सावधान! कोहरा आ रहा है
(लिमटी खरे)
दिसंबर की हाड गलाने वाली ठण्ड के आते ही आवागमन ठहर सा जाता है। वैसे तो समूचे भारत में कोहरे की मार इन दिनों में जबर्दस्त होती है, किन्तु उत्तर भारत विशेषकर आगरा के आगे के इलाकों में कोहरा शनै: शनै: बढता ही जाता है। कोहरे के कारण जन जीवन थम सा जाता है।
आंकडों के अनुसार सडक दुघZटनाओं में साल दर साल मरने वालों की संख्या में बढोत्तरी के लिए कोहरा एक प्रमुख कारक के तौर पर सामने आया है। अमूमन नवंबर के अंतिम सप्ताह से फरवरी के पहले सप्ताह तक उत्तर भारत के अधिकांश क्षेत्र काहरे की चादर लपेटे हुए रहते हैं।
कोहरे के चलते कहीं कहीं तो दृश्यता (विजीबिलटी) शून्य तक हो जाती है। रात हो या दिन वाहनों की तेज लाईट भी बहुत करीब आने पर चिमनी की तरह ही प्रतीत होती है। यही कारण है कि घने कोहरे के कारण सदीZ के मौसम में सडक दुघZटनाओं में तेजी से इजाफा होता है।
कोहरे के बारे में प्रचलित तथ्यों के अनुसार सापेक्षिक आद्रता सौ फीसदी होने पर हवा में जलवाष्प की मात्रा एकदम स्थिर हो जाती है। इसमें अतिरिक्त जलवाष्प के शामिल होने अथवा तापमान में और अधिक कमी होने से संघनन आरंभ हो जाता है। इस तरह जलवाष्प की संघनित सूक्ष्म सूक्ष्म पानी की बूंदें इकट्ठी होकर कोहरे के रूप में फैल जातीं हैं।
पानी की एक छोटी सी बूंद के सौंवे हिस्से को संघनन न्यूिक्लयाई अथवा क्लाउड सीड भी कहा जाता है। धूल मिट्टी के साथ तमाम प्रदूषण फैलाने वाले तत्व क्क्लाउड सीड की सतह पर आकर एकत्र होते हैं, और इस तरह होता है कोहरे का निर्माण। वैज्ञानिकों के अनुसार यदि वायूमण्डल में इन सूक्ष्म कणों की संख्या बहुत ज्यादा हो तो सापेक्षिक आद्रता शत प्रतिशत से कम होने के बावजूद भी जलवाष्प का संघनन आरंभ हो जाता है।
दरअसल बूंदों के रूप में संघनित जलवाष्प के बादल रूपी झुंड को कोहरे की संज्ञा दी गई है। कोहरा वायूमण्डल में भूमि की सतह से कुछ उपर उठकर फैला होता है। कोहरे में आसपास की चीजें बहुत ही कम दिखाई पडती हैं, कहीं कहीं तो विजिबिलटी शून्य तक हो जाती है।
देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में दिसंबर से फरवरी तक आवागमन के साधन निर्धारित समय से देरी से ही या तो आरंभ होते हैं अथवा पहुंचते हैं। इसका प्रमुख कारण कोहरा ही है। कोहरे के चलते सडक और रेल मार्ग से आवागमन बहुत धीमा हो जता है। रही बात हवाई मार्ग की तो एयरस्ट्रिप ही कोहरे के कारण नहीं दिखाई देगी तो भला पायलट अपना विमान कहां उतारेगा। अनेकों बार पुअर विजिबिलटी के चलते या तो हवाई जहाज या चौपर घंटों हवा में लटके रहते हैं या फिर आसपास के किसी अन्य एयरापोर्ट पर उतरने पर मजबूर होते हैं।
दरअसल प्रदूषण भी कोहरे के बढने के लिए उपजाउ माहौल पैदा कर रहा है। आंकडे बताते हैं कि 1980 के दशक में देश में घने कोहरे का औसत समय आधे घंटे था, जो बढकर 1995 में एक घंटा और फिर गुणोत्तर तरीके से बढते हुए 2 से 4 घंटे तक पहुंच गया है। जानकारों का मानना है कि साठ के दशक के उपरांत आज घने कोहरे का समय लगभग बीस गुना बढ चुका है।
पिछले साल के आंकडे काफी भयावह ही लगते हैं। दिसंबर 2008 से जनवरी 2009 के बीच दिल्ली में ही साढे सोलह सौ गाडियां विलंब से चलीं। इतना ही नहीं इन दो माहों में 71 उडाने रद्द करनी पडी, साढे सात सौ का समय और लगभग डेढ सौ उडानों का मार्ग बदलना पडा। अनेक बार तो उडान भरने के लिए धूप निकलने का इंतजार करना होता है। धूप में कोहरा धीरे धीरे छटना आरंभ हो जाता है।
कोहरे के कारण रेलगाडियों का विलंब से चलना कोई नई बात नहीं है। रेल चालक को सिग्नल अस्पष्ट दिखाई देने से दनादन चलने वाली रेल गाडियां भी चीटिंयों की तरह रेंगने को मजबूर हो जाती हैं। उत्तर भारत में कोहरे में रेल चालन के लिए पटरी पर पटाके बांधे जाते हैं, जो रेल के इंजन जितना भार पडने पर ही फटते हैं। इनमें पटाखों की संख्या रेल चालक के लिए संकेत का काम करती है।
उत्तर भारत में विशेषक दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखण्ड, बिहार, आदि में कोहरे का कहर सबसे अधिक होता है। दिल्ली जैसे शहर में एक ओर जहां प्रदूषण कोहरे को बढाने में सहायक होता है, वहीं दूसरी ओर खुले इलाकों में सदीZ के मौसम में खेतों में होने वाली सिचाई कोहरे को पनपने के मार्ग प्रशस्त करती है।
विडम्बना ही कही जाएगी कि इक्कीसवीं सदी में भी भारत ने कोहरे से निपटने के लिए कोई ठोस कार्ययोजना अब नहीं बना सकी है। माना जाता है कि सरकार इस समस्या को साल भर में एक से डेढ माह की समस्या मानकर ही छोड देती है, जबकि वास्तविकता यह है कि कोहरे के चलते देश में हर साल आवागमन के दौरान होने वाली मौतों में से 4 फीसदी मौतें पुअर विजिबिलटी के कारण होती हैं।