खण्डित हो गई है
राष्ट्रपति भवन की गरिमा! . . . 4
परिवार सहित सैर
सपाटा प्रिय शगल रहा है महामहिम का!
(शरद खरे)
नई दिल्ली (साई)।
भारत गणराज्य की स्थापना के साथ ही देश के महामहिम राष्ट्रपति को देश का सर्वोच्च
नागरिक यानी पहले नागरिक का दर्जा दिया गया था। भारत गणराज्य के महामहिम महामहिम
राष्ट्रपति पद पर विराजे नेताओं ने इस पद की गरिमा को बरकरार रखने में महती भूमिका
निभाई है। कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो अस्सी के दशक के उपरांत महामहिम
राष्ट्रपति पद पर विराजे माननीयों ने अपने परिवार के साथ सैर सपाटे को ही सबसे
ज्यादा प्राथमिकता दी है।
वर्तमान महामहिम
राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल पर अपने भारी भरकम परिवार के साथ विदेश
यात्राओं में भारत के गरीब गुरबों के खून पसीने की कमाई को हवा में उड़ाने के आरोप
लगे हैं। वे पहली महामहिम राष्ट्रपति नहीं हैं, जिन पर इस तरह के
संगीन आरोपों का नाता रहा हो। इस लिहाज से प्रतिभा पाटिल को अकेले ही दोषी ठहराना
किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है।
इसके पहले तत्कालीन
प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ विवाद के कारण में चर्चाओं में आए तत्कालीन
महामहिम राष्ट्रपति ्रज्ञानी जैल सिंह का कार्यकाल भी इससे अछूता नहीं रहा है।
उनके कार्यकाल में भी कामोबेश हर विदेशी दौरे में उनकी पुत्री उनके साथ ही रहा
करती थीं। यह अलहदा बात है कि राजीव गांधी के साथ विवाद के चलते सरकार ने जैल सिंह
के ही विदेश दौरों पर अघोषित प्रतिबंध लगा दिया था।
एक और महामहिम
राष्ट्रपति रहे हैं के.आर.नारायणन। नारायणन ने तो सारे के सारे प्रोटोकाल की
धज्जियां उड़ाने में कोई कोर कसर नहीं रख छोड़ी। नारायणन ने तो अपनी पुत्री के लिए
सारी वर्जनाएं ताक पर रख दी थीं। नारायणन की पुत्री भारतीय विदेश सेवा में थीं। जब
भी महामहिम राष्ट्रपति के बतौर के.आर.नारायणन विदेश यात्रा पर जाते वे अपनी आईएफएस
पुत्री को अधिकारी के बजाए अपनी पुत्री के बतौर सदा साथ रखते।
हद तो तब हो जाती
जब विदेश में वहां की सरकार द्वारा आयोजित उच्च स्तरीय आधिकारिक भोज का आयोजन
होता। वहां नारायणन की आईएफएस पुत्री की मौजूदगी अन्य अतिथियों और डेलीगेट्स के
लिए परेशानी का सबब बन जाती। इस तरह महामहिम राष्ट्रपति के पद की गरिमा को खाक में
मिलाने में कुछ माननीयों ने कोई कोर कसर नहीं रख छोड़ी।
वर्तमान महामहिम
राष्ट्रपति पर भी विदेश दौरों में भारत देश के गरीब गुरबों के गाढ़े पसीने की कमाई
से संचित राजस्व में से दो सौ करोड़ रूपयों में आग लगाने का आरोप है। यक्ष प्रश्न
यही खड़ा हुआ है कि क्या दो सौ करोड़ रूपए प्रतिभा पाटिल को बतौर महामहिम राष्ट्रपति
विदेश दौरों पर खर्च किया जाना चाहिए था?
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