हो कि वे अपने मंत्रालय में बहुत ज्यादा रूचि न ले रहे हों और देश में सडकें के फैलते जाल में ग्रहण की स्थिति बन रही हो।

चिदम्बरम के बाद रमन हैं राजा के निशाने पर

चिदम्बरम के बाद रमन हैं राजा के निशाने पर

रमन और दिग्विजय आमने सामने

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 04 मई। नक्सलवाद के मुद्दे पर अपनी ही सरकार के गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम को कोसने के बाद अब छत्तीसगढ के मुख्य मंत्री रमन सिंह और संयुक्त मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे तथा वर्तमान में कांग्रेस के सबसे ताकतवर महासचिव राजा दिग्विजय सिंह के बीच नक्सलवाद को लेकर तकरार तेज हो गई है। दोनों ही नेता एक दूसरे को कटघरे में खडा करने से अपने आप को पीछे नहीं रख रहे हैं।

वैसे तो कांग्रेस की संस्कृति रही है कि पार्टी के अंदर की कोई भी बात पार्टी मंच पर ही उठाई जानी चाहिए। इससे उलट महासचिव राजा दिग्विजय सिंह ने जब कलम के माध्यम से केंद्रीय गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदंबरम को लानत मलानत भेजी तब कांग्रेस की कडाही मंे उबाल आने लगा था। बाद में साफ सफाई करवाकर और माफी मंगवाकर मामला शांत कराया गया। लोगों का कहना है कि अगर इस तरह की धृष्टता राजा दिग्विजय सिंह के अलावा अगर किसी और ने की होती तो अब तक उसे पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया होता।

इसके बाद दिग्विजय सिंह को छग के सीएम रमन सिंह ने बहुत बुरा कहा। इससे कुपित होकर राजा दिग्विजय सिंह ने रमन सिंह पर दस सवाल दाग दिए। एसा लगता है कि दोनों सिंहों के बीच चल रही इस लडाई का काई अंत नहीं है, दोनों ही एक दूसरे के कपडे उतारने पर उतरू नजर आ रहे हैं। रमन सिंह ने अपने आलेख में राजा दिग्विजय सिंह को आडे हाथों लिया। रमन का कहना है कि राजा दिग्विजय सिंह दस साल तक अविभाजित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे पर उन्होंने नक्सलवाद के खात्मे के लिए कुछ नहीं किया।

राजा को रमन की बात दिल में लग गई। राजा दिग्विजय सिंह ने भावुक होकर रमन सिंह को पत्र लिख मारा। राजा दिग्विजय सिंह का पत्र में कहना है कि रमन सिंह के लेख की भाषा से उन्हें दुख पहुंचा है। राजा दिग्विजय सिंह का मानना है कि नक्सल प्रभावित इलाके के लोगों को मुख्य धारा में लाने के लिए यह आवश्यक है कि उनका विश्वास शासन के प्रति जगाया जाए। महेंद्र कर्मा के नेतृत्व में आरंभ किए गए सलवा जुडूम आरंभ हुआ किन्तु गलत नीतियों के चलते हजारांे आदिवासी अपने ही क्षेत्रों में शरणाथी बनकर रह गए हैं। राजा दिग्विजय सिंह ने रमन सिंह को कोसते हुए कहा कि उनके शासनकाल में दंतेवाडा में एक हजार से ज्यादा नक्सली जुडते हैं और राज्य की गुप्तचर एजेंसी को पता न चले एसा संभव ही नहीं है। इसका प्रतिकार करते हुए रमन सिंह कहते हैं कि नक्सल समस्या के मामले में राजा दिग्विजय सिंह पूरी तरह दिग्भ्रमित ही नजर आ रहे हैं। उन्होने राजा दिग्विजय सिंह इस मामले में जहां चाहे वहां बहस की चुनौति भी दे दी है।

वैसे न तो पी.चिदम्बरम और न ही रमन सिंह ने राजा दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में मध्य प्रदेश में हुई गंभीर घटनाओं की ओर ध्यान आकर्षित कराया है। गौरतलब है कि राजा दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में उनके ही मंत्रीमण्डल के परिवहन मंत्री लिखीराम कांवरे को बालाघाट जिले में ही उनके घर पर आधी रात को नक्सलियों ने बुरी तरह गला रेतकर मौत के घाट उतार दिया था, यह घटना अपने आप में बहुत बडी थी। इतना ही नहीं बालाघाट जिले में ही एक अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक बंसल और उप निरीक्षक ठाकुर को भी नक्सलियों ने मार डाला था। रही बात सिपाहियों की तो उप निरीक्षक प्रकाश कतलम की अगवानी में सर्च पार्टी के सोलह जवानों की जीप उडा दी गई थी। इसके अलावा न जाने कितने जाबांज सिपाहियों को अपनी जान गंवानी पडी थी। अगर राजा दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में उनके मंत्रीमण्डल के सहयोगी और पुलिस के जवान ही सुरक्षित नहीं थे, तो आज किस हक से वे उसी नक्सल समस्या के बारे में किसी को शक के कटघरे में खडा करने का माद्दा रख रहे हैं।

हरिभूमि में रोजनामचा