सोमवार, 26 सितंबर 2011

नैनपुर सिवनी को बढ़ाया गया था छिंदवाड़ा तक


0 सिवनी से चलेगी पेंच व्हेली ट्रेन . . . 2

नैनपुर सिवनी को बढ़ाया गया था छिंदवाड़ा तक

जबलपुर गोंदिया मेन तो नैनपुर से मण्डला और सिवनी थी ब्रांच लाईन

महज 81 लाख 33 हजार में बन गया था समूचा रेल खण्ड

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। महाकौशल और सतपुड़ा की सुरम्य वादियों में चलने वाली छोटी लाईन की रेलगाड़ी को मुख्य तौर पर गोंदिया से जबलपुर तक के लिए बनाया गया था। इस लाईन को बाद में मध्य के नैनपुर स्टेशन से सिवनी और मण्डला फोर्ट तक ब्रांच लाईन बिछाई गई थी। पेंचव्हेली कोलफील्डस से कोयला ढोने के लिए इस लाईन का विस्तार बाद में छिंदवाड़ा तक किया गया था। आज छिंदवाड़ा ब्राडगेज से जुड चुका है गोंदिया से जबलपुर का अमान परिवर्तन युद्ध स्तर पर जारी है। नैनपुर से मण्डला और नैनपुर से छिंदवाड़ा के रेलखण्ड के आमन परिवर्तन के लिए यहां के जनप्रतिनिधियों के पास शायद फुर्सत नहीं है। इतना ही नहीं जब भी रेल बजट में कोई घोषणा होती है तो श्रेय लेने की राजनीति के चलते मीडिया इन बरसाती मेंढ़क राजनेताओं के विज्ञापनों से पट पड़ता है।

भारतीय रेल के सूत्रों का कहना है कि मध्य प्रदेश की संस्कारधानी को गोंदिया से जोड़ने के लिए 143.43 मील का रेल खण्ड डाला गया था। इसके उपरांत मध्य के स्टेशन नैनपुर को जंक्शन बनाते हुए यहां से सिवनी के 47.13 मील और मण्डला के 21.75 मील के लिए रेल लाईन बिछाने का काम आरंभ हुआ था। जब पेंच व्हेली कोलफील्डस से कोयला निकालने का काम आरंभ हुआ तब सिवनी से छिंदवाड़ा के लिए 40.36 मील का रेल खण्ड बनया गया। इस तरह कुल 256.67 मील का नेरोगेज का रेल खण्ड प्रति मील 32 हजार 182 रूपए की दर से कुल 81 लाख 33 हजार रूपए में बनकर तैयार हुआ था।

तत्कालीन बंगाल नागपुर रेल्वे ने नागपुर से छिंदवाड़ा के मार्ग को भी रेल की पातों से जोड़ दिया। इसके साथ ही साथ छिंदवाड़ा से परासिया तक का रेल खण्ड 1907 में पूरा किया गया। नैनपुर से छिंदवाड़ा का रेलखण्ड 1909 में पूरा कर लिया गया था जिसे यातायात के लिए 1913 में खोला गया था। नागपुर से छिंदवाड़ा का यातायात भी इसी साल से आरंभ हुआ था। इसी के साथ ही भारतीय उप महाद्वीप में संकीर्ण अर्थात नेरो गेज रेल लाईनों का सबसे बड़ा नेटवर्क पूरा कर लिया गया था। जिसकी लंबाई 640 मील हो चुकी थी।

नेरो गेज रेल लाईन में सतपुड़ा लाइंस के मार्ग में पड़ने वाले वैनगंगा पुल का उल्लेख विशेष तौर पर किया जाता रहा है। सौ फिट के चौदह तो 170 फिट के छः खण्डों का सम्मिश्रण था इसमें। इसमें उपयोग में लाए गए छः खण्ड कन्हान की ब्राड गेज से हटाए गए थे।
(क्रमशः जारी)

मध्य प्रदेश भाजपा का मुखपत्र बना सूचना केंद्र


मध्य प्रदेश भाजपा का मुखपत्र बना सूचना केंद्र

भाजपा की भाटगिरी में जुटा एमपी सूचना केंद्र

भाजपा के लिए पीआर का काम कर रहे सरकारी अफसर

प्रभात का काम करते शिव के गण

सीपीआर के निर्देशों को रखा बलाए ताक सूचना केंद्र ने

मुख्यमंत्री और विभाग प्रमुख का खौफ भी नहीं रहा दिल्ली में पदस्थ अफसरान को

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश सरकार के जनसंपर्क विभाग का मूल काम सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं को जन जन तक पहुंचाना है। इसके लिए जनसंपर्क विभाग द्वारा देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली के मंहगे व्यवसायिक इलाके कनाट सर्कस में एक कार्यालय भी कार्यतर है, जहां बड़ा सा सरकारी अमला कार्यरत है। इस कार्यालय द्वारा पिछले कुछ दिनों से सरकार के बजाए संगठन के कामों के प्रचार प्रसार में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई जा रही है।

पिछले दिनों भाजपा की मध्य प्रदेश इकाई द्वारा दिल्ली में जितने भी कार्यक्रम आयोजित किए गए या भाजपा के पदाधिकारियों ने जितने भी प्रोग्राम में शिरकत की उनकी पब्लिसिटी के लिए मध्य प्रदेश सूचना केंद्र द्वारा जबर्दस्त दिलचस्पी दिखाई गई। इतना ही नहीं निजी प्रोग्राम की पब्लिसिटी का काम को भी इस कार्यालय द्वारा अंजाम दिया जा रहा है।

हाल ही में सांसदों द्वारा नोट फॉर वोट मामले में महामहिम प्रेजीडेंट श्रीमति प्रतिभा देवी पाटिल से मुलाकात कर ज्ञापन सौंपा गया। इस मामले का फोटो सूचना केंद्र द्वारा जारी कर दिया गया। इतना ही नहीं मंत्री विजय शाह की प्रेस कांफ्रेंस के लिए पत्रकारों को बुलाया गया किन्तु इस पत्रवार्ता में विजय शाह खामोश बैठे रहे उनके बजाए भाजपाध्यक्ष प्रभात झा ने संबोधित किया।

हद तो तब हो गई जब एमपी भाजपाध्यक्ष प्रभात झा द्वारा महामहिम राष्ट्रपति को सौंपे पत्र को स्केन कर मध्य प्रदेश सूचना केंद्र द्वारा दिल्ली में एमपी बीट कव्हर करने वाले पत्रकारों को प्रकाशन के लिए भेज दिया। प्रभात झा खुद पत्रकारों के काफी करीबी माने जाते हैं। सियासी गलियारों में चल रही चर्चाओं के अनुसार इस मामले को लोग पूर्व में पंडित सुरेश तिवारी की दिल्ली पदस्थापना से जोड़कर देख रहे हैं। कहा जा रहा है कि विजयवर्गीय मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल थे, इसलिए उन्होंने इंदौर में पदस्थ सुरेश तिवारी को दिल्ली पदस्थ करवा दिया था ताकि नेशनल मीडिया को मैनेज किया जा सके।
संघ मुख्यालय केशव कुंज के सूत्रों का कहना है कि शिवराज सिंह चौहान पर संकट के बादल मण्डरा रहे हैं। उनके स्थान पर संघ द्वारा गुजरात में नरेंद्र मोदी वाला प्रयोग एमपी में किया जाकर प्रभात झा को एमपी का निजाम बनाया जा सकता है। इस बात का आभास एमपी सूचना केंद्र के अफसरान को शायद हो चुका है। यही कारण है कि एमपी सूचना केंद्र मध्य प्रदेश द्वारा अब सरकार के बजाए भाजपा संगठन की पब्लिसिटी में ज्यादा दिलचस्पी दिखाना आरंभ कर दिया है। मजे की बात तो यह है कि जनसंपर्क आयुक्त राकेश श्रीवास्तव द्वारा साफ और कड़े निर्देश दिए गए हैं कि राजनैतिक और निजी कार्यक्रमों की खबरों को सूचना केंद्र के माध्यम से जारी न किया जाए। विडम्बना कही जाएगी कि सूचना केंद्र के अफसर खुद को अपने आयुक्त से उपर समझ रहे हैं।

लाख टके का सवाल कौन होगा अड़वाणी का सारथी!


लाख टके का सवाल कौन होगा अड़वाणी का सारथी!

भाजपा में चल रहा है जबर्दस्त मंथन

नितिश दिखाएंगे हरी झंडी

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। इस बार पीएम इन वेटिंग की दौड़ से हाल ही में हटे लाल कृष्ण आड़वाणी का सारथी और यात्रा प्रबंधक कौन होगा इस बात पर भाजपा में अंदर ही अंदर मंथन जमकर हो रहा है। दरअसल आड़वाणी की यात्रा का प्रबंधन और उसके लिए फंडिंग के लिए एक बेहतरीन साफ सुथरी छवि के व्यक्तित्व की आवश्यक्ता महसूस की जा रही है। आड़वाणी की पिछली रथ यात्रा में यह जवाबदारी स्व.प्रमोद महाजन द्वारा बेहतरीन तरीके से निभाई गई थी।

भाजपा के अंदरखाने से छन छन कर बाहर आ रही खबरों के अनुसार संघ की नजरों में अपनी छवि बनाने के चक्कर में जो नाम सामने आ रहे हैं उनमें अनन्त कुमार, धर्मेंद्र प्रधान, शहनवाज हुसैन, विजय गोयल, मुख्तार अब्बास नकवी के नाम सामने आ रहे हैं। इसमें अनन्त कुमार दौड़ में सबसे आगे हैं किन्तु नीरा राड़िया से उनके संबध के कारण संघ उनसे परहेज कर रहा है।

महासचिव धर्मेंद्र प्रधान को अच्छा संगठनकर्ता ही माना जाता है। मुख्तार अब्बास नकवी के सिर पार्टी के आयोजनों को सफलता से निपटाने का ताज है। शहनवाज हुसैन एक बार फिर से बड़ी जिम्मेदारी के माध्यम से मुख्यधारा में प्रवेश के इच्छुक हैं। विजय गोयल का नाम सामने आया किन्तु उनकी छवि ही उनकी सबसे बड़ी दुश्मन निकली। आड़वाणी की रथ यात्रा में मार्ग में खर्च का आंकलन करके आड़वाणी जुंड़ाली के हाथ पांव फूल गए। कहा जा रहा है कि खर्च करोड़ों में पहुंच रहा है। अनन्त कुमार और विजय गोयल दोनों ही फंड जुटाने में महारथी माने जाते हैं। अब समस्या यह है कि स्व.प्रमोद महाजन के स्थान पर किसे चुना जाए?

वैसे आड़वाणी की रथयात्रा को नितिश कुमार का हरी झंड़ी दिखाना और उसमें नरेंद्र मोदी सहित भाजपा शासित मुख्यमंत्रियों का उपस्थित रहना भी अपने आप में एक आश्चर्य होगा। राजनैतिक वीथिकाओं में इसके गूढ़ निहितार्थ भी खोजे जा रहे हैं। गौरतलब है कि एल.के.आड़वाणी ने अपने आप को पीएम इन वेटिंग से हटा लिया है, वहीं दूसरी ओर नरेंद्र मोदी को पीएम इन वेटिंग का सबसे सशक्त दावेदार माना जा रहा है। उनकी उपस्थिति में नितिश कुमार के द्वारा हरी झंडी दिखाने के भी मायने खोजे जा रहे हैं।

नहीं उठ सका रहस्यमय बीमारी से पर्दा!


नहीं उठ सका रहस्यमय बीमारी से पर्दा!

सोनिया की बीमारी पर बगलें झांकते हैं कांग्रेसी

अंदर ही अंदर होने लगी है खुसुर पुसर

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी की बीमारी आज भी रहस्य बनी हुई है। अमेरिका में इलाज कराकर सोनिया वापस भी आ गईं और किसी को आज तक उनकी बीमारी का पता भी नहीं चला। सबसे आश्चर्यजनक पहलू यह है कि सोनिया के स्वास्थ्य का बुलेटिन भी आज तक जारी नहीं हुआ। कांग्रेस मुख्यालय में भी उनकी बीमारी के मामले में सन्नाटा ही पसरा हुआ है। सोनिया से मिलने की किसी को इजाजत न मिलना इस बात का संकेत है कि वे किसी भयानक संक्रामक बीमारी से ग्रसित हैं या फिर उन्हें संक्रमण का खतरा है।

कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ के सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और महामहिम राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल को भी सोनिया से मिलने की इजाजत नहीं दी गई थी। अहमद पटेल ही भाग्यशाली थे जो कुछ समय के लिए सोनिया से मिल सके।

हाल ही में चिदम्बरम मामले में सोनिया का एक बयान आया है। इस बयान से लगने लगा है कि सोनिया गांधी की तबियत में अब सुधार हो रहा है। कांग्रेस में इस बयान के बाद शक्ति का संचार हुआ है। 10 जनपथ से छन छन कर बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो यह बयान सोनिया की जानकारी के बिना ही उनकी किचिन कैबनेट के एक महत्वपूर्ण सदस्य द्वारा कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को विश्वास में लेकर जारी किया गया है।

अमर से डरा दुनिया का चौधरी


ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

अमर से डरा दुनिया का चौधरी
सियासी गलियारों में इन दिनों यह चर्चा जोरों पर है कि चलो दुनिया के चौधरी को किसी से डर तो लगा। अमेरिका को डर है तो बड़बोले राजनेता अमर सिंह से। दरअसल अमर सिंह के पास कुछ एसे राज हैं जिनके उजागर होते ही भारत के टॉप राजनेताओं के साथ ही साथ अमेरिका की साख पर भी बट्टा लग सकता है। न्यूक्लीयर डील में भारत के समर्थन को पाने के लिए अमेरिका के सैम अंकल यानी ओबामा ने साम दाम दण्ड भेद की जो नीति अपनाई उससे वह तो मीर हो गया किन्तु संसद में नोट उछाले गए जिससे देश की सबसे बड़ी पंचायत शर्मसार हो गई। कहा जा रहा है कि अगर अमर सिंह ने मुंह खोला तो कांग्रेस के आला नेताओं के कपड़े उतर सकते हैं। बात निकली है तो दूर तलक जाएगीकी तर्ज पर इसके तार सीधे अमेरिका से जा जुड़ेंगे। अगर एसा हुआ तो दुनिया भर में अमेरिका की भद्द पिटना स्वाभाविक ही है।

घर का जोगी जोगड़ा आन गांव का सिद्ध
पुरानी कहावत है कि घर का जोगी जोगड़ा आन गांव का सिद्ध। अर्थात जो दूर गांव में सिद्ध कहलाता है उसकी अपने घर में कोई पूछ परख नहीं होती है। इस बात को दो तरह से लिया जा सकता है एक तो वह वाकई सिद्ध है या फिर घर वाले उसकी हकीकत जानते हैं। दूसरी बात उत्तर प्रदेश में लागू होती दिख रही है। लगभग डेढ़ दशकों से कांग्रेस की बागड़ोर संभालने वाली राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और उनके युवराज पुत्र राहुल गांधी दोनों के संसदीय क्षेत्र उत्तर प्रदेश में हैं। देश को सबसे अधिक प्रधानमंत्री भी उत्तर प्रदेश ने ही दिए हैं। पिछले एक दशक से ज्यादा समय से उत्तर प्रदेश में कांग्रेस बीमार और आक्सीजन पर है। कांग्रेसियों को भरोसा है कि सोनिया और राहुल के भरोसे वे 2014 के आम चुनावों के अलावा सूबाई चुनावों में विजयश्री का वरण कर पाएंगे। एक जिम्मेदार कांग्रेसी ने पहचान गुप्त रखने की शर्त पर टिप्पणी की कांग्रेसी मुगालते में हैं जब मां बेटे अपना घर ही नहीं संभाल पा रहे तो देश को क्या खाक संभालेंगे?‘

प्रभात का काम करते शिव के गण
दिल्ली स्थित मध्य प्रदेश सरकार के जनसंपर्क विभाग के सूचना केंद्र द्वारा सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के प्रचार प्रसार के स्थान पर अब भारतीय जनता पार्टी के राजनैतिक कार्यक्रमों और निजी प्रोग्राम पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। कहते हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और जनसंपर्क आयुक्त राकेश श्रीवास्तव ने साफ साफ यह निर्देश दिए हुए हैं कि जनसंपर्क विभाग अपने आप को राजनैतिक मामले से प्रथक रखे। बार बार दिए गए निर्देशों के बाद भी सूचना केंद्र में पदस्थ अफसरान सरकार के बजाए संगठन का साथ देकर संगठन के पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास करते नजर आ रहे हैं। अनेक मामलों में तो निजी तौर पर पीआर भी संभाली है सूचना केंद्र के अफसरों से। संगठन के साथ अत्याधिक झुकाव से शिवराज सिंह चौहान की बिदाई और संगठन के किसी पदाधिकारी को उनके स्थान पर आने की चर्चाओं को बल ही मिलता है।

वास्तविक गरीब, सरकारी गरीब
सरकार भी अजीब है। कभी कहती है कि आधी से ज्यादा आबादी को एक टाईम का खाना नसीब नहीं। कभी करोपति सांसदों विधायकों की बढ़ती तादाद बताती है। कभी गरीबी का कुछ पैमाना बताती है कभी गरीबी रेखा के नीचे वालों की तादाद को कम करने के लिए गरीबी की परिभाषा ही बदल देती है। हाल ही में योजना आयोग ने नया कारनामा किया है। अब कहा जा रहा है कि गांव में प्रतिदिन 26 और शहरों में 32 रूपए खर्च करने वाला गरीब नहीं। दरअसल जो इस तरह की बात करते हैं उनकी एक एक पार्टी ही लाखों रूपयों से ज्यादा की होती है। ये क्या जाने गरीबी का स्वाद क्या होता है। सरकार ने वातानुकूलित कमरों में बैठकर गढ़ ली गरीबी की नई परिभाषा। सरकार के इस कथन पर शोर शराबा हुआ। सरकार तो खामोश बैठी रही जवाब दिया कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता ने। भई वाह!

एसे में कैसे बचेगी बेटी!
भारतवर्ष में लिंगभेद आदि अनादि काल से चला आया है। भारत को वैसे भी पुरूष प्रधान देश ही माना जाता है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कन्याओं पर खासे मेहरबान रहे हैं। उनके मन में स्त्री के प्रति अगाध श्रद्धा और प्यार है। सांसद रहते वे सामूहिक विवाहों को अंजाम देते आए हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने महिलाओं विशेषकर कन्याओं के हितों के संरक्षक के प्रति अनेक प्रयास किए हैं। मध्य प्रदेश द्वारा आरंभ की गई लाड़ली लक्ष्मी योजना को अन्य सूबों द्वारा अंगीकार किया गया है। एक आंकड़े के अनुसार मध्य प्रदेश में 2556 करोड़ अब तक इसमें खर्च हो चुके हैं। बावजूद इसके लिंगानुपात आज भी मध्य प्रदेश की बड़ी समस्या बना हुआ है। हालात देखकर लगने लगा है कि शिवराज सिंह तो पूरी कोशिश कर रहे हैं पर उनके गण ही उनकी इच्छाओं का सम्मान नही कर पा रहे हैं। दिल्ली में शीला दीक्षित ने भी महलाओं के मामले में शिवराज की राह पकड़नी चाही है। दिल्ली में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। पर शीला हैं कि चैन से बंसी बजा रही हैं।

सबसे भ्रष्ट है रेल महकमा
भारतीय रेल इक्कीसवीं सदी में चर्चाओं में रहा है। कभी स्वयंभू प्रबंधन गुरू लालू प्रसाद यादव की कारस्तानी से तो कभी ममता बनर्जी की अनदेखी के चलते यह चर्चाओं में रहा। अब दिनेश त्रिवेदी भारतीय रेल के चालक बने हैं। केंद्रीय सतर्कता आयोग को मिली कुल शिकायतों में एक तिहाई से अधिक शिकायतें सिर्फ भारतीय रेल की ही मिली हैं। वर्ष 2010 की वार्षिक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है। सीवीसी को मिली 25 हजार 359 शिकायतों में से आठ हजार 330 शिकायतें रेल्वे की हैं। प्रतिवेदन दर्शाता है कि इन 8 हजार 330 शिकायतों में अधिकांश शिकायतें कर्तव्य के निर्वहन न करने की हैं। आयोग द्वारा जिन 1646 मामलों में कार्यवाही के निर्देश दिए हैं उनमें से 321 मामले रेल्वे के खिलाफ वाले हैं। अब भारतीय रेल की सेहत का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि लालू, ममता के राज में रेल किस तरह दिशाहीन होकर पटरी पर दौड़ रही थी।

एमपी है बंग्लादेशियों की पहली पसंद
देश का हृदय प्रदेश कहलाता है मध्य प्रदेश। मध्य प्रदेश की पुलिस का भी अपना तौर तरीका है। जांच के नाम पर वह चाहे किसी को भी मुर्गा बना दे। केंद्रीय गृह मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार देश में अवैध तरीके से घुसपैठ करने वाले बंग्लादेशी नागरिकों की शरण स्थली के रूप में मध्य प्रदेश की पहचान हो रही है। दरअसल लचर पुलिस व्यवस्था के चलते यहां बाहर से आने वाले अनजान लोगों के लिए बसने में बहुत आसानी होती है। जल्द ही अपना परिचय का दायरा बढ़ाकर रिश्वत के बल पर ये अपना राशन कार्ड, वोटर आईडी, यहां तक कि चालक अनुज्ञा पत्र भी बनवा लेते हैं। हालात देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि मध्य प्रदेश के पुलिस मैन्युअल से अब बाहर से आकर यहां रहने वालों की मुसाफिरी दर्ज कराने का कालम हटा दिया गया है।

उखड़ने लगी भूरिया की सांसें
केंद्रीय मंत्री रहे कांतिलाल भूरिया को मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है। आज भी वे अपना ज्यादातर समय दिल्ली की राजनीति में बिता रहे हैं। शायद भूरिया को लग रहा है कि इस कांटों भरे ताज से बेहतर तो केंद्र की लाल बत्ती ही थी। भूरिया उस समय असहाय लगने लगे जब मध्य प्रदेश में जिलों की कांग्रेस कमेटी के अध्यक्षों को बनाया जाना था। रतलाम, झाबुआ और अलीराजपुर भूरिया के प्रभाव वाला माना जाता है। शेष मध्य प्रदेश में भूरिया का नामलेवा भी नहीं है। इन परिस्थितियों में भूरिया को अपने आका दिग्विजय सिंह पर ही भरोसा जताने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था। दिग्गी राजा ने अपनों को चीन्ह चीन्ह कर रेवड़ी बांट दी गई। फिर क्या था, कमल नाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुरेश पचौरी, अरूण यादव, सत्यव्रत चतुर्वेदी सरीखे क्षत्रपों के निशाने पर आ गए हैं भूरिया।

भाजपा में एन वर्सेस एन
एल.के.आड़वाणी को संघ की फटकार के बाद उनके हौसले पस्त हो गए। आड़वाणी ने तत्काल अपने आप को पीएम इन वेटिंग की दौड़ से बाहर कर लिया। उधर अमेरिका की पहली पसंद बनकर उभरे गुजरात के निजाम नरेंद्र मोदी। नरेंद्र मोदी के बारे में कहा जा रहा है कि वे राजग के अगले पीएम इन वेटिंग हो सकते हैं। श्राद्ध पक्ष में भी उपवास कर मोदी ने कट्र हिन्दुत्व के सिद्धांतों को ही चुनौती दे डाली। उसके बाद एक मौलाना की टोपी को इन्कार कर वे विवादों से घिर गए। उधर 7 रेसकोर्स रोड़ (प्रधानमंत्री का सरकारी आवास) को आशियान बनाने का सपना बिहार के निजाम नितिश कुमार के मन में भी डोल रहा है। वे सधे कदमों से इस तरफ बढ़ रहे हैं। कहते हैं कि भारत का प्रधानमंत्री वही बन सकता है जिसके नाम में र अक्षर आए। डॉक्टर मनमोहन सिंह भी अपने नाम में र का समावेश रखते हैं।

खण्डूरी का राजनैतिक भविष्य दांव पर
उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल को बड़े ही नाटकीय तरीके से सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। उनके स्थान पर सेना के रिटायर्ड अफसर भुवन चंद खण्डूरी के कांधों पर डाल दी गई सूबे की जवाबदारी। उत्तराखण्ड में भाजपा की हालत पतली ही दिख रही है। उत्तराखण्ड में अगले साल चुनाव हैं। तीज त्योहारों के चलते खण्डूरी को काम करने का समय ही नहीं मिलने वाला है। दिसंबर तक आचार संहिता का डंडा घूम सकता है। इन परिस्थितियों में अगर सत्ता भाजपा के हाथ से फिसली तो खण्डूरी की सियासी कैरियर की हत्या सुनिश्चित है। निशंक वैसे भी हाशिए पर आ चुके हैं। अब राज्य में इकलौते बचेंगे कोश्यारी। अगर विपक्ष में भाजपा बैठी तब भी कोश्यारी के लिए अपनी मुगलई चलाना आसान ही होगा।

सरकार के पास नहीं गुरू पर खर्च का हिसाब
अफजल गुरूको सरकार का दमाद कहा जाने लगा है। संसद पर हमले का मुजरिम अफजल गुरू दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है। अफजल 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए हमले का मुजरिम है। इस हमले के मास्टर माईंड अफजल गुरू के बारे में न जाने कितनी तरह की बातें आरोप प्रत्यारोप सामने आ चुके हैं। लोग कह रहे हैं कि सरकार इसे आखिर पाल क्यों रही है? अफजल पर हो रहे खर्च को आखिर कहां से वसूला जा रहा है। जाहिर है जनता के गाढ़े पसीने की कमाई से संचित राजस्व से ही अफजल को पाला जा रहा है। सूचना के अधिकार के एक आवेदन में यह जानकारी सामने आई है कि अफजल पर खर्च की गई रकम के बारे में तिहाड़ जेल प्रशासन के पास कोई रिकार्ड ही नहीं है।

कटोरा कट से मिली जवानों को निजात
भारतीय सेना और सुरक्षा बलों के जवानों की हेयर स्टाईल देखकर लोग इसे कटोरा कट की संज्ञा देते आए हैं। नौजवानों के रोष को देखकर सेना के आला अधिकारियों ने जवानों के लुक को मार्डन बनाने का फैसला किया है। अब सेना के जवान अपनी चैंती अर्थात कनपटी पर सामान्य बाल रख सकते हैं। अब तक जवानों की यह पीड़ा थी कि जब वे शहरों में निकलते थे तो लोग उन्हें छुला मुर्गा कहकर चिढ़ाया करते थे। साथ ही साथ जवान आम लोगों के बीच अलग ही पहचाने जा सकते थे। सेना के इस निर्णय से जवानों में खुशी की लहर दौड़ गई है। सेना ने इसकी शुरूआत अपनी देहरादून स्थित सेन्य अकादम से कर भी दी है। हो सकता है राज्यों के सुरक्षा बल भी सेना के इस फैसले से इत्तेफाक रखते हुए अपने जवानों को भी मार्डन बना दें।

पुच्छल तारा
देश में भ्रष्टाचार का घुन पूरी तरह से लग चुका है। एक के बाद एक घपले घोटाले सामने आ रहे हैं। एक एक कर सांसद तिहाड़ जेल पहुंचने लगे हैं। इस व्यवस्था पर चोट करते हुए केरल से पियूषिका नायर ने एक ईमेल भेजा है। पियूषिका लिखती हैं ‘‘जय पलनिअप्पम चिदम्बरम। अपराधी और नेता में अब फर्क नहीं रह गया है। इन दोनों ही कौमों के बीच फासला कम हो गया है। सजा ही कहीं मजा न बन जाए। सारे नेता एक एक कर चले आ रहे हैं तिहाड़ जेल की शरण में। डर तो इस बात का है कि कहीं तिहाड़ जेल ही संसद न बन जाए!