पितरों की श्रेणियां
(पंडित दयानन्द शास्त्री)
नई दिल्ली (साई)। ।।अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् ।
पितृणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम् घ्29घ् - गीता
भावार्थ रू हे धनंजय! नागों में मैं शेषनाग और जलचरों में वरुण हूं; पितरों में अर्यमा तथा नियमन करने वालों में यमराज हूं।
पुराणों के अनुसार मुख्यतरू पितरों को दो श्रेणियों में रखा जा सकता है - दिव्य पितर और मनुष्य पितर। दिव्य पितर उस जमात का नाम है जो जीवधारियों के कर्मों को देखकर मृत्यु के बाद उसे क्या गति दी जाए, इसका निर्णय करता है।
इस जमात का प्रधान यमराज है। अतरू यमराज की गणना भी पितरों में होती है। काव्यवाडनल, सोम, अर्यमा और यम- यह चार इस जमात के सदस्य हैं।
यमे नाम वायव
पं. दयानन्द शास्त्री (मोब.-09024390067 ) के अनुसार वेदों में उल्लेखित है कि यम नाम की एक प्रकार की वायु होती है। देहांत के बाद कुछ आत्माएं उक्त वायु में तब तक स्थित रहती हैं जब तक कि वे दूसरा शरीर धारण नहीं कर लेतीं। श्मार्कण्डेय पुराणश् अनुसार दक्षिण दिशा के दिकपाल और मृत्यु के देवता को यम कहते हैं। वेदों में श्यमश् और श्यमीश् दोनों देवता मंत्रदृष्टा ऋषि माने गए हैं। वेदों के श्यमश् का मृत्यु से कोई संबंध नहीं था पर वे पितरों के अधिपति माने गए हैं।
यम के लिए पितृपति, कृतांत, शमन, काल, दंडधर, श्राद्धदेव, धर्म, जीवितेश, महिषध्वज, महिषवाहन, शीर्णपाद, हरि और कर्मकर विशेषणों का प्रयोग होता है। अंग्रेजी में यम को प्लूटो कहते हैं। योग के प्रथम अंग को भी यम कहते हैं। दसों दिशाओं के दस दिकपालों में से एक है यम। (साई फीचर्स)