अल्ला हाफिज....सईद!
(संजय तिवारी)
अमेरिका ने वह कर दिया पाकिस्तान में जो वह करना चाहता था। अफगानिस्तान के लादेन को दफन करने के बाद उसने पाकिस्तान में हाफिज सईद को लादेन का दर्जा दे दिया है। अमेरिका ने पाकिस्तान के चरमपंथी संगठन जमात उद दावा के प्रमुख मोहम्मद हाफिज सईद पर दस मिलियन डॉलर यानी करीब पचास करोड़ रूपये का ईनाम घोषित कर दिया है। हालांकि इस घोषणा के बाद अभी तक एफबीआई ने हाफिज सईद को टॉप टेन मोस्ट वांटेड सूची में सईद को शामिल नहीं किया है लेकिन एफबीआई इतना ईमान उसी अपराधी पर घोषित करती है जो उसके लिए टॉप टेन के बराबर पहुंच जाता है। ओसामा बिन लादेन भी इसी सूची में था, अब सईद भी ष्अमेरिकी सम्मानष् की इसी सूची में पहुंच गया है। साफ है, इस घोषणा के साथ ही अमेरिका ने मिशन पाकिस्तान की भी शुरूआत कर दी है।
एकदम से यह कहना कि अमेरिका पाकिस्तान को अफगानिस्तान बना देगा, कूटनीतिक तौर पर सही नहीं होगा लेकिन हाफिज सईद पर पचास करोड़ का ईनाम इसकी शुरूआत है. दुनिया के लिए सईद आतंकवादी होगा लेकिन खुद पाकिस्तान के लिए मोहम्मद हाफिज सईद ष्साहबष् है. पाकिस्तान में हाफिज सईद सरकार से बड़ा सियासतदां हैं. भारत के पास न जाने कितने सबूत हैं कि भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई पर हुए आतंकी हमले का मुख्य सूत्रधार और कोई नहीं बल्कि हाफिज सईद है लेकिन जब मामला पाकिस्तान की अदालत में पहुंचा तो लाहौर हाईकोर्ट ने 13 अक्टूबर 2009 को सईद को आरोपमुक्त करते हुए कह दिया कि मुंबई हमलों के लिए हाफिज सईद कोई आरोप निर्धारित नहीं होता है और मामला खारिज हो गया. हाईकोर्ट के निर्णय को दिखावे के तौर पर पाकिस्तान सरकार ने पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी लेकिन वहां भी हाफिज सईद को क्लीन चिट मिल गई.
अब जबकि अमेरिका ने हाफिज सईद को अपने ष्सम्मानितोंष् की सूची में शामिल कर लिया है तो पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक उन्हीं फैसलों की दुहाई देते हुए अपने ष्पाकिस्तानी नागरिकष् का बचाव कर रहे हैं. वे कुछ गलत नहीं कर रहे हैं. पाकिस्तानी प्रशासन हाफिज सईद को आतंकवादी मान ले तो पाकिस्तान में आग लगते देर न लगेगी. पाकिस्तान के सरगोधा में पैदा हुआ मुहम्मद हाफिज सईद भारत पाक बंटवारे के तीन साल बाद पैदा हुआ था. भारत के शिमला में रहनेवाले हाफिज सईद के वंशज बंटवारे के बाद लाहौर जा रहे थे और रास्ते में उसके कुनबे के 36 लोग बंटवारे की भेंट चढ़ गये. भारत पाक बंटवारे के समय मारे गये मुसलमानों को किन लोगों ने मारा होगा इसे समझना ज्यादा मुश्किल है. शायद इसीलिए हाफिज सईद के खून में भारत विरोध की चिंगारी है जिसे वह अपनी पूरी जिंदगी अंजाम देता रहा है.
बासठ साल के हाफिज सईद के जेहन में इस्लामिक जेहाद पहली बार अस्सी के दशक में तब उभरा जब वह उच्चतर शिक्षा ग्रहण करने के लिए अरब दौरे पर गया था. वहां के इस्लामिक विद्वानों और शेख साहबानों से मुलाकात में ही संभवतरू उसे समझ में आ गया कि जेहाद की जिद्द ही पाकिस्तान की तकदीर बदल सकती है, और शायद इस्लाम की भी. यही वह समय था जब अफगानिस्तान में अरब ताकतें पूरी शिद्दत से सोवियत यूनियन के साथ लड़ रही थीं. लाहौर के इंजिनयरिंग कालेज का यह प्रोफेसर जेहाद की इस जंग में शामिल हुआ और 1987 में पहली बार उसने मरकज-दवा-वल-इरशाद की स्थापना की जो कि पाकिस्तान के जमात-ए-अहल-ए-हदीस से प्रेरित संगठन था. जिस संगठन से प्रेरित होकर हाफिज सईद ने मरकज-दवा-वल-इरशाद बनाई थी उसके मुखिया एहसान इलाही जहीर की उसी साल हत्या हो गई. 1916 में भारत में पैदा हुए इस इस्लामिक संगठन जमात-ए-अहल-ए-हदीठ का मुख्य मकसद इस्लामिक शरीया कानूनों को लागू करना था, जो बंटवारे के बाद इस्लामिक राष्ट्र बने पाकिस्तान में ज्यादा प्रासंगिक हो गया था.
1987 से संगठनों के जरिए इस्लामिक समाज में घुसपैठ करने की जो शुरूआत हाफिज सईद ने की थी वह आज भी कई संगठनों के माध्यम से जारी है. कश्मीर की आजादी के लिए उसके द्वारा 1990 में स्थापित किये गये लश्कर-ए-तैय्यबा पर 2001 में अमेरिका द्वारा प्रतिबंध लगा तो उसने जमात-उद-दवा नामक संगठन बना दिया जो घोषित तौर पर भारत के टुकड़े करने और उसको घुटनों के बल बैठा देने का दावा नहीं करता था बल्कि पाकिस्तान में जिहाद के लिए दान इकट्ठा करने और सेवा करने का काम कर रहा था. लश्कर-ए-तैयबा को अगर दुनिया आतंकी गतिविधियों के लिए जानती है तो जमात-उद-दवा चर्चा में इसलिए आया कि उसने कश्मीर घाटी में आये भूकंप में वहां जमकर राहत शिविर चलाये थे और लोगों की मदद की थी. फिर भी मकसद से डिगने और भारत को खून की होली खेलने के लिए मजबूर करते रहने की मंशा दबी नहीं थी. 2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमले में जमात-उद-दवा की पोल खुल गई और साबित हो गया कि यह संगठन सिर्फ लश्कर-ए-तैयब्बा की करतूतों को ढंकने के लिए खड़ा किया गया है.
लेकिन ओसामा बिन लादेन के अफगानिस्तान से भागने के बाद से ही जब अमेरिका ने पाकिस्तान में अपनी दखल बढ़ाई तो हाफिज सईद के लिए अमेरिका दुश्मन नंबर एक हो गया. हाल के दिनों में अफगानिस्तान में मौजूद नाटो फौजों को रसद सप्लाई पर हो रहे लगातार हमले इस बात का संकेत हैं कि हाफिज सईद शांत नहीं बैठा है. इन दिनों पाकिस्तान में दिफा-ए-पाकिस्तान नाम से पूरे पाकिस्तान में रैलियां आयोजित की जा रही हैं जिसमें इस्लाम और पाकिस्तान के प्रति वफादारी की कसमें खिलाई जा रही हैं. इन रैलियों में मुख्य वक्ता हाफिज सईद ही होता है जो अब भारत से ज्यादा अमेरिका के खिलाफ जहर उगलता है. बीते महीने फरवरी में कराची में एक ऐसी ही रैली को संबोधित करते हुए हाफिज सईद ने कहा कि अमेरिका का नामोनिशान दुनिया से जा रहा है और अल्लाह के फजल से इंकलाब आ रहा है. हालांकि इस इंकलाब के लिए हाफिज सईद हथियारों को गैर जरूरी बताता है और कहता है कि वह जिस जेहाद की बात कर रहा है उसमें नीचेवाले का रोल कम और ऊपरवाले का रोल ज्यादा है.
हाफिज सईद की इस नई पहल में सीधे सीधे अमेरिका निशाने पर है जिसमें उसकी मदद आईएसआई के पूर्व प्रमुख जनरल हामिद गुल कर रहे हैं. हामिद गुल वही शख्स हैं जिन्होंने आईएसआई में रहते हुए लश्कर-ए-तैयबा को पाला पोसा. इसी पालन पोषण के दौरान हाफिज सईद और हामिद गुल की करीबी बढ़ी जो रिटायर होने के बाद अब खुलकर जमात-उद-दवा के बैनर तले आयोजित होनेवाली रैलियों में खुलकर अमेरिका के खिलाफ बोल रहे हैं. 18 दिसंबर 2011 को लाहौर के मीनार-ए-पाकिस्तान पर आयोजित दिफा-ए-पाकिस्तान की रैली में बोलते हुए कहा कि ष्अमेरिका जख्मी जानवर की तरह बेताब है, झपट्टा मारने के लिए, पाकिस्तान के ऊपर झपटने के लिए. ये खूंखार भेड़िया पाकिस्तान की तरफ कदम उठाना चाहता है.ष् हालांकि अपनी तकरीर में हामिद गुल बांग्लादेश का दर्द और अमेरिका के ष्दोस्तष् भारत और इजरायल का जिक्र करना नहीं भूलते हैं लेकिन उनके पूरे भाषण के केन्द्र में अमेरिका ही रहता है. इसी रैली में बोलते हुए हाफिज सईद जो कुछ कहता है उसका मतलब यह है कि पाकिस्तान एक इस्लामिक राष्ट्र है और इस पाकिस्तान के चप्पे चप्पे के दीफा हमारा दीनी फरिशा है.
दिफा-ए-पाकिस्तान की इन रैलियों में सीधे तौर पर एक ही संदेश दिया जा रहा है कि अमेरिका पाकिस्तान से दूर रहे. यह कोई संयोग नहीं है कि दिफा-ए-पाकिस्तान की ये रैलियां मई 2011 के बाद शुरू की गई हैं जबकि अमेरिका ने पाकिस्तान में घुसकर ओसामा बिन लादेन को मार गिराया था. इसलिए इन रैलियों में अमेरिका के ड्रोन हमलों का जिक्र किया जाता है, अमेरिकी फौजों की निंदा की जाती है और उनके दूतावासों को अमेरिकी जासूसी का अड्डा बताया जाता है. ऐसा शायद इसलिए ताकि पाकिस्तान की आवाम को अमेरिका के खिलाफ लामबंद किया जा सके. बहुत हद तक हाफिज सईद इसमें कामयाब है. वह खुलेआम अमेरिका के खिलाफ जंग लड़ने और पाकिस्तान का ष्दिफाष् (बचाव) करने की वकालत करता है.
हाफिज सईद की तकरीरों में उमड़ रही भीड़ ही असल में अमेरिका की चिंता है. संभवतरू अमेरिकी रणनीतिकार मान चुके हैं कि वे पाकिस्तानी हुकमरानों के जरिए हाफिज सईद को नहीं रोक सकते इसलिए अब उन्होने हाफिज सईद के खिलाफ स्वयं निर्णायक लड़ाई की शुरूआत कर दी है. अमेरिका द्वारा हाफिज सईद पर पचास करोड़ का ईनाम उसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर आतंकवादी साबित करने के लिए काफी होगा. हाफिज सईद की गतिविधियों से भारत भले ही अनजान बना बैठा रहता हो लेकिन ओसामा बिन लादने की मौत के बाद से अमेरिका के राडार पर अब हाफिज सईद है जो अब सीधे तौर पर हथियार उठाने की सलाह नहीं देता और जिसके साथ पाकिस्तान की फौज और खुफिया एजंसी भी सक्रिय रूप से सहयोग करने से पीछे नहीं रहती.
जाहिर है, हाफिज सईद का इरादा बड़ा है. पाकिस्तान के जर्रे जर्रे की रक्षा करने के लिए जरूरी हुआ तो वह पाकिस्तान पर काबिज भी हो सकता है और असैन्य तख्तापलट की तरफ भी आगे बढ़ सकता है. यह सब तत्काल नहीं होनेवाला है लेकिन जिस तरह से पूर्व आईएसआई चीफ हामिद गुल खुलेआम जमात-उद-दवा की रैलियों को संबोधित कर रहे हैं उससे साफ है कि अमेरिका विरोध को पाकिस्तान में बहुत गहरे तक समर्थन हासिल है जिसे अमेरिका सिर्फ सरकारी स्तर पर कूटनीतिक प्रयास से नियंत्रण हासिल नहीं कर सकता. इसलिए उसने अब पाकिस्तान में युद्ध का अपना अगला निशाना तय कर लिया है. वह निशाना हाफिज सईद है. हो सकता है अमेरिका को इस लड़ाई में पाकिस्तान की प्रजातांत्रिक सरकार आंतरिक मदद भी कर दे क्योंकि हाफिज सईद का हुकूक अगर बढ़ता है तो खतरे में वहां की संसदीय व्यवस्था का आना तय है.
हाफिज सईद पर पचास करोड़ का ईनाम घोषित करके अमेरिका ने पाकिस्तान में अपना अगला निशाना तय कर लिया है. हाफिज सईद के खिलाफ अमेरिका ने युद्ध का बिगुल बजा दिया है, परिणाम क्या होगा यह तो वक्त बतायेगा, लेकिन इतना तय है कि अमेरिका अब हाफिज सईद को अल्ला हाफिज बोलकर ही दम लेगा.
(लेखक विस्फोट डॉट काम के संपादक हैं)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें