बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 16
मंत्रियों की शाहखर्ची ने नाराज हैं कार्यकर्ता
जनता के सामने जवाब देते समय बगलें झांकते हैं कार्यकर्ता
पीएमओ पर होने वाला खर्च डाल रहा आश्चर्य में
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की कलई शनैः शनैः खुलने लगी है। मंदी के दौर के बावजूद केंद्र सरकार के मंत्रियों की शाहखर्ची से सरकारी खजाना तेजी से खाली हुआ है। विदेश दौरों के मामले में संप्रग के मंत्रियों ने राजग के मंत्रियों को पानी पिला दिया है। कार्यकर्ता हैरान परेशान है। जनता के बीच तो उसे ही जाना है, उधर इस तरह की खबरें कांग्रेस आलाकमान की पेशानी पर परेशानी की बूंदे छलका रही हैं। आलाकमान भी अब मानने लगी हैं कि मनमोहन अक्षम होने के साथ ही साथ भ्रष्टाचार के ईमानदार संरक्षक ही साबित हो रहे हैं।
अटल बिहारी बाजपेयी के शासनकाल में प्रधानमंत्री कार्यालय पर पांच सालों में 55 करोड़ रूपए व्यय किए गए। उस वक्त इस बजट को ही अधिक मानकर हो हल्ला हुआ था। इसके बाद पांच सालों में जब वैश्विक मंदी की मार भारत गणराज्य भी झेल रहा था तब पांच सालों में पीएमओ ने 85 करोड़ रूपए फूंक डाले। हद तो तब हुई जब संप्रग टू में अब तक प्रधानमंत्री कार्यालय सत्तर करोड़ रूपए फॅूक चुका है।
गौरतलब है कि वैसे भी मंत्रीगण जनता के पैसे पर एश करने के लिए बुरी तरह कुख्यात रहे हैं। जनता के द्वारा दिए गए करों से एकत्रित राजस्व को हवा में उड़ाने में न तो राजग के मंत्री पीछे रहे और न ही संप्रग के। तुलनात्मक अध्ययन में राजग के मंत्री किफायती साबित हुए हैं। राजग के पांच साल के शासनकाल में वाजपेयी सरकार के मंत्रियों ने विदेश यात्राओं पर 268 करोड़ रूपए खर्च किए तो उसके बाद मनमोहन सरकार के मंत्रियों ने पांच सालों में ही 546 करोड़ रूपए से अधिक विदेश यात्राओं में फूंक दिए।
विदेश यात्राओं का प्रेम संप्रग टू में भी जारी है। इस बार भी मंत्रियों ने तबियत से विदेश यात्राएं की और अभी अनेकों प्रस्ताव आज भी लंबित हैं। मंत्री लाख कहें कि वे सार्वजनिक संपत्ति में खर्च नहीं करेंगे पर यक्ष प्रश्न यही खड़ा है कि क्या वे इन यात्राओं में अपनी गांठ ढीली करेंगे। अनेकों बार मंत्रियों के साथ उद्योगपति होते हैं जो परोक्ष तौर पर उनकी सुविधाओं का पूरा पूरा ध्यान रखते हैं। अगर कोई उद्योगपति राष्ट्र के मंत्रियों पर व्यय करता है तो वह उसका कितना गुना उन मंत्रियों से वसूलेगा इस बारे में अंदाजा लगाना मुश्किल ही है।
(क्रमशः जारी)
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