बुधवार, 1 मई 2013

डेढ़ लाख और एक नौकरी में बरी हो जाएंगे गौतम थापर!


. . . और खामोश हो गई सिवनी की लाड़ो

डेढ़ लाख और एक नौकरी में बरी हो जाएंगे गौतम थापर!

(संजीव प्रताप सिंह)

सिवनी (साई)। उसकी मां बस एक बार उसकी तोतली आवाज सुनना चाहती थी, लेकिन अब वह अपनी गुड़िया सी बच्ची की तोतली आवाज कभी नहीं सुन पायेगी। मध्य प्रदेश के सिवनी में दो समझदार लोगों की हैवानियत का शिकार बनी वह चार साल की अबोध बच्ची चिरनिद्रा में समा गई। एक हफ्ते तक उसको बचाने की जितनी कोशिशें हुईं, आखिरकार सब बेकार हो गईं और सोमवार की शाम 7.50 पर उसकी कोमल देह को डॉक्टरों द्वारा लाश घोषित कर दिया गया।
बीते 17 अप्रैल को सिवनी जिला मुख्यालय से सटे एक गांव की वह अबोध बच्ची गायब हुई तो अगले दिन मरघट के पास मरी हुई सी अवस्था में ही मिली थी। जब घर से गायब हुई तो आखिरी बार फिरोज खान के साथ देखी गई थी। घंसौर में गौतम थापर के अथर्वा पॉवर प्लांट में काम करनेवाला फिरोज उसे खाने पीने के नाम पर कुछ देने के बहाने अपने साथ ले गया था।
क्षत विक्षत हालत में मिले उसके पवित्र शरीर पर अपवित्रता के दर्दभरे दाग ने परिवारवालों को मजबूर किया कि अस्पताल से पहले वे पुलिस के पास जाएं। वे पुलिस के पास गये भी। पुलिस ने मामला दर्ज भी किया। जबलपुर में उसका इलाज भी शुरू हुआ लेकिन उस अबोध मन और कोमल शरीर के साथ कुछ ऐसे जघन्य अपराध को अंजाम दे दिया गया था कि वह बच्ची जो बेहोश हुई तो फिर कभी होश में नहीं आ पाई। सिर्फ उसके साथ जिस्मानी अत्याचार नहीं हुआ था, उसको गला दबाकर मारने की भी कोशिश की गई थी।
मामले में हंगमा खड़ा होता देख मध्य प्रदेश सरकार ने बेहतर इलाज के लिए उसे नागपुर शिफ्ट कर दिया। सिवनी से नागपुर नजदीक पड़ता है इसलिए उसे एयर एम्बुलेंस से तत्काल नागपुर भेज दिया गया। उसे नागपुर के केयर अस्पताल में भर्ती करवाया गया। नागपुर से समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के ब्यूरो से आशीष कौशल ने बताया कि अस्तपाल में करीब एक सप्ताह तक इलाज चलने के बाद भी वह बच्ची होश में नहीं आ पाई और सोमवार शाम को केयर अस्पताल के डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। अस्तपाल प्रवक्ता ने कहा है कि हमने इस संबंध में मध्य प्रदेश सरकार को सूचना दे दी है। बच्ची के पार्थिव शरीर को शल्यक्रिया के लिए सरकारी मेडिकल कालेज भेज दिया गया है।
देश, समाज की सड़ती सोच, बोने साबित होते कानून, खोखली पुलिस, सबको सबकुछ छोड़कर सिवनी की लाडो दुनिया को अलविदा कह गयी। 13 दिनों तक दर्द, दवाओं को सहती रही लेकिन वहेशी दरिंदे ने जो जख्म दिये थे। 4 साल की मासूम बच्ची उन्हें सह नहीं सकी।
आज शाम लगभग पांच बजे उसका अंतिम संस्कार घंसौर में संपन्न हुआ जिसमें प्रभारी मंत्री नाना भाउ माहोड़, विधायक शशि ठाकुर सहित प्रशासन और पुलिस के अधिकारी भी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
0 छावनी में तब्दील हुआ घंसौर
घंसौर क्षेत्र के लोगों को ब पता चला कि उनकी मासूम गुडिय़ा उनसे हमेशा- हमेशा के लिए विदा हो गई तो घंसौर के लोगों की हर आंखों में आंसू छलक पड़े। हीं अपनी प्यारी गुडिय़ा की खबर सुनकर कहीं घंसौरवासी आक्रोशित न हो जाए, इसके लिए घंसौर में भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया। वहीं, नागपुर केयर अस्पताल में 04 साल की मासूम की मौत हो जाने के बाद अस्पताल में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई थी, ताकि आक्रोशित लोग किसी अप्रिय घटना को अंजाम न दें दे।
0 डॉ. वर्मा व भारद्वाज पर अपराधिक मामला दर्ज कराने की मांग
नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच ने गत दिवस पुलिस अधीक्षक को ज्ञापन सौंपकर गुडिया के इलाज में लापरवाही बरतने के मामले में जबलपुर मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. एलपी वर्मा एवं शिशु रोग विभाग के डॉ. वीके भारद्वाज पर अपराधिक प्रकरण दर्ज किया जाये। पुलिस ने शिकायतकर्ता मंच के अध्यक्ष डॉ. पीजी नाजपाण्डे के बयान दर्ज करने के साथ ही मेडिकल अस्पताल के डीन को एक पत्र लिखकर 24 घंटे के भीतर जवाब पेश करने के लिये कहा है।
शिकायत में बताया गया है कि बालिका 18 अप्रैल की सुबह 11.30 बजे मेडिकल कॉलेज अस्पताल के शिशु रोग विभाग में भर्ती कराई गई थी, उस समय बच्ची को फिट आ रहे थे, तथा उसका ब्रेन डेमेज होने की कगार पर था। परीक्षण के बाद निष्कर्ष निकला कि यह रक्त में ऑक्सीजन की कमी के कारण मस्तिष्क की क्षति का मामला है। बाद में रात 11 बजे बच्ची को जब जबलपुर अस्पताल भर्ती किया तो वहां ब्रेन सिटी स्केन में यह प्रमाणित भी हो गया था। डॉक्टर के ऊपर कार्यवाही किये जाने की मांग उपभोक्ता मंच के राजेंद्र पटेल, रजनी निगम, संजय दुबे, शहजादी अंसारी, रीना सोनकर, मुस्कान यादव ने की है।
ढाई बजे सिवनी से गुजरी गुडिया
नागपुर में पोस्टमार्टम के बाद मासूम गुडिय़ा के शव को लेकर घंसौर की ओर निकला वाहन क्रं. एमएच 31 डीएच 6077 एम्बूलेंस धंतौली लगभग ढाई बजे सिवनी बायपास पहुंचा और वहीं से पलारी की ओर से होते हुए घंसौर की ओर रवाना हुआ।
इस मौके पर प्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास राज्यमंत्री श्री देवी सिंह सैय्याम, लखनादौन की विधायिका श्रीमती शशि ठाकुर, बरघाट के विधायक कमल मर्सकोले, घंसौर की जनपद पंचायत अध्यक्ष श्रीमती चित्रलेखा नेताम, कलेक्टर भरत यादव, पुलिस अधीक्षक मिथलेश शुक्ला, अपर कलेक्टर आर.बी.प्रजापति, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक मुकेश श्रीवास्तव, जनपद पंचायत सदस्यगण व अन्य क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों सहित बडी संख्या में ग्रामीणजन एवं पत्रकारगण भी उपस्थित थे।
0 बंटने लगी राहत राशि
इस मौके पर श्री सैय्याम ने बालिका के माता-पिता को मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान मद से मंजूर २ लाख रूपये की मदद राशि का चैक भी सौंपा। श्री सैय्याम ने कहा कि परिजनों को शीघ्र ही इंदिरा आवास भी दिलाया जायेगा। कलेक्टर भरत यादव ने बताया कि आगामी १७ मई को मुख्यमंत्री शिवराज ङ्क्षसह चौहान सिवनी जिले में अटल ज्योति अभियान के शुभारंभ कार्यक्रम में शामिल होंगे, इस मौके पर सिवनी जिला मुख्यालय में आयोजित कार्यक्रम के दौरान वे दिवंगत बालिका के माता-पिता से भी मिलेंगे।
कलेक्टर श्री यादव ने दिवंगत बालिका के पिता को भरोसा दिलाया कि उन्हें झाबुआ पावर प्लांट में स्थायी नौकरी दिलाई जायेगी और प्लांट में स्थायी नौकरी का नियुक्ति पत्र खुद जिला प्रशासन उन्हें उपलब्ध करायेगा। कलेक्टर ने बताया कि बालिका की माता को (जहां कही भी संभव हो), वहां कलेक्टर रेट पर रसोईया की स्थाई नौकरी दिलाई जायेगी। बालिका के माता-पिता का बैंक खाता भी खुलवा दिया जायेगा और उन्हें सभी शासकीय योजनाओं का पात्रतानुसार लाभ दिलाया जायेगा।
उन्होंने बताया कि बालिका के परिवार को कलेक्टर के विशेष कोटे से इंदिरा आवास भी मंजूर कर दिया गया है। नये वित्तीय वर्ष का इंदिरा आवास का आवंटन आते ही सबसे पहले इस परिवार को ही इंदिरा आवास दिया जायेगा। दिवंगत बालिका के अन्य भाई-बहनों की पढाई-लिखाई एवं उनके लालन-पालन का संपूर्ण खर्चा भी राश्य सरकार उठायेगी। उन्होंने कहा कि पीडित परिवार को हर प्रकार की मदद दिलाई जायेगी।
0 डेढ़ लाख के डिपिजिट की रसीद!
सारे फसाद की जड़ देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड ने भी चौदह दिन बाद दरियादिली दिखाते हुए गुड़िया के तीन भाई बहनों के नाम से पचास पचास हजार रूपए की राशि फिक्स डिपाजिट कर दी है। जिसकी रसीद उन्होंने परिजनों को सोंपी। क्षेत्र में चर्चा व्याप्त है कि महज डेढ़ लाख रूपए में गौतम थापर ने अपनी जान इस पूरी प्रकरण से छुड़ा ली है।

एमपी जनसंपर्क को ठेके पर देने की तैयारी


0 लूट लिया लाजपत ने जनसंपर्क

एमपी जनसंपर्क को ठेके पर देने की तैयारी!

(आकाश कुमार)

नई दिल्ली (साई)। भारतीय जनता पार्टी जबसे मध्य प्रदेश पर काबिज हुई है तबसे मध्य प्रदेश जनसंपर्क विभाग चर्चाओं में रहा है। कभी यहां के अफसरान भाजपा के संगठन की सेवा में हाथ बांधे खड़े दिखते हैं तो कभी विज्ञापनों में जमकर घालमेल और मनमानी तो कीभी पत्रकारों को दी जाने वाली सुविधाओं और अधिमान्यता आदि के लिए शासन स्तर पर भेजने की बात कहकर प्रताड़ित किया जाता है। हाल ही में दिल्ली में मध्य प्रदेश के सूचना केंद्र में एक अदने से अधिकारी को प्रभारी बनाने का मामला सामने आया है।
ज्ञातव्य है कि देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली के मंहगे और व्यवायिक इलाके कनाट सर्कस के बाराखम्बा रोड़ में एम्पोरिया हाउस में मध्य प्रदेश सरकार के जनसंपर्क विभाग का सूचना केंद्र स्थापित है जो दिल्ली में मध्य प्रदेश बीट कव्हर करने वाले पत्रकारों को ना केवल समय समय पर प्रदेश सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं की जानकारी देता है, वरन् प्रदेश के मंत्री संत्री के दिल्ली आने पर उनसे मीडिया को रूबरू भी करवाता है।
इसकी स्थापना से अब तक इस कार्यालय में अतिरिक्त अथवा संयुक्त संचालक स्तर के अधिकारियों की तैनाती रही है। संभवतः इतिहास में पहली बार देश की राजधानी के इतने बड़े और महत्वपूर्ण कार्यालय का भार सहायक संचालक स्तर के अधिकारी के कांधों पर रखा जा रहा है। एमपी की राजधानी भोपाल से समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के ब्यूरो से राजेश शर्मा ने बताया कि राज्य शासन ने उज्जैन संभागीय कार्यालय में संयुक्त संचालक अर्जुन सिंह सोलंकी के अधीन कार्यरत सहायक संचालक अरूण राठौर को दिल्ली स्थित सूचना केंद्र का प्रमुख बनाकर भेजा है।
अमूमन सहायक संचालक को जिलों में मीडिया और प्रशासन के बीच जुगलबंदी बनाने के लिए पदस्थ किया जाता है को देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में बिठाया जाना निश्चित तौर पर जनसंपर्क विभाग में चल रही उन चर्चाओं को ही बल दे रहा है जिनमें कहा जा रहा था कि जनसंपर्क विभाग की सत्ता की धुरी बन चुके अपर सचिव लाजपत आहूजा द्वारा जल्द ही जनसंपर्क विभाग को ठेके पर देने की कार्यवाही करने वाले हैं।
यक्ष प्रश्न तो यह है कि आखिर एक सहायक संचालक स्तर का अधिकारी जो दिल्ली की भौगोलिक स्थिति से भी रूबरू ना हो वह दिल्ली में कब एमपी बीट कव्हर करने वाले पत्रकारों की तासीर जान पाएगा? कब वह अधिकारी इन पत्रकारों में से असली और लिखने पढ़ने वाले पत्रकारों को छांट पाएगा? जब तक वह यह सब कुछ कर पाएगा तब तक चुनाव ही सर पर आ जाएगा।
साई न्यूज के भोपाल ब्यूरो राजेश शर्मा ने मध्य प्रदेश जनसंपर्क संचालनालय के सूत्रों के हवाले से कहा कि दिल्ली के सूचना केंद्र में एक भी कर्मचारी मध्य प्रदेश मूल का पदस्थ नहीं है। अगर दिल्ली कार्यालय का पक्का आडिट करवा दिया जाए तो अनेक कर्मचारियों की गरदन नप सकती है। जनता के पैसों की जमकर होली खेली गई है दिल्ली के सूचना केंद्र में।
सूत्रों ने साई न्यूज को आगे बताया कि चुनावी साल में शिवराज सिंह चौहान की मुसीबतें बढ़ाने की गरज से ही लाजपत आहूजा द्वारा फेंके गए पांसे में जनसंपर्क आयुक्त राकेश श्रीवास्तव फंस चुके हैं। दिल्ली जैसे स्थान पर अनुभवी अफसरों के बजाए सहायक संचालक स्तर के अफसर की तैनाती वाकई में चौंकाने वाली है। कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि कांग्रेस के इशारे पर जनसंपर्क विभाग ने यह तीर चलाया है।
देखा जाए तो देश की दिशा और दशा दिल्ली से ही निर्भर करती है। दिल्ली के बड़े राजनेता सुबह जागते ही दिल्ली के अखबार मांगते हैं। अगर वे दौरे पर हों तो ईपेपर निकालकर उन्हें दिए जाते है। दिल्ली में राज्यों का जनसंपर्क विभाग पत्रकारों को साधे रखता है। अब अरूण राठौर जब दिल्ली पहुंचकर कार्यभार ग्रहण करेंगे तब कम से कम तीन माह में तो वे पत्रकारों को नाम और चेहरे से पहचान पाएंगे।
जनसंपर्क के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को यह भी बताया कि सबसे आश्चर्यजनक पहलू तो यह है कि दिल्ली में पदस्थ संयुक्त संचालक प्रदीप भाटिया को भोपाल वापस बुलाकर उन्हें पुलिस मुख्यालय तो उप संचालक संजय सक्सेना को ग्वालियर पदस्थ कर दिया गया है। इस तरह अब दिल्ली में मीडिया पर्सन्स को पहचानने और मीडिया पर्सन्स की पहचान वाले एक भी अफसर सूचना केंद्र में नहीं बचे हैं।
एैन चुनावी साल में आचार संहिता लगने से महज चार माह पहले इस तरह का परिवर्तन आत्मघाती ही साबित हो सकता है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। सूत्रों ने कहा कि जनसंपर्क विभाग की सत्ता और शक्ति के सूत्रधार आला अधिकारियों ने इस बात का ताना बाना बुनना आरंभ कर दिया है कि जनसंपर्क विभाग के दिल्ली स्थित सूचना केंद्र को आउट सोर्स यानी ठेके पर दे दिया जाए।
सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को यह भी बताया कि एक दो माह में दिल्ली के जनसंपर्क विभाग के सूचना केंद्र के पुअर परफार्मेंस का प्रतिवेदन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के समक्ष रखकर उन्हें इस बात के लिए राजी कर लिया जाएगा कि इस कार्यालय को ठेके पर दे दिया जाए। फिर निजी पीआर कंपनियों को मनमानी दरों पर इसे ठेके पर देकर चुनावी साल में एक बार फिर मलाई खाने की तैयारी में दिख रहे हैं जनसंपर्क विभाग के कर्णधार!
इस संबंध में जनसंपर्क आयुक्त राकेश श्रीवास्तव का पक्ष जानने का प्रयास किया गया, तो समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को जनसंपर्क विभाग की वेब साईट पर उनके निवास के नंबर 07552430988 पर कहा गया कि यह सीपीआर के घर के गार्ड रूम का नंबर है साहब के घर का क्या नंबर है यह उन्हें नहीं पता और सीपीआर का मोबाईल स्विच्ड आफ ही आता रहा।

शिकारी जंगल तो वन्यजीव घर की ओर


शिकारी जंगल तो वन्यजीव घर की ओर

शरद खरे 

मंगलवार को बंडोल के समीप बखारी से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर रामगढ़ में एक तेंदुआ घर के अंदर घुस गया जिससे क्षेत्र में दहशत फैल गई। तेंदुए के घर में घुसने की खबर पुलिस और वन विभाग को लगी। दोनों ही सरकारी महकमों के अफसरों ने त्वरित कार्यवाही की। मौके पर पहुंचे और उसे पकड़ने का असफल प्रयास किया। वाईल्ड लाईफ के कथ्ति एक्सपर्टस माने जाने वाले अफसर भी इस दल में थे। गुस्साया तेंदुआ एक घर से दूसरे घर में जा घुसा। वन विभाग के कारिंदों ने उसे बेहोश करने का भी प्रयास किया पर वे असफल ही रहे। वन विभाग में अफसरशाही के बेलगाम घोड़े दौड़ रहे हैं। मौके पर टीम अपने साथ एक पिंजरा भी ले गई पर वह पिंजरा छोटा निकला। बाद में बड़ा पिंजरा बुलवाया गया, किन्तु तेंदुआ किसी के हाथ ना आया। यह तो भगवान की रहमत थी कि तेंदुए ने किसी को घायल नहीं किया।
बाद में वन मण्डल अधिकारी श्री कोरी कहते हैं कि उस तेंदुए को पकड़ने का प्रयास ही नहीं किया गया। श्री कोरी का बयान गैरजिम्मेदाराना है। अगर उस तेंदुए को पकड़ने वन विभाग के एक्सपर्टस नहीं गए थे तो क्या वे वहां जाकर मीडिया पर्सन्स की मौजूदगी में फोटो खिचवाने का काम कर रहे थे। अगर उसे पकड़ा नहीं जाना था तो फिर मौके पर पहले छोटा और फिर बड़ा पिंजरा ले जाने का क्या ओचित्य था? क्यों वन विभाग के गुलाब नवानी घर की खप्पर वाली छत पर चढ़कर छप्पर हटवा रहे थे, क्यों उन्होंने जाल फेंकने की कोशिश की?
डीएफओ श्री कोरी का बयान अपने मातहतों की असफलता को छुपाने के लिए था। उनके मातहत मौके पर पहुंचे और फौरी तौर पर ही उनकी रणनीति गलत रही। कुछ प्रश्न हैं जिनके उत्तर शायद वन विभाग ना दे पाए, मसलन क्या वे अपने साथ तेंदुए को बेहोश करने के लिए विशेषज्ञ और ट्रंकुलाईजर ले गए थे? क्या वे जल्दबाजी में छोटा पिंजरा ले गए थे? क्या उन्हें पहले से आशंका थी कि रामगढ़ या आसपास के गांवों में वन्य प्राणी आबादी के पास आ सकते हैं? क्या सिवनी जिले में जंगले से लगे आबादी वाले गांवों को वन विभाग ने चिन्हित किया है जहां खतरनाक वन्यजीव आ सकते हैं? क्या इस तरह की परिस्थितियों से निपटने वन विभाग के पास पर्याप्त संसाधन, सुविधाएं और दल बल है?
डीएफओ श्री कोरी का यह कहना कि वह तेंदुआ दुबारा उस गांव में नहीं आएगा, हास्यास्पद ही माना जाएगा। लगता है मानो उस तेंदुए को वन विभाग ने पहचान लिया हो और उसे कालर आईडी लगाई गई हो, ताकि यह पता चल सके कि वह कब और कहां रहता है। डीएफओ श्री कोरी का कहना है कि उन्होंने वहां दो वनकर्मी तैनात कर दिए हैं और लोगों को समझाईश दे दी गई है कि वे अपने घरों के पिछले दरवाजे बंद रखें। यह तो कोई समझदारी वाली बात ही नहीं कही जाएगी। अगर एसा हुआ तो आने वाले समय में जंगल की सीमा से लगी बसाहट में सिर्फ सामने के द्वार वाले मकान ही नजर आएंगे।
याद पड़ता है कि नब्बे के दशक के उम्मरार्ध में सिवनी जिले में जब प्रदेश में वन मंत्री के पद पर केवलारी के विधायक हरवंश सिंह ठाकुर विराजमान थे तब वनों में ग्रीष्म काल के दौरान वन्य जीवों को पानी मुहैया करवाने के लिए बड़े बड़े टांकों का निर्माण करवाया गया था। इन पानी के टांकों को भरने के लिए वन विभाग को बाकायदा टेंकर्स भी प्रदाय किए गए थे। सालों बीत गए ना तो टांकों का पता है और ना ही उन टेंकर्स का।
यही कारण है कि वन्य जीव विशेषकर खतरनाक वन्य जीव गर्मी में जब जंगलों के अंदर पानी के स्त्रोत सूख जाते हैं तब पानी की तलाश में जंगल से निकलकर आबादी वाले क्षेत्रों की ओर रूख कर लेते हैं। सिवनी जिले में अनेक घटनाएं अब तक घट चुकी हैं जिनमें पशुधन और कई लोगों की जान भी जा चुकी है। अस्सी के दशक के उत्तरार्ध में भी एक बार एक तेंदुआ या गुलबाघ बबरिया तालाब के पास से डालडा फेक्ट्री होते हुए बारापत्थर तक जा पहुंचा था। पिछले साल जिला मुख्यालय की सीमा से लगे छतरपुर गांव के करीब एक व्यक्ति को भी किसी जानवर ने घायल कर दिया था और उसने दम तोड़ दिया था।
वन विभाग का काम वन संपदा और वन्य जीवों की रक्षा के साथ ही साथ वन्य जीवों के हमलों से आम आदमी को बचाना भी है। वन विभाग के पास बड़ी मात्रा में हर साल फंड आता है। पैसों की शायद ही इस विभाग के पास कमी हो, फिर भी सिवनी जिले में वन्य जीवों का शिकार वन संपदा की चोरी आम बात हो गई है।
लगभग पांच हजार किलोमीटर क्षेत्रफल वाला चंदन बगीचा आज कहां है किसी को पता ही नहीं है। इस चंदन बगीचे का चंदन बेशकीमती माना जाता था। इसकी प्रसिद्धि देश और विदेश तक में थी। नब्बे के दशक तक सिवनी में चंदन बगीचे की बात सुनाई देती थी। इसके बाद जंगल के तस्करों ने इस बगीचे को नेस्तनाबूत कर दिया और इसकी रक्षा के लिए सरकारी तनख्वाह पाने वाले वन विभाग के कर्मचारी हाथ पर हाथ रखे बैठे रहे। इसका कारण लंबे समय से एक ही जिले में इनकी तैनाती है। राजनैतिक चापलूसी कर कारिंदे एक ही जिले में अपनी पूरी नौकरी गुजार देते हैं।
सिवनी में दुर्लभ काले हिरण बहुतायत में पाए जाते हैं। इनकी तादाद सिवनी जिले में पांच हजार से ज्यादा होगी। इन काले हिरणों को जिला मुख्यालय से महज तीन चार किलोमीटर के व्यास क्षेत्र के बाहर देखा जा सकता है। काले हिरणों का जमकर शिकार होने की खबरें हैं। कई बार आरोपी पकड़ाए भी हैं, फिर भी इनका शिकार नहीं रूक पा रहा है। शिकार के शौकीन लोग दिन दहाड़े अपने मजे और इसके लज़ीज़ गोश्त के लिए इन्हें मौत के घाट उतार देते हैं। जिला प्रशासन को चाहिए कि वन्य जीवों की रक्षा के लिए वन विभाग पर सख्त रवैया अपना, साथ ही आम जनता की सुरक्षा के लिए भी वन विभाग को ताकीद करे। इसके अलावा ब्लेक बक यानी काले हिरणों के लिए एक प्रथक सैंचुरी बनाने का प्रस्ताव भी शासन को भेजकर इनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करे।

गुड़िया, क्षमा करना हम शर्मिंदा हैं


गुड़िया, क्षमा करना हम शर्मिंदा हैं


(लिमटी खरे)

तेरह का आंकड़ा बहुत ही अशुभ माना जाता है सनातन पंथियों में। तेरह के अंक को लेकर ना जाने कितनी किंवदंतियां हैं। टेलीफोन में तेरह नंबर लेना कोई पसंद नहीं करता। वाहनों के पंजीयन में भी 13 नंबर दिखाई नहीं देता। मानव की मृत्यु के उपरांत सनातन पंथियों में उसकी अंतिम रस्म तेरहवीं ही होती है। तेरहवें दिन ही सिवनी की गुडिया ने अपनी अंतिम सांस ली। गुडिया के प्राण त्यागने से ना जाने कितने प्रश्न अब अनुत्तरित ही रह जाएंगे। मामला दिल्ली या मुंबई का होता तो निश्चित तौर पर टीवी चेनल्स चीख चीख कर अपना गला बिठा चुकंे होते। जंतर मंतर, इंडिया गेट आदि पर क्रोधित युवाओं की फौज ने पुलिस की नाक में दम कर दिया होता, पर चूंकि मामला देश के हृदय प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य घंसौर तहसील का था तो उसे ज्यादा तवज्जो मिलने की बात सोची भी नहीं जा सकती थी। 17 अप्रेल को घटी इस घटना के बारे में लोग 20 अप्रेल से इसलिए सक्रिय हुए क्योंकि समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के सिवनी ब्यूरो से संजीव प्रताप सिंह की एक खबर दिल्ली से प्रकाशित नवभारत टाईम्स और दैनिक जागरण के न्यूज वेब पोर्टल्स पर सुर्खियां बन गई थी। इसके बाद ही मामले ने उछाल लिया और फिर सक्रिय हुआ शासन प्रशासन।
कितने आश्चर्य की बात है कि चार साल की गुड़िया को जबलपुर इलाज के लिए ले जाया गया। जहां उसके इलाज में लापरवाही बरतने के संगीन आरोप हैं। इसके बाद उसे एयर एंबूलेंस से नागपुर ले जाया गया। नागपुर के केयर अस्पताल का सुझाव आखिर दिया किसने? क्या केयर अस्पताल इस मासूम के इलाज के लिए सक्षम था? जिस अस्पताल में जांच की जरूरी सुविधाएं ही ना हों उस अस्पताल में मासूम को ले जाने का क्या ओचित्य? प्रदेश सरकार ने जाने अनजाने में केयर अस्पताल की ब्रॉडिंग का काम कर दिया है। अब केयर अस्पताल यह दावा आसानी से कर सकता है कि कम से कम मध्य प्रदेश सरकार की नजरों में नागपुर का केयर अस्पताल सर्वेश्रेष्ठ है। मासूम को जांच के लिए दूसरे अस्पताल पर निर्भर रहना पड़ा। केयर अस्पताल को हाल ही में मध्य प्रदेश शासन के कर्मचारियों के लिए पेनलबद्ध किया गया है। अस्पताल अपने आप को पेनलबद्ध क्यों कराते हैं यह बात किसी से छिपी नहीं है। जाहिर है अपनी अस्पताल रूपी दुकान की दिन दूनी रात चौगनी वृद्धि के मद्देनजर एैसा किया जाता है।
सवाल यह उठता है कि जब उसे एयर एंबूलेंस से जबलपुर से नागपुर ले जाया गया तो क्या मासूम को एयर एंबूलेंस से जबपलुर से नई दिल्ली नहीं ले जाया सकता था? क्या कारण था के मासूम के इलाज में कोताही बरती गई? इसके लिए दोषी कौन है? जब तक मामला नहीं उछला तब तक मासूम को घंसौर जैसी छोटी जगह पर ही इलाज के लिए रखा गया? उसे जिला चिकित्सालय सिवनी तक नहीं ले जाया गया? क्या यही है देश के उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा सामाजिक जिम्मेदारी यानी सीएसआर के नियम कायदों का निर्वहन।
आरोपी फिरोज मेसर्स झाबुआ पावर का कर्मचारी है। 20 अप्रेल को जिला जनसंपर्क अधिकारी द्वारा एसएमएस और सरकारी खबर जारी कर बच्ची के इलाज का खर्च संयंत्र प्रबंधन द्वारा उठाए जाने की बात कही। फिर उमाशंकर गुप्त बच्ची को देखने नागपुर पहुंचे तब दूसरी खबर जारी की गई सरकारी तौर पर कि बच्ची के इलाज का खर्च प्रदेश सरकार उठाएगी। कुछ युवाओं ने गली गली घूमकर सत्रह हजार रूपए चंदा भी किया। सवाल यह उठता है कि क्या मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड का प्रबंधन इतना निष्ठुर और निर्दयी हो गया है कि वह उसके एक कर्मचारी के द्वारा दुष्कर्म वह भी महज चार साल की दुधमुंही के साथ, किए जाने पर बच्ची को दिल्ली के बड़े अस्पताल में भर्ती ना करा सके? जबकि उसका मुख्यालय भी राष्ट्रीय राजधानी ़क्षेत्र में गुड़गांव में हो।
दिल्ली में रेप का शिकार हुई बच्ची के स्वास्थ्य में सुधार है जिसके साथ इस बच्ची से ज्यादा अमानवीय कृत्य हुआ था, क्योंकि उसे समय पर उचित चिकित्सा सुविधा मुहैया हो गई, पर सिवनी की गुड़िया को खैराती अस्पताल के भरोसे छोड़ना क्या मानवीयता है। निश्चित तौर पर वैंटीलेटर पर रखकर नागपुर के कथित प्रतिष्ठित केयर अस्पताल ने मध्य प्रदेश सरकार या संयंत्र प्रबंधन को मोटा बिल थमा दिया होगा, उसकी भरपाई भी जनता के द्वारा दिए गए करों से संचित राशि से ही होगी, पर गुडिया तो चली गई। इस मामले में जिला एवं पुलिस प्रशासन की भूमिका पर भी सवालिया निशान लग रहे हैं। अब तक प्रशासन द्वारा संयंत्र प्रबंधन के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं किया जाना आश्चर्यजनक है। क्या बिजली के उत्पादन के लिए वह भी संयंत्र प्रबंधन प्रदेश या अन्य प्रदेशों को बेचेगा और मुनाफा कमाएगा को गुड़िया की कीमत पर छोड़ना उचित है? क्या कारण है कि पुलिस ने अब तक इस मामले में संयंत्र के प्रबंधन को बुलाकर यह मामला दर्ज क्यों नहीं किया कि आखिर फिरोज जो घंसौर में लंबे समय से रह रहा था की मुसाफिरी क्यों प्रबंधन ने पुलिस में दर्ज नहीं करवाई? उत्तर भी आईने की तरह ही साफ है, कि संयंत्र के मालिक गौतम थापर का रसूख और इकबाल दोनों ही सियासी गलियारों में जमकर बुलंद है इसलिए इन पर कार्यवाही नहीं हो सकती है! लगता है कि अगर आपके पास धन दौलत और राजनैतिक संपर्क हैं तो आपका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता है।
इसके साथ ही साथ मंगलवार की रात गुड़िया के परिजनों ने गुड़िया के निधन के बाद नागपुर में जो नाकरीय पीड़ा भोगी उससे प्रदेश सरकार की मदद की कलई खुद ही खुल गई है। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा जिस आलीशान केयर अस्पताल में गुड़िया को भर्ती करवाया गया था वहां डीप फ्रीजर ही नहीं था कि उसका शव रखा जा सके। गुड़िया को केयर अस्पताल ने पौने आठ बजे मृत घोषित कर दिया। इसकी सूचना बर्ड़ी के पुलिस थाने को दे दी गई। इसके उपरांत गुड़िया के शव को एमपी पुलिस और परिजनों की मौजूदगी में आयुर्विज्ञान कालेज अस्पताल नागपुर भेजा गया जहां कागजी खानापूर्ती में साढ़े दस बज गए। वहां शव को रखने के लिए डीप फ्रीजर मौजूद नहीं था, दो डीप फ्रीजर थे पर वे खराब थे। गुडिया का शव गर्मी में वैसा ही पड़ा रहा। इसके बाद उसके शव को सेंट्रल एवेन्यू रोड़ पर स्थित मेयो अस्पताल रिफर करने की तैयारी की गई। रिफर होने में साढ़े बारह बज गए। रात लगभग एक बजे गुडिया के शव को मेयो अस्पताल के शव गृह में रखा जा सका।
अब शिवराज सिंह चौहान सरकार के कुशासन का अंदाजा लगाया जाए कि एक मां अपनी मृत बेटी की देह को रात भर के लिए सुरक्षित रखवाने के लिए पांच घंटे संघर्ष करती रही। उस मां पर क्या बीती होगी जिसकी फूल सी गुड़िया दुष्कर्म के बाद शांत हो गई हो। जिला प्रशासन या सिवनी की जनता के सेवक सांसद विधायक या और दलों के नेता अगर चाहते तो सिवनी से सिंधी समाज के डीप फ्रीजर को इतनी देर में नागपुर भेजकर गुड़िया के शव को सुरक्षित रखने की माकूल व्यवस्था कर ली जाती। सिवनी से आठ बजे भी अगर इसे रवाना किया जाता तो निश्चित तौपर पर ग्यारह बजे तक वह डीप फ्रीजर गुड़िया के पास पहूंच जाता। वस्तुतः अनुभवहीनता के कारण ही एैसा हुआ माना जा सकता है। सिवनी संसदीय क्षेत्र दो टुकड़े बंट गया है एक का प्रतिनिधित्व कांग्रेस के बसोरी सिंह मसराम कर रहे हैं जिनके संसदीय क्षेत्र में यह घटना घटी है और दूसरे का भाजपा के के.डी.देशमुख। संसद सत्र जारी है क्या दोनों ही सांसदों से उम्मीद की जाए कि वे उन्हें मिले जनादेश का सम्मान करते हुए लोकसभा में इस लापरवाही को उजागर करेंगे। शायद जनता को निराशा ही हाथ लगे क्योंकि गौतम थापर अपनी आन बान और शान को बरकरार रखने के लिए थैलियों का मुंह खोलने से भी गुरेज शायद ही करें। कांग्रेस के सांसद बसोरी सिंह मसराम सहित सिवनी जिले के राजनैतिक दलों के राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर की विज्ञप्ति जारी करने वाले प्रवक्ताओं ने भी इस मामले में आश्चर्यजनक चुप्पी साधी हुई है, जो शोध का विषय है।
वैसे गुड़िया के हादसे से अगर प्रशासन कोई सबक ले ले तो ठीक है वरना इसकी पुनरावृत्ति होती रहेगी और मीडिया की सुर्खियां बनकर अंदर के पेज पर जाकर दम तोड़ देंगी। इस मामले में भी चीख पुकार एक दो दिन ही होगी फिर सब कुछ सामान्य और फिर नेता नुमा ठेकेदारों की बपौती बन चुके झाबुआ पावर लिमिटेड का काम आरंभ हो जाएगा, साथ ही बिजली का उत्पादन कर उसे बेचकर गौतम थापर दिन दूनी रात चौगनी उन्नति करेंगे पर उन्हें इस तरह की गुड़ियाओं की चिंता भला क्यों होने लगी, अब तक चौदह दिन बीतने के बाद भी गौतम थापर या संयंत्र प्रबंधन ने अपनी तरफ से एक बार भी संवेदनाएं ना जताकर साफ कर दिया है कि एक मासूम दुधमुंही बच्ची की जान की कीमत उनकी नजरों में दो कौड़ी से ज्यादा नहीं है।