एमपी अजब है, सबसे गजब है!
(स्नेहा चौहान)
भोपाल (साई)। एमपी
अजब है, सबसे गजब
है। मध्य प्रदेश पर्यटन निगम के इस नारे की असलियत देखनी हो तो जबलपुर आएं। यहां
से 40 किलोमीटर
दूर बरगी बांध को बने 23 साल बीत चुके हैं, लेकिन इसके कारण विस्थापित हुए 11 गांवों के लोग
वजूद में तो अभी भी मौजूद हैं लेकिन सरकारी रिकार्ड में उनकी कहीं कोई मौजूदगी
नहीं बची है। विस्थापन के बाद आज तक सरकारी रिकार्ड में उनकी उपस्थिति दर्ज नहीं
हो सकी है। हालांकि इन गांवों में सड़क है, बिजली है और लोग भी रहते हैं पर सरकार
इन्हें ‘भूत’ मानकर इनके वजूद को
ही नकार रही है।
इस लापरवाही के
कारण विस्थापित हुए 1049 परिवारों का जीना मुहाल है। काम-धंधा न होने के कारण लोगों
के सामने भूखों मरने की नौबत है। सरकारी अधिकारियों का कहना है कि जब इन गांवों का
नामो-निशान ही नहीं है तो फिर विकास परियोजनाओं की मंजूरी मुमकिन नहीं। राज्यह
सरकार के अतिरिक्तम क्षेत्रीय आयुक्तो बीके मिंज ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा है
कि सरकार ने इन गांवों के लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया है।
बीते दो दशक में
चार बार सरकारें बदलीं, लेकिन विस्थातपितों की उम्मीदें पूरी नहीं हुईं। पिछले साल
सुप्रीम कोर्ट के आयुक्तों के मध्य प्रदेश में राज्य सलाहकार की ओर से जबलपुर के
जिला कलेक्टकर गुलशन बामरा को भेजे पत्र में इन 11 गांव के लोगों को
रोजगार देने का आग्रह किया गया था। इसके फौरन बाद विस्थापित परिवारों के लिए नरेगा
के तहत काम के अवसर तो मुहैया कराए गए, लेकिन राजस्व के नक्शे में न होने से लोगों
को उनके गांव में ही काम नहीं मिल सका। ऐसे में प्रशासन ने लोगों को सात किलोमीटर
दूर सालीवाड़ा में नरेगा के तहत काम दिया। रोजाना 14 किलोमीटर का पैदल
सफर और ऊपर से दिनभर हाड़तोड़ मेहनत। लिहाजा इक्का-दुक्का लोगों से कुछ दिनों तक काम
किया और फिर सूरत और तमिलनाडु से लेकर मेघालय और सिक्किडम जाकर काम करना ज्यांदा
मुनासिब समझा। हालत यह है कि परिवार के सभी लोग एक साथ पलायन करते हैं, क्योंकि सरकार के
रिकार्ड में वीरान हो चुके गांवों में किसी सदस्य को छोड़ना जोखिमभरा है। विस्थापित
हुए परिवारों में 40 फीसदी से
ज्यारदा आदिवासी हैं। चूंकि इनके गांव नक्शे में नहीं हैं, इसलिए इन्हें
अस्पएताल, राशन, पानी और बच्चों की
शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं भी हासिल नहीं हैं।
0 कहां और किससे हुई गलती
नर्मदा नदी पर बरगी
बांध 1974 में बना।
जैसे-जैसे इसमें पानी भरता गया और गांव डूबते गए। उस समय विस्थापन की कोई नीति न
होने पर न तो प्रशासन ने लोगों को न तो बसाने की कोई योजना बनाई और न ही उसके पास
पुनर्वास के लिए कोई सरकारी जमीन थी। लोगों से सिर्फ इतना कहा गया कि पानी आएगा, आप सब डूब जाओगे।
लिहाजा मुआवजा राशि लो और चलते बनो। जान बचाने के लिए लोगों ने अपनी डूबती जमीनों
का नाममात्र का मुआवजा लिया और पहाड़ी पर चले गए। इधर गांव खाली हुए और सरकार ने
अपने रिकार्ड से उनका नाम गायब कर दिया। दूसरी ओर लोगों ने उसी नाम से गांव बसा
लिए, जहां वे
पहले रहते थे। जबलपुर, मंडला और सिवनी जिलों के 162 गांव बरगी के पानी
में डूबे। इन्हीं 162 गांवों
में से 11 गांव
सरकारी रिकार्ड से गायब हैं। अब भले ही सरकारी रिकार्ड से ये गांव गायब हो चुके
हैं लेकिन हकीकत में ये गांव अपने पूर्ववर्ती नामों के साथ मौजूद हैं।
0 लापरवाही की इंतिहां
बरगी बांध
विस्थापित संघ 1989 से इन 11 गांवों के मामले
को सरकार और जिला प्रशासन के सामने उठा रहा है, लेकिन अफसर टस से
मस होने को तैयार नहीं हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से लेकर नर्मदा घाटी विकास
प्राधिकरण और राज्यस्तरीय समितियों ने प्रशासन से कहा कि वह विस्थापित 11 गांवों को राजस्व
के रिकार्ड में शामिल करें, ताकि वहां रहने वाले परिवारों की बेहतरी के
लिए योजनाएं चलाई जा सकें। पिछले साल तत्कालीन जिला कलेक्टर हरिरंजन राव कठौतिया
ने प्रभावित इलाके का दौरा कर 11 गांवों को आबाद घोषित कर उन्हें राजस्व के
रिकार्ड में शामिल करने का वादा किया था, जो आज तक पूरा नहीं हो सका है।
0 प्रशासन ने किसी की नहीं मानी
- प्रकरण क्र. 5120/96-97/छभ्त्ब् के
संदर्भ में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की विजिट 12-15 सितंबर 1996 से उभरी अनुशंसाओं
में से एक ।
- 20 जनवरी 95 को बरगी बांध के
पुनर्वास के संबंध में बनाई गई राज्य स्तरीय समिति द्वारा स्पष्ट रुप से आदेशित
किया कि वनभूमि या अन्य जमीनों पर जहां पर भी विस्थापित जाकर बसे हैं, उन्हें वहीं पर
सैटल कर उनकी उस भूमि को आबादी घोषित करना।
- 2/11/93 को डॉ. बी.डी.शर्मा की अध्यक्षता में हुई
राज्य स्तरीय समिति की बैठक में लिये गये निर्णय के अनुसार यह प्रक्रिया 30 अप्रैल 1994 तक पूरी हो जानी
थी।
- 17/03/94 को डॉ. बी.डी.शर्मा की अध्यक्षता में हुई
राज्य स्तरीय समिति की बैठक में लिये गये निर्णय के अनुसार यह प्रक्रिया 30 अप्रैल 1994 तक पूरी हो जानी
थी।
- 20/1/95 को भी तत्कालीन नर्मदा घाटी विकास
प्राधिकरण आयुक्त अध्यक्ष डॉ. रणजीत सिंह जी ने सभी जिला कलक्टरों के इस संबंध में
आदेशित किया था।
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