राजेंद्र प्रसाद और
पंडित जी की जंग में संसद हुई सर्वोच्च!
कश्यप बंधुओं की किताब से हुआ अहम खुलासा
(शरद खरे)
नई दिल्ली (साई)।
भारत गणराज्य की स्थापना के साथ ही देश के प्रथम महामहिम राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र
प्रसाद और देश के पहले वज़ीरे आज़म पंडित जवाहर लाल नेहरू के बीच चली वर्चस्व की जंग
के चलते ही देश में महामहिम राष्ट्रपति के बजाए संसद को सर्वोच्च माना गया। इस बात
का खुलासा कश्यप बंधुओं की हाल ही में बाजार में आई किताब से हुआ है।
भारत गणराज्य के
प्रथम महामहिम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद और प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर
लाल नेहरू के बीच हुई तकरार के परिणाम ने संभवतः भारत देश की राजनीति को नया मोड़
दिया जिसमें संसद की सर्वाेच्चता को मान्यता दी गई। प्रसाद और नेहरू के बीच पत्रों
के आदान-प्रदान से स्पष्ट होता है कि प्रसाद राष्ट्रपति के लिए असीम शक्तियां
चाहते थे मगर देश में शुद्ध रूप से संसदीय प्रणाली की सरकार चलाने पर जोर दिया
गया। इसी कारण नेहरू राष्ट्रपति प्रसाद के साथ हुई झड़प में जीत गए।
1950 और 1951 में दोनों नेताओं के बीच हुए पत्रों के
आदान-प्रदान को सार्वजनिक किया गया। समय था संविधान कानून विशेषज्ञ सुभाष सी.
कश्यप और अभय कश्यप की पुस्तक के विमोचन का। पत्रों का पूरा विवरण पुस्तक ‘इंडियन प्रैसीडैंसी’ में दिया गया।
पुस्तक का विमोचन डा. कर्ण सिंह ने इंडिया इंटरनैशनल सैंटर में किया।
डा. प्रसाद ने 21 मार्च 1950 को नेहरू को एक
पत्र लिखा जिसमें भारत के राष्ट्रपति द्वारा अपने अधिकारों का इस्तेमाल
मंत्रिपरिषद की सलाह पर करने का उल्लेख किया गया और इस बात पर जोर दिया गया कि इस
मामले पर स्पष्टीकरण की जरूरत है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति एक सांसद नहीं बल्कि
संसद का तीसरा हिस्सा है।
संसद द्वारा पारित
विधेयक को कानून बनाने के लिए राष्ट्रपति के हस्ताक्षर की जरूरत होती है। उन्होंने
इस बात पर भी जोर दिया कि राष्ट्रपति को किसी भी मामले में सूचना या सलाह प्राप्त
करने के लिए किसी भी सचिव से संपर्क करने का अधिकार हो। उन्होंने कहा कि आजादी से
पहले राज्यपाल और एक सचिव के बीच सीधे सम्पर्क पर आपत्ति की जाती थी मगर अब ऐसा
कुछ भी नहीं है।
पंडित जवाहर लाल
नेहरू ने नेहरू ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 74 के अनुरूप
राष्ट्रपति को सभी काम मंत्रिपरिषद की सलाह और मदद से करने हैं क्योंकि अनुच्छेद 75 के अनुरूप यह
मंत्रिपरिषद ही है जो संसद के प्रति सामूहिक रूप से जिम्मेदार है। इस दलील ने देश
का प्रशासन चलाने में संसद की सर्वाेच्चता को बनाया।
समाचार एजेंसी ऑफ
इंडिया को मिली जानकारी के अनुसार नेहरू ने 6 अक्तूबर 1950 को लिखा कि जिस
समय राष्ट्रपति ने मंत्रिपरिषद की सलाह और मदद को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया
उसी समय संवैधानिक संकट पैदा हो जाएगा। उन्होंने कहा कि संविधान निर्माताओं ने
स्पष्ट किया है कि देश में संसदीय प्रणाली की सरकार की व्यवस्था होगी न कि
अध्यक्षीय प्रणाली की सरकार की।
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