रविवार, 22 नवंबर 2009

कुछ तो शर्म करते चव्हाण साहेब


कुछ तो शर्म करते चव्हाण साहेब




(लिमटी खरे)





शिवसेना सुप्रीमो बाला साहेब ठाकरे के बाद उनके भतीजे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के चीफ राज ठाकरे ने भाषावाद और प्रांत वाद की बलिवेदी पर अपनी राजनैतिक बिसात तैयार की है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। दिल्ली में तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने वाली शीला दीक्षित, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ भी क्षेत्रवाद के हिमायती ही दिख रहे हैं, जिन्होंने अपने अपने सूबों के लोगों को ज्यादा रोजगार देने की वकालत की है।




क्षेत्रीयता के इस जहर को आगे बढाते हुए अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने भी राज ठाकरे के सुर में सुर मिला दिया है। राज्य में जनाधार बढाने के लिए चव्हाण ने अब रेल मंत्री ममता बनर्जी से अपील की है कि रेल्वे में ``मराठी मानुष`` का विशेष ख्याल रखा जाए, उन्हें वरीयता के हिसाब से नौकरी प्रदान की जाए।




इसके पहले चव्हाण ने रेल्वे की परीक्षाओं में महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों पर हुए हमले के मद्देनजर ममता बनर्जी से आग्रह किया था कि रेल्वे की परीक्षाएं स्थानीय भाषाओं में कराई जाएं। रेल मंत्री ने ममता दिखाते हुए चव्हाण की अपील मान ली थी।




भाषावाद का जहर उगलने वाले राज ठाकरे पर किसी ने भी शिकंजा कसने का उपक्रम नहीं किया है। आजाद भारत का इससे बडा दुर्भाग्य और कुछ नहीं कहा जा सकता जहां देश की मातृभाषा, और राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त हिन्दी की सरेआम चिंदी उडाई जा रही हो। जहां हिन्दी में विधानसभा में शपथ लेने पर एक जनसेवक द्वारा जनता के चुने नुमाईंदे को थप्पड मारे जाएं।




आपला मानुष के नाम पर सियासत कहां तक उचित है। अगर राज और बाल ठाकरे के इन अश्वमेघ यज्ञ के घोडों को नहीं रोका गया तो आने वाले समय में समूचा हिन्दुस्तान इसकी आग में बुरी तरह झुलसा ही नजर आएगा, इस बात में कोई शक नहीं है।




बाला साहेब ठाकरे और राज ठाकरे के बुलंद होसलों के चलते इनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सका है। अब इन्हीं से प्रेरणा लेकर अन्य राजनेता भी क्षेत्रवाद की राजनीति पर उतर आए हैं। पहले उत्तर प्रदेश मूल की निवासी और दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित ने यूपी और बिहार को कोसा। फिर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सतना में मध्य प्रदेश के लोगों को नौकरी ज्यादा देने की बात पर विवाद खडा कर दिया।




तेरी साडी मेरी साडी से सफेद कैसे की तर्ज पर केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ ने भी मध्य प्रदेश की व्यवसायिक राजधानी इंदौर में मध्य प्रदेश मूल के लोगों को राज्य में अधिक रोजगार मुहैया कराने का शिगूफा छोड दिया। सवाल तो यह है कि इन राजनेताओं की जबान पर लगाम लगाए तो आखिर कौन!




राज ठाकरे की गुण्डागदीZ तो देखिए, मनसे ने धमकाया की कि भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड (सेबी), बांबे स्टाक एक्सचेंज (बीएसई) की वेव साईट पर सूचनाएं मराठी में उपलब्ध कराई जाएं। ठाकरे ब्रदर्स के आक्रमक रवैऐ के आगे सेबी और बीएसई दोनों ही झुक गए और आ गईं सूचनाएं मराठी भाषा में।




भारत गणराज्य में कर किसी को अपना धर्म, भाषा आदि मानने की स्वतंत्रता है, पर किसी को आप मार मार कर मुसलमान तो नहीं बना सकते। भारत के संविधान को अक्षुण रखने की सौगंध उठाने वाले जनता का जनादेश प्राप्त और पिछले रास्तों से संसद या विधानसभा की दहलीज पर पहुंचने वाले ``जनसेवक`` आखिर इन आताताईयों के आगे झुकने पर मजबूर क्यों हैं।




जनवरी और फरवरी 2008 में राज ठाकरे के गुंडों ने महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों को तबियत से धुना। 04 फरवरी 2008 को फिर ये गुंडे सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के घर तोडफोड करने पहुंच गए। 19 अक्टूबर 08 को मंबई के रेल्वे स्टेशनों पर मनसे के गुंडों ने रेल्वे की परीक्षा देने आए उत्तर भारतीयों को बुरी तरह पीटा। इस साल 9 नवंबर को विधानसभा में अबू आजमी को मनसे विधायकों ने पीटा। मनसे ओर शिवसेना के गुर्गों की गुण्डई फिर भी नहीं रूकी। गत 20 नवंबर को मुंबई में आईबीएन 7 समाचार चेनल के कार्यालय में शिवसेना के गुण्डों ने तांडव मचाया।




यह सब कुछ उसी सूबे में हो रहा है जिसके निजाम कोई ओर नहीं अशोक चव्हाण खुद हैं। हमारे मतानुसार आशोक चव्हाण को कुछ तो शर्म करना चाहिए। शिवसेना चीफ एक बार फिर हुंकार भर रहे हैं कि मीडिया भगवान नहीं है। वह हिटलर हो गया है। उन्होंने कहा कि अगर दुबारा उनकी आलोचना हुई तो फिर हमले हो सकते हैं।




बाला साहेब ठाकरे के इस कथन से हम आंशिक तौर पर सहमत हैं कि मीडिया कुछ जगहों पर हिटलर की भूमिका में आ गया है, इसका कारण मीडिया का कार्पोरेट हाथों में जाना है। अपने निहित स्वार्थों के लिए अब उद्योगपतियों में मीडिया मुगल बनने का भूत सवार हो गया है।




किन्तु अगर ठाकरे यह कह रहे हैं कि उनकी दोबारा आलोचना होगी तो हमले फिर से हो सकते हैं। तो इस बात से हम इत्तेफाक नहीं रखते। यह तो सरेआम धमकी है प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ के लिए। हमारी अपनी राय में तो इस बीमारी को समूल नष्ट करने के लिए मीडिया को एक जुट हो जाना चाहिए और राज ठाकरे और बाला साहेब ठाकरे जैसे जहर फैलाने वाले तत्वों का सोशल बायकाट कर देना चाहिए।