क्या नकली नोट बटोरने बैठी है सरकार
आखिर क्यों नहीं रूक पा रहा है नकली नोट का फैलाव
(लिमटी खरे)
आतंकवादी अलगाववादी संगठनों द्वारा भारत की अर्थव्यवस्था पर सेंध लगा दी है। देश में अरबों खराबों रूपए के नकली नोट का प्रचलन हो रहा है। सौ, पांच सौ और हजार के नकली नोट आज मार्केट में धडल्ले से चल रहे हैं। नोट को इस तरह तैयार किया गया है कि असली और नकली की पहचान आसानी से नहीं की जा सकती है।
यह सब काम सुनियोजित तरीके से ही किया जा रहा है। पूर्व में राजाओं द्वारा अगर किसी किले को फतह करना होता था तो सबसे पहले वह रसद के सारे रास्ते बंद कर दिया करता था, फिर जब भुखमरी की नौबत आ जाती तो किले का सरदार मजबूरी में आत्मसमर्पण को तैयार हो जाता।
हिन्दुस्तान में भी कमोबेश यही हो रहा है। विदेशी ताकतें देश की अर्थव्यवस्था को खोखला करने में कोई कोर कसर नहीं रख रहे हैं। हमारे देश के नागरिक और नेता उनके इन नापाक इरादों को सफलता की पायदान चढाने के मार्ग पशस्त करने में लगे हुए हैं।
केंद्र सरकार ने गत दिवस राज्यसभा में यह स्वीकार किया है कि देश में नकली नोटों का चलन तेजी से बढता जा रहा है। केेंद्रीय वित्त राज्य मंत्री नमो नारायण मीणा ने एक प्रश्न के लिखित जवाब में कहा है कि 2006 में 83 करोड 9 लाख 44 हजार 769 रूपए मूल्य के 3 लाख 85 हजार 2 नोट पकडे गए थे।
इसके बाद 2007 में एक अरब 5 करोड 4 लाख 16 हजार 925 सममूल्य के 3 लाख 87 हजार 525 तो 2008 में इनकी संख्या बढकर 6 लाख 55 हजार 901 हो गई जिसकी कीमत दो अरब 56 करोड तीन लाख एक हजार 22 रूपए थी। इस साल 30 सितम्बर तक 2 लाख 47 हजार 995 नकली नोट पकड में आए जिनकी कीमत 90 करोड 7 लाख 64 हजार 200 रूपए थी।
इस तरह देखा जाए तो 2006 से अब तक 16 लाख 76 हजार 423 नकली नोट पकड पाई है सरकार जिसकी कीमत पांच अरब 34 करोड 42 लाख 26 हजार 916 रूपए है। इस बात से सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि खरबों रूपए व्यय कर देश की सीमाओं की चौकसियों के लिए तैनात तंत्र में घुन किस कदर लग चुकी है कि अरबों खरबों की नकली करंसी देश में आसानी से प्रवेश कर रही है जिसका एक अंश ही अभी सरकार ने अपने कब्जे में लिया है।
भारतीय अर्थ तंत्र तहस नहस होने के कगार पर है किन्तु देश के नीति निर्धारक अपने स्वार्थों को आज भी प्रथमिकता दिए हुए हैं। बाजार में बच्चों के लिए खेलने को बनाए जाने वाले नकली नोट दरअसल इन सौदागरों के लिए रिहर्सल की तरह ही होते हैं जिसमें नुक्ताचीनी निकालकर वे वास्तविक करंसी को छाप देते हैं।
कम ही देश होंगे जो नकली नोट की समस्या से दो चार हो रहे होंगे, अगर होंगे भी तो निश्चित तौर पर भारत जैसी समस्या उनके देश में नहीं होगी। दरअसल अन्य देशों में नेताओं के अंदर आज भी देशप्रेम का जज्बा जबर्दस्त तरीके से कूट कूट कर भरा हुआ है। उनके लिए उनका निहित स्वार्थ प्राथमिकता होगा किन्तु देशप्रेम से बढकर नहीं।
अस्सी के दशक में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के एक भाषण को सुनने का सौभाग्य हमें मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर में मिला। उस वक्त सीमा से घुसपैठ जारी थी। अटल जी ने कहा कि हमारे देश के गृह मंत्री बयान देते हैं कि आज 25 घुसपैठिए भारत में प्रवेश कर गए। उन्होंने उस समय सरकार से प्रश्न किया था कि क्या सीमा पर तैनात हमारे जांबाज सिपाही इन घुसपैठियों की गिनती के लिए वहां तैनात की गई है, या घुसपैठ रोकने के लिए।
दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि वित्त मंत्री आज राज्यसभा में बयानबाजी कर रहे हैं और विपक्ष ब्रहन्ला की तरह बर्ताव कर रहा है। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि आज दमदार विपक्ष के अभाव के चलते केंद्र और राज्य में सरकारें हिटलरशाही पर उतारू हैं। जिसके मन में जो आ रहा है, वह अपने चमडे के सिक्के चला रहा है। पिस रही है आम आवाम।
राज्य सभा में वित्त राज्य मंत्री मीणा के जवाब के बाद किसी ने यह पूछने की जहमत नहीं उठाई कि सरकार ने आखिर नकली नोट के प्रचलन को रोकने के लिए क्या उपाय किए हैं। इन नकली नोटों के भारत में आने के मार्ग क्या हैं, इस पर विचार भी नहीं किया गया है।
कुछ दिनों पहले महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों के दौरान सियासी दलों के उम्मीदवारों ने तो हद ही कर दी थी। बताते हैं कि मतदाताओं को रिझाने के लिए उन्होंने नकली नोट की बरसात कर दी थी। इस तरह इन दावेदारों ने नकली नोट के बदले असली वोट पा लिया था।
मामला अगर किसी माननीय जनसेवक के निहित स्वार्थ से जुडा होता तो अब तक संसद में कुर्सियां चल जातीं पर मामला देश की अस्मत से जुडा है सो इसके लिए कोई जनसेवक आखिर परेशान हो भी तो क्यों। जनसेवा का दंभ भरने वाले जनसेवकों की तिजोरियों तो असली नोट भरे पडे हैं, फिर भला वे नकली नोट से जूझते आम हिन्दुस्तानी की परवाह करे भी तो क्यों।