गुरुवार, 10 जून 2010

गैस कांड पर जिम्‍मेदारी से भागती कांग्रेस


गैस कांड पर कांग्रेस को तोडना होगा मौन!

अब बढेगी अर्जुन सिंह की पूछ परख

उपेक्षा से आहत अर्जुन उठा सकते हैं गांडीव

उघडती जा रही हैं षणयंत्रों की परतें

बात निकली है तो दूर तलक जाएगी

(लिमटी खरे)

छब्बीस साल पहले जब देश के हृदय प्रदेश में दुनिया की सबसे बडी औद्योगिक त्रासदी हुई थी, उस वक्त कांग्रेस के बीसवीं सदी के उत्तरार्ध के चाणक्य कुंवर अर्जुन सिंह इस सूबे के निजाम हुआ करते थे। यूनियन कार्बाईड के तत्कालीन प्रमुख वारेन एंडरसन को रातों रात भोपाल से भगा देने के षणयंत्र पर से धीरे धीरे पर्दा उठता जा रहा है। उस दौरान का प्रशासनिक अमला अब अपनी बंद जुबान खोल रहा है। तथ्यों के सामने आने से सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस का रक्तचाप एकाएक बढ गया है। कांग्रेस की धुरी पिछले कुछ सालों से नेहरू गांधी परिवार की इतालवी बहू सोनिया गांधी के इर्दगिर्द घूम रही है। सोनिया के राजनैतिक प्रबंधक और सलाहकारों ने कुंवर अर्जुन सिंह का पत्ता कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के केंद्र 10, जनपथ से कटवा दिया है। कुंवर अर्जुन सिंह भले ही अपनी पीडा को उजागर न करें पर उनकी खामोशी बताती है कि वे अपने आप को किस कदर उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।

कांग्रेस के प्रबंधकों को सपने में भी भान न होगा कि भोपाल गैस कांड के फैसले के बाद उठे बवंडर में कांग्रेस का आशियाना बुरी तरह हिल जाएगा। चाणक्य की चालें चलने में माहिर कुंवर अर्जुन सिंह उस वक्त मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, जब यह कांड हुआ। किसके कहने पर वारेन एंडरसन को गिरफ्तार कर, यूनियन कार्बाईड के गेस्ट हाउस में रखा गया था, जिसमें फोन की सुविधा उपलब्ध थी, और किसके कहने पर एंडरसन को सरकारी विमान मुहैया करवाकर देश से भाग जाने का मौका दिया गया। एक निजी समाचार चेनल को दिए गए साक्षात्कार में भोपाल के तत्कालीन जिला दण्डाधिकारी मोती सिंह कहते हैं कि तत्कालीन मुख्य सचिव के आदेश की तामीली में उन्होंने यूनियन कार्बाईड के एक कर्मचारी को इसके लिए तैयार किया कि वह एंडरसन की जमानत ले लें। यह है आजादी के बाद 37 साल बाद की भारत गणराज्य की तस्वीर। अगर आम आदमी को पुलिस गिरफ्तार करे तो उसके जमानतदार की चप्पलें घिस जाती हैं जमानत लेने में। यहां तो जिले का मालिक कहा जाने वाला जिला कलेक्टर खुद ही जमानत के लिए उपजाउ माहौल मुहैया करवा रहा है।

आजादी के उपरांत 1977 का कुछ समय, चंद्रशेखर, देवगोडा, अटल बिहारी बाजपेयी आदि की सरकारों का कार्यकाल अगर छोड दिया जाए तो आधी सदी से ज्यादा समय तक देश पर सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस ने ही हुकूमत की है। अब आम जनता अंदाजा लगा सकती है कि सुशासन देने का वादा करने वाली, कांग्रेस का हाथ गरीबों के साथ का दावा करने वाली कांग्रेस का दामन खुद कितना दागदार है। माना जाता है कि अस्सी के दशक तक राजनीति में नैतिकता का स्थान था, किन्तु यह मिथक एक झटके में तब टूट गया जब पंद्रह हजार से अधिक लोगों को लीलने वाली कंपनी के प्रमुख को सरकारी सुरक्षा में देश से भागने के मार्ग प्रशस्त किए गए। इन सबके बाद भी कांग्रेस की चुप्पी निस्संदेह राष्ट्रीय शर्म की बात है। विदेशों में पली बढीं सोनिया एन्टोनिया माईनो (सोनिया गांधी का असली नाम) भारत की संस्कृति से आज भी पूरी तरह वाकिफ नहीं हो सकीं हैं।

इतनी बडी त्रासदी के बाद अब अगर भारतीय प्रशासिनक सेवा का कोई अधिकारी जो उस वक्त जिला दण्डाधिकारी जैसे जिम्मेदार पद पर रहा हो, आज कोई बात कह रहा है तो कम से कम सोनिया को चाहिए था कि वे इस मामले में दो शब्द तो बोलतीं। एक और जहां ग्लोबल मीडिया में भोपाल गैस कांड का फैसला और भारत की सरकार को लताड दी जा रही हो वहां भारत की सबसे ताकतवर महिला मानी जाने वाली श्रीमति सोनिया गांधी मंुह सिले बैठीं हो तो क्या कहा जाएगा। सोनिया महिला हैं, मां हैं, वे उन माताओं के दर्द को समझ सकतीं हैं, जिन्होंने इस कांड में अपने गुदडी के लाल खोए होंगे। वैसे भोपाल गैस कांड के पूरे प्रकरण और फैसले ने देश की जांच एजेंसी सीबीआई की भूमिका पर एसा सवालिया निशान लगा दिया है, जो शायद ही कभी मिट सके।

इतना ही नहीं सीबीआई के एक पूर्व अधिकारी ने तो साफ तोर पर कह दिया है कि विदेश मंत्रालय के साफ निर्देशों के चलते उन्होंने इस मामले के मुख्य अभियुक्त एंडरसन के प्रत्यार्पण के मामले को आगे नहीं बढाया था। भारत के नीति निर्धारकों की कूटनीतिक चालें समझ से परे हैं। केंद्र सरकार राग अलाप रही है कि यह मामला अभी समाप्त नहीं हुआ है, वहीं दुनिया के चौधरी अमेरिका के सहायक विदेश मंत्री राबर्ट ब्लेक ने साफ शब्दों में कह दिया है कि अमेरिका के लिए ‘‘दिस चेप्टर इस ओवर।‘‘ अब यूनियन कार्बाईड या फिर भोपाल गैस कांड के बारे में अमेरिका कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है।

पता नहीं क्यों भारत सरकार यह समझने को तैयार क्यों नहीं है कि यही सही वक्त है, जब अमेरिका पर खासा दबाव बनाया जा सकता है। राबर्ट ब्लेक का प्रलाप व्यर्थ नहीं है। अमेरिका चाहता है कि परमाणु उर्जा से संबंधित ‘न्यूक्लियर लाईबिलिटी बिल‘ भारत की संसद में पास हो जाए। अगर भोपाल गैस त्रासदी को हवा दी गई तो निश्चित तौर पर यह मामला लटक जाएगा, तब अमेरिका के भारत की सरजमीं पर न्यूक्लियर उर्जा से संबंधित मशीने, उपकरण और माल भेजना आसान नहीं होगा। भारत को यह समझना होगा कि अमेरिका की सरकार यह मानती है कि इंसान वही है जिसकी रगों में अमेरिकी रक्त का संचार हो रहा है, इसी तर्ज पर भारत को दुनिया विशेषकर अमेरिका को यह जतलाना होगा कि भारत गणराज्य की सरकार की नजर में भारतीय पहले हैं, बाकी दुनिया के लोग बाद में। इतनी बडी त्रासदी जिसमें पंद्रह हजार से ज्यादा जाने गईं हों और लाखों प्रभावित हुए हों, इस तरह की आपराधिक भूल को अक्षम्य ही माना जाएगा। छब्बीस बरसों मेें अर्जुन सिंह के बाद भाजपा के सुंदर लाल पटवा सहित कांग्रेस के अनेक मुख्यमंत्री काबिज रहे हैं मध्य प्रदेश में, किन्तु सभी हाथ पर हाथ रखे बैठे रहे। मतलब साफ है कि यूनियन कार्बाईड द्वारा इन जनसेवकों के निहित स्वार्थों को पूरा किया गया होगा, वरना क्या वजह थी कि ये चुपचाप बैठे रहे।

भोपाल गैस कांड का फैसला आने के बाद समूचे देश में इसकी तल्ख प्रतिक्रिया हुई है। लोगों ने अब तक की सरकारों और विशेषकर कांग्रेस को दिल से कोसा है। हडबडी में सरकार जागी है। भारत गणराज्य की सरकार ने मंत्रियों के समूह का गठन कर डाला है। वहीं दूसरी ओर प्रदेश की सरकार अब उंची अदालत में जाने की बात कह रही है। बहुत पुरानी कहावत है, ‘‘अब पछताए का होत है, जब चिडिया चुग गई खेत।‘‘ कम ही लोग शायद ही इस बात को जानते हों कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के पहले कार्यकाल में भोपाल गैस कांड से जुडे मसलों के लिए मंत्री समूह का गठन किया गया था, जिसके अध्यक्ष तत्कालीन मानव संसाधन और विकास मंत्री अर्जुन सिंह ही थे। अर्जुन सिंह चतुर सुजान हैं, सो वे जानबूझकर इस मामले को उपेक्षित करते रहे ताकि वक्त आने पर इसे भुनाया जा सके।

तत्कालीन डीएम मोती सिंह, सीबीआई के पूर्व निदेशक जोगिंदर सिंह आदि के खुलासे से साफ हो गया है कि देश की जांच एजेंसी और सरकारें राजनेताओं के हाथों की लौंडी बनकर नाच रही हैं। विपक्ष भी इस मामले में तल्ख तेवर नहीं अपना रहा है, जो आश्चर्यजनकी ही माना जाएगा। बहरहाल अब गेंद एक बार फिल मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के पाले में आ गई है। आने वाले दिनों में कंुवर अर्जुन सिंह की पूछ परख बढ जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कुंवर अर्जुन सिंह मंण्े हुए राजनेता हैं, उनके हाथ में अनायास ही एक एसा तीर लग गया है जिससे अनेक निशाने साधे जा सकते हैं, राज्य सभा का कार्यकाल भी उनका काफी कम बचा है। चूंकि हादसे के वक्त केंद्र और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी, अतः कांग्रेस इस मामले में अपनी जवाबदारी से नहीं बच सकती है। अर्जुन सिंह अगर मौन रहते हैं तो कांग्रेस इस जिल्लत से खुद को निकाल लेगी,। विपक्ष की बोथली धार से कुछ होता नहीं दिखता, किन्तु अगर कुंवर साहेब ने मुंह खोला तो कांग्रेस के लिए देश को जवाब देना मुश्किल हो जाएगा।

वाह री किस्‍मत

इसे कहते हे किस्मत कंधे पर अपने पालतू कुत्ते को उठाकर ले जा रही महिला शायद ये भूल गई की वो अपनी ही बेटी को ऊँगली पकड़ कर घसीट रही हे , इसे आप कुत्ते की किस्मत को अच्छी कहे या बच्ची की किस्मत को ख़राब  पर किस्मत तो किस्मत हे भाई

हमें यह फोटो भेजा है मंदसौर मध्‍य प्रदेश दिलीप गुप्‍ता ने, भई वाह

न्‍याय को भटकते पीडित

दुर्घटना बीमा दावा अदायगी तुरंत

120 दिन में मिलेगा दुर्घटना दावा

दिल्ली पुलिस की अभिनव पहल

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 10 जून। दुर्घटना बीमा के क्लेम हेतु अब दिल्ली मंे किसी को दर दर भटकने की आवश्यक्ता नहीं होगी। अप्रेल माह से दिल्ली पुलिस ने सूबे के हर एक पुलिस स्टेशन में दुर्घटन सेल की स्थापना कर दी है, जो इस बात को सुनिश्चित करेगा कि दुर्घटना दावा घटना के महज चार माह यानी 120 दिन अथवा अधिकतम छः माह के भीतर निपट जाए। दिल्ली उच्च न्यायालय के डंडे के बाद हरकत में आई दिल्ली पुलिस ने यह कदम उठाते हुए पायलट प्रोजेक्ट की संज्ञा भी दी है। मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल (एमएसीटी) द्वारा इसके लिए अत्याधुनिक तंत्र भी तैयार किया जा हा है।

दिल्ली यातायात पुलिस के आंकडों पर अगर गौर फरमाया जाए तो दिल्ली में हर रोज डेढ दर्जन दुर्घटनाएं घटती हैं, और औसतन पांच लोग रोजाना असमय ही इसमें दम तोड देते हैं। दिल्ली पुलिस के सूत्रों का कहना है कि भले ही कोर्ट की फटकार के उपरांत यह सेल अस्तित्व में आया हो पर इसका मुख्य उद्देश्य पीडितों को समय पर न्याय दिलवाना है। सूत्रों का कहना है कि दुर्घटना से जुडे हर तथ्य मसलन, एफआईआर, कानूनी चिकित्सकीय रिपोर्ट (एमएलसी) आदि को ऑन लाईन ही अद्यतन (अपडेट) किया जाएगा।

इस सेल के मुख्य काम की फेहरिस्त में यह भी शुमार किया गया है कि प्रकरण के आते ही सबसे पहले संबंधित बीमा एजेंसी को अपने पास बुलाया जाए। इंश्योरेंस कंपनी सारे आंकडे वेब साईट से लेकर आवश्यक कागजात तत्काल मुहैया करवाएंगी। दिल्ली के डेढ सौ से अधिक पुलिस अधिकारी युद्ध स्तर पर इन प्रकरणों का निपटारा करके उसे बीमा कंपनी को अंतिम कार्यवाही हेतु सौंप देंगे। एमएसीटी की वेब साईट पर इन सारी जानकारियों को अपलोड कर दिया जाएगा।

एमएसीटी का काम पीडित पक्षकार को क्षतिपूर्ति तय होने तक का सारा डाटा तैयार करना होगा। इसके अलावा बीमा कंपनियों के लिए बीमा दावा के चेक जारी करने के लिए समय सीमा भी निर्धारित करने को कहा गया है। एमएसीटी के कर्मचारियों को ताकीद किया गया है कि वे पीडित के प्रति सहानुभूति पूर्वक पेश आकर जल्द से जल्द पक्षकार को धनादेश (चेक) सौंपना सुनिश्चित करे।

गौरतलब है कि 2005 में दुर्घटनाओं की तादाद 9009, वर्ष 2006 में 8838, वर्ष 2007 में 8270, वर्ष 2008 में 8108 और वर्ष 2009 में इसकी संख्या 6752 थी। इन दुर्घटनाआंे में वर्ष 2005 में 1953, वर्ष 2006 में 1910, वर्ष 2007 में 2099, वर्ष 2008 में 1927 और पिछले साल इसकी संख्या 2165 थी। 2007 और 2008 में ट्रक दुर्घटनाआं की तादाद 236/250, ब्लू लाईन किलर बस से 138/102, कमर्शियल व्हीकल्स से 445/436, कार से 226/176 तो हिट एण्ड रन के 719/743 प्रकरण दर्ज किए गए जिनमें मौत हुईं थीं। इस तरह पिछले पांच सालों में कुल 40 हजार 977 दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या 10 हजार 54 थी।

पीने पिलाने की उमर में भेद क्यों?

दिल्ली के आबकारी कानून लागू होने में हो सकती है देर

केंद्र और राज्य के बीच उम्र को लेकर रस्साकशी

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 10 जून। आने वाले समय मंे देश की राजनैतिक राजधानी में 25 साल से कम के युवा मद्य का सेवन नहीं कर पाएंगे। साथ ही सार्वजनिक स्थानों पर आए दिन अघोषित मयखाने पाए जाने पर पीने वालों पर जुर्माना 200 रूपए से बढाकर पांच हजार रूपए कर दिया गया है। केंद्र सरकार को दिल्ली सरकार का यह कानून नागवार गुजरता प्रतीत हो रहा है। केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय ने दिल्ली सरकार को लिखे एक पत्र में अपनी कुछ आपत्तियां दर्ज की हैं।

गौरतलब होगा कि वर्तमान में दिल्ली में पंजाब एक्साईज एक्ट 1914 लागू है। दिल्ली सरकार का नया आबकारी कानून केंद्र सरकार की मंजूरी के लिए मंत्रालयों की सीढियां चढ उतर रहा है। दिल्ली सरकार के आला दर्जे के सूत्रों का कहना है कि इस कानून के प्राप्त होने के साथ ही केंद्र सरकार हरकत में आ गई हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा इस मामले मंे राज्य के वित्त मंत्री डॉ.अशोक कुमार वालिया को पत्र लिखकर कुछ मामलात में सफाई मांगी है।

सूत्रों ने आगे बताया कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के पत्र में कहा गया है कि दिल्ली के नए आबकारी कानून में कहा गया है कि दिल्ली मंे नया कानून लागू होने के बाद शराब का सेवन करने वालों की उमर पच्चीस साल होना चाहिए पर शराब परोसने वाले महज 21 साल के हो सकते हैं, इसका आशय क्या है। सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार के इस पत्र का जवाब डॉ.वालिया ने केंद्र को भेज दिया है, जिसमें साफ कहा गया है कि माननीय न्यायालय के उस आदेश के परिपालन में एसा प्रावधान किया गया है, जिसमें कहा गया है कि ज्यादा से ज्यादा युवाओं को रोजगार मुहैया कराने सरकार आगे आए।

इस नए कानून के बारे में कहा जा रहा है कि दिल्ली में सार्वजनिक स्थानों पर मद्यपान करते पकडे जाने पर अब तक की सजा का प्रावधान दो सौ रूपए से बढाकर पांच हजार रूपए कर दिया गया है। इसके साथ ही साथ अवैध शराब रखने वालों के खिलाफ भी कडी कार्यवाही का प्रावधान किया गया है। इतना ही नहीं अगर इस तरह की शराब पीने से किसी की मौत हो जाती है तो दोषी पाए गए व्यक्ति को मृत्युदण्ड और दस लाख रूपए तक के जुर्माने का प्रावधान भी किया गया है। यद्यपि अधिकारी मानते हैं कि इस नए कानून के अमल में आने के उपरांत दिल्ली में अवैध शराब का कारोबार पूरी तरह रूक जाएगा, किन्तु अवैध शराब बेचने में होने वाले मुनाफे के चलते यह लाबी इतनी ताकतवर हो चुकी है कि नया आबकारी कानून अमली जामा पहन पाए इसमें संशय ही लग रहा है।