0 रिजर्व फारेस्ट में कैसे बन रहा पावर
प्लांट . . . 06
मंदिर की जमीन भी नहीं बख्शी थापर
ने!
(एस.के.खरे)
सिवनी (साई)। मध्य प्रदेश में बिजली की
कमी और क्षेत्र के विकास के लिए सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर विकासखण्ड में
स्थापित होने वाले थापर गु्रप ऑफ कंपनी के सहयोगी प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड
के पावर प्लांट ने गोरखपुर में अनुसूचित जाति के लोगों की जमीन के साथ ही साथ
सीताराम जी के मंदिर की जमीन को भी नहीं बख्शा है। इस मंदिर के प्रबंधक के बतौर
जिला कलेक्टर को बताया गया है। सिवनी में एसे कितने निजी मंदिर हैं जिनके प्रबंधक
जिला कलेक्टर हैं? अनेक कथित सार्वजनिक धार्मिक
स्थानों में लोगों के एकाधिकार की शिकायतों के बाद भी प्रशासन द्वारा इस ओर ध्यान
न दिया जाना आश्चर्यजनक ही है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार झाबुआ पावर
प्लांट के निर्माण से प्रभावित ग्राम गोरखपुर की निजी अनुसूचित जनजाति एवं सीताराम
जी के मंदिर सरवराहकार एवं प्रबंधक जिला कलेक्टर सिवनी की कृषि भूमि एवं उस पर
स्थित संरचनाओं के प्रस्तुत अर्जन प्रस्ताव पर 24 जनवरी 1996 को संपन्न भू अर्जन समिति की बैठक में
लिए गए निर्णयानुसार तहसील घंसौर जिला सिवनी के ग्राम गोरखपुर की निजी अनुसूचित
जाति एवं सीताराम जी के मंदिर सरवाहकार एवं प्रबंधक जिला कलेक्टर सिवनी की कृषि
भूमि जिसका क्षेत्रफल 12.66 हेक्टेयर है वह और उस पर स्थित संरचनाओं के
संबंध में भूअर्जन अधिनियम 1894 के प्रावधानों के तहत भूअर्जन किए जाने
संबंधी स्वीकृति प्रदन की है।
यहां 24 जनवरी 1996 को हुई बैठक का दस्तावेजों में उल्लेख
संदेहास्पद ही माना जा रहा है। इसका कारण यह है कि उस वक्त मध्य प्रदेश में राजा
दिग्विजय सिंह पहली पारी में मुख्यमंत्री थे, एवं घंसौर से उर्मिला सिंह विधायक और
मंत्री थीं। मध्य प्रदेश में भू अर्जन कानून और प्रक्रिया इतनी जटिल नहीं है कि
उसके पूरे होने में सोलह साल लग जाएं। अगर 1996 में भूअर्जन समिति की बैठक हुई थी तो
उस वक्त इसकी मुनादी क्यों नहीं पीटी गई। अनुसूचित जनजति के किसानों को जो मुआवजा
दिया जा रहा है वह आज की दर से दिया जा रहा है अथवा 1996 की दरों से इस बारे में भी झाबुआ पावर
लिमिटेड का प्रबंधन पूरी तरह मौन ही है।
दस्तावेजों में मंदिर का प्रबंधक
कलेक्टर को दर्शाया जाना आश्चर्यजनक है। जिले में न जाने कितने धार्मिक स्थानों पर
लोगों ने कब्जा कर लिया है। नियमानुसार अगर किसी धार्मिक स्थान का ट्रस्ट बनाकर
उसे पंजीकृत नहीं कराया जाता है तो जिला प्रशासन उस पर अपना रिसीवर बिठा सकता है।
वस्तुतः सिवनी में एसा कुछ भी होता नहीं दिख रहा है।
(क्रमशः जारी)
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