सोमवार, 18 अप्रैल 2011

हजारे के आंदोलन में आय व्यय पर मौन रहा आयकर महकमा




गैर वाजिब नहीं है दिग्गी की चिंता!


आंदोलन में फुंक गए 31 लाख रूपए!

(लिमटी खरे)

कांग्रेस के बीसवीं सदी के चाणक्य राजा दिग्विजय सिंह ने अन्ना हजारे के आंदोलन में जुटे धन पर चिंता जाहिर की है। दिग्विजय सिह की चिंता बेमानी नहीं मानी जा सकती है। जिस भ्रष्टाचार के लिए अन्ना हजारे जैसे गांधीवादी नेता ने बिगुल फूंका है, उसी आंदोलन में इकतीस लाख रूपए खर्च होना आश्चर्यजनक है। इस पर विस्मय इसलिए भी है, क्योंकि सादगी भरे पांच दिन चले आंदोलन में लाखाों रूपए खर्च करने की बात किसी के गले आसानी से नहीं उतर सकती है। इस लिहाज से अन्ना के आंदोलन छः लाख रूपए प्रतिदिन के हिसाब से चला माना जाएगा।

गांधीवादी नेता अन्ना हजारे के आंदोलन के पाश्र्च में काम कर रही संस्था ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन‘ को कारमल कांवेंट जैसे नामी स्कूल, एचडीएफसी और जम्मू काश्मीर बैंक, कांग्रेस के जनसेवक के स्वामित्व वाले जिंदल एल्यूमिनियम सरीखे उद्योग ने भी बढ़ चढ़कर योगदान दिया है। 5 से 9 अप्रेल तक चले इस आंदोलन में टेंट और साउंड सिस्टम पर मात्र साढ़े नौ लाख रूपए खर्च होना दर्शाया गया है।

राजनैतिक चतुर सुजान राजा दिग्विजय सिंह ने अन्ना पर बयानों से हमले बोले, लोगों को लगा कि कांग्रेस अन्ना के इस आंदोलन से भयाक्रांत है, पर जानकारों का कहना है कि इस तरह के जहर बुझे तीर कांग्रेस की एक रणनीति के तहत ही चलाए गए थे, ताकि किसी को यह न लगे कि इसके पाश्र्व में कहीं कांग्रेस है। इसके बाद कांग्रेस के अन्ना हजारे पर से हमले कम हो गए।

माना जा रहा है कि भ्रष्टाचार, घपलों घोटालों से अटी पड़ी कांग्रेसनीत केंद्र सरकार का यह प्रयास है कि किसी भी तरह से आम जनता का ध्यान इन सबसे हटाया जा सके। कांग्रेस को इसके लिए सबसे उपयुक्त लगा कि बेहतर होगा कि लोगों का गुस्सा एक बार फट जाए और मामला एक दो दशक के लिए टाला जा सके ताकि भविष्य में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को भ्रष्टाचार से निजात मिल सके।

कांग्रेस अपनी इस अघोषित मुहिम में काफी हद तक कामयाब होती दिख रही है। भ्रष्टाचार का लावा फट गया और अब शांत पड़ चुका है। लोग अब अन्ना को ही कांग्रेस का एजेंट बताने से नही चूक रहे हैं इसका कारण लोकपाल बिल के लिए बनी समीति में पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण और उनके पुत्र प्रशांत भूषण को स्थान दिया जाना है। पिता पुत्र के स्थान पाते ही एक बार फिर वे विवादों में आ गए। इलहाबाद में एक बेशकीमती जमीन के मामले में उन्हें शक के दायरे में ला दिया गया। इसके बाद एक सीडी भी हवा में तैर गई जिसमें ‘जज‘ को सैट करने के आरोप शांति भूषण पर लग रहे हैं। इस तरह विवादित लोगों के इस समिति में आने से ही मामला संदिग्ध होने लगा है। लोगों का भरोसा भी अब टूटने सा लगा है।

उधर अन्ना हजारे के माध्यम से कांग्रेस ने बाबा रामदेव को भी किनारे लगाने का उपक्रम कर ही दिया। भ्रष्टाचार और काले धन पर बाबा रामदेव द्वारा जो बिसात बिछाई जा रही थी, उसे कांग्रेस ने अन्ना हजारे के पाले में डालकर बाबा रामदेव का जोश भी ठंडा ही कर दिया है। यद्यपि बाबा रामदेव आसानी से हार नहीं मानने वाले हैं किन्तु कांग्रेस का पुरजोर प्रयास है कि वह बाबा रामदेव को किनारे ही कर दे।

बहरहाल भविष्य की चालों को ध्यान में रखकर राजनीति करने मंे पारंगत मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राजा दिग्विजय सिंह ने पहले तो अन्ना हजारे के आंदोलन को मिले चंदे पर सवालिया निशान लगा दिया। गौरतलब होगा कि जब भी कोई सार्वजनिक हित के काम को आगे बढ़ाया जाता है तब लोग दिल खोलकर चंदा देते हैं। आयोजक उस चंदे का सदुपयोग करते हैं या फिर आंदोलन में अपने विलासित के सपनों को साकार करते हैं यह बात तो वे ही जानते होंगे किन्तु यह तय है कि जिस तरह का व्यय ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन‘ द्वारा दर्शाया गया है वह गैर जरूरी ही था। छः लाख रूपए रोजाना के हिसाब से अगर आंदोलन किया गया तो वह निहायत ही बेवकूफी भरा था।

इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब महात्मा गांधी या लोकनायक जयप्रकाश द्वारा आंदोलन किया गया तब वह सादगी से परिपूर्ण था, उसमें विलासिता की बू कहीं से भी नहीं आती थी। किन्तु वर्तमान मंे होने वाले आंदोलन में कुंठा अवश्य ही झलकने लगती है। भारतीय पुलिस सेवा की देश की पहली महिला अधिकारी किरण बेदी का कहना है कि इस व्यय में वह खर्च भी जु़ड़ा है जिसमें अन्ना और उनके समर्थकों ने देश का दौरा किया है।

सवाल यह उठता है कि अन्ना के समर्थक अगर हवाई जहाज या हेलीकाप्टर किराए पर लेकर दौरा करें तो उसका भोगमान देश की जनता क्यों भोगे। गांधीवादी अन्ना के समर्थकों को चाहिए था कि वे रेल के साधारण दर्जे में या सरकारी बस में यात्रा करते। अगर उनके लिए वातानुकूलित श्रेणी की बर्थ, हवाई टिकिट या वातानुकूलित मंहगी गाड़ी किराए पर ली गई है तो इससे देश की जनता को क्या लेना देना। और इस तरह की चीजों का उपयोग अगर वे कर रहे हैं तो उनमें और विलासिता प्रिय जनसेवकों में आखिर अंतर क्या बचा।

आज इंडिया अगेंस्ट करप्शन संस्था ने हिसाब दे दिया है, पर वह आधा अधूरा ही है। बेहतर होता कि संस्था आना पाई से हिसाब देती और भ्रष्टाचार या किसी भी प्रकार की लड़ाई जनहित देशहित में लड़ने वाले हर मंच के अंदर इतना माद्दा होना चाहिए कि वह जनता के पैसे का हिसाब देने में पूरी पारदर्शिता बरते। अगर देश की शैक्षणिक संस्था, बैंक, व्यापारी, सेवानिवृत कर्मचारी आदि उसे चंदा दे रहे हैं तो संस्था को चाहिए कि उनके या किसी के बिना मांगे हर रोज का खर्च उसी तरह सार्वजनिक करे जैसा कि वह अपने कदमों के बारे में जनता को मीडिया के माध्यम से विज्ञप्ति जारी कर करती है।

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