सोमवार, 27 सितंबर 2010

चूल्हे में हगें, शनीचर को दोष दें. . .

ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)
 
चूल्हे में हगें, शनीचर को दोष दें. . .
बुंदेलखण्ड की बहुत पुरानी कहावत है -‘‘चूल्हे में हगें, शनीचर को दोष दें. . .। अर्थात पुराने जमाने के शौचालयों के बजाए अलह सुब्बह जाकर चूल्हे में जाकर पॉटी कर दी और सुबह जब देखा तो कहने लगे शनी भारी हो गया है हमारे घर की रसोई में चूल्हे में पॉटी पड़ी है। इसी कहावत को मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार चरितार्थ कर रही है। मध्य प्रदेश से होकर गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों के रखरखाव हेतु केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्रालय द्वारा हाथ खींच लिए जाने के आरोप के साथ ही मध्य प्रदेश भाजपा द्वारा भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के खिलाफ सड़कों पर उतरने की बात कही जा रही है। भूतल परिवहन मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का दावा है कि मध्य प्रदेश सरकार द्वारा नेशनल हाईवे के संधारण के प्रस्तावों को महालेखाकार लेखा एवं हकदारी ग्वालियर के माध्यम से केंद्र को भेजना था, वह अभी तक नही भेजे गए हैं, कुछ प्रस्ताव केंद्र को प्राप्त भी हुए थे किन्तु त्रुटिपूर्ण होने के चलते केंद्र ने इन्हें नामंजूर कर दिया था। सूत्रों का आरोप है कि मध्य प्रदेश के नेशनल हाईवे के रखरखाव के लिए केंद्र सरकार से आने वाली भारी भरकम रकम में पिछले नौ सालों के रिकार्ड में जबर्दस्त गड़बड़झाला है। केंद्र सरकार को प्रस्ताव न भेजकर मध्य प्रदेश ने अपने ही खजाने में तकरीबन तीस करोड़ रूपए की चपत लगा ली है।

सात दिन पहले जागे कलमाड़ी!
राष्ट्रमण्डल खेलों की मेजबानी 2003 में मिल गई थी, और आयोजन होना था 2010 में अर्थात सात सालों का समय था भारत के पास। आयोजन समिति पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लगते रहे। न केवल भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री वरन् कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी, युवराज राहुल गांधी सहित विपक्ष भी अर्थमोह में ‘ध्रतराष्ट्र‘ की भूमिका में रहा। आयोजन के महज सात दिन पहले सुरेश कलमाड़ी को ‘दिव्य ज्ञान‘ की प्राप्ति हुई, और उन्होंने अपनी गल्ती स्वीकार की है, कि अभी बहुत काम होना बाकी है। कलमाड़ी सोच रहे होंगे के अंतिम समय में सच को स्वीकार करने से वे अपनी जवाबदारी से बच जाएंगे। कलमाड़ी की अंतिम समय में स्वीकारोक्ति किसी ओर के नहीं वरन् प्रधानमंत्री डॉ..मनमोहन सिंह और कांग्रेस एवं संप्रग अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के गाल पर करारे तमाचे से कम नहीं है। जिसे वे भले ही महसूस न कर पा रहे हों पर इसकी गूंज, अनुगूंज, प्रतिध्वनि न केवल भारत में वरन् समूचे विश्व में जोर से सुनाई दे रही है।

तीसरी महाशक्ति बना भारत गणराज्य
भ्रष्टाचार, अनाचार, नक्सलवाद, अलगाववाद, माओवाद, आतंकवाद, प्रांतवाद, भाषावाद आदि की जद में कराहने वाले भारत गणराज्य के नागरिकों के लिए यह खबर खुशी देने के लिए पर्याप्त मानी जा सकती है कि भारत गणराज्य को विश्व की तीसरी महाशक्ति के तौर पर पहचाना गया है। जी हां, अमेरिका की सरकारी रिपोर्ट में 2010 के ताकतवर देशों की फेहरिस्त में अमेरिका, चीन के बाद भारत को स्थान दिया जाना निश्चित तौर पर भारत के लिए गर्व की बात है। इस सूची के अनुसार दुनिया की 22 फीसदी ताकत अमेरिका के पास, 12 फीसदी चीन के पास, भारत के पास आठ प्रतिशत तो जापान, ब्राजील और रूस के पास 5 - 5 प्रतिशत ताकत है। इतना ही नहीं अनुमान 2025 को लेकर लगाया गया है, जिसमें अमेरिका की ताकत 4 प्रतिशत घटकर जताई गई है, 2025 में अमेरिका की ताकत 18 फीसदी, यूरोपीय संघ की 14 फीसदी और भारत की ताकत में दो अंको का इजाफा होकर यह 10 फीसदी होने का अनुमान लगाया गया है।

बाढ़ से निपटने तैयार नहीं हैं सूबे
कितने आश्चर्य की बात है कि भारत गणराज्य द्वारा 35 साल पहले बनाए गए एक विधेयक को सूबाई सरकारों ने कानून के तौर पर मान्यता नहीं दी है। केंद्रीय जल आयोग द्वारा 1975 में बनाए गए मॉडल फ्लड बिल को देश में राजस्थान और मणिपुर द्वारा ही कानूनी तौर पर मान्यता दी है। इस विधेयक के तहत बाढ संभावित निचले इलाकों में रिहाईशी या व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के बजाए बाग बगीचे अथवा खेल के मैदान बनाने की बात कही गई थी, जिसका कारण यह था कि अतिवर्षा या बाढ़ की स्थिति में जान माल की सुरक्षा करना प्रमुख था। आश्चर्य तो तब हुआ जब 35 सालों के बाद भी राजस्थान और मणिपुर को छोडकर किसी भी सूबे की सरकार ने विधानसभा में इसे पेश करके इसे कानूनी तौर पर मान्य नहीं किया है। घोर आश्चर्य तो तब होता है जब कांग्रेस की केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए बिल को सालों साल सूबों पर राज करने वाली कांग्रेस की ही राज्य सरकारों द्वारा उपेक्षा की नजर से देखा गया हो।

दिग्गी की राह पर लालू
राजनीति में वंशवाद, परिवारावद जमकर हावी होता दिख रहा है। कांग्रेस के ताकतवर महासचिव राजा दिग्विजय सिंह ने अपने पुत्र जयवर्धन को 2013 में राजनीति में लांच करने की योजना बना रखी है, तो भला स्वयंभू प्रबंधन गुरू लालू प्रसाद यादव उससे पीछे कैसे रहते। लालू यादव ने भी अपने क्रिकेटर पुत्र तेजस्वी यादव को राजनीति में उतारकर उसे अपनी राजनैतिक विरासत सौंपने का मानस बना लिया है। पटना में लालू यादव ने अपने पुत्र तेजस्वी को मंच से बाकायदा चुनाव प्रचार की जवाबदारी सौंपकर जता दिया है कि आने वाले समय में राजद के सुप्रीमो के चेयरपर्सन उनके पुत्र तेजस्वी ही होंगे। अरे भई जब नेहरू गांधी परिवार का मूल ‘‘व्यवसाय‘‘ ही ‘‘इक्कीसवीं सदी की जनसेवा‘‘ बन गया हो तो भला फिर नेहरू गांधी परिवार को आदर्श मानने वाले राजनेता इससे भला पीछे कैसे रहेंगे।

जमुना देवी: एक युग का अवसान
मध्य प्रदेश की लौह महिला का अघोषित खिताब पाने वाली आदिवासी नेता जमुना देवी की आवाज शांत हो गई। 1952 से मध्य प्रदेश विधानसभा में लगातार गूंजने वाली आवाज को अब नही सुना जा सकेगा। वे 1952 से 1957 तक मध्य भारत विधानसभा की सदस्य रहीं। 1962 से 1967 तक लोकसभा सदस्य, 1985 में राज्य मंत्री मध्य प्रदेश सरकार, 1998 में उपमुख्यमंत्री बनीं और 16 दिसंबर 2003 को नेता प्रतिपक्ष बनीं। इसके बाद 07 जनवरी 2009 को पुनः नेता प्रतिपक्ष चुनी र्गइं। जमुना बुआ इकलौती ऐसी महिला जनसेवक रहीं जिन्हांेने कभी भी नीतियों के साथ समझौता नहीं किया। पूर्व मुख्यमंत्री एवं महासचिव राजा दिग्विजय सिंह ने अपने दस साल के कार्यकाल में भले ही कुंवर अर्जुन सिंह, स्व.माधवराव सिंधिया, शुक्ल बंधुओं, अजीत जोगी, कमल नाथ जैसे क्षत्रपांे को पानी पिलाया हो, पर जमुना बुआ की एक हुंकार पर राजा दिग्विजय सिंह जैसे नेता भी सहम ही जाते थे। अंतिम समय तक वे सक्रिय राजनीति में रहीं। जमुना बुआ का निधन कांग्रेस के लिए क्षति अवश्य है, पर उनके जाने से राजनैतिक क्षेत्र में हुई रिक्तता की भरपाई शायद ही हो पाए। मध्य प्रदेश विधानसभा में गूंजने वाली एक दबंग आवाज अब शांत हो गई है।

बंगाल की रेलमंत्री
कांग्रेस को न जाने क्या हो गया है कि वह केंद्र मंे सत्ता की मलाई चखनेे के लिए अपने सहयोगियों के हर सितम को हंस हंस कर सह रही है। कांग्रेस चाहे जो करे पर इससे सीधे सीधे नुकसान तो रियाया का ही हो रहा है। संप्रग - 2 में रेल मंत्री बनी ममता बनर्जी का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ पश्चिम बंगाल की कुर्सी पर काबिज होना दिख रहा है। भारतीय रेल किस दिशा में जा रही है, इस बात से रेल मंत्री ममता बनर्जी को लेना देना नहीं है। पूर्व रेल मंत्री लालू यादव भी शांत भाव से सब कुछ देख सुन रहे हैं। विपक्ष के सारे दल भी मूकदर्शक हैं। रेल दुर्घटनाओं में इजाफा और रेल सुविधाओं में कमी साफ साफ दिखाई पड़ रही है। रेल मंत्री को इन सारी बातों से कोई सरोकार नहीं है, उनका प्रथम उद्देश्य पश्चिम बंगाल की कुर्सी पर काबिज होना ही है। इसलिए वे कई माहों से पश्चिम बंगाल में ही डेरा डाले हुए हैं। अब तो लोग ममता बनर्जी को भारत गणराज्य की रेल मंत्री के बजाए पश्चिम बंगाल की रेलमंत्री के नाम से भी जानने लगे हैं।

घर के लड़का गोंही चूसें, मामा खाएं अमावट
देश के सांसद विधायकों के वेतन भत्तों और अन्य सुविधाओं को देखकर दो वक्त की रोजी रोटी की जद्दोजहद में लगा आम आदमी दांतो तले उंगली दबा लेता है। देश की रक्षा करने वाले वीर सपूतांे के परिवार किस हालत में हैं, इस बात से किसी जनसेवक को लेना देना नहीं है। जनसेवकों की अपनी अंटी में पैसा और सुविधाएं बरकरार रहंे, बस इसके अलावा उन्हें और अधिक कुछ नहीं चाहिए। आपको यह जानकर घोर आश्चर्य होगा कि देश के खुले बाजार में जब दालें 80 रूपए प्रति किलो से अधिक की दर से बिक रही हैं, तब सेना के एक अधिकारी की बेवा को महज अस्सी रूपए प्रतिमाह पेंशन मिल रही है। सेना के दिवंगत मेजर धरमचंद ने भारत पाक के बीच हुए 1947 - 48 एवं 1965 के तथा चीन के साथ हुए 1962 के युद्ध में भाग लिया था। दिवंगत मेजर को उत्कृष्ठ सेवाओं के लिए 14 मेडल भी मिले थे। देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी इस मामले में संज्ञान लेते हुए सरकार को फटकार लगाई है। देश की सेवा के लिए प्राणों को न्योछावर करने वाले वीर योद्धाओं के परिवारों की बदहाली से भला जनसेवकों को क्या लेना देना।
 
औंधे मुंह गिरा आरटीई
शिक्षा का अधिकार (राईट टू एजूकेशन, आरटीई) को कांग्रेसनीत संप्रग सरकार ने जोर शोर से लागू तो कर दिया, किन्तु होमवर्क के बिना लागू आरटीई लागू होते ही औंधे मुंह गिर गया है। देश की महज 14 फीसदी आबादी को ही इस बारे में पता है कि आरटीई किस चिडिया का नाम है। एक सर्वे में यह खुलासा हुआ है कि पंजाब में सबसे अधिक 79 फीसदी, महाराष्ट्र में 55, हरियाणा में 23, बिहार में 21, यूपी में 13, राजस्थान में 12, झारखण्ड मे छ‘, एमपी में महज चार, और देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में तो यह आंकड़ा शून्य से भी नीचे जाकर दशमलव आठ फीसदी पर आकर टिक गया है। जब राजनेताओं की नाक के नीचे दिल्ली में ही लोगों को शिक्षा के अधिकार के कानून का भान नही है तो फिर सुदूर ग्रामीण अंचलों में तो इस कानून के बारे में भगवान ही मालिक है। वैसे भी शिक्षा को लेकर आजादी के बाद नित नए प्रयोग होते रहे हैं। आज की युवा पीढ़ी आजादी के मायने ही भूलती जा रही है। शिक्षा को लेकर दी जाने वाली सुविधाओं के बारे में भी आम विद्यार्थी या पालक को कोई खास जानकारी नहीं है।
 
खुद या परिजन को टिकिट दिलाने जुटे कांग्रेसी
बिहार में चुनावों की गहमा गहमी काफी हद तक बढ़ चुकी है। कांग्रेस का राष्ट्रीय मुख्यालय 24 अकबर रोड़ इन दिनों बिहार सदन में तब्दील हो गया है। बिहार से आए नेताओं द्वारा कांग्रेस के नेशनल हेडक्वार्टर की देहरी को चूमा जा रहा है। कांग्रेस के आला नेताओं की समस्या यह है कि बिहार से आए पूर्व विधायक, वर्तमान विधायक, पूर्व सांसद आदि या तो खुद को ही टिकिट देने की पेरवी कर रहे हैं, या फिर उनकी प्राथमिकता है कि उनके बेटे, बेटी, बहू या दामाद को टिकिट देकर उपकृत किया जाए। बताते हैं कि प्रदेशाध्यक्ष रामजतन सिन्हा जहानाबाद से अपने पुत्र के लिए, कृष्णा शाही बेगूसराय से अपनी बहू के लिए, अशोक राम अपने बेटे के लिए सुरक्षित सीट से टिकिट चाह रहे हैं। एसी सूची बहुत ही लंबी है, जिसमें खुद के लिए या अपने परिजनों के लिए टिकिट मांगी जा रही है। सूत्रांे का कहना है कि बिहार की सूची को लेकर कांग्रेस के आला नेता भी असमंजस में हैं, यही कारण है कि दस जनपथ जाकर सूची बार बार वापस आ रही है।

शिशु मृत्यु दर रोकने में भारत असफल
दुनिया भर में हर साल 81 लाख बच्चे अपना पांचवा जन्म दिन मनाने के पहले ही काल के गाल में समा जाते हैं। शिशुओं की मौत के मामले में पिछले दो दशकों में एक तिहाई कमी आई है। इस मामले में चिंताजनक तथ्य यह है कि इन दो दशकों में भारत शिशुदर मृत्यु रोकने में लगभग नाकामयाब ही रहा है। यूनिसेफ के आंकड़ों पर अगर गौर फरमाया जाए तो दुनिया भर में होने वाली बच्चों की मौत में से आधी अर्थात पचास फीसदी मौतें भारत, नाईजीरिया, पाकिस्तान, चीन और कांगों में होती है। वैसे शिशुओं की मृत्यु अफ्रीका में बहुत ज्यादा होती है। इस क्षेत्र में आठ में से एक बच्चे की मौत पांच साल में हो जाती है। यूनिसेफ के आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा दर 2015 तक सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य हासिल करने के लिहाज से अभी पूरी तरह से अपर्याप्त ही मानी जा रही है। 1990 के दशक में विश्व की शिशु मृत्युदर हर साल एक एक करोड़ 24 लाख थी, जो घटकर 81 लाख पर पहुंच गई है।

एमपी में हैं 51 हजार धर्मस्थल अवैध
हिमाचल प्रदेश को भले ही देवभूमि कहा जाता हो, किन्तु देश के हृदय प्रदेश में अवैध धर्मस्थलों की भरमार है। देश की सबसे बड़ी अदालत में सूबे के मुख्य सचिव द्वारा दायर हलफनामे के अनुसार मध्य प्रदेश में 51 हजार से ज्यादा धर्मस्थल अवैध तौर पर बने हुए हैं। एक ओर जहां विकास के नए आयामों में मध्य प्रदेश पिछड़ रहा हो, किन्तु धर्म स्थलों वह भी अवैध रूप से निर्मित होने वाले धर्मस्थलों के मामले में देश का यह सूबा अपने परचम लहरा रहा है। गौरतलब है कि पिछले साल सितम्बर में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि राज्य सरकारें सार्वजनिक स्थलों, सड़कों, नुक्कड़ों, उद्यानों आदि में मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, गिरजाघर या अन्य धार्मिक स्थलों के निर्माण की अनुमति कतई न दें। मध्य प्रदेश में जहां चाहे वहां धर्मस्थलों के निर्माण से एक ओर जहां आवागमन बाधित होता है, वहीं दूसरी ओर जब तब कानून और व्यवस्था की स्थिति निर्मित होती रहती है।

पुच्छल तारा
हिन्दुस्तान के वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश द्वारा वन्य जीवों विशेषकर बाघांे को बचाने के लिए आम आदमियों के लिए बनने वाले बांध, सड़क, रेलमार्ग आदि को रोककर अपनी पीठ थपथपाई जा रही है। दिल्ली में नेशनल मीडिया भी चंद दिनों से जयराम रमेश की तारीफों में कसीदे गढ़ रहा है, कारण चाहे जो भी हो, पर जयराम रमेश की छवि मानव विरोधी और वन्य जीव प्रेमी की बन गई है। कोटा राजस्थान में अध्ययनरत पिं्रस सिंह राजपूत ने एक बड़ा ही दिलचस्प ईमेल भेजा है। वे लिखते हैं कि टाईगर 1411 बचे हैं किन्तु भारत में पुरूष और महिला का अनुपात 1000: 824 है। अरे भईया, टाईगर बाद में बचाना पहले बच्चियों को बचा लो, क्योंकि टाईगर को बचाकर क्या उखाड़ लोगे? शेरनी पटने से तो रही और पट भी गई तो क्या बाघिन से शादी का जोखम उठा सकते हो. . .।

शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

कामन वेल्थ गेम्स में भारी भ्रष्टाचार

किसकी सेहत के लिए है कामन वेल्थ गेम्स

(लिमटी खरे)

जनता की गाढ़ी कमाई के हाजारांे करोड़ फूंककर तमाशा देखने वाले अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी सहित सारे सियासी दलों को इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि कामन वेल्थ गेम्स में भारी भ्रष्टाचार के चलते किसका सबसे अधिक भला हुआ है। आज जनता की किस कदर आफत आई है। सियासी दलों के बीच जारी नूरा कुश्ती के चलते कामन वेल्थ गेम्स के आयोजन में भारत गणराज्य का सर उंचा तो किसी भी दृष्टिकोण से नहीं हो सकता है। अब जबकि इसके आयोजन की उल्टी गिनती आरंभ हो गई है तब इसके आयोजन की तैयारियों में हुए व्यापक भ्रष्टाचार की परतें एक के बाद एक उघड़ना आरंभ हो गई हैं। कहीं फुट ओवर ब्रिज गिर रहा है, तो कहीं सीलिंग धराशायी हो रही है। खिलाड़ियों के लिए बने आवासों में पानी घुसा है तो दीवारें सीपेज की सड़ांध से बजबजा रही है। डेंगू और मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों के डेरे को देखकर लगने लगा है कि आने वाले खिलाड़ी अगर यहां से इस तरह की बीमारियां अपने साथ ले जाएंगे ऐसी परिस्थितियां निर्मित होने लगी है।

2003 में जब भारतीय जनता पार्टी की अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार ने राष्ट्रमण्डल खेलों की मेजबानी हासिल की थी, तब उस सरकार को यह भान कतई नहीं होगा कि अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार द्वारा कामन वेल्थ गेम्स के नाम पर भ्रष्टाचार का खुला, गंदा, नंगा, अश्लील, भोंडा नाच नाचा जाएगा और भाजपा सहित समस्त दलों के सियासतदार कांग्रेस के तराने पर ठुमके लगाते फिरेंगे।

भारत का मीडिया अगस्त माह तक कामन वेल्थ गेम्स में हुए अब तक के भयानकतम भ्रष्टाचार पर गला फाड़ता रहा और कांग्रेस के शासक नीरो के मानिंद चैन की बसी बजाते रहे। भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से देश के नाम दिए उद्बोधन में कामन वेल्थ गेम्स में मेच भ्रष्टाचार को ढांकने की गरज से कहा था कि इस आयोजन को राष्ट्रीय पर्व के तौर पर मनाया जाना चाहिए।

प्रधानमंत्री डॉ. एम.एम.सिह, कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी सहित सभी ने इस आयोजन को होने देने की बात कहकर कहा था कि भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच खेल के आयोजन के उपरांत की जाएगी। कांग्रेस के आला नेताओं की यह बात संकेत थी कि जब तक आयोजन नहीं हो जाता तब तक आयोजन समिति से जुड़े लोगों को भ्रष्टाचार करने की खुली छूट है। बाद में एक जांच आयोग बिठाया जाएगा, जो सालों साल तक जांच करने के उपरांत अगले दो या तीन राष्ट्रमण्डल खेलों के आयोजन के बाद ही अपना प्रतिवेदन सौंपने की स्थिति में आ सकेगा।

कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि सरकार द्वारा नेशनल मीडिया को इसके लिए मनाया गया कि वह कामन वेल्थ गेम्स मंे होने वाली गफलतों को ज्यादा तवज्जो न दे। मीडिया ने सरकार की इस मंशा को फलीभूत भी किया। 15 अगस्त के उपरांत कामन वेल्थ गेम्स से जुड़ी खबरों को मीडिया में बहुत अधिक स्थान नहीं मिल सका। राष्ट्रमण्डल खेलों के भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की खबरों को दबाने के लिए मीडिया ने सरकार से क्या कीमत वसूली या निशुल्क ही यह काम किया यह तो वह ही जाने पर नेशनल मीडिया ने निश्चित तौर पर देशवासियों के गाढ़े पसीने की कमाई का इस तरह की खबरंे न दिखाकर अपमान ही किया है।

भारत के जनसेवक भारत के तंत्र की व्यवस्थाओं को बेहतर जानते हैं। उन्हें पता है कि आकंठ भ्रष्टाचार करने के बाद भी वे किस तरह से अपने आप को सालों साल तक बचाकर रख सकते हैं। यह सच है कि कामन वेल्थ गेम्स से भारत की साख जुड़ी हुई है। इसका सफल आयोजन करने सभी को कंधे से कंधा मिलाना चाहिए, किन्तु जनता के गाढ़े पसीने की कमाई का जिस कदर से खुल दुरूपयोग किया जा रहा है, उस पर बहस एवं उसकी खुली जांच की जाना भी अनिवार्य है।

कामन वेल्थ गेम्स की तैयारियों में रोज ही कोई न कोई अनियमितता होने की बात प्रकाश में आती रही है। अब जबकि इसके आयोजन में दस दिन से भी कम समय बचा है तब जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम के ठीक सामने बन रहे फुट ओवर ब्रिज का भरभरा कर गिर जाना अपने आप में भ्रष्टाचार की एक बानगी ही कहा जाएगा। क्या यह नमूना प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी सहित विपक्ष के गाल पर करारा तमाचा नहीं है।

भ्रष्टाचार के जिस दलदल की बात मीडिया चीख चीख कर कर रहा था, वह अंतिम दिनों में सड़ांध मारने लगा है। दसियों हजार लोगों को एक साथ कदम ताल कर ढोने के लिए तैयार किया गया फुट ओवर ब्रिज महज तीस लोगों के भार को नहीं सह सका। जब यह आलम आयोजन स्थल जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम के पास का है, तो फिर बाकी दूर दराज की तैयारियों के बारे में कहना बेमानी ही होगा।

कहते हैं कि कामन वेल्थ गेम्स के दौरान परिंदा भी पर नहीं मार सकेगा। उधर अतिसंवेदनशील जामा मस्जिद इलाके में जो लाल किले से महज कुछ मीटरों की दूरी पर ही है, वहां दो हथियार बंद मोटर सायकल सवार लोगों ने दिल्ली पुलिस की नाक में दम कर दिया। आतंकियों ने सरेआम सरकार को धमकी दी है, कि भले ही सरकार कामन वेल्थ गेम्स कराने तैयार हो या नहीं वे हमले के लिए पूरी तरह तैयार हैं।

गृहमंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम कहते हैं कि तैयारियों को जल्द ही पूरा किया जाए ताकि आयोजन स्थल को सुरक्षा बलों के हवाले किया जा सके। सच है जब तक तैयारियां जारी रहेंगी भला कौन किस भेष मंे अंदर घुसकर क्या कर जाए कहा नहीं जा सकता है। अनेक देश के खिलाडियों ने सुरक्षा पर सवाल खड़े किए हैं। खबर है कि इंग्लेण्ड ने कहा है कि आना अभी पक्का नहीं है। साथ ही कनाड़ा के दो तीरंदाज केविन टाटारिन और दिएत्मार ट्राईल्स ने भी इस आयोजन में हिस्सा लेने से इंकार कर दिया है। इसके पहले इंग्लेण्ड के तीन एथलीट और आस्ट्रेलिया के डेनी सेम्युअल ने भी भाग लेने से इंकार किया हुआ है। खेलगांव की सुरक्षा को दिल्ली पुलिस ने अपने हाथों में ले लिया है। यह वही दिल्ली पुलिस है, जिसकी पुलिस कंट्रोल रूम वेन के इलाके में होते हुए भी दो हथियार बंद मोटर सायकल सवार जामा मस्जिद के पास गोलीबारी कर फरार हो चुके हैं।

भारोत्तोलन स्टेडियम का निर्माण भी पूरा होना बताया जा रहा था। मजे की बात तो यह है कि इसकी फाल्स सीलिंग भी भरभरा कर गिर चुकी है। यह तो शुक्र मनाया जाना चाहिए कि वह सीलिंग आयोजन के दौरान खिलाडियों पर नहीं गिरी, वरना भारत की जो भद्द अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पिटती उसका अंदाजा लगाया जाना कठिन ही है। कामन वेल्थ की तैयारियों में जिस तरह पैसा बचाने के लिए ‘‘थूक में सतुआ साना गया है‘‘ उसके चलते खेलों के दौरान ही अगर इस तरह का कोई हादसा हो जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

राष्ट्रमण्डल खेलों के शुभारंभ और समापन के लिए 5 करोड़ का गीत रहमान ने तैयार किया। फीके और अनाकर्षक इस गाने के चलते उदघाटन समारोह के फीके होने का अनुमान लगाया जा रहा है। इसकी क्षतिपूर्ति के तौर पर 38 करोड़ रूपए की लागत से बनवाए गए गुब्बारे की हवा भी निकलने लगी है। इस गुब्बारे एयरोस्टेट में भी तकनीकी गडबडियां होने लगी हैं। 80 मीटर लंबे, 40 मीर चौड़े और 12 मीटर उंचे इस गुब्बारे के दो ब्लेडर फट गए बताए जा रहे हैं। इसके अलावा इस एयरोस्टेट को हवा में उठाने की प्रणाली में कुछ तकनीकि पेंच फंस गया है, जिससे यह गुब्बारा हवा में उठ नहीं पा रहा है। इसे समारोह के अवसर पर 30 मीटर उपर उठाया जाना प्रस्तावित है।

कुल मिलाकर कांग्रेस और भाजपा की मण्डलियों ने अरबों रूपए के इस आयोजन में तबियत से भ्रष्टाचार किया है। कांग्रेस के इस भ्रष्टाचार को भाजपा इसलिए जोर शोर से नहीं उठा रही है, क्योंकि कहीं न कहीं उसकी झोली में भी कुछ न कुछ तो आया है। पिछले लंबे अरसे से भाजपा ने कांग्रेस की जनविरोधी, दमनकारी, हिटलरशाही से परिपूर्ण नीतियों के बारे में राष्ट्रव्यापी आंदोलन नहीं छेड़ा है, जो यह साबित करता है कि उपरी स्तर पर कांग्रेस और भाजपा द्वारा एक दूसरे को कांधा दिया जा रहा है, पर जनता को दिखाने के लिए एक दूसरे की टांग खीचने का स्वांग अवश्य ही रचा जा रहा है।

गुरुवार, 23 सितंबर 2010

नफरत फैलाने वालों को दें मुंहतोड़ जवाब

नफरत फैलाने वालों को दें मुंहतोड़ जवाब

(लिमटी खरे)

भगवान शिव की नगरी सिवनी की फिजां में अमन चैन सदा से ही रचा बसा है। नफरत फैलाने वाले तत्वों को सदा ही सिवनी वासियों ने मुंहतोड़ जवाब दिया है। इतिहास गवाह है कि जब भी सांप्रदायिक सोहाद्र बिगड़ने की नौबत आई है, सिवनी वासियों ने गजब के धेर्य और संयम का परिचय दिया है, यही कारण है कि सिवनी के इतिहास में कफर््यू के काले दाग महज दो मर्तबा ही लग पाए हैं। दोनों ही बार सभी धर्म, मजहब, संप्रदाय के लोगों ने आपसी भाईचारे, सद्भावना की मिसाल कायम करते हुए सिवनी की फिजां में जहर घोलने वाले तत्वों को मुंहतोड़ जवाब दिया है। सिवनी में दीपावली, होली, ईद, क्रिसमस, गुरूनानक जयंती, कबीर जयंती, महावीर जयंती बहुत ही धूमधाम के साथ सभी मजहब, धर्म, संप्रदाय, पंथ के लोगों द्वारा मनाई जाती है। सांप्रदायिक एकता की मिसाल सिवनी जिले में जो देखने को मिलती है, वह शायद ही किसी जिले में देखने को मिले।



बाबरी ढांचे के बारे मंे फैसला आने के उपरांत उपजने वाली परिस्थितियों को लेकर तरह तरह की आशंकाएं पनप रहीं हैं। राज्य शासन ने सिवनी जिले को भी संवेदनशील जिलों की फेहरिस्त में शामिल कर दिया है। सिवनी में एक बात तो साफ तौर पर सामने आ रही है कि हर वर्ग, मजहब, पंथ, धर्म, संप्रदाय का आदमी हर हाल में शांति ही चाह रहा है। जिला एवं पुलिस प्रशासन की पहल पर जिला मुख्यालय में मोहल्ला मोहल्ला स्तर पर हो रही बैठकें इस बात का घोतक हैं कि आम आदमी इस तरह की नफरत की आग से इतर सुख शांति और सोहाद्र का वातावरण ही चाहता है।

इस्लाम धर्म की विश्व प्रसिद्ध उत्तर प्रदेश के देवबंद की दारूल उलूम ने भी लोगों से संयम और शांति बरतने की अपील की है। राष्ट्रीय स्तर पर आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने भी अपील की है कि राम जन्म भूमि बावरी मस्जिद मामले में माननीय न्यायलय के फैसले का सम्मान किया जाना चाहिए। अदालत के फैसले के उपरांत किसी तरह के विरोध, प्रदर्शन आदि को कहीं किसी भी स्तर पर स्थान नहीं दिया जाना चाहिए। इन सारे संगठनो की अपील का अर्थ यही है कि सारे लोग अदालत के फैसले पर आस्था व्यक्त करते हुए उसका सम्मान करें।

दूसरी तरफ हिन्दूवादी संगठनों का रूख भी कमोबेश यही है। हिन्दुवादी संगठन भी चाहते हैं कि फैसला चाहे जो आए, उसका सम्मान किया जाना चाहिए न कि फिजा में जहर घोलने के प्रयास होने चाहिए। राम मंदिर बनाने के प्रमुख पैरोकार समझे जाने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आड़वाणी का भी साफ कहना है अयोध्या मामले में अदालत के फैसले का पूरा पूरा सम्मान किया जाएगा।

कुल मिलाकर हर धर्म, संप्रदाय, सम्भाव को मानने वाले चाहते हैं कि फैसला चाहे जो आए, देश का अमन चैन हर कीमत पर बरकरार रहे। यह भी सच है कि जैसे ही इस मामले में फैसले की घड़ी पास आती जा रही है, वैसे वैसे समाज में अमन चैन बिगाड़ने वाले तत्वों की हरकतों में इजाफा होने लगा है। शासन प्रशासन इन तत्वों से सख्ती से निपटने के लिए चाक चौबंद दिखाई पड़ रहा है।

कल से मोबाईल पर जाने वाले एसएमएस की रफ्तार थम सी गई है। अफवाहांे को फैलाने के सबसे बड़े संवाहक हैं मोबाईल, एसएमएस और लेण्ड लाईन फोन। इस मामले में प्रशासन को एहतियातन कदम उठाने होंगे, ताकि फिजा बिगाड़ने वालों को रोका जा सके। 1992 में सी डॉट एक्सचेंज की स्थापना के साथ ही शहर भर में बीएसएनएल के लेण्ड लाईन फोन की घंटियां लगातार घनघनाती रहीं थीं, जिससे माहौल में कड़वाहट ही घुली थी।

इस मामले का सबसे दुखद पहलू यह सामने आ रहा है कि किसी भी राजनैतिक दल के नेता ने अब तक पुरजोर तरीके से इस बात को नहीं उठाया है कि उच्च न्यायालय इलाहाबाद का इस मामले में आने वाला फैसला अंतिम नहीं है। इससे अगर असंतुष्ट हुआ जाएगा तो मामले के लिए देश की सबसे बड़ी अदालत के दरवाजे अभी खुले हुए हैं। अगर इस तरह की बात किसी दल के नेता द्वारा कह दी जाती तो विध्वंस फैलाने वाली ताकतों की हवा काफी हद तक निकाली जा सकती थी। दुर्भाग्य है कि न तो सोनिया गांधी न ही प्रधानमंत्री डॉ. मन मोहन सिंह, न एल.के.आड़वाणी आदि ने ही इस बात को रेखांकित किया है।

यह निश्चित तौर पर एक परीक्षा की घड़ी है। परीक्षा आम आदमी के धेर्य, संयम की। अब सिवनी वासियों को साबित करना है कि वे अनुशासनप्रीय हैं, सांप्रदायिक सद्भाव बनाने के लिए हर तरह से वचन बद्ध हैं। वे किसी भी अफवाह पर ध्यान कतई नहीं देगें। कोई अगर अफवाह फैलाता है तो वे उसे हवा नहीं देंगे।

हमारा कहना महज इतना ही है कि इस तरह के संवेदनशील मामले में किसी भी दल को सियासत करने की इजाजत कतई नहीं दी जा सकती है। 1992 का उदहारण हमारे सामने है। उस दौरान जो कुछ हुआ सभी ने देखा। मध्य प्रदेश की संुदर लाल पटवा के नेतृत्व वाली सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। कांग्रेस के कदमताल को देखकर लगता है कि मध्य प्रदेश, गुजरात और छत्तीसगढ़ की सरकारें कांग्रेस के निशाने पर हैं। थोड़ी भी स्थिति बिगड़ने पर सरकारों की शामत आ सकती है। यद्यपि यह जुदा मसला है, किन्तु फिर भी हर देशवासी का यह फर्ज है कि हर कीमत पर सांप्रदायिक सोहाद्र, अमन चैन बरकरार रहे।

सवाल यह उठता है कि जब साल में 365 दिन लोग अपने आप को किसी धर्म विशेष से जोड़कर नहीं देखते हैं, तो फिर दिन विशेष के अवसर पर इस तरह की भावनाएं हमारे मन में आए ही क्यों? क्या एसा करके फिरकापरस्त ताकतों को हम अपने उपर हावी नहीं कर रहे हैं। किसी भी अनिष्ट की आशंका से निपटने प्रशासन ने अपने स्तर पर सारे प्रबंध कर लिए हैं। हम सिवनी वासियों को संकल्प लेना होगा कि हम सांप्रदायिक सोहाद्र को बिगाड़ने वाली ताकतों को मुंहतोड़ जवाब देंगे। यह जवाब सिवनी में हर कीमत पर अमन चैन बरकरार रखकर ही दिया जा सकता है। हम किसी भी अफवाह पर ध्यान नहीं दें्रगे।

मंगलवार, 21 सितंबर 2010

विद्युत चुम्बकीय तरंगों का प्राणशक्ति पर प्रभाव

विद्युत चुम्बकीय तरंगों का प्राणशक्ति पर प्रभाव

हमारा सौर मण्डल पूर्णतः विद्युत चुम्बकीय तरंगों से भरा हुआ हैं । सूर्य से निकलने वाली किरणें, ऊर्जा की तरंगे तथा सौर मण्डल में भ्रमण कर रहे ग्रहों की गति आदि विद्युत चुम्बकीय तरंगें पैदा करती हैं । सौर मण्डल का एक उपग्रह हमारी पृथ्वी हैं एवं इसमें चुम्बकीय शक्ति होती हैं, यह पृथ्वी सूर्य के चारों ओर परिक्रमा भी करती हैं और अपनी धुरी पर घूमती भी रहती हैं । इससे पैदा होने वाली विद्युत चुम्बकीय तरंगों के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं, क्योंकि इनकों सीधे मापने के साधन बहुत सीमित और महंगे हैं ।

हमारे शरीर में भी विद्युत चुम्बकीय तरंगे होती हैं जिनके कारण हमारा ह्नदय क्रियाशील रहता हैं, मस्तिष्क सक्रिय रहता हैं, इन्द्रियॉ अपना काम करती हैं और हाथ पैर कार्य करते हैं । यह विद्युत ही मनुष्य को जीवनीशक्ति यानी चेतना प्रदान करती हैं ।

आज विज्ञान बहुत उन्नत और विकसित हो गया हैं, वैज्ञानिकों ने अच्छे अविष्कार किये हैं । सन 1882 में विद्युत का आविष्कार हुआ था डी0सी0 करेण्ट के रूप में, इसके बाद इसको विकसित किया गया और ए0सी0 करेण्ट 110 वोल्ट, 220 वोल्ट, 440 वोल्ट के बाद हजारों मेगावाट, माइक्रोवेव आदि सामने आयें । आज तो बिना तारों के, एक जगह से दूसरी जगह तक, वायुमण्डल के माध्यम से तरंगे भेजी जा रही हैं । ये तरंगे अदृश्य होती हैं और हमारे शरीर के चारों तरफ रहती हैं । इन तरंगों का जो प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता हैं उसे जानने के लिये विश्व के उन्नत देशों के वैज्ञानिक दिन रात परिश्रम कर रहे हैं ।

सोवियत शोधकर्ता खोलोडोव द्वारा विद्युत चुम्बकीय तरंगों के प्रभाव का अध्ययन चूहों पर किया गया और यह पता चला कि 100 से 200 गॉस की चुम्बकीय तरंगे चूहों पर तनाव पैदा होने का प्रभाव डालती हैं । एक वैज्ञानिक फ्राइडमेन ने चूहों के साथ-साथ बन्दरों पर भी चुम्बकीय तरंगों का प्रभाव देखा हैं और यह पाया हैं कि इसके प्रभाव से बंदरों के शरीर में कार्टीसोन का स्तर बढ़ जाता हैं ।

स्वीडन में जेमिनियस नामक वैज्ञानिक ने 2000 घरों का सर्वे किया और यह पाया कि जिन लोगों के घर हाईटेंशन लाइन के पास हैं उन घरों में रहने वालों के बच्चों में कैंसर रोग की ग्रोथ सामान्य से दुगुनी संख्या में होती हैं । टेक्सास में हुये एक सर्वे में पाया गया कि हाईटेंशन लोइन पर कार्य करने वाले कर्मचारियों को, सामान्य से 13 गुना ज्यादा ब्रेन कैंसर होने की सम्भावना रहती हैं ।

अब हम जरा अपने बारे में बात कर लें, आज कल हमने अपने मनोरंजन के लिये अपने शयनकक्ष में टी0वी0, म्यूजिक सिस्टम, एयरकण्डीशनर आदि लगा रखे हैं । अपनी सुविधा भोगी या कहिये कि आलसी मनोवृत्ति के कारण इनके स्विच अपने पलंग के पास या बेड स्विच के रूपमें पलंग में लगा रखें हैं ताकि स्विच ऑन या आफ करने के लिये उठ कर दीवार तक न जाना पड़े । क्या आपने कभी सोचा हैं कि इस सुविधा का प्रभाव हमारे शरीर पर क्या पड़ रहा हैं ? हम बच्चों से कहते हैं कि टी0वी0 दूर बैठ कर देखा करों, क्योंकि अनुभव में आया हैं कि ज्यादा पास बैठ कर टी0वी0 देखने से आंखो में तकलीफ होने लगती हैं और सिर भारी हो जाता हैं तो जाहिर हैं कि टी0वी0 से निकलने वाली विद्युत चुम्बकीय तरंगे आंखों को हानि पहुॅंचाती हैं । इस तथ्य को वैज्ञानिकों ने भी अपने मापन यंत्रों से जांच करके सिद्ध कर दिया हैं कि टी0वी0 से निकलने वाली चुम्बकीय तरंगों का परिणाम तीन फीट के दायरे में 3 मिली गॉस से ज्यादा होता हैं ।

हमारे पलंग पर लगे बिजली के स्विच या साइड लेम्प से विद्युत तरंगे हमारे शरीर तक पहुूच कर एक तरह का खिंचाव करती हैं जिससे कई तरह की बीमारियॉ पैदा होती हैं । यह एक ऐसा रहस्य हैं जिसके बारे में बहुत ही कम लोगों को जानकारी होगी ।

इन बीमारियों से बचने के लिये बेडरूम में मौजूद विद्युत उपकरणों को सोने से पहने न सिर्फ बंद कर देना चाहिये बल्कि उनके प्लग भी साकेट से निकाल देना चाहियें । सोते समय हम 7-8 घण्टे एक ही स्थान पर होते हैं अतः पलंग पर कोई भी इलेक्ट्रिक स्विच या टेबल लेम्पर न लगायें । इनकी दूरी पलंग से सात फिट होनी चाहियें । वैज्ञानिक खोजों से पता चला हैं कि इन विद्युत चुम्बकीय तरंगों से मानसिक तनाव पैदा होता हैं । पीठ, कमर व घुटनों में दर्द होता हैं तथा माइग्रेन और सिर दर्द की शिकायत होती हैं । विविध प्रकार की एलर्जी हो सकती हैं, चर्म रोग हो सकते हैं । अनिद्रा या ज्यादा नींद आना, डिप्रेशन, शरीर में अकडन आदि की शिकायत हो सकती हैं ।

मोबाईल फोन या कॉडलेस का ज्यादा उपयोग करने वालों ने अनुभव किया होगा कि बहुत देर तक मोबाईल फोन पर बात करने पर कान व सिर में दर्द होने लगा लगता हैं । एक वैज्ञानिक खोज से पता चला हैं कि जैसे ही मोबाईल फोन कान के पास लाते हैं मस्तिष्क की विद्युत चुम्बकीय तरंगे लाखों गुना बढ़ जाती हैं । इस विषय में कुछ सावधानियॉं रखना जरूरी हैं जैसे मोबाईल फोन ह्नदय के पास न रखें, कार में इसका उपयोग हेण्ड्स फ्री सेट के माध्यम से करें बाकी समय में इयर फोन एवं माइक्रो फोन का उपयोग करें ।

इसी तरह हमारे आफिस में भी हमें विद्युत उपकरणों के बारे में कुछ सावधानियॉ रखनी होंगी क्योंकि आफिस में भी हम दिन का अधिकांश समय व्यतीत करते हैं और हमारे आस पास कई प्रकार के विद्युत उपकरण होते हैं या हो सकते हैं जैसे फैक्स मशीन, टेबल, लेम्प, बिजली के स्विच, पेपर, डिस्ट्रांइंग मशीन, टी0वी0, कम्प्यूटर आदि । कम्प्यूटर सबसे ज्यादा तरंगे पीछे की तरफ से प्रसारित करता हैं इसलिये कम्प्यूटर की पीठ हमारी तरफ नहीं होनी चाहियें ।

नई जमीन खरीदते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहियें कि वह जमीन हाईटेंशन लाइन से कम से कम 200 फिट दूर हो ताकि विद्युत तरंगों के प्रभाव से बच सकें । विद्युत चुम्बकीय तरंगें ऋणात्मक ऊर्जा उत्पन्न करती हैं जिसे हम जॉंच उपकरणों से प्रत्यक्ष देख सकते हैं । आपने देखा होगा कि बिजली के स्विच बोर्ड और मरकरी ट््यूब लाइट के आस पास छिपकलियॉ दिखाई देती हैं । छिपकली ऋणात्मक ऊर्जा वाली होती हैं इसलिये इनसे ऋणात्मक ऊर्जा प्राप्त कर जीवनयापन करती हैं । मनुष्य, गाय, घोड़ा, बकरी, भेड़, कुत्ता, गधा आदि धनात्मक ऊर्जा पुंज हैं अतः इनके सम्पर्क में रहना और ऋणात्मक ऊर्जा वाले तत्वों से दूर रहना शरीर को स्वस्थ व सबल बनाये रखने के लिये बहुत जरूरी हैं ।

संकलनकर्ता

अनुराग अग्रवाल

ज्योतिष, अंकशास्त्र, वास्तु विशेषज्ञ

सिवनी मो0 09425445623

सड़क मंत्री से सड़क पर ही भिड़ेगी भाजपा

भाजपा और कमल नाथ में जारी है नूरा कुश्ती

(लिमटी खरे)

कांग्रेसनीत केंद्र सरकार में भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ और मध्य प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी में नूरा कुश्ती तेज हो गई है। कभी भाजपा की मध्य प्रदेश सरकार के लोक कर्म मंत्री दिल्ली जाकर मध्य प्रदेश को कमल नाथ द्वारा सबसे अधिक राशि देने के चलते कमल नाथ की शान में कसीदे पढ़ते हैं तो कभी सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान द्वारा दिल्ली में ही पत्रकार वार्ता मध्य प्रदेश को सड़क के मामले में केंद्र द्वारा सबसे अधिक आवंटन दिए जाने की बात कहकर कमल नाथ का पक्ष लिया जाता है। इससे उलट चंद माहीनों के अंदर ही भारतीय जनता पार्टी के मध्य प्रदेश पादाधिकारियों की बैठक में मुख्यमंत्री और लोक कर्म मंत्री की उपस्थिति में यह निर्णय लिया जाता है कि चूंकि कमल नाथ द्वारा सड़कों के मामले में मध्य प्रदेश के साथ पक्षपात किया जा रहा है अतः भाजपा अब सड़कों पर उतरेगी! जनता के साथ भाजपा के कार्यकर्ता भ्रम में है कि वह मंत्रियों की बात को सच माने या फिर प्रदेश पदाधिकारियों की बैठक में लिए निर्णय को!, क्योंकि दोनों ही मामलात में मुख्यमंत्री उपस्थित थे। अब लगता है कि सड़क मंत्री से सड़क पर ही भिड़ेगी भाजपा।

भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ जिस भी विभाग के मंत्री रहे हैं, उन्होंने मध्य प्रदेश विशेषकर छिंदवाड़ा को अपने नेतृत्व वाले विभाग के मामले में पूरा समृद्ध किया है। पिछली मर्तबा वाणिज्य और उद्योग का उदहारण अगर छोड़ दिया जाए तब छिंदवाड़ा वासी हमेशा ही गर्व से कह सकते हैं कि उनका नेतृत्व कमल नाथ जैसा सशक्त व्यक्तित्व कर रहा है। वर्तमान में भूतल परिवहन मंत्रालय (इतिहास में पहली बार इस विभाग को कमजोर करने के लिए जहाजरानी मंत्रालय को इससे प्रथक किया गया है) का नेतृत्व करने वाले कमल नाथ ने अपने संसदीय क्षेत्र जिला छिंदवाड़ा में राष्ट्रीय राजमार्ग का जबर्दस्त जाल बिछाने का मास्टर प्लान तैयार कर लिया है। कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि कमल नाथ चाहते हैं कि उनके संसदीय क्षेत्र जिला छिंदवाड़ा में विश्व का सबसे बड़ा चौगड्डा वह भी राष्ट्रीय राजमार्ग का स्थापित हो जाए ताकि लोगों की स्मृतियों में वे सदा ही बने रहें। नरसिंहपुर, नागपुर, ओबेदुल्ला गंज नागपुर, मुलताई सिवनी बालाघाट गोंदिया, आदि मार्गों को एनएच में तब्दील करवाने का काम इसी मंशा के तहत ही किया जा रहा लग रहा है।

इतना ही नहीं अटल बिहारी बाजपेयी सरकार की महात्वाकांक्षी परियोजना स्वर्णिम चतुर्भुज के अंग उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारे का काम बहुत ही दु्रत गति से जारी है। इस मार्ग में मध्य प्रदेश के सिवनी जिले से गुजरने वाली सड़क को भी शामिल किया गया था। इस काम को एनएचएआई के सुपरवीजन में करवाया जा रहा था। इसके लिए सिवनी में एक प्रोजेक्ट डायरेक्टर का कार्यालय भी स्थापित किया गया था, जिसमें पीडी की हैसियत से विवेक जायस्वाल की पदस्थापना की गई थी। पिछले कुछ दिनों से विवेक जायस्वाल सिवनी से लापता ही लग रहे हैं। उनका अधिक समय मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर में ही बीत रहा है। सिवनी का कार्यालय भी मृत प्राय ही पड़ा हुआ है। सड़क निर्माण का काम प्रत्यक्षतः कराने वाली मीनाक्षी कंस्ट्रक्शन कंपनी और सद्भाव कंस्ट्रक्शन कंपनी ने भी अपना बोरिया बिस्तर समेट लिया है।

पिछले दिनों भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ ने अपने गृह राज्य मध्य प्रदेश में सड़कों का जाल बिछाने की तैयारी कर ली थी। इसके अनुपालन में मध्य प्रदेश सरकार ने भी 1337.15 किलोमीटर लंबे 12 स्टेट हाईवे को नेशनल हाईवे में तब्दील करने का प्रस्ताव केंद्र के पास भेजा था, जिसे केंद्र ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। इस स्वीकारोक्ति के पीछे जनता का लाभ कम राजनैतिक बाध्यताएं ज्यादा दिखाई पड़ रही थी। मजे की बात तो यह है कि सदा ही एक दूसरे के लिए तलवारें पजाने वाली भाजपा और कांग्रेस के बीच पहली बार ही किसी मामले में एकमत दिखाई पड़ा। अन्यथा हर मामले में एक दूसरे की सरकारों पर लानत मलानत ही भेजी जाती रही हैं।

इसके बाद मध्य प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री ने दिल्ली में एक समारोह में केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ की तबियत से तारीफ की और यहां तक कहा कि मध्य प्रदेश को सिर्फ और सिर्फ सड़कों के मामले में केंद्र से पर्याप्त सहयोग और समर्थन मिल रहा है। मध्य प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री के कथन के बाद मध्य प्रदेश की ओर से दिल्ली में बैठे जनसंपर्क महकमे के अधिकारियों ने भी एमपी के चीफ मिनिस्टर शिवराज सिंह और केंद्रीय राजमार्ग मंत्री कमल नाथ के बीच मुस्कुराकर बातचीत करने वाले छाया चित्र और खबरें जारी कर दीं। मजे की बात तो यह है कि बारंबार शिवराज सिंह चौहान ने भी कमल नाथ को एक उदार मंत्री होने का प्रमाण पत्र जारी किया है।

बुरदलोई मार्ग स्थित मध्य प्रदेश भवन में पत्रकारों से रूबरू मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जब केंद्र पर भेदभाव का आरोप मढ़ा तब पत्रकारों से शिवराज से पूछा था कि उनके लोक निर्माण विभाग के मंत्री तो कमल नाथ के पक्ष में कोरस गा रहे हैं, तब चिढकर शिवराज ने कहा था कि लोक निर्माण मंत्री क्या वे (शिवराज सिंह चौहान) भी कमल नाथ से मिलते हैं और कमल नाथ मध्य प्रदेश की मदद कर रहे हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके लोक निर्माण मंत्री द्वारा कांग्रेस नीत संप्रग सरकार में कांग्रेस के कोटे के मंत्री कमल नाथ द्वारा उदार भाव से अपने प्रदेश की भाजपा सरकार को मुक्त हस्त से मदद करने की बात जब फिजा में तैरी तो कमल नाथ की छवि दलगत राजनीति से उपर उठकर मदद करने वाले राजनेता की बन गई।

हो सकता है कि शिवराज - कमल नाथ की जुगलबंदी कांग्रेस और भाजपा के नेताओं को रास न आई हो और दोनों ही दलों के सियासतदारों ने मिलकर इस जुगलबंदी को तोड़ने का प्रयास कर दिया हो। वैसे हालात देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि कमल नाथ और शिवराज सिंह चौहान के बीच जो भी प्रसंग चल रहा था, वह धरातल से इतर कुछ और था, क्योंकि मध्य प्रदेश के राष्ट्रीय राजमार्गों के उड़े धुर्रे किसी से छिपे नहीं है। आज दूसरे प्रदेशों से मध्य प्रदेश में माल लाने पर ट्रांसपोटर्स भी आनाकानी ही करते हैं, इसका कारण प्रदेश की सड़कों की बुरी दशा ही माना जाएगा।

यह बात भी उतनी ही सच है जितना कि दिन और रात कि मध्य प्रदेश में केंद्रीय मदद से बनने वाली समस्त सड़कों में गुणवत्ता विहीन काम ही किया जा रहा है। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क परियोजना में ठेकेदारों ने जमकर तबाही मचाई है। अधिकारियों की मिलीभगत से सड़कों की बदहाली किसी से छिपी नही है। मीडिया कितना भी चीख चिल्ला ले, पर इन पर कोई कार्यवाही नहीं होना, शासक प्रशासक और ठेकेदार के बीच की जुगलबंदी को रेखांकित करता है।

मध्य प्रदेश में चल रहे कामां में ठेकेदारों ने कम समय में ज्यादा माल कमाने का तरीका खोज लिया है। इस काम में खतरे की गुंजाईश कम और माल पीटने की संभावनाए जबर्दस्त होती है। बड़े ठेकेदारों द्वारा एक साथ अनेक काम ले लिए जाते हैं फिर उसे छोटे ठेकेदारों के बीच बांट देते हैं। छोटे ठेकेदार अपने हिसाब से कम गुणवत्ता में काम निपटा देते हैं, बड़े ठेकेदारों द्वारा ‘‘मेनेज्ड‘‘ अधिकारियों द्वारा इसकी गुणवत्ता को प्रमाणित कर दिया जाता है। उपर से देखने पर यही प्रतीत होता है कि काम को बड़ा मूल ठेकेदार ही संपादित करवा रहा है।

सरकारी आंकड़े चाहे जो कहंे पर हकीकत यह है कि आज मध्य प्रदेश में एक हजार और पांच सौ से अधिक की आबादी वाली बसाहटों की तादाद 16 हजार 894 है जिनमें से पांच सौ से ज्यादा आबादी वाली 3 हजार बासठ तो एक हजार से ज्यादा आबादी वाली पांच हजार दो सौ पच्चीस इस तरह कुल आठ हजार दो सौ सत्यासी गांव ही जुड सके हैं सड़कों से। देखा जाए तो सेंट्रल एडेड स्कीम के बावजूद भी पचास फीसदी गांव इससे नहीं जुड़ सके हैं, और जो गांव जुड़े भी हैं उनमें सड़कों की गुणवत्ता एकदम घटिया है। जब भी जांच दल निरीक्षण के लिए जाता है, विभाग के कमीशनखोर अधिकारी कर्मचारियों द्वारा ठेकेदार को चेता दिया जाता है और जगह जगह गड्ढों को भर दिया जाता है। इसके उपरांत जब निरीक्षण दल आता है तब उसकी सेवा टहल में ठेकेदार नतमस्तक हो जाता है। निरीक्षण दल द्वारा भी अपनी अंटी में माल भरकर औपचारिकताएं पूरी कर रवानगी डाल दी जाती है।

बहरहाल मध्य प्रदेश में हाल ही में प्रदेश पादाधिकारियों बैठक में एक निर्णय लिया जाकर सभी को चौंका दिया गया है। राज्य के राष्ट्रीय राजमार्गों के रखरखाव के लिए कंेद्र से मिलने वाली राशि के बंद करने के विरोध में भाजपा ने उन्हीं राजमार्ग मंत्री कमल नाथ जिनकी तारीफ करते मुख्यमंत्री और सूबे के लोक निर्माण मंत्री नहीं थकते हैं, के खिलाफ सड़कों पर उतरने का फैसला कर लिया है। देखा जाए तो इन सड़कों के रखरखाव की जवाबदारी केद्र सरकार की है क्योंकि नेशनल हाईवे के नोटिफिकेशन के उपरांत ये केंद्र सरकार की संपत्ति हो जाती है।

भाजपा का कहना है कि वह 5 से 7 अक्टूबर तक नेशनल हाईवे पर पड़ने वाले कस्बों और ग्रामों में हस्ताक्षर अभियान चलाएगी फिर 22 से 24 अक्टूबर तक इन्ही ग्रामों में मानव श्रंखला बनाई जाने के उपरांत 10 नवंबर को भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष 10 नवंबर को प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौंपेंगे। भाजपा के इस निर्णय से कमल नाथ और भाजपा के बीच नूरा कुश्ती और तेज हो गई है, इसका कारण यह है कि भाजपाध्यक्ष प्रभात झा इन दिनों प्रदेश के दौरे पर हैं, वे राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे अवस्थित जिला, तहसील, विकासखण्ड मुख्यालयों के अलावा गांवों और कस्बों से भी विचर रहे हैं और उन्होंने कहीं भी अपने कार्यकर्ताओं को प्रदेश पदाधिकारियों के इस महत्वपूर्ण निर्णय की जानकारी देकर इसे सफल बनाने का आव्हान नहीं किया है। आश्चर्य तो इस बात पर हो रहा है कि प्रभात झा खुद भी सड़क मार्ग से गुजर रहे हैं, और सड़कों पर हिचकोले खाती चलती उनकी आलीशान विलासिता पूर्ण गाड़ी के बाद भी उनकी तंद्रा नहीं टूट पा रही है।

जब मध्य प्रदेश में सत्ताधारी और केंद्र में विपक्ष में बैठी भाजपा का आलम यह है तो गरीब गुरबों की कौन कहे, वह भी तब जबकि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष की आसनी पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा सालों साल सींची गई मध्य प्रदेश की विदिशा संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीती सुषमा स्वराज विराजमान हों, तब भी मध्य प्रदेश की सड़कें इस तरह से बदहाल हो रही हो, केंद्र के मंत्री मध्य प्रदेश के साथ अन्याय कर रहे हों, इस अन्याय के बाद भी पता नहीं किस बात से उपकृत मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और सूबे के लोक निर्माण मंत्री दोनों ही केंद्र सरकार को कोसकर भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ की तारीफों में तराना गा रहे हों, साथ ही साथ भाजपा द्वारा कमल नाथ के द्वारा प्रदेश के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करने के आरोप में सड़कों पर उतरने की बात की जाए तो यह तथ्य निश्चित तौर पर शोध का ही विषय माना जाएगा।

भाजपा की दो तरह की नीतियों के कारण अब जनता के साथ भाजपा कार्यकर्ताओं में भी भ्रम का वातावरण बनना लाजिमी है कि वे शिवराज सिंह चौहान के कथनों पर यकीन कर भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ को ‘‘दानवीर कर्ण‘‘ की संज्ञा दें, या भाजपा के प्रदेश पदाधिकारियों के निर्णय से कमल नाथ और शिवराज की जुगलबंदी को ‘‘बाबा भारती और खड़ग सिंह‘‘ की कहानी से जोड़ें, या फिर लंबे समय से हो रही प्रदेश के राष्ट्रीय राजमार्गों की दुर्दशा को देखने के बाद उनकी तुलना ‘‘महाराज ध्रतराष्ट्र‘‘ से करने की सोचें?

सोमवार, 20 सितंबर 2010

ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)

राजा युवराज साथ साथ होंगे सक्रिय
कांग्रेस के ताकतवर महासचिव राजा दिग्विजय सिंह के कुलदीपक युवराज जयवर्धन सिंह के मन मस्तिष्क में भी राजनीति के बियावान में हाथ अजमाने की इच्छाएं कुलाचंे मारने लगी हैं। राजा और युवराज दोनों ही सक्रिय राजनीति में एक साथ पदार्पण कर सकते हैं। युवराज जयवर्धन सिंह ने मीडिया को दिए साक्षात्कार में कहा है कि वे 2013 में योजना बद्ध तरीके से कांग्रेस की सदस्यता लेकर सक्रिय राजनीति में पदार्पण करेंगे। जयवर्धन की शिक्षा दीक्षा सुप्रसिद्ध दून स्कूल और फिर श्रीराम कालेज से वे वाणिज्य स्नातक हैं। कम ही लोग जानते होंगे कि मेनेजमेंट की पढ़ाई करने के इच्छुक जयवर्धन योजना आयोग के लिए काम कर रहे हैं। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राजा दिग्विजय सिंह ने 2003 में विधानसभा चुनाव में बुरी तरह पराजित होने के उपरांत दस साल तक चुनाव न लड़ने का कौल लिया था, जिस पर वे आज भी कामय हैं। 2013 में उनकी यह कसम पूरी होने जा रही है, तब वे सक्रिय होंगे, पर अपने इकलौते पुत्र जयवर्धन के साथ। राजा दिग्विजय सिंह अभी कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को राजनीति का ककहरा सिखा रहे हैं, तो निश्चित तौर पर उन्होंने अपने सपूत जयवर्धन को भी राजनीति के दांव पेंच से वाकिफ करा ही दिया होगा।

जदयू, भाजपा: हनीमून इज ओवर
जैसे जैसे बिहार में चुनावों की तारीखें पास आती जा रही है, वैसे वैसे भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाईटेड की संयुक्त सरकार में दरारें बढ़ती जा रही हैं। पोस्टर विवाद से आरंभ हुए इस झगड़े के उपरांत भाजपा और जदयू के नेताओं के बीच वार थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। बीच बीच में अवश्य ही सीज फायर की स्थिति बन जाती है, किन्तु राख के नीचे शोले जलते दिखाई पड़ ही रहे हैं। दरअसल कुल मिलाकर झगड़ा सत्ता की मलाई दुबारा चखने का है। जदयू को लगने लगा है कि वह अकेले ही बिहार में सरकार बनाने की स्थिति में है, तो उधर भाजपा भी कम मुगालते में नहीं है। लालू पासवान और कांग्रेस भी अपने अपने स्तर पर जोर अजमाईश में लगे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने दो टूक शब्दों में कह दिया है कि वे नरेद्र मादी को बिहार में घुसने नहीं देंगे। निंितीश के बयान ने ठहरे हुए पानी में एक बार फिर लहरें पैदा कर दी हैं। इसका कारण यह है कि हाल ही में भाजपा के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा था कि बिहार चुनाव अभियान के दौरान नरेंद्र मोदी अवश्य ही शिरकत करेंगे।

किंामन वेल्थ गेम्स में भ्रष्टाचार से आहत हैं असलम
राष्ट्रमण्डल खेलों में तबियत से हो रहे भ्रष्टाचार से 1975 में हाकी विश्व कप के हीरो रहे पूर्व संसद सदस्य असलम शेर खान बुरी तरह आहत हैं। वे कामन वेल्थ गेम्स को भ्रष्टाचार गेम्स की संज्ञा देते हैं। गौरतलब है कि कांग्रेसनीत केंद्र और कांग्रेस की ही दिल्ली सरकार की छत्रछाया में कामन वेल्थ गेम्स के नाम पर भ्रष्टाचार का नंगा नाच नाचा जा रहा है। असलम शेर खान का कहना है कि लोग आजकल स्पोर्टस से कम अर्थात सेक्स, दाम अर्थात पैसा और नाम यानी प्रसिद्धि से जोड़कर देखते हैं। असलम की इस बात में दम है कि कामन वेल्थ गेम्स के नाम पर 28 हजार करोड़ फूंककर हमे क्या हासिल होने वाला है, अगर हम एक खेल पर एक हजार करोड़ खर्च करते तो हमारी झोली में 28 स्वर्ण पदक निश्चित तौर पर आ ही जाते। अपनी बेबाक टिप्पणियों के लिए प्रसिद्ध असलम शेर खान के इस कथन के बाद उनके विरोधी यह कहने से भी नहीं चूक रहे हैं कि असलम भाई अगर आप कलमाड़ी के स्थान पर होते तो क्या तब भी आप भ्रष्टाचार और धन फूंकने की बात इतनी शिद्दत के साथ करते!

दत्त परिवार में अब आल इज वेल
नरगिस और सुनील दत्त के पुत्र पुत्रियों के बीच अब युद्ध समाप्त होता दिख रहा है। कल तक नम्रता, प्रिया दत्त और संजय दत्त के बीच जबर्दस्त अंर्तविरोघ की स्थिति बनी हुई थी। संजय दत्त के निवास पर उनकी पत्नि मान्यता ने एक पार्टी का आयोजन किया था। यह आयोजन ईद, गणेश चतुर्थी के साथ ही साथ एक अन्य कारण से भी काफी महत्वपूर्ण था। कारण था प्रिया दत्त के पति ओवेन रॉकन का जन्म दिन। संजय और मान्यता के घर की खुशियां एक बार फिर लौटती दिख रही हैं। संजय दत्त के घर आयोजित पार्टी मंे न केवल संजय, मान्यता, प्रिया और नम्रता के दोस्तांे ने शिरकत की वरन इसमें उनके लगभग सारे रिश्तेदार भी आए। लोगों का मुंह है, सो कहने से कहां चूके। लोगों का कहना है कि अमर सिंह के साथ संजय दत्त की दूरियों के बाद भाई बहन के बीच लड़ाई की बर्फ पिघलना आरंभ हुआ है। वैसे भी कहते हैं कि जब तक अंबानी बंधुओं के करीब अमर सिंह रहे तब तक उनके बीच तलवारें खिची रहीं। अमिताभ और गांधी परिवार के बीच भी यही स्थिति रही।

ममता के राज में मूषक को लगता है पहले भोग
भगवान गणेश का वाहन चूहा हर घर में सभी प्रकार के अनाज का भोग पहले ही लगा देता है। यही आलम ममता बनर्जी के नेतृत्व वाले रेल विभाग का है। यात्रियों के लिए बनने वाला भोग पहले चूहों द्वारा चखा जाता है फिर उसे रेल में सफर करने वाले मुसाफिरों को परोसा जाता है। पुरानी दिल्ली के प्लेटफार्म नंबर 20 के सेल किचन में आम मुसाफिरों के लिए खाना बनाया जाता है। रेल विभाग के अधिकारियों की अनदेखी से कटी सब्जियों, और अन्य खाद्य सामग्रियों पर चूहे सारे दिन उछल कूद मचाते रहते हैं। चूहों के कारण भोजन दूषित हुए बिना नहीं रह पाता। रेल में पेन्ट्री कार में भी चूहे और काकरोच का जलजला देखते ही बनता है। रेल विभाग के अधिकारियों द्वारा भी इस बारे में कोई कार्यवाही नहीं की जाती है। चूंकि यात्रियों को इसके बारे में पता नहीं चलता है, वरना आंखों देखी मक्खी भला कौन निगलेगा। हो सकता है कि पश्चिम बंगाल पर कब्जा करने की मंशा मन में रखने वाली ममता बनर्जी द्वारा भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए उनके वाहन चूहे को भोग लगाने की बात पर सख्ती नहीं की जा रही हो।

प्रियंका के घर की उखड़ी छत
हिमाचल प्रदेश को देवताओं की भूमि माना जाता है। इस प्रदेश के शिमला के छराबड़ा में नेहरू गांधी परिवार की पांचवी पीढ़ी की सदस्य श्रीमति प्रियंका वढ़ेरा का आशियान तैयार किया जा रहा है। पिछले दिनों हुई ताबड़तोड़ बारिश ने प्रियंका के घर की छत ही उखाड़ दी है। यह छत जगह जगह टपकने लगी है। प्रियंका के निर्माणाधीन घर की छत पर लकड़ी के उपर स्लेट की चादरें लगाई गईं थीं, जो बुरी तरह टपकने लगी हैं। बताते हैं कि इस स्लेट की जगह अब स्टील की चादरें लगाए जाने का प्रावधान किया गया है, जिससे प्रियंका गांधी के इस घर में रहने का मामला अब एक साल और आगे बढ़ गया है। वैसे समय समय पर प्रियंका की मां और कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी द्वारा इस घर को जाकर देखा जाता रहा है। कांग्रेस की राजमाता जब भी शिमला गईं तो उन्होंने अपनी बेटी के इस आशियाने को अवश्य ही देखा है। जानकारों का मानना है कि सोनिया गांधी द्वारा प्रियंका के नए आवास में महज उनकी रसोई में ही खासी दिलचस्पी दिखाई है।

लालू ने तरेरी कांग्रेस पर आंखे
कभी कांग्रेस की आंखों के तारे रहे लालू की नजरों में कांग्रेस बहुत ही अच्छा राजनैतिक दल रहा है। पूर्व रेल मंत्री और स्वयंभू प्रबंधन गुरू लालू प्रसाद यादव ने कांग्रेस, श्रीमति सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बारे में कई मर्तबा कसीदे पढ़े हैं, जो किसी से छिपे नहीं है, हाल ही में लालू प्रसाद यादव के सुर बदले बदले नजर आ रहे हैं। कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए लालू प्रसाद यादव अब पानी पी पी कर कांग्रेस को कोस रहे हैं। बकौल लालू प्रसाद यादव, कांग्रेस उनका आदर्श नहीं है। सांप्रदायिक ताकतों को रोकने की गरज से उनकी पार्टी ने केंद्र में कांग्रेस को सहयोग दिया था। आजादी के उपरांत देश में जो भी समस्याएं हैं, उनके लिए कांग्रेस ही पूरी तरह से जिम्मेदार है। नई पीढ़ी द्वारा झेली जाने वाली हर समस्या कांग्रेस की ही देन है। इतना ही नहीं आपात काल के दौरान कांग्रेस की नीतियों के विरोध चलते ही वे एक साल तक मीसा में जेल में बंद रहे। सवाल तो यह है कि जब कांग्रेस इतनी ही बुरी है और देश का बट्टा बिठा रही है तब आप उसके नेतृत्व वाली सरकार में पांच साल तक रेल मंत्री रहे तब आपने कांग्रेस की शान में कसीदे किस आधार पर गढ़े हैं यह बात भी जनता को उन्हें बताना ही चाहिए।

निष्ठुर हो गया जेल प्रशासन
अपराधी या आरोपी को जेल में रखा जाता है ताकि उसे समाज से इतर होने की सजा मिल सके। कैदी जब बीमार पड़ते हैं तो उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया जाता है। यह अलहदा बात है कि कैदियों में ताकतवर, पैसे और रसूख वाले तथा पहुंचसम्पन्न लोग जेल में कम अस्पतालों में ज्यादा समय काटते हैं। कैदी को जब भी अस्पताल में रखा जाता है तब उसे हथकड़ी से मुक्त कर दिया जाता है। अस्पताल का विशेष वार्ड भी जेल से कम नहीं होता है, क्योंकि यहां कैदी पहरेदारों के साए में ही रहते हैं। महाराष्ट्र के औरंगाबाद में एक नया मामला प्रकाश में आया है। लंबे समय से अस्पताल में भर्ती कैदी संतोष कुमार को हाथ के बजाए पैरों में हथकड़ी बांधकर रखा गया है, जो मनवाधिकारों का सरासर उल्लंघन की श्रेणी में ही आता है। जेल प्रशासन द्वारा अगर किसी कैदी को हथकड़ी वह भी पैरों में लगाकर रखा जा रहा हो तो इसे जेल प्रशासन की निष्ठुरता ही माना जाएगा।

मुख्यमंत्री करें सोजन्य भेंट और पार्टी उतरे सड़कों पर
अगर किसी सूबे का निजाम जाकर केंद्र के किसी मंत्री से सोजन्य भेंट करे और समाचार चेनल्स उसे पूरी प्राथमिकता से दिखाएं, वहीं उसी सूबे की उनकी पार्टी उसी मंत्री के खिलाफ सड़कों पर उतरने की बात करे तो यह नूरा कुश्ती की श्रेणी में नहीं आएगा? जी हां, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और लोक निर्माण मंत्री द्वारा केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ से सोजन्य भेंट कर उनकी तारीफांे में कशीदे गढ़े जाते हैं, सबसे ज्यादा आवंटन मध्य प्रदेश को मिलने की बात की जाती है, वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश की भाजपा के प्रदेश पदाधिकारियों की बैठक में यह निर्णय लिया जाता है कि भूतल परिवहन मंत्रालय के द्वारा मध्य प्रदेश के साथ पक्षपात करने के विरोध में भाजपा सड़कों पर उतरेगी। लगता है मंत्रियों को लगने लगा है कि जनता निरी बेवकूफ है जो आज कुछ कहा जाए कल कुछ और जनता मान लेगी। भाजपा का कहना है कि वह केंद्र के भूतल परिवहन मंत्रालय द्वारा सूबे को मिलने वाली मदद को बंद करने के विरोध में 5 से 7 अक्टूबर तक एनएच पर पड़ने वाले कस्बों में हस्ताक्षर अभियान और 22 से 24 अक्टूबर तक मानव श्रंखला बनाकर अपना विरोध दर्ज कराएगी। अब पीडब्लूडी मंत्री की बात को सच माना जाए या भाजपा के इस विरोध को।

एक महीने में ही सवा करोड़ ग्राहक
भारत देश में गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों की तादाद और उनकी गिनती करने के आधार को भले ही शंका कुशंका की नजर से देखा जाए किन्तु भारत एक मामले में तो सभी को पीछे छोड़ रहा है, और वह है मोबाईल के उपभोक्ताओं के आंकड़े को। अगस्त माह में ही देश में एक करोड़ 35 लाख ग्राहकों को जोड़ा है मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों ने अपने साथ। अब देश में मोबाईल धारकों की संख्या का आंकड़ा 49 करोड़ को छूने ही वाला है। सेल्युलर ऑपरेटर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के ताजा तरीन आंकड़े वाकई चौकाने वाले हैं। कहते हैं कि देश में सत्तर फीसदी लोगों की औसत आय बीस रूपए से कम है, पर फिर आधी आबादी के पास मोबाईल फोन होना अपने आप में एक अजूबे से कम नहीं है। अगर किसी के पास खाने को रोटी के लिए पैसे नहीं है तो वह फिर कम से कम एक हजार रूपए का मोबाईल, सौ रूपए की सिम और कम से कम सौ रूपए के रिचार्ज के लिए पैसा कहां से जुगाड़ लेता है, यह आश्चर्य की ही बात है।

सरकार से ज्यादा मजबूत है नक्सली नेटवर्क
देश में अलगाववाद, आतंकवाद, माओवाद, नक्सलवाद और न जाने कितने वाद फिजां में जहर ही घोल रहे हैं। सरकार की इच्छा शक्ति में कमी का घोतक है इस तरह के वादों का पोषण। छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद की समस्या जबर्दस्त तरीके से सर उठा रही है। देश के न जाने सपूत जानों की बाजी लगाकर अपने प्राण तक न्योछावर कर चुके हैं, किन्तु समस्या सुरसा की तरह ही मुंह बाए खड़ी है। छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ननकी राम कंवर की यह स्वीकारोक्ति काफी महत्वपूर्ण है कि सरकार से ज्यादा मजबूत है नक्सली नेटवर्क। यही कारण है कि अनेक मोर्चों पर नक्सली सरकार पर भारी ही पड़े हैं। केंद्र और राज्य सरकारों की नीतियों की खामियों का लाभ इस तरह की ताकतें जमकर उठाती हैं। एसा नहीं है कि सरकार को यह पता न हो कि इस समस्या के मूल में क्या है? बावजूद इसके समस्या का जस का तस बना रहना निश्चित तौर पर कंेद्र और राज्यों की सरकारों के लिए शर्म की बात है, पर मोटी चमड़ी वाले जनसेवक और विपक्ष में बैठा ‘‘मैनेज विपक्ष‘‘ जनता के साथ अन्याय होते देख कर भी आंखे बंद किए बैठा है।

पुच्छल तारा
भारत में व्यवस्थाओं को लेकर जब तब कुछ न कुछ कहा जाता रहा है। बंग्लुरू से रचना तिवारी इस मामले में एक ईमेल भेजकर इसे बेहद करीने से चित्रित कर रहीं हैं। रचना लिखती हैं कि शिक्षक ने पूछा - इंडिया क्या है?‘‘ छात्र का जवाब था कि इंडिया एक एसा देश है, जहां पिज्जा एंबूलेंस और पुलिस से जल्दी आ जाता है. . ., एक एसा देश है जहां कार का लोन 5 प्रतिशत तो एजूकेशन लोन 12 फीसदी ब्याज दर पर मिलता है. . ., एक ऐसा देश है, जहां चावल 40 रूपए किलो तो सिम कार्ड महज दस रूपए में मिलता है. . ., एक एसा देश है जहां चाय की दुकान पर लोग अखबार पढ़ते हुए फरमाते हैं कि बच्चों से काम करवाने वालों को तो फांसी पर चढ़ा देना चाहिए, और फिर नाबालिग छोटू को पुकारकर दो चाय का आर्डर देते हैं . . .।‘‘ सच है ‘अतुलनीय है भारत‘।

गुरुवार, 16 सितंबर 2010

गरीब गुरबों का माखौल उडाती कांग्रेस

गरीबों से दूर कांग्रेस

स्कूल के मामले में पालक छात्र बैचेन, जनप्रतिनिधि मौन

स्कूल के मामले में पालक छात्र बैचेन, जनप्रतिनिधि मौन
(मनोज मर्दन त्रिवेदी)

सिवनी जिले के बखारी में हायर सेकन्ड्री स्कूल खोलने को लेकर पालक और विद्यार्थियों में रोष और असंतोष की स्थिति निश्चित तौर पर चिन्ता का विषय मानी जा सकती है। शासन प्रशासन को इस मामले को हल्के में कतई नहीं लेना चाहिए। सिवनी विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा पहले केवलारी विधानसभा का अभिन्न अंग रहा है। क्षेत्र में पिछले चार दिनों से शालाओं में अध्ययन अध्यापन कार्य ठप्प पड़ा हुआ है। चार दिनों में जिला प्रशासन को इस बात की भनक न लग पाना निश्चित तौर पर जिला प्रशासन के सूचना तंत्र पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है। बखारी की जिला मुख्यालय से दूरी महज 25 किलोमीटर ही है। 25 किलोमीटर के औरे में अगर इस तरह की कोई घटना घट रही हो और जिला प्रशासन को उसकी भनक न मिले तो इसे प्रशासन की संवेदनहीनता की श्रेणी मंे रखा जा सकता है।
 
पूर्व में मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह के शासनकाल में हर तीन किलोमीटर पर माध्यमिक शाला खोलने का निर्णय लिया गया था। एक तरफ तो सरकार बच्चों को शिक्षित करने के लिए जनता के गाढ़े पसीने की कमाई को हवा में उड़ाती है। हवा में उड़ाना इसलिए क्योंकि जमीनी हकीकतें कुछ और बयान करती हैं। वैसे भी प्रायमरी शालाओं के उपरांत माध्यमिक शालाएं, माध्यमिक के उपरांत हाई स्कूल और फिर हायर सेकन्ड्री के उपरांत कालेज की शिक्षा की व्यवस्था करना शासन प्रशासन की महती जवाबदारी है।
 
बंडोल के करीब बखारी में हाई स्कूल का संचालन पिछले 26 सालों से हो रहा है। यहां हायर सेकंन्ड्री स्कूल अगर खोला जाता है तो इस हायर सेकन्ड्री स्कूल के भरोसे 3 हाई स्कूल, 8 माध्यमिक शालाएं हैं। वैसे भी यहां हायर सेकन्ड्री स्कूल खोला जाना तर्क संगत है। क्षेत्र के विद्यार्थियों और पालकांे का गुस्सा नाजायज किसी भी दृष्टिकोण से नहीं माना जा सकता है।
 
रही बात जनप्रतिनिधियों की तो उनकी नपुंसकता किसी से छिपी नहीं है। पूर्व में सिवनी जिले की अंतिम सांसद रहीं श्रीमति नीता पटेरिया वर्तमान में सिवनी विधानसभा क्षेत्र की विधायक हैं। पिछले साल लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने साफ तौर पर यह घोषणा की थी कि बखारी में हायर सेकन्ड्री स्कूल को हर हाल में खोला जाएगा। यद्यपि चुनाव के दरम्यान शिवराज सिंह ने यह कहा था कि आचार संहित के चलते वे आधिकारिक घोषणा नहीं कर सकते हैं अतः वे बाद में इस बारे में प्रयास अवश्य ही करेंगे। सिवनी बालाघाट संसदीय क्षेत्र के सांसद के.डी.देशमुख का कहना था कि ‘‘ भले ही उरिया का पानी बरेंडी में चढ़ाना पडे पर वे बखारी में हायर सेकन्ड्री स्कूल अवश्य ही खुलवाएंगे।‘‘ कालांतर में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और सांसद के.डी.देशमुख के प्रलाप चुनावी वादे ही साबित हुए हैं।
 
जब स्थिति गंभीर हो चली है तब स्थानीय विधायक श्रीमति नीता पटेरिया की तंद्रा टूटी है। श्रीमति पटेरिया का शिक्षा मंत्री के हवाले से कहना है कि इस सत्र के बजाए अब अगले सत्र से बखारी में हायर सेकन्ड्री स्कूल खोला जा सकता है। कुल मिलाकर पालकों और विद्यार्थियों को एक साल और झुनझुना पकड़वाने का प्रयास किया जा रहा है। बखारी में हायर सेकन्ड्री की मांग नई नहीं है। वैसे भी जनप्रतिनिधि चाहे वह विधायक हो या सांसद उसका यह फर्ज होता है कि वह क्षेत्र में जाकर रियाया के दुख दर्द को देखे, जरूरतों को समझे, एसा करके वह जनता पर कोई एहसान नहीं करता है। इसके लिए सांसद विधायक को बाकायदा भत्ता भी मिलता है। हालात देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि जनप्रतिनिधियों को जनता के दुखदर्द से कोई सरोकार ही नहीं बचा है।
 
पालक और विद्यार्थियों ने अगर स्कूल बंद करवा दिया है तो मान लेना चाहिए कि स्थिति गंभीर है। जिला शिक्षा अधिकारी कहते हैं कि उनके कार्यालय द्वारा बखारी में हायर सेकन्ड्री स्कूल खोलने का प्रस्ताव पूरी ईमानदारी के साथ बनाकर शासन को भेज दिया है। वैसे भी किसी भी शाला के उन्नयन या अन्य मामलों को बजट में शामिल करवाने के लिए जनप्रतिनिधि को एडी चोटी एक करनी होती है। शाला का अगर उन्नयन किया जाता है तो इसमें सिर्फ और सिर्फ जनता का ही भला होगा। इसमें न तो जनप्रतिनिधि को कोई कमीशन खाने का मौका ही मिलेगा और न ही वह अपने किसी लग्गू भग्गू को उपकृत करने की स्थिति में ही होगा। शाला के उन्नयन के स्थान पर अगर शाला भवन निर्माण की बात होती तो सांसद विधायक पूरी दिलचस्पी दिखाते क्योंकि उसमें आवंटन जो प्राप्त होता है।

इस मामले में जिला मुख्यालय की विधायक श्रीमति नीता पटेरिया की लापरवाही को अनदेखा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वे सत्ता और संगठन के बीच की बनी समन्वय समिति में हैं। इस लिहाज से उनकी बात को तवज्जो देना शिवराज सरकार की मजबूरी है। वैसे भी श्रीमति नीता पटेरिया पूर्व सांसद और सिटिंग एमएलए एवं महिला मोर्चा की प्रदेशाध्यक्ष हैं, तो उनके द्वारा कही गई बात को सरकार पूरा पूरा वजन देगी ही। विडम्बना है कि उन्होंने भी इस मामले में कोई ध्यान नहीं दिया है। श्रीमति नीता पटेरिया के विधानसभा क्षेत्र में हायर सेकन्ड्री स्कूल की मांग को लेकर अनेक शैक्षणिक संस्थान अगर बंद हैं तो यह निश्चित तौर पर श्रीमति नीता पटेरिया को मिले जनादेश का अपमान ही माना जाएगा।

आखिर हम कहाँ जा रहे हैं?

आखिर हम कहाँ जा रहे हैं?

(हरीष शहरी)

दुनियाँ कहती है कि भारत विकसित राष्ट्र बनने जा रहा है। हर भारतवासी बड़े गर्व से कहता है कि भारत निरन्तर विकास के रास्ते पर अग्रसर है।  स्वतन्त्रता के बाद हमने अभूतपूर्व सफलता पायी है और दुर्लभ उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं।  आज हम चाँद पर अपना परचम लहरा चुके हैं और मंगल ग्रह पर जाने के लिए तैयार हैं।  हमारे पास दुर्लभ आयुध भंडार है जिसमें दूर तक मारक क्षमता रखने वाली मिसाइलें, ध्वनि की गति से भी तेज चलने वाले लड़ाकू विमान तथा पानी के भीतर शत्रुओं की खोज कर दूर तक मार करने वाली पन्डुब्बियाँ हैं।  इतना ही नहीं हमने अनेक रोगों के इलाज ढूंढने एवं उनके निरन्तर विकास में भी सफलता पायी है। 

कुल मिलाकर भौतिक उपलब्धियों की खोेज एवं उनके निरन्तर विकास में हम बहुत आगे आ चुके हैं किन्तु इस अन्धी दौड़ में हम अपनी मान्यताओं, अपनी संस्कृति एवं अपने मूल्यों को कितने पीछे छोड़ आये हैं इसका हमें जरा भी एहसास नहीं है। जिस भारतवर्ष में यह कहावत प्रसिद्ध थी कि घर आये दुष्मन का भी स्वागत करना चाहिए और जिसके अनेक उदाहरण हमारे इतिहास में दर्ज हैं जैसे हमने मुसलमानों को, अंग्रेजों को एवं अन्य न जाने कितने विदेषी लोगों को अपने सर आंखों पर बिठाया भले ही उन्होंने हमारे साथ बुरा सुलूक किया उसी भारतवर्ष में आज यदि सगा भाई भी घर आ जाये तो लोग उसके जल्द से जल्द जाने की तरकीबें सोचते हैं। 

यह वही देष है जिसमें परायी स्त्री को उम्र के हिसाब से माँ बहन या बेटी का दर्जा दिया जाता था उसी देष में आज प्रतिदिन महिलाओं के साथ छेड़छाड़ एवं बलात्कार जैसी घटनायें सुनने को मिलती हैं।  कुछ हद तक इसके लिए महिलायें भी उत्तरदायी हैं क्योंकि भारतीय परिधानों, जिनसे शरीर के सभी अंग पूरी तरह ढके रहते हैं, को छोड़कर वे पष्चिमी परिधानों, जिनमें शरीर ढकता कम है और दिखता ज्यादा है प्राथमिकता देने लगीं हैं। जिस देष में लोग दूसरों की मदद करने या दूसरों को कुछ देने में खुषी का अनुभव प्राप्त करते थे आज उसी देष में लोग दूसरों से छीनकर खुष होते हैं और इसी का परिणाम है कि भारत जैसे देष जिसमें दधीचि एवं कर्ण जैसे महादानी हुए उसी देष की मिट्टी में आज दाऊद, अबू सलेम, छोटा राजन एवं बबलू श्रीवास्तव जैसे लोग फल-फूल रहे हैं।  आज पश्चमी देषों की नकल में हम इतने आगे निकल आये हैं कि अपनी मान्यताओं, अपनी संस्कृति एवं अपने मूल्यों को तो जैसे भूल ही गये हैं।

मेरा हर भारतवासी से यह विनम्र अनुरोध है कि वह एक बार फिर से सोचे कि आखिर हम कहाँ जा रहे हैं? ये हमारी कैसी उन्नति है जो धीरे-धीरे हमें अपनी सभ्यता एवं संस्कृति से दूर कर रही है और हमें गर्त के मार्ग पर अग्रसर कर रही है।  क्या हमारे पूर्वजों एवं स्वतन्त्रता सेनानियों ने यही सपना देखा था और इसी दिन के लिए अपने प्राणों की आहूति दी थी?  यदि हम अभी भी नहीं चेते और अपने आचार-व्यवहार में जल्द ही परिवर्तन नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं जब हम केवल विकास के रास्ते में गुम होकर रह जायेंगे।

बुधवार, 15 सितंबर 2010

खाद्य सुरक्षा विधेयक में हैं अनगिनत पेंच

खाद्य सुरक्षा विधेयक में हैं अनगिनत पेंच

(लिमटी खरे)
 
आम आदमी से जुड़ा हुआ है खद्य पदार्थों का मसला। कांग्रेस नीत संप्रग मनमोहन सिंह सरकार कभी भी मंहगाई के मसले पर एक बयान पर नहीं टिक सकी है। सदा ही सरकार की ओर से बयानबाजी आती रही है। इतिहास में यह संभवतः पहला मौका है जब मंहगाई इतने अधिक समय तक कायम रही है। खाद्य पदार्थों के दामों में सरकार ने इजाफा अवश्य ही किया है, पर यह इजाफा बहुत अधिक नहीं कहा जा सकता है। दरअसल कालाबाजारियों को सरकार द्वारा दिए जा रहे अघोषित प्रश्रय ने मंहगाई के ग्राफ को इतने अधिक समय तक बढ़ाए रखा है।

कोई भी राजनैतिक दल सत्ता की मलाई चखने के लिए चुनावों के दौरान आम जनता से लोक लुभावने वादे करता है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। पिछली मर्तबा कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन द्वारा भी गरीब गुरबों को लुभाने की गरज से महीने में 25 किलो राशन वह भी महज तीन रूपए प्रति किलो की दर से दिलवाने का वायदा किया था। आज उस बात को एक साल से अधिक का समय बीत चुका है, पर कांग्रेस का वायदा परवान नहीं चढ़ सका है। इसी बीच देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी अनाज के सड़ने पर अपनी चिन्ता को जग जाहिर कर दिया है।

वैसे कांग्रेस द्वारा खाद्य सुरक्षा विधेयक का झुनझुना भारत गणराज्य की जनता को दिखाया है। जनता को लगने लगा कि उसे सस्ता अनाज अवश्य ही मिल सकेगा। शासकों को भी लगने लगा कि उन्होंने जनता के हित में एक बड़ा फैसला ले लिया है। सवाल यह उठता है कि आजादी के उपरांत भारत में योजनाएं तो अनेक बनीं किन्तु उनमें से कितनी योजनाएं परवान चढ़ सकी हैं, यह बात किसी से छिपी नहीं है। अब शिक्षा के अधिकार कानून को ही लिया जाए। राज्यों को विश्वास में लिए बिना ही सरकार द्वारा शिक्षा के अधिकार कानून को लागू कर दिया गया। आज उसका हश्र क्या है? यह कानून औंधे मुंह गिर गया है। राज्य सरकारों ने इस मामले में अपने हाथ खड़े कर दिए हैं।

कमोबेश यही आलम खाद्य सुरक्षा विधेयक का है। देश में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाला (बीपीएल) या गरीब कौन है? इस बारे में आज भी संशय बरकरार ही है। कांग्रेसनीत केंद्र सरकार की सोच तो देखिए उसने गरीब कौन है इस बात की मालुमात के लिए एक साल में तीन कमेटियां बना डाली। कोई खुराक को आधार बना रहा है, कोई रोजना की आमदानी को। योजना आयोग का सुर अलग ही आलाप गा रहा है।

केंद्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय की एन.सी.सक्सेना समिति ने गरीबों की गणना में प्रति व्यक्ति खुराक को आधार माना जिसमें केलोरी की मात्रा को प्रमुखता दी गई थी। इस आधार पर सक्सेना कमेटी का मानना है कि देश में पचास फीसदी से ज्यादा लोग गरीब हैं। इसके अलावा अर्जुन सेन गुप्ता समिति अपना राग अगल ही अलाप रही है। गरीबों की गणना में उसका आधार देश की 77 फीसदी से अधिक वह जनता है जो रोजाना 20 रूपए से कम खर्च करने की क्षमता रखती है। तेंदुलकर समिति देश की 35 फीसदी से अधिक जनता को गरीब मानती है।

उधर योजनाओं को मूर्तरूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले योजना आयोग का तराना अलग ही बज रहा है। योजना आयोग के आंकड़े कहते हैं कि सवा करोड़ से अधिक की आबादी वाले भारत में छः करोड़ परिवार अर्थात लगभग आठ फीसदी परिवार ही गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने पर मजबूर हैं। भारत गणराज्य में राज्यों के आंकड़ों पर अगर गौर फरमाएं तो यह आंकड़ा दस करोड़ पहुंच जाता है। जब गरीबों के बारे में तहकीकात करने और उनकी संख्या के बारे में सरकारी आंकड़ों में ही इतनी अधिक विसंगतियां हैं, तो भला कैसे मान लिया जाए कि केंद्र सरकार के खाद्य सुरक्षा विधेयक का सफलता पूर्वक क्रियान्वयन सुनिश्चित हो सकेगा।

कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी का कहना कुछ और है। उनके मुताबिक खाद्यान्न का आशय गेंहू चावल से नहीं वरन् इसमें दाल, चीनी तेल जैसी जिन्सें भी शामिल हैं। बकौल सोनिया गांधी कंेद्र सरकार खाद्य गारंटी उन परिवारों के लिए ही दे जिनके पास पांच एकड़ से कम कृषि भूमि या जिनके पास दो पहिया वाहन न हों। आज देश में सस्ती दर पर मिलने वाले ऋण के कारण कुछ परिवार ही एसे होंगे जिनके पास दो पहिया वाहन न हो। कांग्रेस की अध्यक्ष ने यह बात साफ नहीं की है कि दो पहिया का तात्पर्य सायकल से है या मोटर सायकल से।

भारत गणराज्य के कृषि मंत्री कहते हैं कि खाद्यान्न पदार्थों के उत्पादन में कमी के कारण कीमतें बढ़ना बताते हैं, तो कभी किसानों को अनाज का अधिक मूल्य देने पर कीमतें बढ़ने की बात कही जाती है, फिर बाद में वे यही कहते हैं कि उन्हें गलत आंकडे़ दिए गए। अरे आप भारत गणराज्य के जिम्मेदार मंत्री हैं, आपके मुंह से इस तरह की गैरजिम्मेदाराना बातें शोभा नहीं देती शरद पवार साहेब। कभी सरकार कहती है कि देश में अनाज का पर्याप्त भंडार है, सो कीमतें घटेंगी, पर कब यह मामला सनी देओल अभिनीत चलचित्र में अदालत की ‘‘तारीख पर तारीख‘‘ की बात को ही प्रदर्शित करती है।

देश के आंतरिक परिदृश्य पर अगर नजर डाली जाए तो साफ तौर पर एक ही बात उभरकर सामने आ रही है कि अनाज की कीमतें कालाबाजारियों और जमाखोरों द्वारा मचाई गई व्यवसायिक लूट का ही परिणाम है। सच्चाई तो यह है कि केंद्र और राज्यों की सरकारें ही इन आताताईयों पर नियंत्रण पाने में विफल रही हैं। विडम्बना यह है कि कांग्रेस की सरकार के कार्यकाल में ही कांग्रेस का ‘‘हाथ‘‘ गरीबों के गिरेबान तक पहुंच गया है।

देश की सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भ्रष्टाचार गलकर सड़ांध मार है, जिसकी बदबू चहुंओर फैलकर महामारियां फैला रही है, यह बात सभी को दिखाई पड़ रही है सिवाए कांग्रेस और विपक्षी दलों के। इन्हंे दिखाई और सुनाई पड़े भी कैसे? जब सियासी दल ही आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हों तो फिर उसे दूर करने की जहमत उठाए भी भला कौन? सरकार खुद ही अपने द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में इस बात को स्वीकार कर चुकी है कि 99 फीसदी उपभोक्ताओं को नियमित आपूर्ति नहीं हो पाती है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली का पचास फीसदी अनाज अधिकारियों और ठेकेदारों की मिली भगत से खुले बाजार में बेच दिया जाता है। इन परिस्थितियों में खाद्य सुरक्षा विधेयक परवान चढ़ सकेगा इस बात में संशय का गहरा कुहासा ही दिख रहा है।

देश में खाद्यान्न की कृत्रिम कमी के बाद जिंसों को आयात किया जाता है। आयतित खाद्यान्न बंदरगाहों पर या तो सड़ जाता है या मूषकों का ग्रास बन जाता है। इसी तरह रख रखाव के अभाव में देश में उत्पादित अनाज भी सड़ गल जाता है। देश की सबसे बड़ी पंचायत इस मामले में संज्ञान लेती है। केंद्र सरकार को अदालत आदेशित करती है कि खाद्यान्न को सड़ने देने के बजाए उसे गरीब में मुफ्त बांटा जाए। सरकार में बैठे मोटी चमड़ी वाले जनसेवकों की हिमाकत तो देखिए, वे अदालत के आदेश को सलाह मानकर उसका अनुपालन करने से इंकार कर देते हैं। तब अदालत को अपना रूख गंभीर कह कहना ही पड़ता है कि अदालत ने मशविरा नहीं दिया वरन् आदेश दिया है। कृषि मंत्री फिर भी कहते हैं कि वे अदालत के आदेश को पाने का प्रयास कर रहे हैं। चुनावों के दौरान दीवारों पर लिखे एक जुमले का उल्लेख यहां प्रासंगिक होगा जिसमें लिखा गया था कि -‘‘वाह री सोनिया तेरा खेल! खा गई शक्कर, पी गई तेल!!‘‘

हमारे विचार से देश की नीतियों में ही खोट है। सरकार को चाहिए कि नीतियों को जमीनी वास्तविक, हकीकत से रूबरू होने वाली बनाई जाया। भारत गणराज्य के जिम्मेदार मंत्रियों को अनर्गल बयानबाजी से रोका जाए। केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ ने बेतूल की एक सभा में कहा कि देश में गरीब दोनों टाईम खाने लगा है इसलिए मंहगाई बढ़ी है। कृषि मंत्री शरद पवार कहते हैं कि चीनी नहीं खाने से आदमी मर नहीं जाएगा। अरे आप जनता का जनादेश प्राप्त नुमाईंदे हैं, जिन्हें आवाम ए हिन्द ने अपना भविष्य सुरक्षित और संरक्षित करने की जवाबदारी दी है। अगर ये जनसेवक ही इस तरह की अनर्गल और गैर जिम्मेदाराना बयानबाजी करेंगे तो यह तो जनादेश का सरासर अपमान ही हुआ।

उत्पादन और आपूर्ति में अंतर साफ दिखता है। कभी गेंहूं की पैदावार बहुत अधिक हो जाती है, तो कभी चावल का उत्पादन रिकार्ड तोड़ देता है, तो कभी गन्ना जबर्दस्त पैदा होता है। इस असंतुलन का क्या कारण है? सरकार ने कभी जानने का प्रयास ही नहीं किया है। भारत सरकार ने एक मंत्रालय कृषि के लिए बनाया हुआ है। इसके तहत कृषि विज्ञान केंद्र भी अस्तित्व में हैं। कृषि पर शोध भी जमकर हुए हैं। भारत कृषि प्रधान देश भी कहा जाता है, जहां की आत्मा गांव में बसती है, इस लिहाज से किसान ही देश की आत्मा है। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि केंद्र और सूबों की सरकारों द्वारा भारत की आत्मा का गला घोंटा जा रहा है।

हजारों, लाखों करोड़ रूपए खर्च कर कृषि को उन्नत करने का ढकोसला किया जाता रहा है, यह क्रम आज भी अनवरत जारी है। कभी इस बात पर जोर नहीं दिया गया और न ही इस तरह का ही कोई कार्यक्रम चलाया गया जिसमें बताया गया हो कि किस जमीन पर किसान को कितने हिस्से में दाल, गेंहू, चावल, गन्ना आदि उगाना चाहिए। इस तरह देश का किसान अपने मन से दूसरों की देखा सीखी ही खेती करने पर मजबूर है। अगर देखा जाए तो देश में खाद्यान्न उत्पादन 330 किलो प्रति व्यक्ति की दर से हो रहा है, जो अनेक देशों की तुलना में बहुत ही संतुष्टीकारक माना जा सकता है, बावजूद इसके देश खाद्यान्न संकट से जूझ रहा है।

महानगरों में अमीरों और जनसेवकांे द्वारा एक ही रात में लाखों रूपयों की दारू मुर्गा पार्टी के बाद खाद्यान्न इस तरह फेंक दिया जाता है, मानो वह किसी के काम का नहीं है। इस बचे खाने को एकत्र करने के लिए सरकार के पास कोई ठोस कार्ययोजना नहीं है। आंकड़ों पर अगर गौर फरमाया जाए तो पिछले साल दुनिया भर में एक अरब दो लाख लोग भुखमरी का दंश झेल रहे थे, यह आंकड़ा इस साल घटकर बानवे लाख पचास हजार पहुंच गया है। एक तरफ दुनिया में जहां भूखे लोगों की तादाद में कमी आई है, वहीं भारत में इसकी संख्या का बढ़ना निश्चित तौर पर कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के लिए शर्म की बात है, पर शासकों को शर्म आए तो क्यों? शासकों का पेट भरा जो है।

मंगलवार, 14 सितंबर 2010

चप्पल फीवर से घिरे हैं युवराज

ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

चप्पल फीवर से घिरे हैं युवराज

जब से राजनेताओं के उपर जूते चप्पल फेंकने की घटनाएं घटना आरंभ हो गई हैं, तब से राजनेताओं के मन में जूते चप्पलों का खौफ जबर्दस्त तरीके से छाने लगा है। पिछले दिनों कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री और युवराज राहुल गांधी के एक कार्यक्रम में भी चप्पल जूतों के डर की छाया साफ साफ दिखाई पड़ी। महाराष्ट्र के अकोला में पंजाब राव देशमुख कृषि विद्यापीठ में संपन्न हुए राहुल गांधी के कार्यक्रम में सुरक्षा कर्मियों द्वारा किसी भी छात्र को चप्पल पहनकर हाल के अंदर प्रवेश करने नहीं दिया गया। नाराज छात्रों द्वारा कार्यक्रम का अघोषित बहिष्कार कर दिया। राहुल गांधी एक दिन के प्रवास पर अकोला गए थे, जहां उन्हें युवाओं से सीधा संवाद स्थापित करना था। चप्पल फीवर के चलते राहुल गांधी के सुरक्षा कर्मियों ने विद्यार्थियों के बेल्ट और चप्पल बाहर ही उतरवाना चालू कर दिया। नाराज छात्रों ने नारेबाजी करते हुए कार्यक्रम का बहिष्कार कर दिया। जब सुरक्षा कर्मियों को अपनी भूल का एहसास हुआ तब तक तो चिडिया खेत चुग चुकी थी। राहुल गांधी भी अपने इस तरह के फीके कार्यक्रम से खासे खफा ही नजर आए।

सरकार कर रही है गरीबों का खाना खराब

देश में न्यायपालिका सर्वोच्च होती है, यह बात प्रायमरी स्कूल की कक्षाओं से लेकर प्रोढ़ावस्था तक हिन्दुस्तान में जतलाई जाती रही है। सरकारी गोदामों में सड़ते अनाज पर देश की सबसे बड़ी अदालत ने चिंता जताकर सरकार को आड़े हाथांे लेते हुए फटकार लगाई थी कि अनाज को सड़ने के बजाए गरीबों में मुफत में बांट दिया जाए तो बेहतर होगा। देश के नीति निर्धारकों को इस बात की परवाह नहीं है कि गरीबों को दो वक्त की रोटी मिल रही है कि नहीं, उन्हें तो बस अपने वेतन भत्तों ेस मतलब है। पिछले साल केंद्र अक्टूबर माह से अब तक केंद्र सरकार द्वारा एक करोड़ दस लाख टन अनाज का आवंटन जारी किया था। राज्य सरकारों ने इसमें से महज 33 लाख 80 हजार टन अनाज ही उठाया है। दरसअल अनाज का की कीमत बहुत ज्यादा होती है, जिससे सूबों की सरकारें खरीदनें आनाकानी करती हैं। इसके अलावा ब्रेड और बिस्किट बनाने वाली कंपनियों द्वारा भी गरीबों के अनाज पर नजरें लगाई जाती हैं, जिससे निवाला गरीबों के पास जाने के बजाए इन कंपनियों के खाते में चला जाता है।

राम के भरोसे है भाजपा

भारतीय जनता पार्टी चाहे जो भी कहे पर वह भगवान राम को छोड़ने की स्थिति में कतई नहीं है। जब तब राम के नाम को भुनाकर सत्ता हासिल करने में भी भाजपा को गुरेज नहीं होता है। राम के नाम पर सबसे अधिक राजनैतिक रोटियां किसी ने सेंकी हैं, तो वे हैं राजग के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी। यह अलहदा बात है कि सत्ता की मलाई को चखने के साथ ही भाजपा द्वारा राम के नाम को ‘‘राम भरोसे‘‘ ही छोड़ दिया जाता है। केंद्र में तीन बार सत्ता का स्वाद चखने वाली भाजपा ने जब मौका मिला था, तब उसने राम के नाम का भरपूर उपयोग किया है। बाबरी ढांचे और राम जन्म भूमि के मामले में अभी इलहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला आना अभी बाकी है। इसके फैसले के बाद एक बार फिर राम एजेंडे पर भाजपा लौट आए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने लखनऊ में प्रदेश कार्यसमिति की बैठक के समापन अवसर पर पुनः राम को याद करते हुए कहा है कि भाजपा सब कुछ छोड़ सकती है, राम को नहीं, क्योंकि राम, राष्ट्रीयता और भारतीय संस्कृति की पहचान है।


कामन वेल्थ गेम्स के चलते पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के भौडसी स्थित फार्म हाउस के दिन फिर सकते हैं। हरियाणा में 588 एकड़ में फैले इस फार्म हाउस में प्लांटेशन और झीलों के सोंदर्यीकरण का जिम्मा वन विभाग का था, साथ ही इसके रखरखाव और पर्यटकों को अकर्षित करने की जवाबदारी पर्यटन विभाग के कांधों पर दी गई थी। पूर्व में बनाई गई कार्ययोजना में पर्यटकों को रात रूकने की सुविधा भी इस फार्म हाउस में उपलब्ध कराने की व्यवस्था थी। अब जबकि राष्ट्रमण्डल खेलों के आयोजन में गिनती के ही दिन बचे हैं, तब किसी का ध्यान पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के फार्म हाउस की ओर नहीं जा रहा है। इस फार्म हाउस की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी प्रशासन को सौंपी गई थी, साथ ही साथ पर्यटकों को भीड़ भाड़ से दूर प्राकृतिक माहौल देने के लिए बीस अतिरिक्त कमरों के निर्माण की बात भी फिजा में थी। आज चंद्रशेखर के फार्म हाउस की हालत क्या है, इस बारे में सोचने समझने की न तो किसी के पास फुर्सत है और न ही इसमें किसी को लाभ ही दिख रहा है।

अवैध खदानों का गढ़ बना एमपी

देश के हृदय प्रदेश मध्य प्रदेश में शिव का राज चल रहा है। मध्य प्रदेश में इस समय सबसे अधिक कोई काम हो रहा है तो वह है, अवैध उत्खनन का। कांग्रेस का आरोप है कि शिवराज के संरक्षण में उनके नाते रिश्तेदार और भाजपाईयों द्वारा अवैध तौर पर प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जा रहा है। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में दायर एक याचिका में कहा गया है कि पर्यावरण की स्वीकृति के बिना मध्य प्रदेश में 11 सौ से अधिक अवैध खदाने चल रही हैं। मुख्य न्यायाधिपति जस्टिस एस.आर.आलम और जस्टिस अर.एस.गर्ग की युगल पीठ ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर कहा है कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत पांच हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र वाली खदानों के लिए पर्यावरण की अनुमति लेना अनिवार्य है। बताते हैं कि याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार ने इस नियम के बाद भी पूरे प्रदेश में तकरीबन 11 सौ से अधिक रेत या बजरी खदानों के संचालन के लिए छूट प्रदान की है, जो अवैधानिक है।

राजघाट जाने से कतराते अमन के सौदागर

आधी धोती में उन ब्रितानियों को जिनका सूरज कभी नहीं डूबता था, को भारत देश से भगाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सम्मान में देश विदेश के लोग आकर दिल्ली के राजघाट में जाकर अपना मत्था अवश्य ही टेका करते हैं। पिछले कुछ दिनों से यह बात सामने आ रही है कि अमन के सौदागर जब भी भारत आए हैं, उन्होंने बापू की समाधी जाने से अपने आप को बचाकर ही रखा है। पिछले दिनों अतर्राष्ट्रीय परमाणु उर्जा एजेंसी के महानिदेशक मोहम्मद अली बरदेई जब इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित हुए तब बापू को श्रृद्धांजली अर्पित करने नहीं गए। इसके पहले विश्व व्यापार संगठन के महानिदेशक पास्कल लेमी ने भी तीन दिन दिल्ली में अपना समय बिताया पर वे भी राजघाट जाने से बचते रहे। और तो और समूची दुनिया में शांति बनाए रखने की बातों की हिमायती अमेरिका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन द्वारा दिल्ली यात्रा के दौरान राजघाट से दूरी बनाए रखी। कुल मिलाकर भारत सरकार द्वारा बापू के बारे में जाने अनजाने हर परिदृश्य में कम भाव दिए जा रहे हैं, उसे देखकर लगता है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक बार फिर बापू के नाम की ब्रेंडिंग की जरूरत है।

हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे

प्रख्यात साहित्यकार, व्यंग्यकार, कहानीकार रहे शरद जोशी ने एक व्यंग्य कथा लिखी थी, शीर्षक था ‘‘हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे‘‘। आज के परिदृश्य में भारत में यह बात सौ फीसदी फिट ही बैठ रही है। भारत में आज भ्रष्टों की तादाद बहुत ही ज्यादा हो चुकी है। केंद्रीय सतर्कता आयुक्त रहे प्रत्युश सिन्हा का कहना है कि देश में महज 20 फीसदी लोग ही ईमानदार बचे हैं। हर तीन में से एक भारतीय भ्रष्ट है। सिन्हा का यह कहना वाकई पुराने दिनों या सत्तर के दशक की याद ताजा करता है कि सत्तर के दशक की सामप्ति तक भ्रष्टाचार में रत सरकारी कर्मचारी को लोग हिकारत भरी नजरों से देखा करते थे। इतना ही नहीं इसे सामाजिक तौर पर कलंक माना जाता था। उस समय हर कार्यालय में यही लिखा होता था कि घूस यानी रिश्वत लेना और देना दोनों ही अपराध है और लेने वाला तथा देने वाला दोनों ही पाप के भागी हैं।

नेहवाल ने चलाया तीर

भारत में कामन वेल्थ गेम्स होने में अब ज्यादा समय नहीं बचा है। कामन वेल्थ गेम्स में भ्रष्टाचार की बातें अब केंद्र सरकार द्वारा मैनेज की जा चुकी हैं। कल तक भ्रष्टाचार के बारे में गला फाडने वाला मीडिया अब शांति से बैठ गया है। सब कुछ ‘‘मैनेज‘‘ है। इसी बीच राजीव गांघी खेल रत्न अवार्ड से नवाजी गई विश्व की तीसरे नंबर की बेडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल ने नया शिगूफा छोड दिया है। सायना का कहना है कि भारत देश कामन वेल्थ गेम्स आयोजित करने में सक्षम है ही नहीं। सबसे ज्यादा मजे की बात तो यह है कि सायना नेहवाल दिल्ली कामन वेल्थ गेम्स की ब्रांड एम्बेसेडर है। सायना की इस तरह की बयान बाजी से आयोजन समिति सकते में है। सायना की नजरें स्टेडियम पर गईं और उन्होने स्टेडियम की खुलकर आलोचना की है। अब जबकि समय कम बचा है तब एक ब्रांड एम्बेसेडर की इस तरह की टिप्पणी वाकई में आयोजकों के हाथ पैर फुलाने के लिए पर्याप्त है।

बदला लेकर रहेगी फिजा

भजनलाल परिवार की बहू रही फिजा मोहम्मद अब भी प्रतिशोध की आग में जल रही है। फिजा मानती है कि भजनलाल परिवार का राजनैतिक तौर पर अवसान हो चुका है। चंद्रमोहन के साथ शादी करने के बाद फिजा बनने वाली का कहना है कि धर्म कोई कपड़ा नहीं है जिसे बार बार बदला जाए। उनका कहना है कि वे फिजा हैं और फिजा ही रहेंगी। फिजा को खतरा है कि भजनलाल और चंद्रमोहन द्वारा पंजाब पुलिस के माध्यम से उन पर दबाव बनवाया जा रहा है कि वे भजनलाल परिवार पर चल रहे प्रकरण वापस ले लें। अकेले रहने का हवाला देते हुए फिजा का कहना है कि उन्होने भूपेंद्र ंिसंह हुड्डा के नेतृत्व वाली सरकार से सुरक्षा मांगी पर उन्हें सुरक्षा नहीं मिल सकी है। हरियाणा में बढ़ते अपराध के लिए शासन प्रशासन को भी आड़े हाथों लेते हुए फिजा का कहना था कि वे एक संगठन को खड़ा करने पर विचार कर रही हैं। अगर फिजा ने दम मारा तो निश्चित तौर पर आने वाले समय में भजनलाल परिवार पर संकट के बादल छा सकते हैं।

पुच्छल तारा

आज के समय में धूम्रपान और मद्यपान के बढ़ते चलन को देखकर नीचम से समीर सिन्हा ने एक ई मेल भेजा है। शिक्षक ने अपने छात्र से पूछा कि दो एसे किंग के नाम बताओ जो लोगों के मुंुह पर मुस्कुराहट सुकून और शांति लाए हों। एक छात्र खड़ा हुआ और बोला -‘‘सर, स्मो ‘किंग‘ और ड्रिं ‘किंग‘।‘‘
दिन फिर सकते हैं चंद्रशेखर के फार्महाउस के