गुरुवार, 5 जुलाई 2012

कहीं सोनिया अपने त्याग को भुनाने की कोशिश में तो नहीं!


कहीं सोनिया अपने त्याग को भुनाने की कोशिश में तो नहीं!

(लिमटी खरे)

कांग्रेस में सामंतशाही आज भी बदस्तूर जारी है। कांग्रेस की सत्ता और शक्ति की धुरी आज भी नेहरू गांधी परिवार के इर्द गिर्द ही समटी दिखती है। कांग्रेस की आधिकारिक वेब साईट पर भी उपर महात्मा गांधी के अलावा इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के बाद नेहरू गांधी परिवार की जिंदा पीढ़ी में इटली मूल की सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर ही विशेष फोकस दिया जाना इस बात की ओर इशारा करता है कि सवा सौ साल पुरानी और देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस के पास इस परिवार के अलावा और कोई चेहरा है ही नहीं। पूर्व महामहिम राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी अपनी आत्मकथा में सोनिया की स्तुति कर अपनी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगवा लिया है। आशंका तो यह व्यक्त की जा रही है कि सालों बाद अपनी तारीफ में कशीदे गढ़वाकर कहीं राहुल गांधी की ताजपोशी के पहले सोनिया गांधी खुद ही देश का वज़ीरे आज़म बनने की तैयारी में तो नहीं हैं?


मिसाईल मेन अब्दुल कलाम को सारा देश सेल्यूट ही करता आया है। उनकी आत्मकथा टनिंग प्वाईंट: अ जर्नी थ्रू चेलेन्जसके बाजार में आने के पहले आए कुछ अंशों से उनकी छवि धूल धुसारित हो गई है। इसके पीछे कांग्रेस के रणनीतिकारों की क्या सोच है यह तो वे ही जानें पर यह सच है कि इसमें सोनिया गांधी को हीरो बनाकर कलाम ने अपनी विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह अवश्य ही लगवा लिए हैं। सारा देश जानता है कि कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार 2004 में देश पर शासन करने आई और उसका शासन आज भी जारी है। संप्रग सरकार के राज में इस कदर घपले घोटाले और भ्रष्टाचार के तांडव सामने आए हैं कि हर भारतीय को अब शर्म आने लगी है।
यह सब देखने के बाद भी अगर किसी की मोटी चमड़ी पर कोई असर नहीं हुआ है तो वह है कांग्रेस के आला नेता। एक समय था जब विदेशी आक्रांता आकर देश को लूटते थे और देशवासी बेबस सब कुछ देखने सुनने को मजबूर होते थे। आज हालात बदल गए हैं। आज देश के ही लोग देश को सरेराह लूट रहे हैं और देश के गणतंत्र के पहरूए अपनी मौन सहमति उन्हें दे रहे हैं। पिछले एक दशक का इतिहास साक्षी है कि भ्रष्टाचार, घपले घोटालों पर कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी ने एक भी शब्द नहीं बोला है।
अब जबकि यह मान लिया गया है कि आने वाले समय में अगर कांग्रेस या उसका गठबंधन सत्ता में आया तो देश की बागडोर राहुल गांधी को ही संभालना है तब अचानक महामहिम राष्ट्रपति के चुनाव के एन पहले आखिर एसी क्या जरूरत आन पड़ी कि मीडिया में सोनिया गांधी की तारीफों में कशीदे गढ़ने आरंभ हो गए हैं? सोनिया को हीरो बनाने के पीछे के निहितार्थ सियासी गलियारों में खोजे जाने लगे हैं।
कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि चूंकि राहुल गांधी अभी नादान और कच्ची मिट्टी के लौंधे हैं अतः उन्हें आकार लेने और तपने में अभी समय है तब तक के लिए मनमोहन ंिसंह पर दुबारा दांव लगाना उचित नहीं होगा। सोनिया के पास मनमोहन जैसा दूसरा यस मैननहीं है। इसलिए संभवतः सोनिया को ही यह मशविरा दिया गया है कि पहले सोनिया के त्याग को हाईलाईट करवा दिया जाए उसके बाद उसी की आड़ में कुछ समय के लिए ही सही देश की बागडोर सोनिया गांधी के हाथों में परोक्ष के बजाए प्रत्यक्ष रूप से सौंप दी जाए।
सियासी गलियारों मे चल रही बयार के अनुसार समाजवादी पार्टी के निजाम मुलायम सिंह यादव और त्रणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी के बीच छः माह पूर्व ही यह समझौता हो गया था कि वे दोनों मिलकर कलाम का नाम आगे बढ़ाएंगे। इस बारे में दोनों ने कलाम से चर्चा कर उनकी सहमति भी प्राप्त कर ली थी। कलाम के करीबियों का दावा है कि इस समीकरण के चलते कलाम अपनी आटोबायोग्राफी जल्द से जल्द पूरा कर बाजार में लाना चाहते थे।
इस पुस्तक में सोनिया गांधी के प्रहसन को काफी हल्के रूप में वर्णित किया गया था। जब कलाम का नाम ममता मुलायम ने आगे बढ़ाया तो कलाम ने भी अपनी किताब को समाप्त करने की गति तेज कर दी। कहते हैं कि आधी अधूरी यह किताब किसी तरह पत्रकार एम.जे.अकबर ने पढ़ने के लिए हासिल कर ली। कांग्रेस के प्रति अकबर की पुरानी निष्ठा एक बार बलवती हुई और उन्होंने इस किताब की पांडुलिपि को सोनिया के करीबी सुमन दुबे को पढ़ने को भेज दी। बरास्ता सुमन दुबे यह किताब जा पहुंची सोनिया के दरबार।
बताते हैं कि चूंकि सोनिया काफी व्यस्त थीं, इसलिए जनार्दन रेड्डी ने इसे पढ़कर इसके भावार्थ सोनिया को बताए। उधर, इसी बीच सोनिया और ममता की मुलाकात हुई। सोनिया ने सामान्य तौर इस किताब के वाक्यों का जिकर करते हुए ममता के सामने दो नाम रखकर उसे सार्वजनिक करने को कह दिया। कहते हैं कि इसके बाद कांग्रेस के संकटमोचकों ने अपना खेल खेला।
कलाम के एक करीबी ने नाम उजागर ना करने की शर्त पर कहा कि कांग्रेस की राजमाता के एक दूत ने जाकर कलाम की चिरौरी की और कहा कि इसमें सोनिया प्रसंग को दुबारा लिखा जाए जिसमें सोनिया को त्याग की प्रतिमूर्ति प्रदर्शित किया जाए। कलाम इसके लिए पहले तो राजी नहीं हुए पर जब ब्रम्हास्त्र (जिसका उल्लेख उन्होंने नहीं किया) चलाया गया तब जाकर कहीं कलाम ने अपने ही लेखन में सोनिया के प्रसंग को काफी हद तक प्रभावशाली बनाने अपनी सहमति दे दी। कहा जाता है कि कलाम की पुस्तक में सोनिया प्रकरण और किसी ने नहीं वरन् सोनिया के एक करीबी हिन्दी के बेहतरीन जानकार द्वारा लिखा गया है।
कलाम की किताब के अंश लीक होते ही कांग्रेस के रणनीतिकारों द्वारा साधे गए मीडिया ने भी सोनिया चालीसा का पाठ आरंभ कर दिया। इस सबके बीच विपक्ष की सारी दलीलें नक्कारखाने में तूती ही साबित हुईं। यक्ष प्रश्न तो आज भी यही है कि सालों बाद आखिर सोनिया के महिमा मण्डन की आवश्यक्ता क्यों आन पड़ी? क्यों कलाम की अंतरात्मा को जागने में एक दशक के लगभग का समय लगा? अगर सोनिया प्रधानमंत्री बन सकती थीं तो फिर जनता पार्टी के सुप्रीमो सुब्रह्ण्यम स्वामी के आरोपों पर कांग्रेस ने मौन क्यों साधे रखा? आखिर 1999 में विदेशी नस्ल के मुद्दे पर अड़े मुलायम सिंह यादव आज सोनिया की जयजयकार क्यों कर रहे हैं?
हालात इस ओर ही इशारा कर रहे हैं कि वज़ीरे आज़म डॉ.मनमोहन सिंह अब सरकार का नेतृत्व करने में अक्षम ही साबित हो चुके हैं। प्रणव मुखर्जी महामहिम की दौड़ में हैं, मनमोहन का सक्सेसर बनने के लिए कांग्रेस के अंदर घमासान मचा हुआ है। ए.के.अंटोनी, पलनिअप्पम चिदम्बरम, सोमनहल्ली मलैया कृष्णा, सुशील कुमार शिंदे, गुलाम नबी आजाद, कमल नाथ, कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा, जयराम रमेश के अलावा शरद पवार भी पीएम की कुर्सी पर बैठने लाबिंग कर रहे हैं।
कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस में उपरी तौर पर तो सब कुछ सामान्य ही दिख रहा है किन्तु अंदर के अंदर हालात काफी हद तक विस्फोटक ही माने जा सकते हैं। इन परिस्थितियों में हालात को संभालने के लिए नेहरू गांधी परिवार के सदस्य को ही प्रधानमंत्री की कुर्सी थामना अत्यावश्यक हो गया है। प्रियंका वढ़ेरा इसके लिए तैयार नहीं हैं, राहुल को आला नेता आज भी अपरिपक्व की श्रेणी में ही रख रहे हैं। लिहाजा, अब सोनिया गांधी को ही आगे आना होगा।
सोनिया के आगे आने पर उनके सामने सबसे बड़ा मुद्दा विदेशी नस्ल का है। विदेशी मूल की होने के कारण उनकी स्वीकार्यता लगभग नगण्य ही मानी जा सकती है। संभवतः यही कारण है कि कांग्रेस के रणनीतिकारों ने विदेशी नस्ल होने के बाद प्रधानमंत्री जैसे पद के त्याग की मनगढंत कहानी वह भी पूर्व महामहिम एपीजे अब्दुल कलाम से गढ़वाकर सोनिया के प्रति सिंपेथी बटोरने का कुत्सित प्रयास किया है।
कांग्रेस के संकटमोचक भले ही शतुरमुर्ग के मानिंद रेत में सर गड़ाकर यह मान लें कि उन्हें कोई नहीं देख रहा पर सोनिया के प्रति अचानक उमड़ी सिंपेथी जनता भांप चुकी है और उनकी आंखों के सामने हुए घपले घोटाले, भ्रष्टाचार के नंगे नाच और उनके विदेशी नस्ल के मामले को शायद ही जनता भुला पाए। माना जा रहा है कि अपने आप को त्याग की प्रतिमूर्ति प्रचारित कर चुनिंदा मीडिया घरानों के माध्यम से अपनी छवि निर्माण कर टीआरपी बढ़वाकर सोनिया अपने उस त्याग को भुनाने की कोशि में हैं। हालत देखकर, आने वाले समय में अगर सोनिया गांधी का डाक का पता 10, जनपथ (बतौर सांसद सोनिया को आवंटित सरकारी आवास) से बदलकर 7, रेसकोर्स रोड़ (भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री का आवास) हो जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

परिवार सहित सैर सपाटा प्रिय शगल रहा है महामहिम का!

खण्डित हो गई है राष्ट्रपति भवन की गरिमा! . . . 4

परिवार सहित सैर सपाटा प्रिय शगल रहा है महामहिम का!

(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)। भारत गणराज्य की स्थापना के साथ ही देश के महामहिम राष्ट्रपति को देश का सर्वोच्च नागरिक यानी पहले नागरिक का दर्जा दिया गया था। भारत गणराज्य के महामहिम महामहिम राष्ट्रपति पद पर विराजे नेताओं ने इस पद की गरिमा को बरकरार रखने में महती भूमिका निभाई है। कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो अस्सी के दशक के उपरांत महामहिम राष्ट्रपति पद पर विराजे माननीयों ने अपने परिवार के साथ सैर सपाटे को ही सबसे ज्यादा प्राथमिकता दी है।
वर्तमान महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल पर अपने भारी भरकम परिवार के साथ विदेश यात्राओं में भारत के गरीब गुरबों के खून पसीने की कमाई को हवा में उड़ाने के आरोप लगे हैं। वे पहली महामहिम राष्ट्रपति नहीं हैं, जिन पर इस तरह के संगीन आरोपों का नाता रहा हो। इस लिहाज से प्रतिभा पाटिल को अकेले ही दोषी ठहराना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है।
इसके पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ विवाद के कारण में चर्चाओं में आए तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति ्रज्ञानी जैल सिंह का कार्यकाल भी इससे अछूता नहीं रहा है। उनके कार्यकाल में भी कामोबेश हर विदेशी दौरे में उनकी पुत्री उनके साथ ही रहा करती थीं। यह अलहदा बात है कि राजीव गांधी के साथ विवाद के चलते सरकार ने जैल सिंह के ही विदेश दौरों पर अघोषित प्रतिबंध लगा दिया था।
एक और महामहिम राष्ट्रपति रहे हैं के.आर.नारायणन। नारायणन ने तो सारे के सारे प्रोटोकाल की धज्जियां उड़ाने में कोई कोर कसर नहीं रख छोड़ी। नारायणन ने तो अपनी पुत्री के लिए सारी वर्जनाएं ताक पर रख दी थीं। नारायणन की पुत्री भारतीय विदेश सेवा में थीं। जब भी महामहिम राष्ट्रपति के बतौर के.आर.नारायणन विदेश यात्रा पर जाते वे अपनी आईएफएस पुत्री को अधिकारी के बजाए अपनी पुत्री के बतौर सदा साथ रखते।
हद तो तब हो जाती जब विदेश में वहां की सरकार द्वारा आयोजित उच्च स्तरीय आधिकारिक भोज का आयोजन होता। वहां नारायणन की आईएफएस पुत्री की मौजूदगी अन्य अतिथियों और डेलीगेट्स के लिए परेशानी का सबब बन जाती। इस तरह महामहिम राष्ट्रपति के पद की गरिमा को खाक में मिलाने में कुछ माननीयों ने कोई कोर कसर नहीं रख छोड़ी।
वर्तमान महामहिम राष्ट्रपति पर भी विदेश दौरों में भारत देश के गरीब गुरबों के गाढ़े पसीने की कमाई से संचित राजस्व में से दो सौ करोड़ रूपयों में आग लगाने का आरोप है। यक्ष प्रश्न यही खड़ा हुआ है कि क्या दो सौ करोड़ रूपए प्रतिभा पाटिल को बतौर महामहिम राष्ट्रपति विदेश दौरों पर खर्च किया जाना चाहिए था?

. . . मतलब हरिप्रसाद ही थे सेट!


. . . मतलब हरिप्रसाद ही थे सेट!

रिपोर्ट आने पर कार्यवाही करेंगे: हरिप्रसाद

(संजीव प्रताप सिंह)

सिवनी (साई)। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सीमा पर अवस्थित भगवान शिव के सिवनी जिले की सबसे पुरानी तहसील के मुख्यालय लखनादौन में गुरूवार को संपन्न हो रहे नगर पंचायत के चुनाव में अध्यक्ष पद पर कांग्रेस के वाकोवर की तह में अनेक परतें उजागर होती जा रही हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस को जमकर नुकसान पहुंचाने वाले पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष दिनेश राय को व्यक्तिगत लाभ पहुंचाने के लिए कांग्रेस द्वारा अध्यक्ष पद के लिए वाकोवर दे दिया गया है। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि वे सारी स्थितियों से वाकिफ हैं और उनके पास रिपोर्ट आने पर वे मुकम्मल कार्यवाही अवश्य करेंगे।
गौरतलब है कि आदिवासी बाहुल्य और अजजा के लिए सुरक्षित लखनादौन विधानसभा के तहसील मुख्यालय में नगर पंचायत के चुनावों में नाम वापसी के अंतिम दिन कांग्रेस द्वारा अधिकृत प्रत्याशी द्वारा नाम वापस लेने के बाद माहौल गर्मा गया था। इसके उपरांत जब समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया द्वारा मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कांति लाल भूरिया से चर्चा की गई थी तब उन्होंने लखनादौन में कांग्रेस की ओर से निर्दलीय प्रत्याशी जो कांग्रेस का डमी बताया गया था को अपना समर्थन देने की बात कही गई थी।
जब कांति लाल भूरिया से यह पूछा गया था कि कांग्रेस की ओर से डमी प्रत्याशी कौन था? इस पर उन्होंने कहा कि सुधा राय को ही कांग्रेस की ओर डमी के बतौर खड़ा किया गया था और सुधा राय को ही समर्थन की घोषणा कर दी जाएगी। जब श्री भूरिया के संज्ञान में लाया गया कि सुधा राय के पुत्र दिनेश राय द्वारा नगर पंचायत लखनादौन के अध्यक्ष रहते हुए ही सिवनी विधानसभा में बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ते हुए कांग्रेस प्रत्याशी प्रसन्न चंद मालू की जमानत तक जप्त करवा दी थी। इसके बाद से मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया का मोबाईल कभी भी स्विच ऑन नहीं मिला और उनके निज सचिव श्री कक्कड़ उन्हें छोड़कर भोपाल में ही बैठे रहने की बात दुहराते रहे।
कहा जा रहा है कि सिवनी लोकसभा के विलोपन के दरम्यान दिनेश राय द्वारा घोषणा की गई थी कि अगर लोकसभा का विलोपन होता है तो वे कांग्रेस के महाकौशल के सबसे ताकतवर क्षत्रप हरवंश सिंह ठाकुर के खिलाफ केवलारी से चुनाव लडेंगे। बाद में उन्होंने केवलारी से लड़ने की बात को अस्वीकार करते हुए सिवनी से चुनाव लड़ा था। संभवतः उसी बात का उपकार चुकाने के लिए कांग्रेस द्वारा किसी को भी समर्थन ना देकर दिनेश राय की माता श्रीमति सुधा राय की जीत के मार्ग प्रशस्त कर दिए।
बहरहाल, 18 जून को ही जब नाम वापस ले लिया गया था, उसी दिन समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया द्वारा कांग्रेस के प्रभारी महासचिव बी.के.हरिप्रसाद जो कि बंग्लुरू में थे से इस बारे में चर्चा की थी, तब उन्होंने कहा था कि यह मामला उनके संज्ञान में है और गंभीर प्रकृति का है इस बारे में उन्होंने शीघ्र ही प्रतिवेदन तलब किया है। प्रतिवेदन आते ही वे इस पर कार्यवाही करेंगे।
गुरूवार 5 जुलाई को 18 दिन बीत जाने के उपरांत जब एक बार फिर समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया ने एक बार फिर बी.के.हरिप्रसाद से बात करनी चाही तो उनका मोबाईल बंद मिला। बाद में बी.के.हरिप्रसाद ने लेण्ड लाईन से फोन कर साई न्यूज से चर्चा की, तो उन्होंने कहा कि सारा मामला उनके संज्ञान में आ चुका है, उन्हें बस इंतजार है तो पर्यवेक्षक के प्रतिवेदन का।
उधर, मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के एक जिम्मेदार पदाधिकारी ने नाम उजागर ना करने की शर्त पर कहा कि इस मामले में कांति लाल भूरिया तो मोहरा भर हैं। दरअसल, इस मसले में सेट तो हैं बी.के.हरिप्रसाद। पता नहीं हरिप्रसाद का कौन सा स्वार्थ इस मामले में सध रहा है कि उन्होंने इस बारे में ढील डालकर रखी हुई है।
उक्त पदाधिकारी ने कहा कि अगर हरिप्रसाद चाहते तो उनके संज्ञान में 18 जून को बात आने के बाद आनन फानन रिपोर्ट तलब कर किसी को समर्थन देने की घोषणा करवा देते, पर इस मामले के तार बहुत गहरे जाते प्रतीत हो रहे हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि इस सबके पीछे नेताओं को गलत सही बताकर भरमाना भी है!

भाजपा के निशाने पर भूरिया और नाथ


भाजपा के निशाने पर भूरिया और नाथ

(संताष पारदसानी)

भोपाल (साई)। लगभग आधा सैकड़ा नगरीय निकाय चुनावों में भाजपा ने अपना पूरा ध्यान कांति लाल भूरिया और कमल नाथ के क्षेत्रों में ही केंद्रित कर रखा है। भूरिया एक और जहां मालवा में पूरी ताकत लगाए हुए हैं, वहीं दूसरी ओर नाथ ने महाकौशल को अनाथ कर छोड़ा है।
प्रदेश के 16 जिलों में हो रहे 49 नगरीय निकाय चुनावों में भाजपा के निशाने पर सिर्फ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया और केंद्रीय मंत्री कमलनाथ हैं। भाजपा दोनों को उनके ही गढ़ मालवा और महाकौशल में मात देने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। वजह साफ है, भाजपा मान रही है कि उसका निकाय चुनाव में पिछला रिकार्ड दोहराना मुश्किल है।
49 निकायों में से 30 पर भाजपा का कब्जा है और 12 पर कांग्रेस का और तीन पर भाजपा समर्थितों का कब्जा है। इस कारण भाजपा चाहती है कि संख्याबल में भले ही कमी आ जाए, लेकिन कांग्रेस के इन दोनों दिग्गजों के प्रभाव वाले क्षेत्र में जीत दर्ज कर वह पूरी पार्टी और कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर मानसिक रूप से दबाव बनाए रख सकती है।
कहा जा रहा है कि भाजपा ने मालवा और महाकौशल में कांग्रेस को मात देने के लिए विशेष रणनीति बनाई है। स्वयं प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा इन दोनों अंचलों में विशेष रुचि ले रहे हैं। विधानसभा उपचुनाव में लगातार जीत से उत्साहित भाजपा कांग्रेस पर मानसिक रूप से दबाव बनाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है।
इधर, कमल नाथ के प्रभाव वाले महाकौशल के सिवनी जिले में लखन कुंवर की नगरी लखनादौन में कांग्रेस प्रत्याशी ने अध्यक्ष पद के लिए नाम वापस लेकर भाजपा को वाकोवर दे दिया है, जिसके सियासी मायने भी खोजे जा रहे हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि लखनादौन में भाजपा के लिए रास्ता खोलकर कांग्रेस ने छिंदवाड़ा में अपनी अस्मत बचाने का परोक्ष सौदा भी कर लिया है।