दबे पांव आगे बढ़ रहा है मराठा क्षत्रप
(लिमटी खरे)
कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी
को विदेशी मूल का कहकर सियासी तूफान लाने वाले मराठा क्षत्रप शरद पवार अब सधे
कदमों से 7 रेसकोर्स रोड़ (भारत गणराज्य के वजीरे आजम का सरकारी आवास) की ओर बढ़ रहे
हैं। कांग्रेस के निकलकर राष्ट्रवादी कांग्रेस का गठन कर कांग्रेस को ही सीढ़ी
बनाकर मराठा क्षत्रप से आज एक सियासी मुकाम तय कर लिया है। महाराष्ट्र और केंद्र
में कांग्रेस के लिए बैसाखी बनकर मराठा क्षत्रप ने अपने निशाने बखूबी साध रखे हैं।
घपले, घोटाले, भ्रष्टाचार आदि में आकंठ फंसी कांग्रेस के गिरते जनाधार को देखकर अब
मराठा क्षत्रप ने अपनी ताना बाना बुनना आरंभ कर दिया है। मराठा क्षत्रप ने अब देश
के प्रधानमंत्री बनने के अपने सपने को अमली जामा पहनाना आरंभ किया है, वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र की सत्ता या
तो वे अपनी पुत्री सुप्रिया सुले को अथवा भतीजे अजीत पवार को सौंपने की तैयारी में
दिख रहे हैं।
केंद्रीय मंत्री शरद पवार इन दिनों बेहद
व्यस्त दिख रहे हैं। टीम पवार ने अब गुपचुप तैयारियां आरंभ कर दी है जिसके तहत
मिशन 7, आरसीआर (रेसकोर्स रोड़) को अंजाम दिया जाना है। शरद पंवार अब देश के
प्रधानमंत्री बनने आतुर दिख रहे हैं। शरद पंवार के सबसे विश्वस्त प्रफुल्ल पटेल ने
राकांपा के लिए चाणक्य की भूमिका अपना ली है। वे अपने और पवार के गृह सूबे
महराष्ट्र से ज्यादा से ज्यादा ताकत जुटाने का जतन कर रहे हैं। महाराष्ट्र में भी
कांग्रेस और राकांपा की राहें अलग होती दिख रही हैं।
दरअसल, कांग्रेस नीत केंद्र सरकार हर मोर्चे पर
ही असफल दिखाई दे रही है। सरकार के मंत्री और उनके सहयोगी देश को बुरी तरह लूटकर
खा रहे हैं। कांग्रेस मजबूरी में मौन साधे हुए है। शरद पवार के करीबियों का दावा
है कि उनके द्वारा कराए गए सर्वे में अब कांग्रेस की लुटिया डूबती ही नजर आ रही
है। राज्यों में कांग्रेस की हालत बेहद खराब है।
सर्वेक्षण में एक बात और उभरकर आई है कि
दिल्ली में जाकर नेतागिरी करने वाले सूबाई क्षत्रपों के अपने ही क्षेत्र में
कांग्रेस बुरी तरह औंधे मुंह गिरी हुई है। कहा तो यहां तक भी आ रहा है कि सूबाई
क्षत्रप अपने क्षेत्र में दूसरे प्रत्याशी को लोकसभा इसलिए नहीं जीतने देना चाहते
क्योंकि दूसरे के आने से उनका प्रभुत्व बंट सकता है। यही कारण है कि हर सूबे में
क्षेत्रीय क्षत्रपों के अलावा कांग्रेस का पड़ला साफ ही दिख रहा है।
शरद पंवार इस बात को लेकर काफी सतर्क
नजर आ रहे हैं कि उनके अपने गृह सूबे में कांग्रेस क्या कदम ताल कर रही है।
कांग्रेस के मंत्री अपने घर की शादी में शाह खर्च प्रदर्शन करते हैं और जब बारी
राकांपा की आती है तो उसे भ्रष्टाचार का नमूना करार दे देती है। यही कारण है कि
महाराष्ट्र में अब राकांपा अकेले ही चुनाव लड़ने का मन बना रही है। इसके अलावा
महाराष्ट्र से लगे मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ क्षेत्र में भी राकांपा अपना प्रभाव
बढ़ाने को आतुर नजर आ रही है। मध्य प्रदेश में बालाघाट, छिंदवाड़ा, बेतूल, होशांगाबाद, इंदौर, खरगोन, खण्डवा, बैतूल आदि लोकसभा क्षेत्रों पर राकांपा
की नजर है। इनमें से छिंदवाड़ा चूंकि केंद्रीय मंत्री कमल नाथ का गढ़ है अतः इसको
राकांपा छोड़ सकती है।
अगले आम चुनावों में काफी धुंध साफ
दिखाई दे रहा है। इस धुंध में यह साफ नहीं हो पा रहा है कि कोई दल स्पष्ट बहुमत पा
सकेगा। कांग्रेस और भाजपा को नुकसान होता तो साफ दिख रहा है। अब इन परिस्थितियों
में प्रधानमंत्री का पद समझौते के तहत ही जाने की उम्मीद है।
अगर छोटे दलों द्वारा कुछ हद तक सांसदों
की संख्या साथ रख ली जाती है तो निश्चित तौर पर उनका बोलबाला हो सकेगा। इन
परिस्थितियों में शरद यादव, मायावती, मुलायम सिंह यादव, शरद पवार आदि किंग या किंगमेकर की दौड़
में सबसे सामने ही खड़े नजर आएं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
अगर राकांपा महाराष्ट्र में कांग्रेस के
साथ मिलकर चुनाव लड़ती है तो 48 में से अठ्ठारह से बीस सीट ही उसके
पाले में आएगी, जो उसके लिए नाकाफी ही साबित होने वाली है। इन परिस्थितियों में वह
अकेले ही चुनाव लड़ सकती है। इसके अलावा प्रफुल्ल पटेल अपनी परंपरागत सीट पर अपनी
पत्नि को उतारकर एमपी के बालाघाट शिफ्ट हो सकते हैं। अगर शरद पवार के पास पचास
सांसदों का बल हो जाए तो वे जोड़तोड़ कर 7, आरसीआर पर कब्जा करने का माद्दा रखते
हैं।
राकांपा की किलेबंदी बहुत तगड़ी नजर आ
रही है। शरद पंवार के भतीजे और उपमुख्यमंत्री अजीत पंवार ने राज्य सभा के सांसदों
को साफ कह दिया है कि वे अपने फंड को उन क्षेत्रों में ज्यादा से ज्यादा दें जहां
बहुत ही कम अंतर से राकांपा को पराजय का सामना करना पड़ा था। इसके अलवा लगभग चालीस
हजार परिवारों को राकांपा ने अपरोक्ष तौर पर गोद लेने की घोषणा के साथ ही साथ
प्रति परिवार दो हजार रूपए बच्चों की शिक्षा के लिए देने का वायदा भी किया है।
मराठा क्षत्रप को साथ लेकर चलना
कांग्रेस की मजबूरी है। शरद पंवार ने जब सोनिया गांधी को विदेशी मूल का बताकर
उन्हें प्रधानमंत्री पद से दूर कर दिया था उसी वक्त लगने लगा था कि कांग्रेस और
पंवार के बीच खुदी खाई को शायद ही पाटा जा सके। पर, सत्ता के समीकरणों ने सारी दुश्मनी को
दोस्ती में बदल दिया और ना केवल केंद्र वरन् महाराष्ट्र में भी कांग्रेस ने अपने
कंधे पर शरद पंवार को बिठा लिया। अब देखना यह है कि मराठा क्षत्रप की इन तैयारियों
के चलते कांग्रेस क्या कदम उठाती है। (साई फीचर्स)