गुड़िया, क्षमा करना हम
शर्मिंदा हैं
(लिमटी खरे)
तेरह का आंकड़ा बहुत
ही अशुभ माना जाता है सनातन पंथियों में। तेरह के अंक को लेकर ना जाने कितनी
किंवदंतियां हैं। टेलीफोन में तेरह नंबर लेना कोई पसंद नहीं करता। वाहनों के
पंजीयन में भी 13 नंबर
दिखाई नहीं देता। मानव की मृत्यु के उपरांत सनातन पंथियों में उसकी अंतिम रस्म
तेरहवीं ही होती है। तेरहवें दिन ही सिवनी की गुडिया ने अपनी अंतिम सांस ली।
गुडिया के प्राण त्यागने से ना जाने कितने प्रश्न अब अनुत्तरित ही रह जाएंगे।
मामला दिल्ली या मुंबई का होता तो निश्चित तौर पर टीवी चेनल्स चीख चीख कर अपना गला
बिठा चुकंे होते। जंतर मंतर, इंडिया गेट आदि पर क्रोधित युवाओं की फौज ने
पुलिस की नाक में दम कर दिया होता, पर चूंकि मामला देश के हृदय प्रदेश के
आदिवासी बाहुल्य घंसौर तहसील का था तो उसे ज्यादा तवज्जो मिलने की बात सोची भी
नहीं जा सकती थी। 17 अप्रेल को
घटी इस घटना के बारे में लोग 20 अप्रेल से इसलिए सक्रिय हुए क्योंकि समाचार
एजेंसी ऑफ इंडिया के सिवनी ब्यूरो से संजीव प्रताप सिंह की एक खबर दिल्ली से
प्रकाशित नवभारत टाईम्स और दैनिक जागरण के न्यूज वेब पोर्टल्स पर सुर्खियां बन गई
थी। इसके बाद ही मामले ने उछाल लिया और फिर सक्रिय हुआ शासन प्रशासन।
कितने आश्चर्य की
बात है कि चार साल की गुड़िया को जबलपुर इलाज के लिए ले जाया गया। जहां उसके इलाज
में लापरवाही बरतने के संगीन आरोप हैं। इसके बाद उसे एयर एंबूलेंस से नागपुर ले
जाया गया। नागपुर के केयर अस्पताल का सुझाव आखिर दिया किसने? क्या केयर अस्पताल
इस मासूम के इलाज के लिए सक्षम था? जिस अस्पताल में जांच की जरूरी सुविधाएं ही
ना हों उस अस्पताल में मासूम को ले जाने का क्या ओचित्य? प्रदेश सरकार ने
जाने अनजाने में केयर अस्पताल की ब्रॉडिंग का काम कर दिया है। अब केयर अस्पताल यह
दावा आसानी से कर सकता है कि कम से कम मध्य प्रदेश सरकार की नजरों में नागपुर का
केयर अस्पताल सर्वेश्रेष्ठ है। मासूम को जांच के लिए दूसरे अस्पताल पर निर्भर रहना
पड़ा। केयर अस्पताल को हाल ही में मध्य प्रदेश शासन के कर्मचारियों के लिए पेनलबद्ध
किया गया है। अस्पताल अपने आप को पेनलबद्ध क्यों कराते हैं यह बात किसी से छिपी
नहीं है। जाहिर है अपनी अस्पताल रूपी दुकान की दिन दूनी रात चौगनी वृद्धि के
मद्देनजर एैसा किया जाता है।
सवाल यह उठता है कि
जब उसे एयर एंबूलेंस से जबलपुर से नागपुर ले जाया गया तो क्या मासूम को एयर
एंबूलेंस से जबपलुर से नई दिल्ली नहीं ले जाया सकता था? क्या कारण था के
मासूम के इलाज में कोताही बरती गई? इसके लिए दोषी कौन है? जब तक मामला नहीं
उछला तब तक मासूम को घंसौर जैसी छोटी जगह पर ही इलाज के लिए रखा गया? उसे जिला
चिकित्सालय सिवनी तक नहीं ले जाया गया? क्या यही है देश के उद्योगपति गौतम थापर के
स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के
द्वारा सामाजिक जिम्मेदारी यानी सीएसआर के नियम कायदों का निर्वहन।
आरोपी फिरोज मेसर्स
झाबुआ पावर का कर्मचारी है। 20 अप्रेल को जिला जनसंपर्क अधिकारी द्वारा
एसएमएस और सरकारी खबर जारी कर बच्ची के इलाज का खर्च संयंत्र प्रबंधन द्वारा उठाए
जाने की बात कही। फिर उमाशंकर गुप्त बच्ची को देखने नागपुर पहुंचे तब दूसरी खबर
जारी की गई सरकारी तौर पर कि बच्ची के इलाज का खर्च प्रदेश सरकार उठाएगी। कुछ
युवाओं ने गली गली घूमकर सत्रह हजार रूपए चंदा भी किया। सवाल यह उठता है कि क्या
मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड का प्रबंधन इतना निष्ठुर और निर्दयी हो गया है कि वह
उसके एक कर्मचारी के द्वारा दुष्कर्म वह भी महज चार साल की दुधमुंही के साथ, किए जाने पर बच्ची
को दिल्ली के बड़े अस्पताल में भर्ती ना करा सके? जबकि उसका मुख्यालय
भी राष्ट्रीय राजधानी ़क्षेत्र में गुड़गांव में हो।
दिल्ली में रेप का
शिकार हुई बच्ची के स्वास्थ्य में सुधार है जिसके साथ इस बच्ची से ज्यादा अमानवीय
कृत्य हुआ था, क्योंकि
उसे समय पर उचित चिकित्सा सुविधा मुहैया हो गई, पर सिवनी की गुड़िया
को खैराती अस्पताल के भरोसे छोड़ना क्या मानवीयता है। निश्चित तौर पर वैंटीलेटर पर
रखकर नागपुर के कथित प्रतिष्ठित केयर अस्पताल ने मध्य प्रदेश सरकार या संयंत्र
प्रबंधन को मोटा बिल थमा दिया होगा, उसकी भरपाई भी जनता के द्वारा दिए गए करों
से संचित राशि से ही होगी, पर गुडिया तो चली गई। इस मामले में जिला एवं पुलिस प्रशासन की
भूमिका पर भी सवालिया निशान लग रहे हैं। अब तक प्रशासन द्वारा संयंत्र प्रबंधन के
खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं किया जाना आश्चर्यजनक है। क्या बिजली के उत्पादन के लिए
वह भी संयंत्र प्रबंधन प्रदेश या अन्य प्रदेशों को बेचेगा और मुनाफा कमाएगा को
गुड़िया की कीमत पर छोड़ना उचित है? क्या कारण है कि पुलिस ने अब तक इस मामले
में संयंत्र के प्रबंधन को बुलाकर यह मामला दर्ज क्यों नहीं किया कि आखिर फिरोज जो
घंसौर में लंबे समय से रह रहा था की मुसाफिरी क्यों प्रबंधन ने पुलिस में दर्ज
नहीं करवाई? उत्तर भी
आईने की तरह ही साफ है, कि संयंत्र के मालिक गौतम थापर का रसूख और इकबाल दोनों ही
सियासी गलियारों में जमकर बुलंद है इसलिए इन पर कार्यवाही नहीं हो सकती है! लगता
है कि अगर आपके पास धन दौलत और राजनैतिक संपर्क हैं तो आपका कोई बाल भी बांका नहीं
कर सकता है।
इसके साथ ही साथ
मंगलवार की रात गुड़िया के परिजनों ने गुड़िया के निधन के बाद नागपुर में जो नाकरीय
पीड़ा भोगी उससे प्रदेश सरकार की मदद की कलई खुद ही खुल गई है। मध्य प्रदेश सरकार
द्वारा जिस आलीशान केयर अस्पताल में गुड़िया को भर्ती करवाया गया था वहां डीप
फ्रीजर ही नहीं था कि उसका शव रखा जा सके। गुड़िया को केयर अस्पताल ने पौने आठ बजे
मृत घोषित कर दिया। इसकी सूचना बर्ड़ी के पुलिस थाने को दे दी गई। इसके उपरांत
गुड़िया के शव को एमपी पुलिस और परिजनों की मौजूदगी में आयुर्विज्ञान कालेज अस्पताल
नागपुर भेजा गया जहां कागजी खानापूर्ती में साढ़े दस बज गए। वहां शव को रखने के लिए
डीप फ्रीजर मौजूद नहीं था, दो डीप फ्रीजर थे पर वे खराब थे। गुडिया का शव गर्मी में वैसा
ही पड़ा रहा। इसके बाद उसके शव को सेंट्रल एवेन्यू रोड़ पर स्थित मेयो अस्पताल रिफर
करने की तैयारी की गई। रिफर होने में साढ़े बारह बज गए। रात लगभग एक बजे गुडिया के
शव को मेयो अस्पताल के शव गृह में रखा जा सका।
अब शिवराज सिंह
चौहान सरकार के कुशासन का अंदाजा लगाया जाए कि एक मां अपनी मृत बेटी की देह को रात
भर के लिए सुरक्षित रखवाने के लिए पांच घंटे संघर्ष करती रही। उस मां पर क्या बीती
होगी जिसकी फूल सी गुड़िया दुष्कर्म के बाद शांत हो गई हो। जिला प्रशासन या सिवनी
की जनता के सेवक सांसद विधायक या और दलों के नेता अगर चाहते तो सिवनी से सिंधी समाज
के डीप फ्रीजर को इतनी देर में नागपुर भेजकर गुड़िया के शव को सुरक्षित रखने की
माकूल व्यवस्था कर ली जाती। सिवनी से आठ बजे भी अगर इसे रवाना किया जाता तो
निश्चित तौपर पर ग्यारह बजे तक वह डीप फ्रीजर गुड़िया के पास पहूंच जाता। वस्तुतः
अनुभवहीनता के कारण ही एैसा हुआ माना जा सकता है। सिवनी संसदीय क्षेत्र दो टुकड़े
बंट गया है एक का प्रतिनिधित्व कांग्रेस के बसोरी सिंह मसराम कर रहे हैं जिनके
संसदीय क्षेत्र में यह घटना घटी है और दूसरे का भाजपा के के.डी.देशमुख। संसद सत्र
जारी है क्या दोनों ही सांसदों से उम्मीद की जाए कि वे उन्हें मिले जनादेश का
सम्मान करते हुए लोकसभा में इस लापरवाही को उजागर करेंगे। शायद जनता को निराशा ही
हाथ लगे क्योंकि गौतम थापर अपनी आन बान और शान को बरकरार रखने के लिए थैलियों का
मुंह खोलने से भी गुरेज शायद ही करें। कांग्रेस के सांसद बसोरी सिंह मसराम सहित
सिवनी जिले के राजनैतिक दलों के राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर की विज्ञप्ति जारी करने
वाले प्रवक्ताओं ने भी इस मामले में आश्चर्यजनक चुप्पी साधी हुई है, जो शोध का विषय है।
वैसे गुड़िया के
हादसे से अगर प्रशासन कोई सबक ले ले तो ठीक है वरना इसकी पुनरावृत्ति होती रहेगी
और मीडिया की सुर्खियां बनकर अंदर के पेज पर जाकर दम तोड़ देंगी। इस मामले में भी
चीख पुकार एक दो दिन ही होगी फिर सब कुछ सामान्य और फिर नेता नुमा ठेकेदारों की
बपौती बन चुके झाबुआ पावर लिमिटेड का काम आरंभ हो जाएगा, साथ ही बिजली का
उत्पादन कर उसे बेचकर गौतम थापर दिन दूनी रात चौगनी उन्नति करेंगे पर उन्हें इस
तरह की गुड़ियाओं की चिंता भला क्यों होने लगी, अब तक चौदह दिन
बीतने के बाद भी गौतम थापर या संयंत्र प्रबंधन ने अपनी तरफ से एक बार भी संवेदनाएं
ना जताकर साफ कर दिया है कि एक मासूम दुधमुंही बच्ची की जान की कीमत उनकी नजरों
में दो कौड़ी से ज्यादा नहीं है।
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