मंगलवार, 27 जुलाई 2010

भारत में धूम मचाने के बाद अब है तैयारी विश्व भ्रमण की

लो अपना प्यारा मोगली अब चला हॉलीवुड की ओर!

देश के हृदय प्रदेश के सिवनी सूबे का है मोगली

देश के मोगली की महत्ता भारत के बजाए पहले जापान ने समझी

(लिमटी खरे)

भारत गणराज्य के लोगों की स्मृति से अभी विस्मृत्र नहीं हुआ होगा कि नब्बे के दशक में धूम मचाने वाला दूरदर्शन पर हर रविवार को सुबह सवेरे ‘‘जंगल जंगल पता चला है, चड्डी पहन के फूल खिला है . . .‘‘ वाले टाईटल सांग का सीरियल ‘‘द जंगल बुक‘‘ का हीरो भेडिया बालक मोगली देश भर के हर वर्ग, हर आयु के लोगों की पहली पसंद बन गया था। यही मोगली अब तैयारी में है कि वह भारत से निकलकर अब हॉलीवुड में जाकर धूम मचाने की। जी हां, आने वाले सितम्बर माह में मोगली पर आधारित फिल्म का प्रोडक्शन आरंभ हो जाएगा।

गौरतलब है कि ब्रितानी शासनकाल में भारत के हृदय प्रदेश के सिवनी जिले के जंगलों में एक बालक जो जंगली जानवरों विशेषकर भेडियों के बीच पला था के अस्तित्व में होने की किंवदंती आज भी फिजाओं में है। माना जाता है कि एक बालक जो जंगलों की वादियों में पला बढा था, वह भेडियों की सोहबत में रहने के कारण अपनी आदतें भेडियों की तरह ही कर बैठा था, ने लंबा समय जंगलों में बिताया था।

ब्रितानी शासन में इंग्लेण्ड के मशहूर लेखक और कवि रूडयार्ड किपलिंग ने मोगली के जीवन को कागज पर उतारा था। क्पिलिंग का जन्म भारत गणराज्य की आर्थिक राजधानी मुंबई में उस वक्त हुआ था जब देश पर ब्रितानी शासक हुकूमत किया करते थे। किपलिंग के माता पिता मुंबई में ही रहा करते थे।

कवि रूडयार्ड किपलिंग ने महज 13 साल की आयु से ही कविताएं लिखना आरंभ कर दिया था। कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं, उसी तर्ज पर किपलिंग की कविताएं तब काफी लोकप्रिय हो गईं थीं। कहा जाता है कि किपलिंग को एक बार भारत की सुरम्य वादियों के बीच देश के जंगलों की अनमोल वादियों में सैर का मौका मिला।

उसी दौरान एक फारेस्ट रेंजर गिसबॉर्न ने रूडयार्ड किपलिंग को एक बालक के शिकार करने की क्षमताओं के बारे में सविस्तार बताया। जंगली जानवारों के बीच लालन पालन होने के कारण उस बालक में यह गुण विकसित हुआ था। यहीं से किपलिंग को जंगली खूंखार जानवरों के बीच रहने वाले उस अद्भुत बालक के बारे में लिखने की प्रेरणा मिली। किपलिंग ने जंगल बुक नामक किताब में इस अनोखे बालक के जीवन को बडे ही करीने से उकेरा है। बाद में यही बालक सबका रा दुलारा ‘मोगली‘ बन गया।

किपलिंग की इस किताब में मोगली के सहयोगी मित्रों और बुजुर्गों के तौर पर चमेली, भालू, का, अकडू पकडू, खूंखार शेरखान आदि को भी बखूबी स्थान दिया गया है। विडम्बना यह है कि भारत के जंगलों में पाए जाने वाले इस मोगली के बारे में उसकी खासियतें पहचानी तो एक ब्रितानी लेखक ने।

इतना ही नहीं ब्रितानी लेखक के इस नायाब अनुभवों या काल्पनिक काम को सूत्र में पिरोकर फिल्माने का काम किया जापान ने। जापान में सिवनी के इस बालक के कारनामोें के बारे में 1989 में एक 52 एपीसोड वाला सीरियल तैयार किया गया था। ‘‘द जंगल बुक शिओन मोगली‘‘ नाम से बनाए गए इस एनीमेटिड टीवी सीरियल को जब प्रसारित किया गया तो जापान का हर आदमी मोगली का दीवाना बन गया था।

जब भारत को यह पता चला कि उसके देश की इस नायाब कला को जापान में सराहा जा रहा है, तो भारत में इसके प्रसारण का मन बनाया गया। एक साल बाद 1990 में इसी जापानी सीरियल द जंगल बुक ऑफ शिओन मोगली को हिन्दी में डब करावाया गया और फिर इस कार्टून सीरियल ‘द जंगल बुक‘ को दूरदर्शन पर प्रसारित किया गया। जैसे ही रविवार को इसका प्रसारण आरंभ किया गया, वैसे ही इस सीरियल की लोकप्रियता ने सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिए। इस मोगली सीरियल का टायटल सांग ‘जंगल जंगल बात चली है, पता चला, चड्डी पहन कर फूल खिला है . . .‘ को लिखा था मशहूर गीतकार गुलजार ने और इसे संगीत दिया था विशाल भारद्वाज ने।

आल लगभग बीस साल के उपरांत यह मोगली एक बार फिर अपनी लोकप्रियता के सारे पैमाने ध्वस्त करने की तैयारी में है। यह कार्टून सीरियल एक बार फिर निर्माण हेतु तैयार है। और इसके उपरांत यह दुनिया भर में धूम मचाएगा। मोगली पर फिल्म निर्माण की जवाबदारी अब विज्जुअल इफेक्ट कंपनी डीक्यू एंटरटेनमेंट अपने कांधों पर ली है जो इस पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर की फिल्म बनाने जा रही है। द जंगल बुक के नाम से आने वाले समय में थ्री डायमेंशनल फिल्म बनाई जाने वाली है, जो दुनिया भर में रिलीज की जाएगी।

लगभग एक सौ बीस करोड रूपए लागत से बनने वाली इस फिल्म का प्रोडक्शन इसी साल सितम्बर से आरंभ होने वाला है। भारत के हेदराबाद की एनीमेशन, गेमिंग और इंटरटेनमेंट कंपनी डीक्यू एंटरटेनमेंट द्वारा बनने वाली यह थ्री डी फिल्म 2011 में यह रिलीज को तैयार हो जाएगी एसा माना जा रहा है।

मूलतः रूडयार्ड किपलिंग की किताब द जंगल बुक पर आधारित यह चलचित्र ‘इन द रूख‘, ‘टाईगर‘, ‘लेटिंग इन द जंगल‘ आदि कहानियों का निचोड होगा जिसमें मोगली के अपने माता पिता से बिछुडने, जंगल में खूंखार जानवरों के बीच पलने बढने, उसके साहसिक कारनामों और फिर मानव जाति और सभ्यता में वापसी पर आधारित होगी।

एनएचएआई भी कर रही है सिवनी के साथ पक्षपात

सद्भाव और मीनाक्षी बच रहे हैं अपनी जवाबदारियों से


(लिमटी खरे)

सिवनी। उत्तर दक्षिण गलियारा सिवनी से होकर जाएगा या नहीं इस प्रश्न के जवाब में सभी उलझ गए हैं, इसका लाभ इस मार्ग का निर्माण करा रही सद्भाव कंस्ट्रक्शन कंपनी और मीनाक्षी कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा सीधे सीधे उठाया जा रहा है। जिस मार्ग का निर्माण रूका हुआ है, उसका रख रखाव करने से भी ये कंपनियां बच रहीं हैं, और सिवनी में प्रशासन के साथ ही साथ जनसेवक भी अपनी जवाबदारियों से अपने आप को बचाकर रखे हुए हैं।

एनएचएआई के उच्च पदस्थ सूत्रों का दावा है कि वर्तमान में जिस मार्ग का निर्माण नहीं हुआ है, और जहां जहां से इन कंपनियों ने बायपास बनाकर आरंभ करवा दिया है, अथवा आरंभ होना शेष है, वहां शहरी बसाहट से होकर गुजरने वाले मार्ग के रखरखाव की जवाबदारी भी निर्माण करा रही कंपनियों की है। विडम्बना है कि लगातार दूसरे साल में भी इन मार्गों के धुर्रे उड गए हैं, जिसका खामियाजा यहां से होकर गुजरने वाले वाहनों को भुगतना पड रहा है।

सूत्रों ने कहा कि एनएचएआई के सिवनी में पदस्थ अधिकारियों द्वारा भी इस दिशा में कठोर कार्यवाही न कर परोक्ष तौर पर मार्ग निर्माण में लगी कंपनियों को लाभ पहुंचाया जा रहा है। ये कंपनियां इन मार्ग का रख रखाव न कर सीधे सीधे अपना आर्थिक हित साधने में लगी हुई हैं। इन कंपनियों द्वारा इन मार्गों के पेंच रिपेयर न कराकर मेटेरियल, लेबर, तेल आदि को बचाकर आर्थिक लाभ अर्जित किया जा रहा है।

गौरतलब होगा कि तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि के 18 दिसंबर 2008 के आदेश के उपरांत सद्भाव कंस्ट्रक्शन कंपनी और मीनाक्षी कंस्ट्रक्शन कंपनी ने अपना काम मंथर गति से आरंभ कर कालांतर में काम को लगभग रोक ही दिया है। यही कारण है कि जिला मुख्यालय सिवनी के पश्चिमी और से गुजरने वाले प्रस्तावित बायपास का काम भी पूरा नहीं किया जा सका है। आज आलम यह है कि नगझर के आगे जबलपुर मार्ग पर फोरलेन के बायपास से बरास्ता सिवनी मुख्यालय होते हुए सीलादेही तक के मार्ग, जबलपुर रोड पर बंजारी माता के आगे का मार्ग और मोहगांव के आगे से खवासा तक का मार्ग बुरी तरह जर्जर हो चुका है। एसा नहीं कि इस मार्ग से प्रशासन के आला अधिकारी और जनसेवक न गुजरते हों पर किसी का ध्यान भी इस ओर न जाना आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है।

आज आवश्यक्ता इस बात की है कि सिवनी वासी इस बारे में जवाब तलब करें। यह सवाल जवाब सिवनी में चल रही परियोजना के परियोजना निदेशक विवेक जायस्वाल से किया जाना आवश्यक होगा। बताया जाता है कि भारतीय राजमार्ग विकास प्राधिकरण (एनएचएआई) द्वारा परियोजना निदेशक का मुख्यालय सिवनी से उठाकर चुपचाप ही जबलपुर स्थानांतरित कर दिया गया है। प्रोजेक्ट डायरेक्टर विवेक जायस्वाल भी अब सप्ताह में एकाध दिन ही सिवनी में अपनी आमद देते हैं, शेष समय वे जबलपुर में ही गुजारते हैं।
पीडी विवेक जायस्वाल से मांगना होगा सिवनी वासियों को जवाब

मनमोहन सरकार का संकट टला नहीं