सोमवार, 17 मई 2010

पीएम बनने का सपना संजोते दिग्विजय

दिग्गी की नजरें 7, रेसकोर्स पर

2012 में राष्ट्रपति बनाए जा सकते हैं मनमोह

आम चुनावों में राहुल शायद ही हों बतौर पीएम प्रोजेक्ट

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 17 मई। सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस में आने वाले दो वर्षों में नेतृत्व परिवर्तन का रोडमेप तैयार होने लगा है। देश पर आधी सदी से ज्यादा शासन करने वाली कांग्रेस में इन दिनों भविष्य में सत्ता की मलाई खाने की गलाकाट स्पर्धा मची हुई है। कांग्रेस का एक बडा वर्ग जहां अब सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (श्रीमति सोनिया गांधी का सरकारी आवास) को 12 तुगलक लेन (राहुल गाध्ंाी का सरकारी आवास) ले जाना चाह रहा है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के कुछ प्रबंधक चाह रहे हैं कि 2014 में होने वाले आम चुनावों में भी राहुल गांधी को बतौर प्रधानमंत्री न प्रोजेक्ट किया जाए। इस रोड मेप में 2012 को बहुत ही अहम माना जा रहा है।

10 जनपथ के सूत्रों का कहना है कि 2014 में संपन्न होने वाले आम चुनावों में वर्तमान प्रधानमंत्री डॉ.मन मोहन सिंह को पार्टी का नेतृत्व नहीं करने देने के मसले पर सोनिया गांधी ने अपनी मुहर लगा दी है। सोनिया के इस तरह के संकेत के साथ ही कांग्र्रेस के अंदर अब 2012 के सन को महात्वपूर्ण माना जाने लगा है। 2012 में देश के महामहिम राष्ट्रपति का चुनाव होना है। कांग्रेस के प्रबंधकों का एक धडा इस प्रयास में लगा हुआ है कि वजीरेआजम डॉ.मन मोहन सिंह को या तो राष्ट्रपति बना दिया जाए या फिर उन्हें स्वास्थ्य कारणों से घर ही बिठा दिया जाए।

कांग्रेस के प्रबंधकों ने सोनिया गांधी को यह मशविरा भी दे दिया है कि अगर 2014 में कांग्रेस स्पष्ट बहुमत लाने में कामयाब न हो सकी तो राहुल गांधी को पार्टी का नेतृत्व नही करना चाहिए। इन परिस्थितियों में भगवान राम के स्थान पर जिस तरह भरत ने खडांउं रखकर राज किया था, उसी तरह ‘‘खडांउं प्रधानमंत्री‘‘ की दरकार होगी। 2012 में 7, रेसकोर्स रोड (भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री का सरकारी आवास) को आशियाना बनाने की इच्छाएं अब कांग्रेस के अनेक नेताओं के मन मस्तिष्क में कुलाचें भरने लगी हैं। इस दौड में प्रणव मुखर्जी, पलनिअप्पम चिदम्बरम, सुशील कुमार शिंदे के नाम सामने आ रहे हैं।

कांग्रेस की इंटरनल केमिस्ट्री को अच्छी तरह समझने वालों की नजरें इन सारे नेताओं के बजाए इक्कीसवीं सदी में कांग्रेस के अघोषित चाणक्य राजा दिग्विजय सिंह पर आकर टिक गईं हैं। मध्य प्रदेश में दस साल तक निष्कंटक राज करने वाले राजा दिग्विजय सिंह ने संयुक्त मध्य प्रदेश में तत्कालीन क्षत्रप विद्याचरण शुक्ल, श्यामा चरण शुक्ल, अजीत जोगी, माधव राव सिंधिया, कुंवर अर्जुंन सिंह और कमल नाथ जैसे धाकड और धुरंधर नेताओं को जिस कदर धूल चटाई थी, वह बात अभी लोगों की स्मृति से विस्मृत नही हुई है।

राजा दिग्विजय सिंह ने गांधी परिवार को वर्तमान में जिस तरह से भरोसे में लेकर नक्सलवाद के मसले पर वर्तमान गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम पर हमले किए हैं, उसे राजा की प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने की सीढी के तौर पर देखा जा रहा है। राजा के कदम ताल देखकर लगने लगा है कि वे राजपूत नेताओं को लामबंद करने के साथ ही साथ अपनी ठाकुर की छवि को उकेर कर उदारवादी नेताओं का समर्थन भी हासिल करने का जतन कर रहे हैं। चिदम्बरम पर एक जहर बुझा तीर दागकर हाल ही में राजा दिग्विजय सिंह ने कहा था कि पलनिअप्पम चिदम्बरम अगर प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं तो उन्हें और अधिक उदार बनने की दरकार होगी।

वैसे कांग्रेस की नजर में देश के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी के अघोषित राजनैतिक गुरू तथा कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी को राह दिखाने के लिए एक हाथ में लाठी और दूसरे हाथ में लालटेन लेकर चलने वाले राजा दिग्विजय सिंह एक बात शायद भूल रहे हैं कि कांग्रेस की परंपरा कुछ उलट ही रही है। नेहरू गांधी परिवार की मंशा से इतर जब भी किसी कांग्रेसी ने प्रधानमंत्री की कुर्सी को देखा है, उसे राजनैतिक बियावान में सन्यासी जीवन बिताने बलात ढकेल दिया जाता रहा है।

राजा दिग्विजय सिंह को इसके लिए कांग्रेस का बहुत पुराना नहीं बल्कि सत्तर के दशक के उपरांत का इतिहास ही पलटाना होगा। बाबू जगजीवन राम से बरास्ता हेमवती नंदन बहुगुणा, नारायणदत्त तिवारी और कुंवर अर्जुन सिंह के मन की बातें सामने आने और मंशा स्पष्ट होने के उपरांत उनके साथ कांग्रेस ने किस कदर ‘‘अछूत‘‘ के मानिंद व्यवहार किया है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। कल तक कुंवर अर्जुन सिंह के दिखाए पथ पर चलने वाली कांग्रेस ने आज उन्हें दूध की मख्खी के मानिंद निकालकर बाहर फेंक दिया है।

भाजपा मैनेज नहीं हुई तो जाएंगे हरवंश

 

अगर भाजपा मैनेज नहीं हुई तो विस उपाध्यक्ष का जाना तय
देश के हृदय प्रदेश में 2003 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी थी। इसके बाद 2008 में दुबारा कांग्रेस ने मुंह की खाई और शिवराज सिंह दुबारा सत्तारूढ हो गए। पिछले आठ सालों में भाजपा सरकार द्वारा कांग्रेस को अनेकानेक मुद्दे दिए थे, जिनको आधार बनाकर कांग्रेस द्वारा भाजपा को कटघरे में खडा किया जा सकता था। विडम्बना ही कही जाएगी कि आधी सदी से ज्यादा समय तक देश पर राज करने वाली कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में सबसे कमजोर विपक्ष क्या होता है, यह दिखा दिया है। भाजपा ने भी केंद्र या प्रदेश में कांग्रेस को भला बुरा कहा है पर यह नूरा कुश्ती से अधिक नहीं था। प्रभात झा के प्रदेश भाजपाध्यक्ष बनते ही भाजपा हरकत में आ गई है। उसने विधानसभा उपाध्यक्ष जैसे संवैधानिक पद पर बैठे कांग्रेस के ठाकुर हरवंश सिंह को विधानसभा सत्र के बहिष्कार को लेकर आडे हाथों लिया है। चर्चाओं के अनुसार अब तक प्रदेश में भाजपा हरवंश सिंह के इशारों पर ही कदम ताल करती रही है। पहली मर्तबा भाजपा ने सर उठाया है। प्रभात झा के नेतृत्व में भाजपा में जान फुंकती दिख रही है। इतिहास साक्षी है कि जब भी कांग्रेस के कद्दावर नेता हरवंश सिंह के खिलाफ कोई मुहिम छेडी गई है, उन्होंने अपनी कुशल प्रबंधन क्षमता का परिचय देकर उसे ठंडे बस्ते के हवाले कर दिया है। सिंह के खिलाफ उन्हीं की कर्मभूमि की सिवनी की तत्कालीन भाजपा सांसद श्रीमति नीता पटेरिया ने आमानाला कांड में धारा 307 के तहत प्रकरण पंजीबद्ध करवाया था, सूबे में भाजपा सरकार के होते हुए यह प्रकरण का बनना और उसी सरकार के रहते हुए भी खात्मा के लिए अग्रसर होना हरवंश सिंह के कुशल प्रबंधन की एक बानगी ही माना जा रहा है। मध्य प्रदेश में चर्चा गरम है कि अगर इस बार भाजपा अगर विधान सभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह के हाथों मैनेज नहीं हुई तो हरवंश सिंह को विधानसभा उपाध्यक्ष की संवैधानिक कुर्सी को छोडना ही पडेगा।
बिना काम की टीम गडकरी
भाजपा इन दिनों सुस्सुप्तावस्था में हैै। इसका कारण यह है कि भाजपा के नए निजाम की पहली दिल्ली रैली में ही वे गर्मी को सहन न कर पाए और गश खाकर गिर पडे। अब जब तक मौसम ठीक ठाक नहीं होता भाजपा के सुकुमार नेता प्रदर्शन से परहेज ही करेंगे। भारतीय जनता पार्टी मेें टीम गडकरी की घोषणा के लगभग पचास दिनों बाद भी वह पूरी तरह से निष्क्रीय ही दिख रही है, इसका कारण यह है कि टीम गडकरी का गठन तो कर लिया गया है, पर किसी को कोई जवाबदारी नहीं दी गई है। 11 अशोक रोड (भाजपा का नेशनल आफिस) में चल रही चर्चाओं के अनुसार बडे कद वाले हेवीवेट नेताओं को साधने के चक्कर में गडकरी द्वारा अनेक सूबों के भाजपाध्यक्षों की घोषणा भी नहीं कर सके हैं। पार्टी में विभिन्न प्रकोष्ट के अध्यक्षों के पद रिक्त हैं। इतना ही नहीं टीम गडकरी के पदाधिकारियों के बीच काम के बटवारे के अभाव में वे पार्टी मुख्यालय में आकर मुंह बजाने को मजबूर हैं। अब तो लोग नितिन गडकरी की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए यह भी कहने लगे हैं कि टीम गडकरी अब काम के अभाव में बिना काम की ही बची है।
बडबोलों ने घेरा मनमोहन को
देश के वजीरे आजम डॉ.मन मोहन सिंह इन दिनों खासे परेशान नजर आ रहे हैं, उनकी पेशानी पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रहीं हैं। इसका प्रमुख कारण उनके ही मंत्रियों का जबान पर काबू न होना। शशि थुरूर, एम.एस.कृष्णा द्वारा मंहगे होटलों में रूककर, फिर थुरूर के आईपीएल और अन्य विवादों में फंसने के कारण हुई बिदाई, जयराम रमेश और कमल नाथ के हाट एण्ड कोल्ड वार, ए.राजा के घोटाले, चिदम्बरम वर्सिस दिग्विजय सिंह आदि विवादों के बाद अब एक बार फिर जयराम रमेश द्वारा अपने विभाग से इतर चीन की हिमायत करने के आरोप से प्रधानमंत्री डॉ.एम.एम.सिंह परेशान हो उठे हैं। रमेश ने चीन की संचार कंपनियों पर से प्रतिबंध हटाने की मांग की थी। विपक्ष का कहना है कि भारत गणराज्य के वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश चीन के लाईजनिंग एजेंट के मानिंद काम कर रहे हैं, उन्हें तत्काल बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए। वहीं भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ ने मध्य प्रदेश के तेंदूखेडा में यह कहकर सनसनी फैला दी कि फोरलेन उनके संसदीय क्षेत्र छिंदवाडा से होकर जाएगा। यद्यपि यह कूटनीतिक बयान ही था, गौरतलब होगा कि स्वर्णिम चतुर्भुज का उत्तर दक्षिण गलियारा अब शेरशाह सूरी के जमाने के राष्ट्रीय रजमार्ग क्रमांक सात पर अवस्थित सिवनी के बजाए छिंदवाडा होकर जाए इसके लिए कमल नाथ प्रयासरत हैं। मामला चूंकि सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है, फिर कमल नाथ द्वारा इस तरह के बयान देने से लगने लगा है कि वे सर्वोच्च न्यायलय से अपने आप को उपर ही मान रहे हैं।
सुरेश की जमानत पर बचेंगे कैलाश
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह कार्यवाहक सुरेश सोनी की इन दिनों भाजपा में तूती बोल रही है। पहले मध्य प्रदेश में प्रभात झा के विरोध के बावजूद भी उन्हें प्रदेशाध्यक्ष का ताज पहनवाकर सोनी ने अपनी कुशल रणनीति और प्रबंधन गुरू होने का प्रमाण दे दिया। अब सुरेश सोनी मध्य प्रदेश के एक विवादस्पद मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के तारण हार की भूमिका में नजर आ रहे हैं। भ्रष्टाचार और कदाचरण के अरोपों से घिरे कैलाश विजयवर्गीय की रवानगी इस सप्ताह तय थी। गंभीर आरोपों के बावजूद भी कैलाश का मंत्री पद पर बने रहना आश्चर्य का विषय ही माना जा रहा है। बताते हैं कि सुरेश विजयवर्गीय की कुर्सी के पायों को उनके विरोधी और खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी हिला नहीं पा रहे हैं, क्योंकि चारों पाए सुरेश सोनी ने जो पकड रखे हैं। सोनी के समर्थन और संरक्षण के कारण कैलाश विजयवर्गीय बने हुए हैं। मध्य प्रदेश की सूबाई राजनीति में सुरेश सोनी जिस कदर ताकतवर होकर उभर रहे हैं, वह निश्चित तौर पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए शुभ लक्षण नहीं माना जा रहा है।
दूजी बीबी नहीं है मैंटिनेंस की हकदार
पहले से शादी शुदा आदमी के तलाक के बिना अगर कोई महिला उससे शादी करती है तो वह महिला गुजारा भत्ता पाने की अधिकारी नहीं है। मुंबई उच्च न्यायालय के जस्टिस ए.पी.देशपाण्डे वाली डिविजन बैंच ने यह व्यवस्था देते हुए कहा है कि हिंदू विवाह कानून और यहां तक कि हिंदू एडाप्शन एंड मेंटिनेंस एक्ट (हामा) के तहत एसी महिला गुजारा भत्ता पाने के लिए दावा नहीं कर सकती है। उच्च न्यायालय का कहना है कि अगर पहली पत्नि जिंदा है तो दूसरे विवाह का अधार ही नहीं बनता है। वादी ने अपने परिवाद में कहा कि उसके पति ने उससे वैधानिक तौर पर विवाह रचाया था अतः वह गुजारा भत्ता की अधिकारिणी है। कोर्ट का कहना था कि जब वह हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत उसकी दूसरी पत्नि का दर्जा ही नहीं रखती है तो वह फिर गुजारा भत्ता की हकदार कैसे है। जब दूसरी पत्नि जानती है कि उसके कथित पति की पहली पत्नि जिंदा है, और वह उसके साथ रह रही है तब वह मैंटेनेंस का दावा नहीं कर सकती है। हामा के तहत इस तरह का क्लेम तभी किया जा सकता था जबकि यह हिन्दू मेरिज एक्ट 1955 के प्रभाव में आने के पहले की गई हो। इसके लागू होने के पहले हिन्दू कस्टमरी कानून में दो पत्नियां वैध थीं।
मुफत में नहीं मिलने वाला ‘आधार‘
केंद्र सरकार देश के समस्त नागरिकों को अनिवार्य पहचान नम्बर ‘‘आधार‘‘ मुहैया करवाने जा रही है। देश में अवैध तरीके से रहने वाले बंग्लादेशी और पाकिस्तानी नागरिक इससे बुरी तरह भयाक्रांत हैं। इसका कारण यह है कि अगर बारीकी से कार्यवाही की गई तो इन्हें देश छोडने पर मजबूर होना पड सकता है। इस तरह का यूआईडी नंबर देश के नागरिकों से इसकी रकम वसूलेगा जबकि गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों को यह निशुल्क मिल सकेगा। जनगणना आरंभ हो चुक है। यूआईडी प्राधिकरण 2011 से लोगों को यूआईडी नंबर मुहैया करवाएगा। सरकार एपीएल के लोगों से इसकी कितनी कीमत वसूलेगा इस बारे में अभी तय नहीं हो सका है। इस यूआईडी नंबर में महती जानकारियां होंगीं। लोगांे को इंतजार है कि लोगों का यह आधार लोगों की कितनी अधिक जेब ढीली करने के बाद उपलब्ध होगा। इससे केंद्र सरकार को हर वर्ग के लोगों की वास्तविक जानकारी तो मुहैया होगी ही साथ ही देश में घुसपैठियों के बारे में भी पता चल सकेगा।
हांफने लगा है त्रणमूल - कांग्रेस गठबंधन
पश्चिम बंगाल पर काबिज होने के लिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी और त्रणमूल कांग्रेस के बीच कभी न समाप्त होने वाली प्रतिस्पर्धा चल पडी है। कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (कांग्रेसाध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी का सरकारी आवास) के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि त्रणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने सोनिया गांधी को समझाया है कि अगर कांग्रेस उन्हें पश्चिम बंगाल में काबिज कराने में मदद करे तो त्रणमूल कांग्रेस द्वारा केंद्र मंे कांग्रेस को बिना शर्त और बिना मंत्री पद लिए समर्थन दिया जा सकता है। बताते हैं कि ममता के इस लाई लप्पा से कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह और बंगाल की राजनीति की धुरी रहे प्रणव मुखर्जी सहमत नहीं है। उनका कहना है कि कांग्रेस भले ही समझौते पर लडे पर किसी भी कीमत पर ममता को वहां प्रमोट नहीं किया जा सकता है। दोनों ही नेताओं को डर है कि अगर ममता को बंगाल पर काबिज कर दिया गया तो आने वाले दिनों में ममता फिर से केंद्र में कांग्रेस को आंखे दिखा सकतीं हैं। हालात देखकर लगने लगा है कि कांग्रेस और त्रणमूल कांग्रेस का गठबंधन लडखडाने लगा है।
नंबर पोर्टेबिलिटी मामले में दिल्ली अभी दूर है
नंबर वही, पर मोबाईल सेवा प्रदाता आपकी पसंद का, अर्थात नंबर पोर्टेबिलिटी के मामले में अभी और समय लगने की उम्मीद है। भारत संचार सेवा निगम लिमिटेड बीएसएनएल, महानगर संचार निगम लिमिटेड एमटीएनएल, सहित अनेक निजी मोबाईल सेवा प्रदाता इसके लिए तैयार नहीं हैं। लंबे समय से नंबर पोर्टेबिलिटी की बात सरकार द्वारा कही जा रही है, पर खराब सेवा देने वाली कंपनियों को डर है कि कहीं उसके उपभोक्ता किसी अन्य सेवा प्रदाता के पास न चले जाएं, इसीलिए इन कंपनियों द्वारा इसके लिए आवश्यक तकनीक विशेषकर एमएनपी गेटवे तक नहीं जुटाई गईं हैं। संचार विभाग द्वारा बार बार तिथियों को बढाने के बाद अब कहा गया है कि नंबर पोर्टेबिलिटी सुविधा आने वाले 30 जून से आरंभ कर दी जाएंगी। हालात देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि भारत गणराज्य में नंबर पोर्टेबिलिटी का सपना अभी हकीकत में बदल नहीं पाएगा, इस मसले में अभी दिल्ली बहुत दूर ही नजर आ रही है।
समस्या की जड प्रगति मैदान गो आउट ऑफ डेल्ही
देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में व्यापार मेलों और प्रदर्शनियों के चलते सडकों पर जाम लगना आम बात हो गई है। इंडिया गेट, आईटीओ, यमुना पार, इंद्रप्रस्थ वाली रिंग रोड, मथुरा रोड जैसी महात्वपूर्ण सडकों पर जाम लगने का प्रमुख कारण प्रगति मैदान ही है। यहां होने वाले आयोजन दिल्ली की रफ्तार को थाम देते हैं। यह हम नहीं संसद की एक समिति का कहना है। शांता कुमार की अध्यक्षता वाली वाणिज्य विभाग संबंधी संसदीय स्थाई समिति का कहना है कि आईटीपीओ के तहत आयोजित होने वाले व्यापार मेलों को प्रगति मैदान के बजाए दिल्ली शहर के बाहर जगह मुहैया करवाई जानी चाहिए, ताकि मेले ठेले के दौरान दिल्ली की यातायात व्यवस्था को पटरी पर लाया जा सके। समिति ने वाणिज्य और उद्योग विभाग की 2010 - 2011 की अनुदान मांगों के सबंध में 93वें प्रतिवेदन में यह सिफारिश की है। अब देखना यह है कि इस सिफारिश को सरकार वैसे ही मानती है, या फिर किसी को माननीय न्यायालय की शरण में जाना होगा।
साल भर में ही उखडने लगीं एयरपोर्ट की सांसें
देश की राजधानी दिल्ली को देश का आईना कहा जाता है। विदेशों से आने वाले इस शहर को देखकर शेष भारत के हालातों का अंदाजा आसानी से लगा सकता है। नई दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे की शक्ल सूरत तो काफी सुधार दी गई है, किन्तु इससे लगा घरेलू हवाई अड्डा (डोमेस्टिक एयरपोर्ट) आज भी अपनी बदहाली पर आंसू बहाने पर मजबूर है। आलम यह है कि घरेलू हावाई अड्डे के आगमन अर्थात एरावल प्वाईंट पर एक तरफ की दीवार में दरारें साफ दिखाई पड रही हैं। डिपार्चर टर्मिनल की छत का पेंट उखडने लगा है। आग बुझाने वाले फायर एक्सटेंविशर भी गायब हैं। यह सब तब है जबकि डिपार्चर टर्मिनल 1 डी को 500 करोड रूपए खर्च कर अत्याधुनिक बनाया गया है। इसका व्यवसायिक उपयोग पिछले साल 19 अप्रेल से आरंभ हुआ था। इसमें लगी लिफ्ट में भी पावर बेकअप नहीं के बराबर है। विमानन विभाग के दिल्ली स्थित एयरपोर्ट के आलम यह हैं तो शेष भारत की कल्पना करना बेमानी ही होगा।
कामनवेल्थ में गोमांस नहीं
बार बार चेताने के बाद अब सरकार की तंद्रा टूटती दिख रही है। कामन वेल्थ गेम्स के दौरान मेहमानों को गोमांस परोसने की खबरों ने सरकार की नींद उडा दी थी। अब कामन वेल्थ गेम्स की आर्गनाईजिंग कमेटी ने साफ कर दिया है कि खेल के दौरान मेहमानों को बीफ अर्थात गोमांस नहीं परोसा जाएगा। वैसे कमेटी का प्रयास है कि खेल के दौरान एथलीट्स और उनके साथ आने वाले अधिकारियों को उत्तम क्वालिटी की केटरिंग सर्विस चोबीसों घंटों उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है। इसमें पोष्टिक खाना और नाश्ते के साथ ही साथ डाईट के संबंध में पूरा ध्यान रखा जाएगा। वैसे अर्गनाईजिंग कमेटी आने वाले मेहमानों को उनका मनपसंद भोजन परोसने के लिए बाध्य ही है। गौरतलब है कि भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने इस समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाडी से आग्रह किया था कि मेन्यू से बीफ को बाहर कर दिया जाए। भाजपा के प्रभाव वाली दिल्ली नगर निगम ने भी गोमांस परोसे जाने की खिलाफत करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था।
दाउद के निशाने पर थे मोदी
आईपीएल में आर्थिक अनियमितताओं और केंद्र सरकार के मंत्री शशि थुरूर को सत्ता के गलियारे से बाहर का रास्ता दिखाने वाले आईपीएल के पूर्व चेयर पर्सन ललित मोदी कुख्यात अंडर वर्ल्ड डॉन दाउद अब्रहाम के निशाने पर थे। इंटरपोल के बाद सबसे चुस्त पुलिस मानी जाने वाली मंुबई पुलिस को इस तरह के संकेत मिले थे कि ललित मोदी को आईपीएल 3 के दौरान ही मुंबई, दिल्ली या बंग्लुरू में जान से मारने की योजना थी। मुंबई पुलिस सूत्रों का कहना है कि इस साल जनवरी में ही पुलिस को इस बात की जानकारी मिल चुकी थी और यही कारण है कि मोदी को हथियार बंद दो पुलिस कर्मी चोबीसों घंटे घेरे रहते थे। मोदी की सुरक्षा में प्रतिदिन का खर्च पचास हजार रूपए था। मोदी को एस्कार्ट तक मुहैया करवाई गई थी। अब तक इस बात का खुलासा नहीं हो सका है कि दाउद आखिर मोदी को मोत के घाट उतारना क्यों चाह रहा था। इसके पीछे आर्थिक वजह थी या फिर कोई अन्य विवाद।
ये है मंत्री जी का असली चेहरा
मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य मण्डला जिले में बीते दिवस बरात की एक बस बिजली की हाई टेंशन लाईन से टकराकर दुर्घटना ग्रस्त हो गई, इसमें 28 लोग घटनास्थल पर भगवान को प्यारे हो गए। हृदय विदारक इस घटना ने सभी को झझकोर कर रख दिया सिवाय सूबे के आदिवासी विकास के मंत्री के। ग्राम मण्डला के सूरजपुरा के पास बीते शुक्रवार को हुई इस दुर्घटना के बाद सूबे के तीन मंत्रियों ने पीडितों के परिजनों के पास जा उनका ढाढस बंधाने का उपक्रम किया। इसमें मण्डला मूल के मंत्री देवी सिंह सय्याम, मण्डला के प्रभारी मंत्री जगन्नाथ सिंह और आदिवासी विकास मामलों के मंत्री कुंवर विजय शाह शामिल थे। तीनों मंत्रियों ने परिजनों को सांत्वाना दी। इनमें से सय्याम और जगन्नाथ सिंह तो पीडितों के परिजनों से मिलने उनके गांव गए पर अजाक मंत्री कुंवर विजय शाह ने वहां जाना मुनासिब नहीं समझा। कुंवर विजय शाह ने इसके बजाए मण्डला जिले की धरोहर विश्व प्रसिद्ध कान्हा नेशनल पार्क की सैर करने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई। भीषण गर्मी में जंगल की सुरम्य वादियां बाहंे फैलाकर माननीय मंत्री जी को बुला जो रहीं थीं।
पुच्छल तारा
पिंकी उपाध्याय एक बहुत ही मजेदार ईमेल भेजते हैं, वे कहते हैं कि देश का हृदय प्रदेश मध्य प्रदेश समूचे देश में पहला एसा प्रदेश है, जहां के लोग हर घंटे दो घंटे में खुशियां मनाते हैं। पूछिए कैसे, अरे बहुत आसान है भई आप भी आईए मध्य प्रदेश में और देखिए कि यह कैसे संभव होता है। अरे भाई साहब हर घंटे दो घंटे में सूबे के लोग खुशी से पागल होकर चिल्लाते हैं, ‘‘लाईट आ गई, लाईट आ गई।‘‘ दरअसल मध्य प्रदेश में बिजली की अघोषित कटौती ने यहां के रहने वालों के नाम में दम कर रखा है।