बुधवार, 1 मई 2013

शिकारी जंगल तो वन्यजीव घर की ओर


शिकारी जंगल तो वन्यजीव घर की ओर

शरद खरे 

मंगलवार को बंडोल के समीप बखारी से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर रामगढ़ में एक तेंदुआ घर के अंदर घुस गया जिससे क्षेत्र में दहशत फैल गई। तेंदुए के घर में घुसने की खबर पुलिस और वन विभाग को लगी। दोनों ही सरकारी महकमों के अफसरों ने त्वरित कार्यवाही की। मौके पर पहुंचे और उसे पकड़ने का असफल प्रयास किया। वाईल्ड लाईफ के कथ्ति एक्सपर्टस माने जाने वाले अफसर भी इस दल में थे। गुस्साया तेंदुआ एक घर से दूसरे घर में जा घुसा। वन विभाग के कारिंदों ने उसे बेहोश करने का भी प्रयास किया पर वे असफल ही रहे। वन विभाग में अफसरशाही के बेलगाम घोड़े दौड़ रहे हैं। मौके पर टीम अपने साथ एक पिंजरा भी ले गई पर वह पिंजरा छोटा निकला। बाद में बड़ा पिंजरा बुलवाया गया, किन्तु तेंदुआ किसी के हाथ ना आया। यह तो भगवान की रहमत थी कि तेंदुए ने किसी को घायल नहीं किया।
बाद में वन मण्डल अधिकारी श्री कोरी कहते हैं कि उस तेंदुए को पकड़ने का प्रयास ही नहीं किया गया। श्री कोरी का बयान गैरजिम्मेदाराना है। अगर उस तेंदुए को पकड़ने वन विभाग के एक्सपर्टस नहीं गए थे तो क्या वे वहां जाकर मीडिया पर्सन्स की मौजूदगी में फोटो खिचवाने का काम कर रहे थे। अगर उसे पकड़ा नहीं जाना था तो फिर मौके पर पहले छोटा और फिर बड़ा पिंजरा ले जाने का क्या ओचित्य था? क्यों वन विभाग के गुलाब नवानी घर की खप्पर वाली छत पर चढ़कर छप्पर हटवा रहे थे, क्यों उन्होंने जाल फेंकने की कोशिश की?
डीएफओ श्री कोरी का बयान अपने मातहतों की असफलता को छुपाने के लिए था। उनके मातहत मौके पर पहुंचे और फौरी तौर पर ही उनकी रणनीति गलत रही। कुछ प्रश्न हैं जिनके उत्तर शायद वन विभाग ना दे पाए, मसलन क्या वे अपने साथ तेंदुए को बेहोश करने के लिए विशेषज्ञ और ट्रंकुलाईजर ले गए थे? क्या वे जल्दबाजी में छोटा पिंजरा ले गए थे? क्या उन्हें पहले से आशंका थी कि रामगढ़ या आसपास के गांवों में वन्य प्राणी आबादी के पास आ सकते हैं? क्या सिवनी जिले में जंगले से लगे आबादी वाले गांवों को वन विभाग ने चिन्हित किया है जहां खतरनाक वन्यजीव आ सकते हैं? क्या इस तरह की परिस्थितियों से निपटने वन विभाग के पास पर्याप्त संसाधन, सुविधाएं और दल बल है?
डीएफओ श्री कोरी का यह कहना कि वह तेंदुआ दुबारा उस गांव में नहीं आएगा, हास्यास्पद ही माना जाएगा। लगता है मानो उस तेंदुए को वन विभाग ने पहचान लिया हो और उसे कालर आईडी लगाई गई हो, ताकि यह पता चल सके कि वह कब और कहां रहता है। डीएफओ श्री कोरी का कहना है कि उन्होंने वहां दो वनकर्मी तैनात कर दिए हैं और लोगों को समझाईश दे दी गई है कि वे अपने घरों के पिछले दरवाजे बंद रखें। यह तो कोई समझदारी वाली बात ही नहीं कही जाएगी। अगर एसा हुआ तो आने वाले समय में जंगल की सीमा से लगी बसाहट में सिर्फ सामने के द्वार वाले मकान ही नजर आएंगे।
याद पड़ता है कि नब्बे के दशक के उम्मरार्ध में सिवनी जिले में जब प्रदेश में वन मंत्री के पद पर केवलारी के विधायक हरवंश सिंह ठाकुर विराजमान थे तब वनों में ग्रीष्म काल के दौरान वन्य जीवों को पानी मुहैया करवाने के लिए बड़े बड़े टांकों का निर्माण करवाया गया था। इन पानी के टांकों को भरने के लिए वन विभाग को बाकायदा टेंकर्स भी प्रदाय किए गए थे। सालों बीत गए ना तो टांकों का पता है और ना ही उन टेंकर्स का।
यही कारण है कि वन्य जीव विशेषकर खतरनाक वन्य जीव गर्मी में जब जंगलों के अंदर पानी के स्त्रोत सूख जाते हैं तब पानी की तलाश में जंगल से निकलकर आबादी वाले क्षेत्रों की ओर रूख कर लेते हैं। सिवनी जिले में अनेक घटनाएं अब तक घट चुकी हैं जिनमें पशुधन और कई लोगों की जान भी जा चुकी है। अस्सी के दशक के उत्तरार्ध में भी एक बार एक तेंदुआ या गुलबाघ बबरिया तालाब के पास से डालडा फेक्ट्री होते हुए बारापत्थर तक जा पहुंचा था। पिछले साल जिला मुख्यालय की सीमा से लगे छतरपुर गांव के करीब एक व्यक्ति को भी किसी जानवर ने घायल कर दिया था और उसने दम तोड़ दिया था।
वन विभाग का काम वन संपदा और वन्य जीवों की रक्षा के साथ ही साथ वन्य जीवों के हमलों से आम आदमी को बचाना भी है। वन विभाग के पास बड़ी मात्रा में हर साल फंड आता है। पैसों की शायद ही इस विभाग के पास कमी हो, फिर भी सिवनी जिले में वन्य जीवों का शिकार वन संपदा की चोरी आम बात हो गई है।
लगभग पांच हजार किलोमीटर क्षेत्रफल वाला चंदन बगीचा आज कहां है किसी को पता ही नहीं है। इस चंदन बगीचे का चंदन बेशकीमती माना जाता था। इसकी प्रसिद्धि देश और विदेश तक में थी। नब्बे के दशक तक सिवनी में चंदन बगीचे की बात सुनाई देती थी। इसके बाद जंगल के तस्करों ने इस बगीचे को नेस्तनाबूत कर दिया और इसकी रक्षा के लिए सरकारी तनख्वाह पाने वाले वन विभाग के कर्मचारी हाथ पर हाथ रखे बैठे रहे। इसका कारण लंबे समय से एक ही जिले में इनकी तैनाती है। राजनैतिक चापलूसी कर कारिंदे एक ही जिले में अपनी पूरी नौकरी गुजार देते हैं।
सिवनी में दुर्लभ काले हिरण बहुतायत में पाए जाते हैं। इनकी तादाद सिवनी जिले में पांच हजार से ज्यादा होगी। इन काले हिरणों को जिला मुख्यालय से महज तीन चार किलोमीटर के व्यास क्षेत्र के बाहर देखा जा सकता है। काले हिरणों का जमकर शिकार होने की खबरें हैं। कई बार आरोपी पकड़ाए भी हैं, फिर भी इनका शिकार नहीं रूक पा रहा है। शिकार के शौकीन लोग दिन दहाड़े अपने मजे और इसके लज़ीज़ गोश्त के लिए इन्हें मौत के घाट उतार देते हैं। जिला प्रशासन को चाहिए कि वन्य जीवों की रक्षा के लिए वन विभाग पर सख्त रवैया अपना, साथ ही आम जनता की सुरक्षा के लिए भी वन विभाग को ताकीद करे। इसके अलावा ब्लेक बक यानी काले हिरणों के लिए एक प्रथक सैंचुरी बनाने का प्रस्ताव भी शासन को भेजकर इनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करे।

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