प्रजातंत्र, हिटलरशाही या सामंतशाही!
(लिमटी खरे)
एक समय था जब भारत देश (भारत गणराज्य
नही) में सामंतशाही हावी थी। आदि अनादिकाल से न्यायप्रिय और मनमानी करने वाले
शासकों की कहानियां सभी ने (नब्बे के दशक तक अध्ययन करने वालों ने) पढ़ी होंगी। उचित
अनुचित, नीति अनीति आदि का भय सभी को होता था। आज के समय में आखों की शर्म या
पानी पूरी तरह मर चुका है। देश अंदर ही अंदर अलगाववाद, आतंकवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, अमीरी गरीबी, ताकतवर, निरीह जैसे मामलों में बुरी तरह सुलग
रहा है। देश की राजनैतिक राजधानी में पेरामेडीकल की छात्रा के साथ सामूहिक
बलात्कार इसलिए भी टीस दे रहा है क्योंकि अभी ज्यादा दिन हीं हुए जब देश का गौरव
बनीं प्रथम महामहिम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार लोकसभा में
नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सुषमा स्वराज हैं, कांग्रेस की कमान श्रीमति सोनिया गांधी
के हाथों है तो दिल्ली की कमान श्रीमति शीला दीक्षित के हाथों। सभी का आवास दिल्ली
ही है इन परिस्थितियों में अगर दिल्ली में किसी बाला के साथ सामूहिक बलात्कार हो
जाए तो यह नेशनल शेम की ही बात मानी जाएगी।
दिल्ली में चलती बस में सामूहिक
बलात्कार ने वाकई अनेक प्रश्न खड़े कर दिए हैं। समय के साथ लोगों का गुस्सा तो शांत
हो जाएगा पर कांग्रेसनीत केंद्रीय संप्रग सरकार और दिल्ली की श्रीमति शीला दीक्षित
के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के माथे पर लगा यह कलंक शायद ही धुल पाए। आज कम ही
लोग गीता और संजय चौपड़ा के कांड को याद करते होंगे। सरकार भी 26 जनवरी को संजय
गीता चौपड़ा के नाम से आरंभ किए गए वीरता पुरूस्कार को प्रदाय करते समय ही इन दोनों
की कहानी को याद कर पाते होंगे।
दिल्ली में सबकी नाक के नीचे जो कुछ हुआ
वह वाकई अफसोसजनक है, इसकी महज निंदा करने से काम नहीं चलने वाला है। मीडिया का रोल इस मामले
में ठीक कहा जा सकता है किन्तु संतोषजनक कतई नहीं। सोशल मीडिया चीख चीख कर मीडिया
के उपर हावी होता दिख रहा है। यह देश के बिके हुए मीडिया की कारस्तानी का ही
परिणाम है कि आज मीडिया के चीखने के बाद भी उसकी आवाज नक्कारखाने में तूती ही
साबित हो रही है।
क्या मीडिया में इतना साहस है कि वह
लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष श्रीमति
सुषमा स्वराज, दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित, पूर्व महामहिम प्रतिभा देवी सिंह पाटिल
के मुंह पर माईक लगाकर लाईव प्रश्न कर देश को सुना सके। अगर ये कथित महान और
वरिष्ठ नेता अगर मीडिया से खुली चर्चा से इंकार करते हैं तो क्या मीडिया इनका
बहिष्कार करने का साहस जुटा पाएगा?
कांग्रेस और भाजपा के चतुर सुजान वाक
पटु प्रवक्ताओं को ढाल बनाकर आखिर कब तक ये नेता अपनी जवाबदेहियों से बचते रहेंगे।
केंद्र और दिल्ली में कांग्रेस सत्ता में है बावजूद इसके अपराधों के लिए नया कानून
अभी बन रहा है का राग कब तक सुनाते रहेंगे शासक! कब तक किसी मजलूम को अपनी इज्जत
से हाथ धोना पड़ेगा? मीडिया को तो चंद विज्ञापन और अन्य सुविधाओं के बल पर खरीद लिया है
शासकों ने पर क्या सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट्स की चीत्कार इन निजामों के महलों की
दीवारों से टकराकर लौट रही है?
बलात्कार का मामला उठते ही निजामों की
फौज ने आनन फानन ‘कठोर कार्यवाही‘ का आश्वासन दे मारा। दिल्ली में सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद होने का
दावा और आपके लिए सदा आपके पास होने का दावा करने वाली दिल्ली पुलिस के क्या हाल
हैं यह किसी से छिपा नहीं है। देर रात वाहन चालकों से वसूली के अलावा और कोई काम
नहीं रह गया है दिल्ली पुलिस का।
हाल ही में कुछ पत्रकारों के साथ
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री आरपीएन सिंह ने डीटीसी की एक बस में उसी रूट पर निकले
जिस पर गेंग रेप की घटना को अंजाम दिया गया था। साउथ मोतीबाग से केंद्रीय गृह
राज्य मंत्री ने 640 नंबर की बस पकड़कर छतरपुर मेट्रो स्टेशन तक का जायजा लिया। बस
में मंत्री महोदय को कोई पहचानता नहीं था सो वे आम आदमी की तरह सब कुछ देखते सुनते
रहे।
जब बस छतरपुर पहुंची तब मंत्री जी को
आभास हुआ कि इस मार्ग पर तो एक भी पुलिस का बेरीकेट और पुलिस मोबाईल तक नहीं मिली।
उल्टे छतरपुर में बस रूकने के साथ ही उन्होंने पाया कि कुछ बसें तो मयखाना बनी
हुईं थीं। चालक परिचालक, परिसहाय आदि बैठकर जाम टकरा रहे थे। एक पत्रकार ने पूछा कि भई पुलिस का
खौफ नहीं है यहां? इस पर बस चालक ने छूटते ही कहा कुछ देर रूको काक्के, पुलिस भी इसी मयखाने का हिस्सा बन
जाएगी।
बलात्कार के मामले में अब केंद्र सरकार
पूरी तरह बंटी ही नजर आ रही है। केंद्र सरकार में गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे
जहां कड़ी कार्यवाही का आलाप गा रही है तो वहीं दूसरी ओर केंद्रीय गृह सचिव
आर.के.सिंह द्वारा दिल्ली पुलिस के आयुक्त नीरज कुमार को बचाया जा रहा है। सिंह ने
दिल्ली पुलिस की सेवाओं को आउट स्टेंडिंग का तगमा दे दिया है। इस मामले में
कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का गुस्से का निशाना भी शिंदे बन रहे हैं। सोनिया गांधी
के सलाहकारों ने उन्हें मशिवरा दिया है कि वे इस मामले में सख्ती का आवरण ओढ़ें पर
सरकार में समन्वय ना होने वे भी मजबूर और बेबस ही नजर आ रही हैं।
जब इस मामले में जनाक्रोश चरम पर आया और
रायसीना हिल्स की ओर भीड़ बढ़ी तब लाठी चार्ज कर रेपिड एक्शन फोर्स को बुला लिया
जाता है। इसकी सफाई में गृह राज्य मंत्री महोदय कहते हैं कि वह लाठी चार्ज भीड़ पर
नियंत्रण के लिए किया गया था। क्या गृह राज्य मंत्री के पास इसका कोई जवाब है कि
भीड़ पर नियंत्रण के लिए तो लाठी चार्ज का सहारा ले रहे हैं पर पुलिस और अपराध पर
नियंत्रण के लिए किसका साथ लिया जाएगा?
एक ब्लागर मित्र बी.एस.पाबला ने एक
अपडेट लगाकर लोगों का ध्यान खीचा है। एक अखबार की कटिंग में कहा गया है कि उत्तर
प्रदेश में एक पांच साल की बच्ची के साथ बलात्कार कर उसकी हत्या करने के मामले में
निचली अदालत से लेकर देश की सबसे बड़ी पंचायत तक ने उसे मौत की सजा सुनाई थी। इस
मामले में आरोपी ने दया याचिका को रायसीना हिल्स भेजा जहां तत्कालीन महामहिम
राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने उस दया याचिका में मौत की सजा को उम्रकेद
में बदल दिया था।
क्या अब कांग्रेस के आला नेता, सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह, सुशील कुमार शिंदे, राहुल गांधी, श्रीमति शीला दीक्षित आदि के द्वारा
बलात्कार पीडिता के पक्ष में किए जाने वाले रूदन को घडियाली आंसू की संज्ञा नहीं
दी जानी चाहिए। क्या इन नेताओं में इतनी भी नैतिकता नहीं बची है कि ये अपने ही
पार्टी के लोगों द्वारा किए गए कामों के बारे में दिखावा करने से भी बाज नहीं आ
रहे हैं? क्या ये अपने दिमाग के बजाए सलाहकरों के दिमाग से चलने वाले चाभी वाले
वे खिलौने हैं जिसकी चाबी खत्म होने पर वह रूक जाता है?
पूरा देश नहीं कमाबेश विश्व के हर देश
में इस बारे में माहिती है कि सालों साल से दिल्ली में महिलाएं महफूज नहीं हैं।
दिल्ली परिवहन की रीढ़ बन चुकी मेट्रो में महिलाओं के लिए पहली बोगी आरक्षित है तो
रेल्वे ने भी डीएमयू (लोकल रेल) में भी महिला स्पेशल को चलाया है। हर कदम पर
दिल्ली में पीसीआर वेन खड़ी है। मोटर साईकल पर चौकसी अलग से हो रही है। दिल्ली
कमोबेश 365 दिन ही हाई अलर्ट पर रहती है। देश के व्हीव्हीव्हीआईपी नीति निर्धारक
यहां बसते हैं। शीर्ष पदों पर महिलाओं का कब्जा है, फिर क्या कारण है कि बार बार बलात्कार
की चीत्कार ना तो पुलिस सुन पाती है और ना ही उंचे पदों पर बैठे निजाम!
एक समय था जब देश में सामंतशाही थी।
हाकिमों का राज था, जो वे कहते और चाहते वही सही माना जाता। विरोध करने वालों का सर कलम कर
दिया जाता। अराजकता पूरी तरह हावी होने की संभावनाएं रहतीं। एक हिटलर का राज था
जिसे हिटलरशाही कहा जाता है। हिटलर के बारे में सभी बखूबी जानते हैं। तीसरा देश का
लोकतंत्र या प्रजातंत्र है, जो जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए है। विडम्बना है कि जब प्रजातंत्र
देश में बचता नहीं दिख रहा है। यक्ष प्रश्न आज भी अनुत्तरित ही है कि देश में
प्रजातंत्र है, सामंतशाही है उपनिवेशवाद है या हिटलरशाही! (साई फीचर्स)
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