शनिवार, 19 नवंबर 2011

परमाणु करार बन सकता है मनमोहन के गले की फांस


बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 31

परमाणु करार बन सकता है मनमोहन के गले की फांस

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। परमाणु बिजली घर में हादसे की स्थिति में देशी विदेशी कंपनियां किस कानून के तहत हर्जाना अदा करेंगी इस पर अभी संशय बरकरार है। कन्वेन्शन ऑफ सप्लिमेंटरी कंपनसेशन (सीएससी) वस्तुतः 1997 में अंतर्राष्ट्रीय परमाणु उर्जा एजेंसी (आईएईए) की एक संधि है, इसके साथ ही भारत में अपना अलग घरेलू लायबिलिटी कानून अस्तित्व में है। देश के वजीरे आजम के सामने यह चुनौति होगी कि वे किसकी वकालत करें। वैसे बाली में अमेरिका के महामहिम राष्ट्रपति बराक ओबामा को मनमोहन सिंह सीएससी को मंजूरी दिलाने का वायदा कर चुके हैं। इस पर अब तक चौदह देश हस्ताक्षर कर चुके हैं।

जानकारों का कहना है कि दोनों कानूनों में बेहद अंतर है। सीएससी और भारत के लायबिलिटी कानून में काफी विरोधाभास हैं। सीएससी में हर्जाना भरने की जिम्मेदारी ऑपरेटर (परमाणु बिजली घर चलाने वाली कंपनी) पर डाली गई है, जब कि भारत के लायबिलिटी कानून में जिम्मेदारी परमाणु बिजली घर के लिए उपकरण और साजोसामान की सप्लाई करने वाली सप्लायर कंपनियों पर डाली गई है।

भारत में जो भी विदेशी परमाणु रिएक्टर लगेगा, उसका संचालन भारत के न्यूक्लियर पावर कॉर्पाेरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआईएल) करेगा इसलिए एनपीसीआईएल ऑपरेटर कहा जाएगा और किसी परमाणु बिजली घर में कोई दुर्घटना होती है तो सीएससी के तहत दुर्घटना का हर्जाना ऑपरेटर यानी भारत सरकार की एक कंपनी को ही भरना होगा।

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