. . . तो शर्म है इनके भी महिला होने पर
(लिमटी खरे)
16 दिसंबर की रात एक मासूब बाला के साथ गेंग
रेप हो जाता है, केंद्र और
दिल्ली सरकार खामोश रहती है, केंद्रीय गृह सचिव द्वारा दिल्ली पुलिस को
आउट स्टेंडिंग परफार्मेंस के लिए पीठ ठोंकी जाती है। जब गुस्सा सड़कों पर फूटता है
तबभी ना तो मनमोहन सिंह, ना ही सोनिया और ना ही शीला दीक्षित का दिल पसीजता है। सर्द
कंपकपाती हाड गलाने वाली सर्दी में प्रदर्शन कर रहे युवाओं पर पानी की बौछारें और
लाठियां भांजी जाती हैं। छात्राओं के साथ इस तरह बर्ताव किया जाता है मानो वे भेड़
बकरियां हों। आम जनता के दिलो दिमाग में यह प्रश्न घुमड़ना स्वाभाविक ही है कि आखिर
देश में प्रजातंत्र नाम की कोई चीज बची है अथवा देश में हिटलरशाही लागू हो चुकी
है। शर्म तो उस वक्त आती है जब लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष भी अपनी ढीली पोली चाल
से इस मामले में दबी आवाज में विरोध करती नजर आती हैं। एक तरफ स्कूल में गोलीबारी
पर दुनिया का चौधरी बराक ओबामा रो पड़ता है, पर वहीं दूसरी ओर पत्थरदिल भारत गणराज्य के
शासकों को शर्म तो दूर इस तरह इंडिया गेट पर पुलिस की हैवानगी पर रंज भी नहीं होता
है।
16 दिसंबर की रात जो हुआ वह रीढ़ में सिहरन
पैदा करने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है पर उन्हीं लोगों की रीढ़ में जो रीढ़
वाले और संवेदनशील हैं। एक सप्ताह बाद भी इंडिया गेट, विजय चौक आदि पर
पुलिस का जो बर्बर चेहरा सामने आ रहा है उससे पूरा देश दहल गया है। लोगों का
गुस्सा चरम पर है। इंडिया गेट पर हुजूम को देखकर लगने लगा है कि जनता अब उकता चुकी
है। जनता ने पहले बाबा रामदेव और अण्णा हजारे पर भी भरोसा जताया किन्तु बाद में
जनता को समझ में आया कि आंदोलन कर ये सभी सत्ता के ताले की चाभी की ही तलाश कर रहे
थे। इस बार युवा खुद सड़कों पर है। उसका नेतृत्व कोई नहीं कर रहा है। ना ही कोई
नेता ही इनके बीच जाने का प्रयास कर पा रहा है। अरविंद केजरीवाल जरूर धरने पर बैठे
हैं पर युवा उनको भी भाव नहीं दे रहे हैं।
16 दिसंबर को यह घटना घटी वहीं 15 दिसंबर को दुनिया
के चौधरी माने जाने वाले अमरीका में न्यूटाउन इलाके में एक स्कूल में फायरिंग के
दौरान डेढ़ दर्जन बच्चों के मारे जाने की खबर ने अमरीका को दहला दिया था। अमरीका
प्रथम नागरिक बराक ओबामा इससे बुरी तरह व्यथित नजर आया। ओबामा ने इसे नेशनल शेम
करार दिया और आंखों में आंसू भर गए उनकी। उन्होंने 18 दिसंबर तक नेशनल
फ्लेग को झुका देने का आदेश भी दिया।
वहीं दूसरी ओर देश
सुलग रहा है। जनता विशेषकर युवा सड़कों पर है। हाड कपा देने और खून जमा देने वाली
सर्दी में इंडिया गेट पर प्रदर्शन कर रहे युवाओं पर पुलिस द्वारा ना केवल बुरी तरह
लाठियां भांजी जा रहीं हैं वरन् उन पर कड़कड़ाती ठंड में ठंडे पानी की बौछारें की जा
रही हैं। मीडिया से भी शासक नाराज हैं। मीडिया कर्मियों पर भी पुलिस का कहर टूटता
है। पुलिस की इस दमनकारी हरकत से क्या माना जाए? क्या हम प्रजातंत्र
में रह रहे हैं?
आज आम जनता ही
फैसला करे, जब विजय
चौक और इंडिया गेट पर बलात्कारियों के लिए कठोर सजा के प्रावधान के लिए भीड़
गगनभेदी नारे लगा रही है तब उनकी आवाज संसद के गोलकार खंबों और प्रधानमंत्री
कार्यालय के साउथ ब्लाक अन्य मंत्रालयों के नार्थ ब्लाक एवं रायसीना हिल्स स्थित
महामहिम राष्ट्रपति के आवास के लोहे के दरवाजों से टकराकर लौट रही है। जनता तो
इसकी टकराहट के बाद की प्रतिध्वनी सुन रही है पर सत्तानशी लोगों के कानों में जमे
मैल को यह भेद नहीं पा रही है।
सरकार की बेशर्मी
की हद देखिए, बलात्कार
पीडिता के शरीर को लगभग चालीस मिनिट तक उसके मित्र के सामने ही नोंचा खसोटा जाता
है, उसके बाद
उसे फेंक दिया जाता है और जब पुलिस को इसकी सूचना मिलती है तब पुलिस पांच मिनिट
बाद वहां पहुंचती है तब केंद्रीय गृह सचिव आर.के.सिंह द्वारा दिल्ली की निकम्मी
पुलिस की पींठ ठोंकी जाकर कहा जाता है कि दिल्ली पुलिस ने आउट स्टेंडिग परफार्मेंस
दिखाया है। वहीं जले पर नमक छिड़कते हैं दिल्ली पुलिस के आयुक्त! उनका कहना है कि
बलात्कार के केस अब ज्यादा इसलिए होने लगे हैं क्योंकि महिलाएं ज्यादा पढ़ लिख गईं
हैं! आखिर कमिश्नर के कहने का तात्पर्य क्या है?
केंद्र सरकार का
दोयम दर्जे का चेहरा देखना है तो देखिए, एक तरफ स्त्रियों को बराबरी का हक देने की
वकालत की जाती है,
पर जब महिलाओं के साथ अन्याय होता है और उनके हक के लिए युवा
सामने आते हैं तो बालकों को छोड़िए, बालाओं को भी पुलिस द्वारा इस कदर पीटा जाता
है मानो वे ‘केटल क्लास‘ के हों। आखिर इन
युवाओं का दोष क्या है? ये सिर्फ बलात्कार जैसे अपराध को संज्ञेय और जघन्य अपराध की
श्रेणी में लाने की ही मांग तो कर रहे हैं।
मीडिया पर भी सरकार
का नजला टूटा है। मीठा मीठा गप्प कड़वा कड़वा थू की तर्ज पर जब सरकार की गलत नीतियों
पर सरकार के खिलाफ मीडिया द्वारा माहौल बनाया जाता है तो सरकारें नाराज हो जाती
हैं। सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि प्रजातंत्र में सभी को बोलने की आजादी है।
कांग्रेस के बेपरवाह, सत्ता के मद में डूबे नुमाईंदों की आंख खोलने के लिए एक
उदहारण का जिकर यहां लाजिमी होगा। पंडित जवाहर लाल नेहरू के सामने ही उनके दमाद और
गांधी उपनाम देने वाले फिरोज गांधी ने तत्कालीन वित्त मंत्री टी.टी.कृष्णामचारी पर
एक उद्योगपति के माध्यम से सार्वजनिक तौर पर डाका डालकर धन संग्रह का आरोप मढ़ दिया
था। कहने का तात्पर्य महज इतना है कि क्या केंद्रीय गृह सचिव ने दिल्ली पुलिस
आयुक्त की पीठ ठोंकने के साथ ही साथ उनसे यह पूछने की जहमत उठाई है कि आखिर सफेद
रंग वाली इस तरह की बस किस परमिट पर चल रही हैं जो दस से बीस पच्चीस रूपए लेेकर
सवारियां बिठा रही हैं?
अण्णा हजारे, बाबा रामदेव, अरविंद केजरीवाल
अपने पीछे जुटती भीड़ को देखकर फूल कर कुप्पा अवश्य होते होंगे, पर उन्हें भी इस
बात को समझना चाहिए कि देश में भीड़तंत्र है ना कि भेड़ तंत्र। भेड़ों के बारे में
बता दें कि भेड़ समूह में आगे चलने वाली भेड़ का ही अनुसरण समूह की सारी भेड़ें करती
हैं। अगर लोगों को लग रहा है कि भेड़ के मानिंद लोगों को कदमताल करवा लेंगे तो वे
अपना भ्रम तोड़ लें। जो भीड़ अण्णा, बाबा या केजरीवाल के साथ थी वस्तुतः वह
व्यवस्था से दुखी लोगों की भीड़ थी।
पिछले तीन दिनों से
विजय चौक और इंडिया गेट पर देश की बेटियों द्वारा पुलिस के साथ हुज्जत, पुलिस की लाठी के
सामने ना झुकना, कड़कड़ाती
ठण्ड में ठण्डे पानी की मार सहन करते हुए देखकर हमें निश्चित तौर पर देश की
बेटियों पर गर्व हो रहा है। हमारा सीना निश्चित तौर पर फूलकर दुगना हो गया है। अब
लगने लगा है कि देश की बेटियां किसी के रहमो करम पर नहीं हैं। बेटियां अपने हक के
लिए किसी भी स्तर तक जाने को तैयार दिख रही हैं।
सोशल नेटवर्किंग
वेब साईट्स पूरे शबाब पर हैं। लोग सरकार के खिलाफ अपने गुस्से का जमकर इजहार कर
रहे हैं। स्थिति देखकर वाकई लगने लगा है कि मानवता शर्मसार हो चुकी है। इस देश में
जहां लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगनाएं पैदा हुईं हों वहां महिलाओं को अपने हक के लिए
सड़कों पर डंडे खाने पड़ रहे हैं। सरकार बेटी बचाओ का संदेश देती है पर जब बेटी पर
बन आती है और वह अपने हक के लिए आगे आती है तो वही सरकार उसके साथ दमनकारी तरीका
अपनाती है। एक महिला के साथ आवाज बुलंद करने में देश की पहली महामहिम महिला
राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, लोकसभा में नेता
प्रतिपक्ष श्रीमति सुषमा स्वराज, दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित, ममता बनर्जी, जयललिता, पूर्व मुख्यमंत्री
वसुंधरा राजे, मायावती, उमा भारती, पहली महिला आईपीएस
किरण बेदी आदि को शर्म आ रही है। अगर वाकई एसा है तो शर्म है इनके महिला होने पर।
हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि मानवता शर्मसार हो चुकी है और मनमोहन सिंह
किसी की कठपुतली बनकर हिटलर की भूमिका में आ चुके हैं। (साई फीचर्स)
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