सोमवार, 12 अप्रैल 2010

राजनाथ चुनेंगे उमा की राह के शूल

राजनाथ चुनेंगे उमा की राह के शूल

उमा की राह के रोडों को मनाएंगे राजनाथ 

यूपी के राजनाथ शिवराज को बता रहे कि यूपी में बडा नेता नहीं

(लिमटी खरे)
 
नई दिल्ली 12 अपे्रल। सुषमा स्वराज का कद कम करने की ठान चुके राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन के पीएम इन वेटिंग एल.के.आडवाणी ने अब उमाश्री भारती की भाजपा में वापसी के मार्ग प्रशस्त करने के लिए भाजपा के पूर्व निजाम राजनाथ सिंह के कांधे पर जवाबदारी सौंपी है। राजनाथ अब उमा के मार्ग के शूल न केवल उखाडने का काम करेंगे वरन उनकी वापसी के लिए रेड कारपेट भी बिछाएंगे।
 
गौरतलब होगा कि लोकसभा चुनावों के दौरान उमाश्री भारती ने एल.के.आडवाणी के पक्ष में धुरंधर बयानबाजी कर जता दिया था कि वे जल्द ही भाजपा में वापस आ सकतीं हैं। आडवाणी के करीबी सूत्रों का कहना है कि लोेकसभा चुनावों के दौरान ही आडवाणी ने उमाश्री को भाजपा में वापस आने का प्रस्ताव दिया था किन्तु संकोचवश उमाश्री ने उसे सविनय ठुकरा दिया था। उधर संघ के भरोसेमन्द सूत्रों का कहना है कि अब संघ के आर्थिक चिन्तक गुरूमुूर्ति ने उमाश्री को वापस लाने की कवायद आरम्भ की है। माना जा रहा है कि आडवाणी की इच्छा पूरी करने की गरज से गुरूमूर्ति यह काम कर रहे हैं। गुरूमूर्ति के प्रयासों के चलते ही दो बार नागपुर में तो एक बार दिल्ली में उमाश्री और  मोहन भागवत के बीच तीन दौर की बातचीत भी हो चुकी है।
 
संघ के सूत्र बताते हैं कि मध्य प्रदेश में तैनात संघ के कारिन्दो और उमाश्री के बीच खुदी खाई ही उमाश्री की वापसी में रोढा बन रही है। सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपाध्यक्ष नरेन्द्र तोमर इस दुखती नब्ज को भांप गए हैं और उन्होंने भी संघ के कारिन्दों के सुर में ही राग मल्हार गाना आरम्भ कर दिया है। सारे समीकरण के बाद अब राजग के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवाणी ने नया पत्ता फेंका है। उन्होंने नितिन गडकरी को मशविरा दिया है कि उमा की राह के कांटे चुनने का काम पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह को सौंपा जाए।
 
नितिन गडकरी भी उमाश्री भारती की घर वापसी के हिमायती हैं। अत: उन्होंने आडवाणी की राय से इत्तेफाक रखते हुए पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह को काम पर लगा दिया है। बताया जाता है कि राजनाथ सिंह ने इस मामले में शिवराज सिंह चौहान और नरेन्द्र तोमर से दो दौर की टेलीफोनिक चर्चा भी कर ली है। मजे की बात तो यह है कि भाजपाध्यक्ष रहे राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश से हैं, और वे शिवराज सिंह चौहन और नरेन्द्र तोमर को मसझा रहे हैं क यूपी में कोई बडा नेता नहीं है, अत: उत्तर प्रदेश को मद्देनज़र उमाश्री भारती की घर वापसी बहुत जरूरी है।
 
उधर भाजपा मुख्यालय में चल रही चर्चाओं पर अगर यकीन किया जाए तो भाजपा के अनेक नेता चाहते हैं कि उमाश्री भारती को मध्य प्रदेश के बडे नेताओं के साथ बिठाकर बात करना चाहिए और उमा उन नेताओं को यकीन दिलाएं कि वे मध्य प्रदेश की राजनीति में कोई दखल नहीं देंगी तब ही उमाश्री की राह आसान हो सकती है, वरना एमपी में बैठे संघ और भाजपा के नेता उनकी घर वापसी की राह में कांटे बोने से बाज नहीं आने वाले।

सत्तर फीसदी हिस्से में फैल चुका है नक्सलवाद का कैंसर

देश को परिपक्व गृह मन्त्री की दरकार - - - (3)
सत्तर फीसदी हिस्से में फैल चुका है नक्सलवाद का कैंसर
(लिमटी खरे)
नक्सलवाद पर जारी बहस में सरकार का पक्ष चाहे जो भी हो मीडिया पर्सन की हैसियत से जनता जनार्दन के समक्ष सच्चाई रखना और सरकार को जगाने का प्रयास करना निश्चित तौर पर हमारी नैतिकता का अंग है। इसी लिहाज से हम नक्सलवाद के जहर के बारे में जितनी तफ्तीश कर चुके हैं, उसे जनता और सरकार के सामने लाना हमारा फर्ज है। 1967 में आरम्भ हुआ और नब्बे के दशक में तेज हुआ नक्सवाद आज देश के सत्तर फीसदी हिस्से को अपनी जद में ले चुका है। देश के मानचित्र पर अगर देखा जाए तो हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, उडीसा, छत्तीसगढ, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक इसकी चपेट में हैं। इसके अलावा अलगाववाद की अगर बात की जाए तो उसम, मणिपुर, नागालैण्ड, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम इसकी जद में हैं। वामपन्थ उग्रवाद, उत्तर पूर्वी अलगाववाद और जम्मू काश्मीर की आन्तरिक समस्या सरकार की पेशानी पर पसीने की बून्दे छलका रही है।
देश भर में लगभग 22 हजार केडर में फैले ये नक्सलवादी और माओवादी संगठन देश की जडों में मठा डालने का ही प्रयास कर रहे हैं। झारखण्ड पर अगर नज़र डाली जाए तो समूचा झारखण्ड माओवादियों की बर्बरता की चपेट में है। झारखण्ड के 16 जिले माओवादी गतिविधियों का केन्द्र बन चुके हैं। यहां प्रमुख तौर पर छ: संगठन सक्रिय हैं। इसमें तृतिया प्रस्तुति कमेटी, सीपीआई (माओवाद), संयुक्त प्रगतिशील मोर्चा, द पिपुल्स लिबे्रशन फ्रंट ऑफ इण्डिया, झारखण्ड प्रस्तुति समिति और झारखण्ड जनसंघर्ष मुक्ति मोर्चा प्रमुख हैं।
2001 में संयुक्त मध्यप्रदेश से प्रथक होकर अस्तित्व में आए छत्तीसगढ को नक्सलवादियों ने अपना गढ बनाया हुआ है। दरअसल संयुक्त मध्य प्रदेश में राजधानी भोपाल से बस्तर तक सडक मार्ग से पहुंचने में तीन दिन लग जाते थे, तो सरकारी इमदाद किस कदर यहां बटती होगी इस बात का अन्दाजा सहज ही लगाया जा सकता है। जनता को सरकारी नुमाईन्दो द्वारा प्रताडित किए जाने का लाभ यहां सबसे अधिक नक्सलियों ने उठाया है। पिछले तीस सालों में खनिज संपदा के धनी और धान का कटोरा कहे जाने वाले इस सूबे की नक्सलवादियों ने आर्थिक रीढ तोड कर रख दी है। आज आलम यह है कि प्रदेश के लगभग एक दर्जन जिलों के दो सौ से अधिक पुलिस थानों में नक्सली आतंक पसरा हुआ है। सूबे के बस्तर, दन्तेवाडा, कांकेर, बलरामपुर, सरगुजा, कवर्धा आदि जिलों में नक्सलवादियों की जडें बहुत हद तक मजबूत हो चुकी हैं।
इसी तरह मध्य प्रदेश में बालाघाट, मण्डला और डिण्डोरी जिलों में जब तब नक्सली पदचाप सुनाई दे जाती है। इसके अलावा अब सिवनी, छिन्दवाडा, जबलपुर, शहडोल, बैतूल, रीवा, सतना, सीधी आदि जिलों को भी नक्सलवादियों ने अपने निशाने पर ले लिया है। बालाघाट जिले में प्रदेश के पूर्व परिवहन मन्त्री लिखी राम कांवरे को उनके मन्त्री रहते हुए उन्ही के घर पर नक्सलियों ने गला रेतकर मार डाला था। इसके अलावा और भी अनेक वारदातें नक्सलवादियों ने यहां की हैं।
उडीसा सूबे में भुखमरी को नक्सलवादियों ने अपना प्रमुख हथियार बनाया है। आज समूचा उडीसा लाल रंग में रंग चुका है। सूबे के 17 जिलों में नक्सल और माओवादियों का कहर व्याप्त है। मलकानगिरी, कोरापुट, रायगढ, गजपति जिलों में माओवादियों की पकड देखते ही बनती है। साथ ही कंधमाल में इनका नेटवर्क बहुत ही जबर्दस्त है। पश्चिमी उडीसा के सुन्दरगढ, देवगढ, संभलपुर, बांध और अंगुल में नक्लवादियों ने अपनी सरकार चला रखी है। कहा जा सकता है कि समूचा उडीसा नक्सलवाद और माओवाद से बुरी तरह ग्रस्त है।
महाराष्ट्र के अनेक जिलों में ये कहर बरपा रहे हैं। सूबे का गढचिरौली इनका गढ है। इसके अलावा इनकी सल्तनत चंन्द्रपुर, गोन्दिया, भण्डारा, नान्देड, नागपुर, यवतमाल के साथ ही साथ मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ और आंध्र प्रदेश की सीमा से सटे गांवों में फैली हुई है। महाराष्ट्र में आए दिन नक्सलवादी गतिविधियों की खबरें आना आम बात हो गई। विशेषकर विदर्भ के अनेक इलाकों में इनका फैलाव देखकर लगता है कि आने वाले समय में ये समूचे महाराष्ट्र को अपने कब्जे में ले सकते हैं।
रही बात बिहार की तो बिहार में नक्सलवाद और माओवाद ने अपना घर बनाकर रखा हुआ है। यहां लगभग 20 जिलों में नक्सलवाद का प्रभाव अच्छा खासा माना जा सकता है। पटना, गया, औरंगाबाद, अरवल, भभुआ, रोहतास, जहानाबाद, पूर्वी चम्पारण, पश्चिमी चंपारण, शिवहर, सीतामढी, मधुबनी, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, बेगुनसराय, वैशाल, सहरसा और उत्तर प्रदेश के सटे जिलों में नक्सलवाद की गूंज सुनाई देती है।
आंध्र प्रदेश के दण्डकारण्य क्षेत्र में इनका खतरा बना हुआ है। सूबे के विशाखापट्टनम, खम्माम, विजयानगरम, पूर्वी गोदावरी आदि जिलों में इनका नेटवर्क बहुत ही मजबूत है। आंध्र प्रदेश के 93 झारखण्ड के 85, छत्तीसगढ के 81, , बिहार के 34, उडीसा के 22, महाराष्ट्र के 14, पश्चिम बंगाल के 12, उत्तर प्रदेश के 7, कर्नाटक के 6, मध्य प्रदेश के 4, केरल और हरियाणा के दो दो थाने इसकी चपेट में हैं। इस तरह देश के लगभग चार सौ थाने इसकी जद में हैं।
वामपन्थी उग्रवाद के मामले में अगर देखा जाए तो 2004 से 2008 तक 842 सुरक्षा बल के जवान, 1375 आम नागरिकों के साथ 990 नक्सली मारे गए थे। इसी तरह उत्तर पूवी्र अलगाव वाद में 335 सुरक्षा बल के जवान, 1614 आम नागरिक, 4079 आतंकवादी या तो पकडे गए या फिर पकडे गए। 703 सुरक्षा बल, 2011 आम नागरिक और 2844 आतंकवादी मारे गए। उत्तर पूवी अलगाव वाद की आग में असम, मणिपुर, नागालेण्ड, त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम आदि बुरी तरह झुलस गए हैं।
असम चूंकि बंग्लादेश और भूटान की सीमा से सटा हुआ है, अत: यहां अलगाववाद की बयार बारह माह चौबीसों घंटे बहती रहती है। सालों से यह सूबा हिंसा का दंश झेल रहा है। इस प्रदेश में उल्फा, एनडीएफबी जैसे अलगाव वादी संगठन फल फूल रहे हैं। मणिपुर में पीएलए, यूएनएलएफ, पीआरईपीएके, तो नागालेण्ड में एनएससीएन, आईएम, एनएससीएम, त्रिपुरा में एनएलएफटी, एटीटीएफ, मेघालय में एएनवीसी, एचएनएलसी, और मिजोरम में एचपीसी (डी), बीएनएलएफ पूरी तरह सक्रिय नज़र आ रहे हैं।
(क्रमश: जारी)

सत्ता के घोषित अघोषित केन्द्र आमने सामने

ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)
सत्ता के घोषित अघोषित केन्द्र आमने सामने
देश में सत्ता के घोषित केन्द्र (प्रधानमन्त्री डॉ. मन मोहन सिंह) और अघोषित केन्द्र (कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी) के बीच इन दिनों रार ठनती दिखाई दे रही है। सूचना के अधिकार (आरटीआई) को लेकर देश भर में बवाल मचा हुआ है। नेताओं और अफसरान की जुगलबन्दी की पोल नित ही इससे खुलने से आतंक बरपा है। इसमें बदलाव को लेकर 07 रेसकोर्स रोड और 10 जनपथ के बीच तलवारें खिचती दिखाई दे रही हैं। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी चाहतीं हैं कि सूचना के अधिकार कानून में बदलाव की अभी आवश्यक्ता नहीं है। सोनिया के करीबी सूत्रों ने बताया कि बीते साल 10 नवंबर को प्रधानमन्त्री को लिखे खत में सोनिया ने साफ कहा है कि अभी यह कानून महज चार साल पुराना ही है। इसमें अभी बदलाव की गुंजाईश नहीं है, जरूरत इस बात की है कि इसके मूल उद्देश्यों पर कडाई कायम रहे। उधर प्रधानमन्त्री कार्यालय (पीएमओ) के सूत्रों ने बताया कि 24 दिसम्बर को प्रधानमन्त्री ने सोनिया को जवाबी खत लिखा जिसमें कहा गया है कि आरटीआई कानून में बदलाव के बिना कुछ होने वाला नहीं है। इसमें मुख्य सूचना आयुक्त का पद अचानक रिक्त होने की दशा में कोई वैकल्पिक प्रावधान नहीं है, इसके साथ ही साथ इसके लिए पीठ के गठन का भी कहीं उल्लेख नहीं है। कुल मिलाकर सोनिया गांधी और मनमोहन दोनों ही एक दूसरे को आईना दिखाने में लगे हैं कि किस तरह बिना होमवर्क के सोनिया की टीम के मैनेजर मामला पकाते हैं और जबरिया सरदार मनमोहन सिंह को उसे लागू करने को कहते हैं, दूसरी ओर सोनिया भी सिंह को जता रहीं हैं कि अभी भी सत्ता की चाभी उन्हीं के कमरबन्द में खुसी हुई है।
टि्वट टि्वट से बाज नहीं आ रहे थुरूर
सोशल नेटविर्कंग वेवसाईट के दीवाने हो चुके भारत गणराज्य के विदेश राज्यमन्त्री शशि थुरूर हैं कि अपने टि्वटर के पथ को छोडना ही नहीं चाह रहे हैं। लाख लानत मलानत झेलने के बाद भी वे अपनी मनमानी पर पूरी तरह उतारू हैं। वे अपने इस कृत्य को पूरी तरह सही ठहराने में कोई कसर भी नहीं रख छोड रहे हैं। देश के हृदय प्रदेश भोपाल में वन प्रबंधन संस्थान के एक समारोह में गुलामी के लबादे को उतार फेंकने के बाद फिर शशि थुरूर चर्चा में आ गए हैं। उन्होंने इसमें भी अपनी टिप्पणी दे डाली है। बकौल शशि थुरूर, जब तक गाडन का इण्डियन वर्जन (भारतीय संस्करण) तैयार नहीं हो जाता, तब कि इमें वेस्टर्न वर्जन (पश्चिमी संस्करण) पहनने में कोई दिक्कत नहीं होना चाहिए। इतना ही नहीं वे तो कहते हैं कि वे दीक्षात समारोहों में इस तरह के गाउन अवश्य ही पहनेंगे। अपनी जिन्दगी का सत्तर फीसदी समय पश्चिमी देशों में बिताने वाले शशि थुरूर के दिल दिमाग से भातरीय संस्कृति पूरी तरह विस्मृत हो गई लगता है, तभी वे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के खादी के परिधानों को भूल चुके हैं। वैसे भी क्या जरूरत है लबादे के हिन्दुस्तानी संस्करण की। हम अपनी लाईन खुद खींचें न, क्यों खिची खिचाई लाईन से अपनी तुलना करे। अब किया भी क्या जा सकता है, कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी भी इटली मूल की जो ठहरीं जिन्हें भारतीय संस्कृति का बहुत ज्यादा अन्दाजा नहीं है।
नमक से मंहगा पानी!
कहते थे कि नमक सबसे सस्ती पर बहुत ताकतवर चीज है। महात्मा गांधी ने भी नमक सत्याग्रह कर ब्रितानियों को झुका दिया था। आजाद भारत में नब्बे के दशक के बाद नमक से मंहगा बिक रहा है पानी, जी हां यह सच है। भारतीय रेल में जनता खाना महज 10 रूपए में मिलता है, पर अगर बोतल बन्द पानी रेल में खरीदा जाए तो वह 12 से 15 रूपए के बीच मिलता है। और उपर से तुर्रा यह कि जिस ब्राण्ड के सप्लायर द्वारा आईआरसीटीसी के ठेकेदार को कमीशन ज्यादा दिया जाता है, उसी कंपनी का पानी पीना पडता है। भारतीय रेल ने देर आयद दुरूस्त आयद की तर्ज पर रेल में पानी की बोतल 6 से सात रूपए में बेचने की योजना बनाई है। इसके लिए तिरूअनन्तपुरम, अमेठी, अंबाला, नासिक फरक्का में बाटलिंग प्लांट का काम आरम्भ हो गया है। यह योजना कब परवान चढ पाएगी पता नहीं किन्तु जिन रेल गाडियों में रेल्वे द्वारा सिक्का डालकर स्वच्छ पेयजल की मशीने लगाईं हैं, वे खराब पडी हैं, और वे यात्रियों का सामान रखने के काम ही आ रही हैं।
. . . मतलब शिव की आग में जलीं माया
शिक्षा के अधिकार को लेकर केन्द्र सरकार से इसको लागू करने के लिए पैसों की मांग की तो मीडिया की सुर्खियां बन गईं। लोग कहने लगे कि मायावती के पास बेहतरीन बाग बगीचे बनवाने और उनमें जीते जी अपनी प्रतिमाएं लगवाने के लिए पैसा है, पर बच्चों को पढाने के नाम पर वे अपने खाली खजाने का रोना रो रहीं हैं। मायावती को जैसे ही मीडिया ने झेला वे एकाएक बैकफुट पर आ गईं, और उन्होंने कहा कि उन्होंने तो मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान की तर्ज पर केन्द्र सरकार को पत्र लिखा था। उन्होंने कहा कि 11 सितम्बर 2009 को शिवराज ने केन्द्र को पत्र लिखकर इस कानून के लागू होने पर राज्य पर तीन सालों में खच Zहोने वाले नो हजार करोड रूपए मांग लिए थे। मायावती भी इससे प्रेरित हो गईं। 26 अक्टूबर को मायावती ने भी केन्द्र सरकार को खत लिखकर इसके क्रियान्वयन के लिए तत्काल 18 हजार करोड रूपए और फिर हर साल 14 हजार करोड रूपए की मांग रख दी। शिवराज से प्रेरणा लेकर कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, पंजाब, बिहार सहित आधा दर्जन सूबों ने केन्द्र सरकार से इस मद में पैसे क मांग कर ही डाली।
आडवाणी को हाशिए में ढकेलती भाजपा
अतिमहात्वाकांक्षा पाले राजग के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवाणी का शनि एक बार फिर भारी होता दिख रहा है। नेता प्रतिपक्ष पद से हटने के बाद अब भाजपा के कुछ नेता उन्हें पर्दे के पीछे लाने की जुगत में लग गए हैं। दिल्ली प्रदेश भाजपा द्वारा भारतीय जनता पार्टी के स्थापना दिवस समारोह में भाजपा के सुप्रीम कमाण्डर नितिन गडकरी, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सुषमा स्वराज और राज्य सभा में विपक्ष के नेता अरूण जेतली को आमन्त्रित किया, पर भाजपा के भविष्य के प्रधानमन्त्री एल.के.आडवाणी को आमन्त्रित करने से चूक गई। इसमें से गडकरी और जेतली समारोह में पहुंचे और अपना उद्बोधन दिया, पर सुषमा इससे कन्नी काट गईं। और तो और सीडी काण्ड के कारण भाजपा से रूखसत होने वाले संजय जोशी तक इस कार्यक्रम में थे, जिनका मंच से सम्मान भी किया गया। आडवाणी को वहां संबोधित करने न बुलाने की बात भले ही भाजपा नेताओं को छोटी लग रही हो पर आडवाणी जैसे राजनेता इस इशारे को भली भान्ति समझ चुके हैं, यही कारण है कि उनकी कीर्तन मण्डली अब उमाश्री भारती को भाजपा में वापस लाने की चालें चल रही है, ताकि भारती की तलवार से अनेक शत्रुओं का शमन हो सके।
पितृत्व मामले में सख्त हुआ न्यायालय
अय्याशी के आरोप में राजभवन से रूखसत हुए 83 वषीZय वरिष्ठ कांग्रेसी नेता नारयण दत्त तिवारी की मुसीबतें कम होती नज़र नहीं आ रहीं है। पितृत्व मामले में अब कोर्ट का रवैया भी बहुत ही सख्त हो गया है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने नारायण दत्त तिवारी से पूछा है कि उनके जैविक पुत्र होने का दावा करने वाले रोहित शेखर की सत्यता जानने के लिए क्यों न उनका डीएनए टेस्ट करवाया जाए। न्यायमूर्ति जे.आर.मिघाZ ने कहा है कि तिवारी की उस हर तस्वीर के बारे में जिसमें वे रोहित और उसकी मां उगावला शर्मा के साथ दिख रहे हैं, अलग अलग जवाब दाखिल किए जाएं। कोर्ट ने तिवरी से एक माह में जवाब तलब किया है। अगर तिवारी की ओर से जवाब समय सीमा में नहीं दिया जाता है तो उन्हें व्यक्तिगत तैर पर कोर्ट में उपस्थित होना पडेगा। कोर्ट पहले भी तिवारी के अनुरोध को ठुकरा चुकी है जिसमें उन्होंने कहा था कि जन्म के 31 सालों बाद रोहित उनके चरित्र पर कीचड उछाल रहा है।
`ताई` ने उमेठे `भैइया` के कान
लोकसभा में इन्दौर का प्रतिनिधित्व करने वाली सुमित्रा महाजन ``ताई`` ने मध्य प्रदेश में पांव पांव वाले ``भईया`` के नाम से विख्यात मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ खुली जंग का एलान कर दिया है। इन्दौर की उपेक्षा उन्हें खल रही है। इसी के मद्देनज़र उन्होंने शिवराज को एक पाती लिखी है। बताते हैं कि अपने खत में सुमित्रा ताई ने लिखा है कि आप (शिवराज) पत्र पत्रिकाओं और भाषणों में यह कहते नहीं थकते कि इन्दौर उनके सपनों का शहर है। शिवराज को कडा उलाहना देते हुए ताई कहतीं हैं कि उनका अनुभव है कि सपने अक्सर नीन्द में देखे जाते हैं, और आंख खुलने के बाद या तो सपने टूट जाते हैं या बिखर जाते हैं। ताई ने शिवराज की लगाम कसते हुए विनम्र भाषा का प्रयोग करते हुए कहा कि अगर मुख्यमन्त्री मानते हैं कि इन्दौर वास्तव में देश के हृदय प्रदेश का सांस्कृतिक, शैक्षणिक, व्यवसायिक और सबसे अधिक कर देने वाला शहर है तो इसे प्रशासनिक, व्यवसायिक, शैक्षणिक एवं अन्य सभी तरह से व्यवस्थित करना मध्य प्रदेश के हित में ही होगा। ताई महिला हैं और उनकी सर्वाधिक पीडा शराब ठेकों को लेकर है। इन्दौर में शराब ठेकों का राजस्व 100 करोड से बढकर 300 करोड जा पहुंचा है। वैसे भी सूबे में अगर पचास फीसदी महिलाएं किसी शराब दुकान का विरोध करें तो वह उस मोहल्ले में नहीं खुल सकती है।
कहां है मानवाधिकार के ठेकेदार
छत्तीसगढ में 83 पुलिस के जवान नक्सलियों के हमलों में हाथों अपनी जान गंवा चुके हैं। इसके बाद एक मातम का माहौल पूरे देश में पसर गया है। कुछ यक्ष प्रश्न लोगों के दिलो दिमाग में घुमड रहे होंगे। छोटे मोटे मामलों में शहरों को बन्द कराने वाले राजनैतिक दल भी सदमे में हैं, जो उन्होंने भारत बन्द का आव्हान नहीं किया। मानवाधिकार का ठेका लेकर दुकानदारी करने वाले संगठन गमजे में हैं, वे भी इस मामले में सामने नहीं आएंगे। किसी सांसद या विधायक के निहित स्वार्थ का मामला होता तो हमारे ``जागरूक जनसेवकों`` का गला संसद या विधानसभा में चीख चीखकर रूंध जाता, पर अफसोस वे भी गमजदा हैं। देश सेवा, पीडित मानवता के सहारे अपनी रोजी रोटी कमाने वाले संगठन भी मुंह पर पटट्ी बांघे बैठे हैं। सोचना पडेगा आखिर क्या हो गया है हमारे देशवासियों को। जो जवान देशवासियों की जान माल की हिफाजत के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने से गुरेज नहीं कर रहे हैं, उनकी याद में आंसू तो छोडें, मोमबत्ती जलाने के लिए भी देशवासियों के पास समय नहीं है। अगर यही बात वेलंटाईन डे की होती तो आप बाजार में एक फूल के लिए तरस जाते पर . . .। सच ही कहा है :-
कहां तो तय था चिरागां हर एक घर के लिए!
कहां चिराग भी मयस्सर नहीं शहर के लिए!!

राजमाता के नाम पर फर्जीवाडा
कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के नाम से फर्जीवाडे का एक प्रकरण प्रकाश में आया है। हुआ यूं कि बीते माह के अन्तिम दिनों में कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केन्द्र 10 जनपथ (सोनिया गांधी का सरकारी आवास) से एक फोन काल देश की महामहिम राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के कार्यालय पहुंची कि राजमाता तत्काल महामहिम से एक जरूरी मीटिंग करना चाह रहीं हैं। महामहिम के मिनिट टू मिनिट के प्रोग्राम को देखने से पता चला कि इस तरह की कोई मीटिंग का अस्तित्व ही नहीं है। इसके उपरान्त उसी नंबर से महामहिम के सचिव को भी फोन आया और फोन काट दिया गया। इसकी शिकायत डीसीपी राष्ट्रपति भवन को की गई। महामहिम आवास के सूत्रों का कहना है कि फोन करने वाला कोई शैलेन्द्र नाम बता रहा था और जो नंबर डिस्पले हो रहा था वह कांग्रेस प्रजीडेंट के आवास का ही था। इस घटना से दिल्ली पुलिस और खुफिया एजेंसी की नीन्द में खलल पड गया है। आला अधिकारी यह जानने में जुटे हुए हैं कि आखिर महामहिम राष्ट्रपति के आवास पर महामहिम कांग्रेस प्रेजीडेंट के घर के नंबर से कैसे फोन काल आई जबकि वहां से हुई ही नही है।
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे
प्रख्यात व्यंगकार शरद जोशी का व्यंग्य संग्रह ``हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे`` अचानक ही जेहन में जीवन्त हो गया, जब महामहिम राष्ट्रपति के द्वारा पदम सम्मान से अनेक विभूतियों को नवाजा गया। वे इस सम्मान के हकदार थे, या नहीं या इस सम्मान को चुनने के लिए क्या मापदण्ड तय किए गए थे, यह बात तो सरकार जाने पर मीडिया ने भी इसमें इक तरफा भूमिका ही निभाई है। दरअसल प्रवासी भारतीय सन्त सिंह चटवाल को इस सम्मान से नवाजे जाने पर बहस आरम्भ होना लाजिमी है। अमेरिका में व्यवसाय करने वाले सन्त सिंह चटवाल को महामहिम ने राष्ट्रपति भवन के अशोक हाल में पदम सम्मान से सम्मानित किया। चटवाल के खिलाफ भ्रष्टाचार में शह देने के अनेक मामलों में जांच लंबित है। यह सच है कि जब तक उन पर आरोप सिद्ध नहीं हो जाते तब तक उन्हें दोषी नहीं माना जा सकता है, पर वे आरोपी हैं इस बात को भारत सरकार को सोचना चाहिए था और एसी कौन सी दुनिया समाप्त होने वाली थी। टीवी चेनल्स की माने तो 2012 में दुनिया समाप्त होगी, इस लिहाज से अभी दो साल थे, सरकार चाहती तो जांच जल्दी पूरी कर अगले साल चटवाल को सम्मान से नवाज सकती थी।
अब मातृभाष के लिए अनुमति!
हिन्दी देश की मातृभाषा है, यह पाठ बचपन से ही पढते आ रहे हैं, पर मातृभाषा में बातचीत के लिए अनुमति की आवश्यक्ता पडेगी वह भी आजाद भारत के गणराज्य में यह कभी सोचा भी न था। जी हां यह सच है दिल्ली हाईकोर्ट में एक अधिवक्ता को हिन्दी में जिरह करने के लिए बाकायदा अनुमति लेनी पडी। और तो और अनुमति लेने के लिए अंग्रेजी में आवेदन और याचिका भी दाखिल करना पडा। है न आश्चर्य की बात। शेयर खरीदने और बेचने को लेकर हुए करार के एक मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में एक अधिवक्ता को अंग्रेजी में आवेदन कर हिन्दी में बहस की अनुमति लेनी पडी। उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति रेखा शर्मा ने वकील से पूछा कि उसकी याचिका तो अंग्रेेजी में है, फिर हिन्दी में बहस की अनुमति क्यों! वकील ने बडी ही मासूमियत से जवाब दिया, ``हुजूरेआला, याचिका अंग्रेजी में तैयार करना मजबूरी था, क्योंकि हिन्दी की याचिका उच्च न्यायालय के पंजीयक द्वारा स्वीकार नहीं की जाती। इस तरह उडती है ``हिन्दी की चिन्दी`` भारत गणराज्य में सखे।
पुच्छल तारा
उत्तर प्रदेश के बस्ती शहर के दमाद पंकज शर्मा पेशे से वकील हैं। वे सानिया मिर्जा और शोएब की शादी की किस्सगोई मीडिया में देखते और पढते आ रहे हैं। मीडिया के उतावलेपन से वे उकता गए हैं। हमें ईमेल भेजते हुए वे कहते हैं कि अब मीडिया दोनों की शादी की तारीख पर तारीख दिए जा रहा है अब खबर आई है कि सानिया की शादी 15 अप्रेल को होगी। पंकज मीडिया के नुमाईन्दो से पूछते हैं कि यह बताया जाए कि यह सानिया की शादी की तारीख है या कोर्ट में हमेशा बढाई जाने वाली पेशी की तारीख।